TS Inter 2nd Year Hindi Grammar अपठित बोधक गद्यांश

Telangana TSBIE TS Inter 2nd Year Hindi Study Material Grammar अपठित बोधक गद्यांश Questions and Answers.

TS Inter 2nd Year Hindi Grammar अपठित बोधक गद्यांश

अपठित शब्द का अर्थ है जो इससे पहले नहीं पढ़ा गया है। इस तरह के गद्यांश पाठ्यपुस्तकेतर होते हैं। इसका उद्देश्य पठन क्षमता का विकास करना, अर्थग्रहण करना तथा लिखित अभिव्यक्ति पर अधिकार प्राप्त करना है । दैनंदिन जीवन में हमें कई विषयों को पढ़ना पड़ता है, जिनका समाधान हमें सोच – समझकर देना पड़ता है। अतः यहाँ पर पठन और ग्रहण क्षमता का विकास करने के उद्देश्य से कुछ बोधक गद्यांश दिए जा रहे हैं ।

1. नीचे दिया गया गद्यांश पढ़िए । प्रश्नों के उत्तर लिखिए ।

अपने पर्यावरण को बेहतर बनाने के लिए हमें सबसे पहले अपनी मुख्य जरूरत ‘जल’ को प्रदूषण से बचाना होगा । कारखानों का गंदा पानी, घरेलू, गंदा पानी, नालियों में प्रवाहित मल, सीवर लाइन का गंदा निष्कासित पानी समीपस्थ नदियों और समुद्र में गिरने से रोकना होगा । कारखानों के पानी में हानिकारक रासायनिक तत्व घुले रहते हैं जो नदियों के जल को विषाक्त कर देते हैं, परिणामस्वरुप जलचरों के जीवन को संकट का सामना करना पड़ता है।

दूसरी ओर हम देखते हैं कि उसी प्रदूषित पानी को सिंचाई के काम में लेते हैं जिसमें उपजाऊ भूमि भी विषैली हो जाती है । उसमें उगने वाली फसल व सब्जियां भी पौष्टिक तत्वों से रहित हो जाती हैं जिनके सेवन से अवशिष्ट जीवननाशी रसायन मानव शरीर में पहुंच कर खून को विषैला बना देते हैं । कहने का तात्पर्य यही है कि यदि हम अपने कल को स्वस्थ देखना चाहते हैं तो आवश्यक है कि बच्चों को पर्यावरण सुरक्षा का समुचित ज्ञान समय समय पर देते रहें । अच्छे व मंहगें ब्रांड के कपड़े पहनाने से कहीं पहत्वरूर्ण है उनका स्वास्थ्य, जो हमारा भविष्य व उनकी पूंजी है ।

प्रश्न – उत्तर :

प्रश्न 1.
पर्यावरण को बचाने के लिए सबसे पहले क्या करना चाहिए ?
उत्तर:
पर्यावरण को बेहतर बनाने के लिए हमें सबसे पहले अपनी मुख्य जरूरत ‘जल’ को प्रदूषण से बचाना होगा ।

प्रश्न 2.
नदियों और समुद्रों में क्या निष्कासित किया जा रहा है ?
उत्तर:
कारखानों का गंदा पानी, घरेलू गंदा पानी, नालियों में प्रवाहित मल; सीवर लाइन का गंदा निष्कासित किया जा रहा है ।

TS Inter 2nd Year Hindi Grammar अपठित बोधक गद्यांश

प्रश्न 3.
खून कैसे विषैला बनता है ?
उत्तर:
प्रदूषित पानी को सिंचाई के काम में उपयोगित करके उगनेवाली फसल व सब्जियाँ सेवन से खून विषैला बनता है ।

प्रश्न 4.
हमारे भविष्य की पूंजी क्या है ?
उत्तर:
हमारे भविष्य की पूंजी खास्थ्य है । मनुष्य खस्थ से रहना अधिक धन कमाने से बहतर है !

2. नीचे दिया गया गद्यांश पढ़िए प्रश्नों के उत्तर लिखिए ।

एच. आई. वी एक अतिसूक्ष्म विषाणु हैं जिसकी वजह से एड्स हो सकता है। एड्स स्वयं में कोई रोग नहीं है बल्कि एक संलक्षण है । यह मनुष्य की अन्य रोगों से लड़ने की नैसर्गिक प्रतिरोधक क्षमता को घटा देता हैं । प्रतिरोधक क्षमता के क्रमशः क्षय होने से कोई भी अनसरवादी संक्रमण, यानि आम सर्दी जुकाम से ले कर फुफ्फुस प्रदाह, टीबी, क्षय रोग, कर्क रोग जैसे रोग तक सहजता से हो जाते हैं और उनका इलाज करना कठिन हो जाता हैं और मरीज़ की मृत्यु भी हो सकती है। यही कारण है की एड्स परीक्षण महत्वपूर्ण है ।

सिर्फ एड्स परीक्षण से ही निश्चित रूप से संक्रमण का पता लगाया जा सकता है। एइस एक तरह का संक्रामक यानी की एक से दूसरे को और दुसरे से तीसरे को होने वाली एक गंभीर बीमारी है। एड्स का पूरा नाम ‘एक्काई इम्यूनो डेफिसिएंशी सिंड्रोम’ ( acquired immune deficiency syndrome) है और यह एक तरह के विषाणु जिसका नाम HIV (Human immunodeficiency virus) है, से फैलती है । अगर किसीको HIV है तो ये जरूरी नहीं की उसको एड्स भी है । HIV वायरस की वजह से एड्स होता है अगर समय रहते वायरस का इलाज़ कर दिया गया तो एड्स होने खतरा काम हो जाता है ।

प्रश्न – उत्तर :

प्रश्न 1.
एच. आई. वी. कैसी विषाणु है ?
उत्तर:
एच.आई.वी एक अतिसूक्ष्म विषाणु हैं ।

प्रश्न 2.
किसका परीक्षण महत्वपूर्ण है ?
उत्तर:
एड्स परीक्षण महत्वपूर्ण है ।

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प्रश्न 3.
AIDS का पूर्ण रूप क्या है ?
उत्तर:
एंक्वायई इम्यूनो डेफिसिएंश सिंड्रोम
[Acquired immune deficiency syndrome)

प्रश्न 4.
एड्स का खतरा कैसे कम हो सकता है ?
उत्तर:
HIV वायरस का इलाज सही समय पर दीया गया तो खतरा कम हो सकता है ।

3. नीचे दिया गया गद्यांश पढ़िए। प्रश्नों के उत्तर लिखिए ।

राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे में समान अनुपात में तीन क्षैतिज पट्टियां हैं : गहरा सरिया रंग सबसे ऊपर, सफेद बीच में और हरा रंग सबसे नीचे है । ध्वज की लंबाई-चौड़ाई-चौड़ाई का अनुपात 3 : 2 है। सफेद पट्टी के बीच में नीले रंग का चक्र है।

शीर्ष में गहरा केसरिया रंग देश की ताकत और को साहस दर्शाता है। बीच में स्थित सफेद पट्टी धर्म चक्र के साथ शांति और सत्य का संकेत है । हरा रंग देश के शुभ, विकास और उर्वरता को दर्शाता है ।

इसका प्रारुप सारनाथ में अशोक के सिंह स्तंभ पर बने चक्र से लिया गया है । इसका व्यास सफेद पट्टी की चौड़ाई के लगभग बराबर है और इसमें 24 तीलियां हैं । राष्ट्रीय ध्वज श्री पिंगली वेंकैया जी ने डिजाइन किया था । भारत की संविधान सभा ने राष्ट्रीय ध्वज का प्रारूप 22 जुलाई 1947 को अपनाया ।

प्रश्न – उत्तर :

प्रश्न 1.
भारत के झंडे में कितने रंग हैं ?
उत्तर:
भारत के झंडे में तीन रंग है ।

प्रश्न 2.
तिरंगे का चक्र किसके नाम पर रखा गया है ?
उत्तर:
अशोक के नाम पर

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प्रश्न 3.
चक्र में कितनी तिलियाँ होती है ?
उत्तर:
24 तीलिया

प्रश्न 4.
सफेद पट्टी किसका संकेत है ?
उत्तर:
शांति और सत्य का संकेत है ।

4. नीचे दिया गया गद्यांश पढ़िए । प्रश्नों के उत्तर लिखिए ।

गोदावरी दक्षिण भारत की एक प्रमुख नदी है । यह नदी दूसरी प्रायद्वीपीय नदियों में से सबसे बड़ी नदी है। इसे दक्षिण गंगा भी कहा जाता है । इसकी उत्पत्ति पश्चिमी घाट में त्रयंबक पहाड़ी से हुई है । यह महाराष्ट्र में नासिक जिले से निकलती है। इसकी लम्बाई प्रायः 1465 किलोमीटर है । इस नदी का पाट बहुत बड़ा है। गोदावरी की उपनदियों में प्रमुख हैं प्राणहिता, इन्द्रावती, मंजिरा । यह महाराष्ट्र, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश से बहते हुए राजहमहेन्द्री शहर के समीप बंगाल की खाड़ी मे जाकर मिलती है।

कुछ विद्वानों के अनुसार, इसका नामकरण तेलुगु भाषा के शब्द ‘गोद’ से हुआ है, जिसका अर्थ मर्यादा होता है। एक बार महर्षि गौतम ने घोर तप किया। इससे रुद्र प्रसन्न हो गए और उन्होंने एक बाल के प्रभाव से गंगा को प्रवाहित किया। गंगाजल के स्पर्श से एक मृत गाय पुनर्जीवित हो उठी। इसी कारण इसका नाम गोदावरी पड़ा । गौतम से संबंध जुड जाने के कारण इसे गौतमी भी कहा जाने लगा । इसमें नहाने से सारे पाप धुल जाते हैं। गोदावरी की सात धारा वसिष्टा, कौशिकी, वृद्ध गौतमी, भारद्वाजी, आत्रेयी और तुल्या अतीव प्रसिद्ध है। पुराणों में इनका वर्णन मिलता है ।

प्रश्न – उत्तर :

प्रश्न 1.
गोदावरी कहाँ की प्रमुख नदी है ?
उत्तर:
गोदावरी दक्षिण भारत की प्रमुख नदी है ।

प्रश्न 2.
इस नदी की लंबाई कितनी है ?
उत्तर:
इस नदी की लंबाई 1465 किलोमीटर है ।

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प्रश्न 3.
गोदावरी शब्द का नाम करण किस शब्द से हुआ ?
उत्तर:
गोदावरी शब्द का नामकरण तेलुगु भाषा के शब्द ‘गोद’ से हुआ है।

प्रश्न 4.
गोदावरी का दूसरा नाम क्या है ?
उत्तर:
गोदावरी का दूसरा नाम गौतमी भी है ।

5. नीचे दिया गया गद्यांश पढ़िए । प्रश्नों के उत्तर लिखिए ।

मोहनदास करमचन्द गांधी (2 अक्तूबर 1869-30 जनवरी 1948) भारत एवं भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के एक प्रमुख राजनैतिक एवं आध्यात्मिक नेता थे । वे सत्याग्रह ( व्यापक सविनय अवज्ञा ) के माध्यम से अत्याचार के प्रतिकार के अग्रणी नेता थे, उनकी इस अवधारणा की नींव सम्पूर्ण अहिंसा के सिद्धान्त पर रखी गयी थी जिसने भारत को आजादी दिलाकर पूरी दुनिया में जनता के नागरिक अधिकारों एवं स्वतंत्रता के प्रति आन्दोलन के लिये प्रेरित किया । उन्हें दुनिया में आम जनता महात्मा गांधी के नाम से जानती है।

संस्कृत भाषा में महात्मा अथवा महान आत्मा एक सम्मान सूचक शब्द है । गांधी को महात्मा के नाम से सबसे पहले 1915 में राजवैद्य जीवराम कालिदास ने संबोधित किया था । उन्हें बापू (गुजराती भाषा में बापू यानी पिता) के नाम से भी याद कया जाता है। सुभाष चन्द्रबोस ने 6 जुलाई 1944 को रंगून रेडियो से गांधी जी के नाम जारी प्रसारण में उन्हें राष्ट्रपिता कहकर सम्बोधित करते हुए आज़ाद हिन्द फौज़ के सैनिकों के लिये उनका आशीर्वाद और शुभकामनाएँ माँगी थीं । प्रति वर्ष 2 अक्तूबर को उनका जन्म दिन भारत में गांधी जयंती के रूप में और पूरे विश्व में अन्तर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस के नाम से मनाया जाता है ।

प्रश्न – उत्तर :

प्रश्न 1.
हात्मा गांधी का जन्म कब हुआ ?
उत्तर:
2 अक्तूबर 1869 में गाँधीजी का जन्म हुआ

प्रश्न 2.
गांधी जी को महात्मा नाम से सबसे पहले किसने संबोधित किया ?
उत्तर:
“राजवैद्य जीवराम कालिदास’ ने संबोधित किया ।

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प्रश्न 3.
रंगून रेडियो से किसने संबोधित किया ?
उत्तर:
“सुभाष चन्द्र बोस’ रंगून रेडियो से संबोधित किया ।

प्रश्न 4.
गांधी जयंती कब मनाते हैं ?
उत्तर:
“2 अक्तूबर” गाँधी जयंती मनाते हैं ।

6. नीचे दिया गया गद्यांश पढ़िए। प्रश्नों के उत्तर लिखिए ।

भारत (आधिकारिक नामः भारत गणराज्य) दक्षिण एशिया में स्थित भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे बड़ा देश है । पूर्ण रूप से उत्तरी गोलार्ध में स्थित भारत, भैगोलिक दृष्टि से विश्व में सातवाँ सबसे बड़ा और जनसंख्जा के दृष्टिकोण से दूसरा सबसे बड़ा देश है। भारत के पश्चिम में पाकिस्तान, उत्तर – पूर्व में चीन, नेपाल और भूटान, पूर्व में बांग्लादेश और म्यान्मार स्थित हैं । हिन्द महासागर में इसके दक्षिण पश्चिम में मालदीव, दक्षिण में श्रीलंका और दक्षिण – पूर्व में इंडोनेशिया से भारत की सामुद्रिक सीमा लगती है । इसके उत्तर की भौतिक सीमा हिमालय पर्वत से और दक्षिण में हिन्द महासागर से लगी हुई है । पूर्व में बंगाल की खाड़ी है तथा पश्चिम में अरब सागर हैं ।

प्रश्न – उत्तर

प्रश्न 1.
भारत का आधिकारिक नाम क्या है ?
उत्तर:
भारत गणराज्य ।

प्रश्न 2.
भारत पूर्ण रूप से किस गोलार्ध में स्थित है ?
उत्तर:
उत्तरी गोलार्ध में स्थित है ।

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प्रश्न 3.
उत्तर में भारत की सीमा क्या है ?
उत्तर:
उत्तर की भौतिक सीमा हिमालय पर्वत से है ।

प्रश्न 4.
अरब सागर कहाँ है ?
उत्तर:
पश्चिम में अरब सागर है ।

TS Inter 2nd Year Sanskrit Study Material Chapter 5 वृक्षरक्षिका पितामही

Telangana TSBIE TS Inter 2nd Year Sanskrit Study Material 5th Lesson वृक्षरक्षिका पितामही Textbook Questions and Answers.

TS Inter 2nd Year Sanskrit Study Material 5th Lesson वृक्षरक्षिका पितामही

निबन्धप्रश्नौ (Essay Questions) (వ్యాసరూప సమాధాన ప్రశ్నలు)

पश्न 1.
वृक्षरक्षणार्थं पितामहया उक्तान् उपायान् लिखत ।
(Write the ideas given by grandmother to save trees)
पश्न 2.
वृक्षणां रक्षणे कसरसिंहस्य श्रद्धां विरादयत ।
(Explain the devotion of Kesara Simha for the protection of trees.)
उत्तर:
‘వృక్షా రక్షికా పితామహీ’ అనే పాఠ్యభాగాన్ని శ్రీ పద్మశాస్త్రిగారు రచించారు. ఇందులో చెట్లను నాటడం, వాటిని సంరక్షించడం వంటి విషయాలను చక్కగా చెట్ల వల్ల కలిగే ప్రయోజనాలను కవి చక్కగా పాఠంలో ఆవిష్కరించారు.

పూర్వం కాశ్మీర దేశంలో ఒక రైతు కుటుంబం ఉండేది. రైతు కుమారుడు కేసర సింహుడు. అతని తల్లిదండ్రులు, నాయనమ్మ పశుపోషణ, పండ్లను అమ్మడం వంటి పనులు చేస్తూ జీవితం గడుపుతున్నారు. కేసరసింహుని నాయనమ్మ చెట్లను నాటడంలోను, వాటిని పెంచడంలోను ఆసక్తి చూపేది. మంచుపడే కాలంలో మొక్కలను రక్షించడానికి వాటిపై గడ్డిని కప్పి ఉంచేది. కేసరసింహుడు తెలియక చెట్ల కొమ్మలు విరిస్తే ఆమె బాధపడేది. అతడిని కోపగించేది. ఆమె కేసరసింహునికి పక్షులు కొరికిన పండ్లను ‘పండ్లతో ఆహారంగా ఇచ్చేది.

మంచి పండ్లను ఇవ్వమని కేసరసింహుడు అడిగితే కడుపు నింపుకోవడం సాధ్యంకాదు. నీవు యువకుడివై ఆహారాన్ని ఉత్పత్తిచేసే స్థాయికి వచ్చినప్పుడు నేను పండ్లను విక్రయించను. నీవు పండ్లను తినాలంటే మొక్కలను పెంచు’ అని పలికింది. నాయనమ్మ మాటలు కేసరసింహుడిని ఆకట్టుకున్నాయి.

కేసరసింహుడు చెట్ల పెంపకంపై ఆసక్తిని చూపాడు. చెట్లను నాటడంలోను, వాటిని పెంచడంలోను నాయనమ్మకు సహకరించాడు. కొత్త మొక్కలను నాటాడు. తరువాత ఐదు సంవత్సరాలకు నాయనమ్మ మరణించింది. ఆ సమయంలో అతనికి పదహారేళ్ళు. నాయనమ్మ మరణం కేసరసింహునికి బాధ కలిగించింది.

బాగా తలచుకొని దుఃఖించాడు. ఒకరోజు అతనికి రాత్రి కలలో నాయనమ్మ కనిపించింది. అతడు ఆనందంతో ఆమెను కౌగిలించుకున్నాడు. ఇంటికి రమ్మని పిలిచాడు. నీవు నాటిన, పెంచిన చెట్లు నిన్ను ‘నాయనా ! గుర్తుకు తెస్తున్నాయని చెప్పాడు. అది విని నాయనమ్మ కేసరసింహునితో నేను మరణించలేదు.

నా దేహం కృశించిపోవడంతో మరొక శరీరంలో ప్రవేశించాను. నేను ఉన్న చోటు నుండి ప్రస్తుతం నేను రాలేను. నీవు మొక్కలను నాటు, వాటిని పెంచు. దానివల్ల నీవు నన్ను మరచిపోగలవు’ అని చెప్పింది. వెంటనే నాయనమ్మ అదృశ్యమైంది.

కేసరసింహుని నిద్ర చెదరిపోయింది. వెంటనే లేచి చెట్లకు పరిచర్యలు చేయటం మొదలు పెట్టాడు. మరుసటి రోజున మరల నాయనమ్మ కలలో కనిపించింది. ఆమెతోపాటుగా ఇద్దరు దేవకన్యలు కూడా ఉన్నారు. నాయనమ్మ అనేక విధములైన పండ్లతో ఉన్న వెండి పళ్ళెమును అతని ముందు ఉంచింది. కేసరసింహుడు ఒక పండును తీసుకొని తినటం మొదలుపెట్టాడు. ఆ పండు యొక్క రుచి ఇంతకు ముందు తాను ఎపుడూ చూడలేదు.

అపుడు అతనికి మెలకువ వచ్చింది. చాలాకాలం అయింది. కేసరసింహుడు పండ్లను అమ్ముతూ చాలా ధనం సంపాదించాడు. అతడు చాలా శ్రమ పడ్డాడు. చాలా రోజులు గడచినా అతనికి కలలో తన నాయనమ్మ కనబడలేదు. కానీ ఆ రోజు రాత్రి నాయనమ్మ కలలో కనిపించింది. ఆమె తెల్లని సింహాసనంపైన కూర్చుని తెల్లని వస్త్రాలతో దేవకన్యలా కనబడింది. కేసరసింహుడు ఆమెకు నమస్కరించాడు.

ఆమె చాలా ప్రసన్నంగా, ‘నాకు చాలా ఆనందంగా ఉంది. నీవు చాలా చెట్లు నాటి చాలా మంచిపని చేశావు. ఇక నుండి గ్రామంలో అనారోగ్యం ఉండదు’. ఆ మాటలు విని కేసరసింహుడు ‘నాయనమ్మా, నేను వైద్య సంబంధ మొక్కలు నాటలేదు. అనారోగ్యం ఎలా లేకుండా ఉంటుంది ?’ అన్న మనుమడి మాటలకు ‘ఒరే మనుమడా, చెట్ల నుండి మన ఆరోగ్యానికి అవసరమైన స్వచ్ఛమైన గాలి వస్తుంది, అని చెప్పి చప్పట్లు కొట్టగానే, ఇద్దరు “దేవకన్యలు వచ్చారు.

వారు రాగానే ‘నా మనుమడికి పచ్చటి నగరాన్ని, తెల్ల పర్వతాన్ని చూపండి. అపుడు దేవకన్యలు చప్పట్లు కొట్టగానే తెల్లని గుఱ్ఱాలతో ఉన్న తెల్లని రథం కనబడింది. దేవకన్యలు కూడా ఆ రథాన్ని అనుసరిస్తున్నారు. మార్గంలో స్వచ్ఛమైన నదులు ప్రవహిస్తున్నాయి. మంచుతో కప్పబడిన కొండలు, మంచి పూలతో కూడిన చెట్లు మార్గంలో ఉన్నాయి. కేసరసింహుడు మిక్కిలి ఆనందించాడు. నాయనమ్మ కేసరసింహునితో, “నాయనా ! వృక్షాలకు ఈ లోకంలో ఎంతో ప్రాధాన్యత ఉంది. చెట్లు మనకు మంచి మట్టిని, నీటిని, గాలిని అందిస్తాయి.

స్వేచ్ఛగా అడవులను పాడుచేస్తే భూగోళంపై ఉష్ణోగ్రత పెరుగుతుంది. హిమాలయ పర్వతాలు చివరకు కనుమరుగై పోతాయి. సముద్రాలు తమ పరిధిని దాటి ముందుకు వస్తాయి. దానివల్ల ఎన్నో ఉపద్రవాలు కలుగుతాయి. ఈ పరిణామాలను అధ్యయనం చేయాలి. అప్పుడే మానవ జీవన పరిస్థితులు మెరుగుపడతాయి.” అని పలికింది. అప్పటి నుండి కేసరసింహుడు మొక్కలను నాటడం లోను, వాటిని సంరక్షించడంలోను శ్రద్ధ చూపాడు.
वृक्षो रक्षति रक्षितः

TS Inter 2nd Year Sanskrit Study Material Chapter 5 वृक्षरक्षिका पितामही

Introduction: The lesson Vriksharakshika Pitamahi was written by Padma Sastri. It is taken from the author’s Sanskritakatha- satakam Part 1. This lesson narrates the importance of planting the trees.

Kesara Simha’s Grandmother : Kesara Simha lived with his parents in one of the valleys of Kasmir. His grandmother was interested in planting trees. She would cover the trees with grass during winter to protect them from snow. She advised Kesara Simha to plant trees if he wanted to eat fruits. By that, he would get merit. Mother Earth would be pleased. त्वं प्रुथिवि अनेन प्रसन्ना भवति| They would get flowers, fruits and wood. Influenced by the words of his grandmother, Kesara Simha also planted trees, and took care of them. Five years later grandmother died.

Kesara Simha’s Dreams: One day, Kesara’s grandmother appeared in his dream, and consoled him. She looked young. She advised him to plant trees everyday so that he could forget her. Kesara Simha woke up and started to take care of trees. His grandmother again appeared in his dream and offered him delicious fruits in a silver bowl.

Grandmother’s Advice : After many days grandmother appeared in Kesara Simha’s dream sitting on a throne like a celestial damsel. She was pleased as he planted many trees. She said that from that day onwards there would be no disease in the village. As trees would give pure air, there would be the benefit of health. The nymphs who appeared there took him in chariot to see the clear streams and trees full of fruits and flowers. His grandmother advised him that trees alone were the most important ones in this world.

अस्मिन संसारे वृक्षाणामेव प्राधानयम वर्तेते| They would give pure air, water and soil. If the trees were cut indiscriminately, earth would heat up, snow would melt, and oceans would flood the earth. People would suffer. She also advised that education was necessary to know the secrets. अतः पाठनमावश्यकं वर्तते |
Kesara Simha took a firm decision that he would protect the world by growing trees.

लघु समाधान प्रश्नाः  (స్వల్ప సమాధాన ప్రశ్నలు) (Short Answer Questions)

पश्न 1.
वृक्षाः अस्मभ्यं किं किं प्रयच्छन्ति ?
समादान:
वृक्षाः अस्मभ्यं स्वच्छां मृत्तिकां स्वच्छं जलं प्रयच्छन्ति ।

पश्न 2.
केसरिसिंहः कुत्र न्यवसत् ?
समादान:
केसरिसिंहः काश्मीरोपत्यकायां न्यवसत् ।

पश्न 3.
मार्गे नद्यः कथं प्रवहन्ति ?
समादान:
मार्गे स्वच्छाः नद्यः निर्झराः प्रावहन् ।

एकपद समाधान प्रश्नाः (ఏకపద సమాధాన ప్రశ్నలు)(One Word Questions) 

पश्न 1.
शीतर्तौ पितामही वृक्षाणाम् उपरि किम् आच्छादयति स्म ?
समादान:
शीतार्तौ पितामही वृक्षाणां उपरि घासं आच्छादयति स्म ।

पश्न 2.
केसरसिंहः श्रद्धया कस्मिन् संलग्नः ?
समादान:
केसरसिंहः श्रद्धया वृक्षारोपणे संलग्नः ।

TS Inter 2nd Year Sanskrit Study Material Chapter 5 वृक्षरक्षिका पितामही

पश्न 3.
केसरसिंहः कथं धनं आर्जितवान् ?
समादान:
केसरसिंहः फलानि विक्रीय धनं आर्जितवान् ।

कठिनशब्दार्थाः (కఠిన పదాలకు అర్ధాలు)

1. उपत्यका = निम्नभूभागः, అడుగు భూభాగము
2. आजीविका = जीवननिर्वाहाय साधनम्, वृत्तिः, వృద్ధి
3. घासम् = तृणम्, గడ్డి
4. उच्छिष्टफलानि = भुक्तावशिष्टानि फलानि, తినగా మిగిలిన పండ్లు
5. भृशम् = अत्यर्थम्, అధికము
6. जर्जरम् = जीर्णम्, కృశించిన
7. भैषजवृक्षाः = ओषधिगुणयुक्ताः वृक्षाः, ఔషధ చెట్లు
8. तालिकावादनम् = करताडनम्, చప్పట్లు

व्याकरणांशाः (వ్యాకరణం)

सन्धयः (సంధులు)

1. अतः + अस्य = अतोऽस्य – विसर्गसन्धिः
2. पुष्पभाक् + अपि = पुष्पभागपि – जश्त्वसन्धि:
3. तस्मात् + न = तस्मान्न – अनुनासिकसन्धिः
4. पुनः + आगता = पुनरागता – विसर्गसन्धिः
5. हिमवत् + श्वेतवस्त्रवृता = हिमवच्छ्वेतवस्त्रावृता
6. केसरसिंहः + तं = केसरसिंहस्तम् – विसर्गसन्धिः
7. श्वेतपर्वतं + च = श्वेतपर्वतञ्च – परसवर्णसन्धिः
8. पर्वताः + च = पर्वताश्च – श्चुत्वसन्धिः

समासाः సమాసాలు

1. पुण्यं भजतीति – पुण्यभाक् – उपपदतत्पुरुषसमासः
2. निद्रायाः भङ्गः – निद्राभङ्गः – षष्ठीतत्पुरुषसमासः
3. रजतस्य स्थाली – रजतस्थाली तस्या रजतस्थलाम् – षष्ठीतत्पुरुषसमासः
4. स्वादु च तत् फलञ्च स्वादुफलम्, अतिशयेन स्वादुफलं, सुस्वादुफलं – प्रादितत्पुरुषसमासः
5. श्वेतञ्च तत् वस्त्रञ्च श्वेतवस्त्रं, हिमवत् च तत् श्वेतवस्त्रं च हिमवच्छ्छ्रेत- वस्त्रं, तेन आवृता हिमवच्छ्रेतवस्त्रावृता – तृतीयातत्पुरुषसमासः
6. भैषजाश्च ते वृक्षाश्च – भैषजवृक्षाः – विशेषणपूर्वपदकर्मधारयसमासः
7. श्वेतश्च असौ अश्वश्च – श्वेताश्वः, तेन संयुतः – श्वेताश्वसंयुतः – तृतीयतत्पुरुषसमासः
8. पुष्पाणि च फलानि च पुष्पफलानि, तैः सङ्कुलाः पुष्पफलसङ्कुलाः – तृतीयातत्पुरुषसमासः

वृक्षरक्षिका पितामही Summary in Sanskrit

कविपरिचयः

वृक्षरक्षिका पितामही इति पाठ्यांशः पद्मशास्त्रिमहोदयेन रचिते संस्कृतकथा शतकम् इत्याख्ये प्रथमभागे अस्ति । विद्वानयं संस्कृतकथाशतकं भागद्वये रचितवान् । भागद्वये आहत्य शतं कथाः वर्तन्ते । पद्मशास्त्रिमहाभागः १९३५ तमे वर्षे भारतस्य उत्तरप्रदेशे जनिं प्राप्तवान् । राजस्थानराज्ये सर्वकारस्य शिक्षाविभागे प्रशासकपदं निरवहत् । राजस्थानसाहित्य अकाडमीतः सम्मानितोऽयं महाकविः लेनिनामृतं नाम महाकाव्यम् अरचयत् । अपि च सिनेमाशतकम्, विश्वकथाशतकम्, पद्मपञ्च तन्त्रम्, बंग्लादेशविजयः इत्यादीन् विंशत्यधिकान् ग्रन्थान् व्यरचयत् । प्रायः सर्वानपि ग्रन्थान् सरलसंस्कृतभाषया विरच्य आधुनिककाले संस्कृतं सर्वत्र परिव्यापयितुं प्रायतत ।

TS Inter 2nd Year Sanskrit Study Material Chapter 5 वृक्षरक्षिका पितामही

सारांश

काश्मीरदेशे कस्मिंश्चन ग्रामे केसरसिंहो नाम युवा वसति स्म । तस्य पितरौ पितामही च कृषिकर्मणा सह पशून् पालयित्वा वृक्षाणां फलानि विक्रीय जीवनं यापयन्ति स्म । केसरसिंहस्य पितामही तु वृक्षाणामारोपणे तेषां रक्षणे वर्धने च निमग्ना भवति स्म । अपि च एनं सर्वथा वृक्षाणां संवर्धनार्थं प्रेरयति स्म । यथा मया तव पालनं कृतं तथा त्वया जागरूकतया वृक्षाणां पालनं कर्तव्यम् इति वृक्षाः स्वयमातपे स्थित्वा बोधयति स्म । “वृक्षारोपणेन माता पृथिवी प्रसन्ना भवति, उपकरिष्यन्ति । लोकाय छायां दास्यन्ति । वृक्षाः अस्माकं स्वास्थ्यलाभाय बहुधा ते अस्मभ्यं स्वच्छां मृत्तिकां, स्वच्छं जलं, स्वच्छं वायुं च प्रयच्छन्ति । यदि वयं यथेच्छं वनानां कर्तनं कुर्मः तर्हि पृथिवी उष्णा भवति, परिसराः कलुषिताः समुद्रस्य उद्वलज्जलं पृथिव्यां प्रसरिष्यति, जनाः सङ्कटग्रस्ताः भवन्ति” इति अनुदिनं प्रबोधयति स्म । तया प्रभावितः केसरसिंहः स्वस्य अध्ययनेन सह वृक्षारोपणं तेषां संवर्धनेन लोकस्य संरक्षणं विधास्यामि इति दृढनिश्चयम् अकरोत् ।

वृक्षरक्षिका पितामही Summary in English

Introduction

Vriksharakshika Pitamahi is a story from Padma Sastri’s Sanskritakathasatakam Part One. The author wrote hundred stories in two parts. Sri Padma Sastri was born in 1935 in Uttara Pradesh. He wrote more than 20 books, which include Cin-ema Satakam, Viswakatha Satakam etc. He writes simple Sanskrit.

वृक्षरक्षिका पितामही Summary in Telugu

కవి పరిచయం

‘వృక్షరక్షికా పితామహి’ అనే పాఠ్యభాగాన్ని పద్మశాస్త్రిగారు రచించారు. ఈ పాఠ్యభాగం వారు రచించిన సంస్కృత కథా శతకంలోని ప్రథమ భాగంలో ఉంది. విద్వాంసుడైన ఇతడు సంస్కృత కథా శతకాన్ని రెండు భాగాలుగా రచించాడు. రెండు భాగాల్లో కలిపి వంద కథలు ఉన్నాయి. పద్మశాస్త్రిగారు. 1935వ సంవత్సరంలో ఉత్తరప్రదేశ్లో జన్మించారు. రాజస్థాన్ రాష్ట్రంలో ప్రభుత్వ శిక్షా విభాగంలో అధికార పదవిలో ఉన్నారు.

రాజస్థాన్ సాహిత్య అకాడమీ నుండి సన్మానం పొందారు. ‘లేనినామృతం’ అనే కావ్యాన్ని రచించారు. మరియు సినేమా శతకం, విశ్వకథా శతకం, పద్మపంచతంత్రం, బంగ్లాదేశ విజయ: మొదలైన ఇరవైకి పైగా గ్రంథాలను రచించారు. అన్ని గ్రంథాలను సరళ సంస్కృత భాషలో రచించారు. ఆధునిక కాలంలో సంస్కృత భాష అంతట వ్యాప్తి చెందడానికి కృషి చేశాడు.

సారాంశము

కాశ్మీర దేశంలో ఒకానొక గ్రామంలో కేసరసింహుడు అనే పేరుగల యువకుడు ఉన్నాడు. అతని తల్లిదండ్రులు, నాయనమ్మ వ్యవసాయ పనులు చేస్తూ, పశువులను కాపలా కాస్తూ, చెట్ల పండ్లను అమ్ముతూ జీవితాన్ని గడుపుతున్నారు. కేసరసింహుని యొక్క నాయనమ్మ అయితే మొక్కలను నాటడం, వాటిని రక్షించడం, పెంచడం అనే పనుల్లో మునిగిపోయేది. అంతేగాదు చెట్లను పెంచడానికి ప్రేరేపిస్తుంది. తాను ఎలా చెట్లను కాపాడుతుందో అదేవిధంగా జాగ్రత్తగా చెట్లను రక్షించాలని బోధించేది. మొక్కలను నాటడంవల్ల భూమాత ప్రసన్నురాలౌతుంది. చెట్లు తాము ఎండలో ఉంటూ ఇతరులకు చల్లని నీడను ఇస్తుంటాయి. ఆ చెట్లు ఆరోగ్యపరంగా మనకు ఉపయోగపడుతున్నాయి.

అవి మనకు స్వచ్ఛమైన మట్టిని, స్వచ్ఛమైన నీటిని, వాయువును ఇస్తుంటాయి. ఒకవేళ మనం యధేచ్ఛగా చెట్లను నరికినట్లైతే భూగోళం వేడెక్కుతుంది. పరిసరాలు కలుషితంగా మారుతాయి. సముద్రంలో జలాలు ముందుకు వస్తాయి. జనాలు ఎన్నో కష్టాలు అనుభవిస్తారు. ఇలాంటి విషయాలను మనకు చెట్లు ఉపదేశిస్తుంటాయి. ఈ విషయాలతో కేసరసింహుడు ప్రభావితుడు అయ్యాడు. మొక్కలను నాటాలని, వాటిని పోషించాలని, రక్షించాలని నిశ్చయించుకున్నారు.

కాశ్మీర దేశంలో ఒక రైతు కుటుంబం ఉండేది. వారంతా పశుపోషణ, పండ్లను అమ్మటం వంటి పనులు చేస్తూ జీవనం సాగిస్తున్నారు. రైతుకు కేసరసింహుడు అనే -కుమారుడు ఉన్నాడు. అతని నాయనమ్మ మొక్కలను నాటడం, వాటిని పోషించడం వంటి పనులు చేసేది. ఒకరోజు కేసరసింహునికి పక్షులు కొరికిన పండ్లను తినటానికి ఇచ్చింది. పెద్ద అయిన తరువాత పండ్లను అమ్మి డబ్బు సంపాదించే సమయానికి మంచి పండ్లు తిందువుగాని అని చెప్పింది.

కేసరసింహుడు కూడా నాయనమ్మ మాటలతో మార్పు చెందాడు. మొక్కలను నాటడం ఆరంభించాడు. ఐదు సంవత్సరాల తరువాత నాయనమ్మ చనిపోయింది. కేసరసింహుడు చాలా విచారించాడు. ఒకరోజు రాత్రి కలలో కేసరసింహునికి కలలో నాయనమ్మ కనిపించింది. కేసరసింహుడు ఆమెను కౌగిలించుకొని ఇంటికి రమ్మని కోరాడు. దానికి అంగీకరించక ఓదార్చింది. ఒకసారి కలలో నాయనమ్మ ముసలిదానిగా కాక యువతిలా కన్పించింది. నాయనమ్మ మాటలతో కేసరసింహుడు మొక్కలను నాటడం, పెంచే విషయంలో నిమగ్నుడైనాడు.

ఒకరోజు ఆమె అతనికి కలలో కనిపించింది. ఆమెతోపాటు ఇద్దరు దేవకన్యలు కూడా వచ్చారు. నాయనమ్మ అనేక పండ్లతో కూడిన ఒక వెండి పళ్ళాన్ని కేసరసింహుని ముందు ఉంచింది. ఆమె తెల్లని సింహాసనంపైన కూర్చొని తెల్లని వస్త్రాలతో దేవకన్యలా ఆమె అతడికి కన్పించింది. చెట్ల వల్ల అందరికి మంచి గాలి, మంచి మట్టి లభిస్తుంది. ఆ తరువాత ఆమె రథం ఎక్కి వెళ్ళింది. దేవకన్య ఆమెను అనుసరించారు.

మొక్కలను మనం నాటాలి. వాటిని మనం రక్షించాలి. అంతేగాని చెట్లను విచక్షణారహితంగా నరక కూడదు. దీనివల్ల భూమి మీద ఉష్ణోగ్రతలు పెరుగుతాయి. మానవులు ఎల్లప్పుడు పర్యావరణ పరిస్థితులపై అధ్యయనం చేయాలి. లేకపోతే మానవాళి మనుగడ కష్టమౌతుంది.

TS Inter 2nd Year Sanskrit Study Material Chapter 5 वृक्षरक्षिका पितामही

अनुवादः (అనువాదములు) (Translations)

कश्मीरस्योपत्यकायां कृषकस्य पुत्रः केसरसिंहो न्यवसत् । तस्य पितरौ पशून् पालयित्वा फलानि विक्रीय च कार्यमचालयताम् । केसरसिंहस्य पितामही सर्वदा कार्ये व्यापृता तिष्ठति । वृक्षारोपणमासीत् तस्या अभिरुचिः । शीतर्तौ सा वृक्षाणामुपरि घासमाच्छादयति येन हिमकणेभ्यो वृक्षाणां रक्षा भवति स्म । पशुभ्यो वृक्षान् रक्षितुमपि सा सर्वदा प्रयतते ।

यदा कदा केसरसिंहो वृक्षेभ्यो लघुशाखाः पृथक् करोति स्म । तद्वीक्ष्य पितामही दुःखिता सती तं निर्भर्त्सयति स्म । सा कथयति स्म – “यथा मया तव पालनं कृतं तथैव वृक्षाणामेतेषामपि । केसरसिंहः प्रत्युवाच – “त्वन्तु वृक्षाफलानां विक्रयं करोषि । अस्मत्कृते तु पक्षिणा – मुच्छिष्टफलान्यवशिष्यन्ते” । पितामही ब्रूते – “केवलं फलैः उदरं पूरयितुं न शक्यते, फलानि विक्रीयान्नमेतदर्थमेव क्रीयते चास्माभिः । त्वं युवा भूत्वा यदा अन्नोत्पादने समर्थो भविता तदा प्रभृति नाहं फलानां विक्रयं करिष्यामि ” ||

కాశ్మీర దేశంలో ఒక రైతు పుత్రుడు ఉన్నాడు. అతని పేరు కేసరసింహుడు. అతని తల్లిదండ్రులు పశువులను కాస్తూ, పండ్లను అమ్ముతూ ఉండేవారు. కేసరసింహుని యొక్క నాయనమ్మ ఎల్లప్పుడు పనిలో నిమగ్నురాలై ఉండేది. మొక్కలు నాటడంలో ఆమెకు అభిరుచి. చలికాలంలో ఆమె చెట్లపై పడే మంచు బిందువుల నుండి చెట్లను కాపాడటానికి వాటిపై గడ్డి కప్పేది. పశువులు మొక్కల్ని పాడుచేయకుండా ఆమె వాటిని కాపాడుతూ ఉండేది.

ఎప్పుడెప్పుడు కేసరసింహుడు చెట్ల కొమ్మలను విరిచినా ఆమె బాధపడేది. ఆ సమయంలో ఆమె అతడితో – “నాయనా ! నిన్ను నేను ఎలా పెంచానో అదేవిధంగా మొక్కలను పెంచాలి”. అని చెప్పింది. అది విని కేసరసింహుడు “నీవు చెట్లకు కాసిన పండ్లను అమ్ముతావు. నాకు మాత్రం పక్షులు తిన్నవి ఉంచుతావు’ అని పలికాడు. వెంటనే నాయనమ్మ – “నాయనా ! కేవలం పండ్లతో కడుపును నింపుకోవడం సాధ్యంకాదు. పండ్లను అమ్మి అన్నము మొదలైన ఆహార పదార్థాలను తయారుచేసుకోవడం సాధ్యం అవుతుంది. నీవు యువకుడవై ఆహారాన్ని ఉత్పత్తిచేసే స్థాయికి వచ్చినప్పుడు నేను పండ్లను విక్రయింపను” అని పలికింది.

Kesara Simha, a son of a farmer, lived in Kashmir valley. Rearing cattle, and selling fruits, his parents passed days. Kesara Simha’s grandmother was always engaged in work. She was interested in planting trees. During winter, she would cover the trees with grass to protect them from snow. She always tried to protect the trees from cattle also.

Sometimes Kesara Simha would cut the small branches of the trees. On seeing this, his grandmother would become sorrow-ful, and chide him. She said, “Just as I take care of you, so also of these trees”. Kesara Simha replied, ‘You sell the fruits of the trees. For us the fruits eaten by birds remain”. Grandmother said, You cannot fill your stomach with fruits only. Hence, we sell fruits and buy rice for that purpose. When you become young, and be able to grow rice, then I will stop selling the fruits”.

“यदि त्वं फलानि खादितुमिच्छसि चेत् तर्हि वृक्षारोपणं कुरु । अनेन त्वं पुण्यभागपि भविता माता पृथिवी अनेन प्रसन्ना भवति । इत्थं फलानि, पुष्पाणि, काष्ठान्यपि प्राप्यन्ते | वृक्षच्छायायां परिश्रान्तो जनः सुखं लभते” । केसरसिंहः पितामह्याः वचनं निशम्य नितरां प्रभावितोऽभवत् । स वृक्षाणां पर्यवेक्षणे तस्याः साहाय्यमप्यकरोत् नवीनान् वृक्षानप्यारोपयत् । पञ्चवर्षानन्तरं पितामही दिवङ्गता । तदा सा षोडशवर्षदेशीयश्चासीत् । पितामहीं स्मृत्वा स रोदिति स्म । एकदा स्वप्ने स पितामहीमपश्यत् । तामालिङ्ग्य स भृशं रुरोद । तस्य नेत्राभ्यामश्रूणि न्यपतन् ।

इत्थं प्ररुदन्तं केसरसिंहं विलोक्य पितामही प्राह – “पुत्र ! अलं रुदितेन । पश्य, नाहं मृता, मम शरीरं जर्जरमभूदतो मया नूतनं शरीरं धारितम्” | केसरसिंहेन दृष्टं यत्तस्य पितामही युवती दृश्यते सम्प्रति । स प्राह पितामही ! गृहं चल, त्वया विना शून्यमिव प्रतीयते मम गृहम् । तव कराभ्यामारोपिता वृक्षाः सर्वदा तव स्मृतिं कारयन्ति ।

ఒకవేళ నీవు పండ్లను తినాలని ఇష్టపడితే అప్పుడు ముందుగా చెట్లను నాటడం మొదలుపెట్టు. దీనివల్ల నీకు పుణ్యం కూడా కలుగుతుంది. దాంతో భూమాత కూడా ప్రసన్నురాలౌతుంది. ఈవిధంగా పండ్లు, పూలు, కట్టెలు పొందవచ్చు. అలసట పొందిన ప్రజలు చెట్ల నీడలో విశ్రాంతి తీసుకుంటారు” అని పలికింది. కేసరసింహుడు నాయనమ్మ మాటలు విని మిక్కిలి ప్రభావితుడు. అయ్యాడు.

చెట్లను సంరక్షించే విషయంలో నాయనమ్మకు బాగా సహకరించాడు. కొత్త మొక్కలను కూడా నాటినాడు. ఐదు సంవత్సరాల తరువాత నాయనమ్మ మరణించింది. ఆ సమయంలో కేసరసింహుని వయసు పదహారు సంవత్సరాలు. నాయనమ్మను తలచుకొని అతడు దుఃఖించాడు. ఒకసారి నాయనమ్మ అతని కలలో కన్పించింది. ఆమెను కౌగిలించుకొని మిక్కిలిగా దుఃఖించాడు. ఆ సమయంలో అతని కన్నుల నుండి కన్నీళ్ళు వచ్చాయి.

ఈ విధంగా దుఃఖిస్తున్న కేసరసింహునితో నాయనమ్మ – “నాయనా ! ఎందుకు ఏడుస్తున్నావు ? నీవు ఏడవవద్దు. నేను మరణించలేదు. నా శరీరంలో బలం తగ్గినందున నేను మరొక శరీరంలో చేరాను” అని పలికింది. ఆ సమయంలో అతడి నాయనమ్మ వృద్ధురాలుగా కాకుండా యువతిగా కనిపించింది. పిమ్మట అతడు నాయనమ్మతో- “నాయనమ్మా ! నీవు ఇంటికి రా ! నీవు లేకపోతే ఇంటిలో వెలితిగా ఉంది నీ చేతులతో నాటిన మొక్కలు నిన్ను గుర్తుకు తెస్తున్నాయి.” అని పలికాడు.

“If you want to eat fruits, then plant trees. You will get merit also by that. Mother Earth will be pleased. By that, we can get fruits, flowers and wood too. People take rest under the shade of the trees.” Kesara Simha was very much influenced by those words of his grandmother. He helped her in taking care of the trees. He planted new trees also. Five years later grandmother died. Then he was sixteen years old. He mourned a lot thinking about his grandmother. One night, he saw her in his dream. He hugged her, and wept inconsolably. Tears dropped from his eyes.

Grandmother said to Kesara Simha who was weeping like that. “Son, don’t cry. See, I am not dead. As my body became old, I took a new one.” Kesara Simha observed that his grandmother looked young. He asked, “Grandmother, let us go home. -Without you, I feel vacuum in the house. The trees you planted with your hands bring back your memories”.

पितामही प्रोवाच – “सम्प्रति यत्राहं निवसामि तस्मान्नाहमागन्तुं शक्रोमि । त्वं प्रत्यहं नूतनान् वृक्षानारोपय, येन त्वं मां विस्मरिष्यसि । अयमेव संसारस्य क्रमः” । इत्युक्त्वा पितामही तिरोहिताऽभवत् । केसरसिंहस्य निद्राभङ्गो जातः । उत्थाय तेन वृक्षाणां परिचर्या प्रारब्धा । अन्यदा पितामही स्वप्रे पुनरागता । तया सह द्वे देवकन्ये चास्ताम् । पितामही रजतस्थाल्यां अनेकविधान्यद्भुतानि फलानि तत्समक्षमुपस्थापितवती । केसरसिंहः फलमेकमादाय खादितुं लग्नः । तेनाद्यावधि एवंविधं सुस्वादुफलं न भक्षितमासीत्कदाचिदपि । तदैव तस्य निद्रा भग्ना |

నాయనమ్మ అతడితో “నాయనా ! ప్రస్తుతం నేను ఉన్న ప్రదేశం నుండి రాలేను. నీవు ప్రతిరోజు కొత్త కొత్త మొక్కలను నాటుతూ ఉండుము. దానివల్ల నీవు నన్ను మరచిపోగలవు. ఇదే జీవన విధానం” అని పలికింది. ఈ విధంగా పలికి నాయనమ్మ తిరిగి వెళ్ళిపోయింది. కేసరసింహునికి నిద్రాభంగం అయింది. నిద్ర నుండి లేచి చెట్లకు పరిచర్యలు చేయడం మొదలుపెట్టాడు. మరుసటిరోజు మరల నాయనమ్మ కలలో కనిపించింది. ఆమెతోపాటుగా ఇద్దరు దేవకన్యలు కూడా వచ్చారు. నాయనమ్మ అనేక విధములైన పండ్లతో ఉన్న వెండి పళ్ళాన్ని అతని ముందు ఉంచింది. కేసరసింహుడు ఒక పండును తీసుకొని తినటం మొదలుపెట్టాడు. ఆ పండు యొక్క రుచి ఇంతకు ముందు తాను ఎప్పుడూ చూడలేదు. వెంటనే అతనికి నిద్రాభంగమై మేల్కొన్నాడు.

Grandmother said. “Now I cannot leave the place where I live. You plant new trees so that you forget me. This is the process of the world.” Having said so, she disappeared. Kesara Simha woke up. He started to take care of the trees after getting up. On another day, grandmother again appeared in his dream. There were two divine damsels with her. Grandmother placed a silver bowl with many wonderful fruits in front of him. Kesara Simha took one fruit and started to eat. He never tasted such a fruit till then. Then he woke up.

TS Inter 2nd Year Sanskrit Study Material Chapter 5 वृक्षरक्षिका पितामही

भूयान् समयो व्यतीतः । केसरसिंहः फलानि विक्रीय प्रभूतं धनमर्जितवान् । स भृशं श्रममप्यकरोत् । स व्यचारयत् बहूनि दिनानि व्यतीतानि स्वप्ने न दृष्टा पितामही । तस्यामेव रात्रौ पितामहीं दृष्टवानयम् । सा हिमशुभ्रवस्त्रावृता श्वेतसिंहासने समुपविष्टा देवकन्येव प्रतीयते स्म । केसरसिंहस्तां प्रणनाम | सा स्नेहेन प्रावोचत् – “अतीव प्रसन्नाहं सम्प्रति । वृक्षारोपणं कृत्वा त्वया सुकर्म कृतम् । अद्यारभ्य ग्रामेऽस्मिन् रोगा नागमिष्यन्ति । केसरसिंहः प्राह – “पितामहि ! न मया भैषजवृक्षाः समारोपिताः, कथं तर्हि रोगा न भविष्यन्ति” । पितामही प्रोवाच – पुत्र ! वृक्षेभ्यो वयं शुद्धं वायुं प्राप्स्यामः । येन स्वास्थ्यलाभो भवति । सहसा सा तालिकावादनमकरोत् । तदैव द्वे देवकन्ये समुपस्थिते । सा प्रोवाच – “दर्शय मत्पौत्रं हरितनगरं श्वेतपर्वतञ्च । देवकन्ये तालिकावादनमकुरुताम् । सहसा तत्र श्वेताश्वसंयुतः श्वेतरथः समुपस्थितः । देवकन्ये सहैव प्राचलताम् । मार्गे स्वच्छाः नद्यो निर्झराः प्रावहन् । सर्वत्र पुष्पफलसंकुला वृक्षा हिमाच्छादिताः पर्वताश्चासन् तत्र ।

చాలాకాలం గడిచింది. కేసరసింహుడు పండ్లను అమ్మి ఎంతో ధనాన్ని సంపా దించాడు. అతడు ఎంతో శ్రమపడ్డాడు. చాలా రోజులు గడిచినా అతనికి కలలో నాయనమ్మ కనిపించలేదు. కాని ఆరోజు రాత్రి నాయనమ్మ కలలో కనిపించింది. ఆమె తల్లిని సింహాసనంపైన కూర్చుని తెల్లని వస్త్రాలతో దేవకన్యలా ఆమె కనిపించింది. కేసరసింహుడు ఆమెకు నమస్కరించాడు. నాయనమ్మ చాలా ప్రసన్నంగా ‘నాకు చాలా ఆనందంగా ఉంది. నీవు చాలా చెట్లు నాటి చాలా మంచిపని చేశావు. ఇక నుండి గ్రామంలో అనారోగ్యం ఉండదు” అని పలికారు. ఈ మాటలు విని కేసరసింహుడు “నాయనమ్మా ! నేను వైద్య సంబంధమైన మొక్కలు నాటలేదు.

అనారోగ్యం లేకుండా ఎలా ఉంటుంది ? అని పలికారు. అది విని నాయనమ్మ “ఓరీ ! చెట్ల నుండి మన ఆరోగ్యానికి అవసరమైన స్వచ్ఛమైన గాలి వస్తుంది”. అని చెప్పి చప్పట్లు కొట్టగానే ఇద్దరు దేవకన్యలు వచ్చారు. వారు రాగానే మనుమడికి పచ్చటి నగరాన్ని, తెల్ల పర్వతాన్ని చూపండి. అప్పుడు దేవకన్యలు చప్పట్లు కొట్టగానే తెల్లని గుర్రాలతో ఉన్న తెల్లని రథం కనబడింది. దేవకన్యలు కూడా ఆ రథాన్ని మంచుతో కప్పబడిన అనుసరిస్తున్నారు. మార్గంలో స్వచ్ఛమైన నదులు ప్రవహిస్తున్నాయి. పర్వతాలు, పుష్పాలతో కూడిన చెట్లు మార్గంలో ఉన్నాయి.

Much time passed. Kesara Simha earned a lot of money by selling fruits. He worked very hard. He spent many days. Grand-mother was not seen in dreams. However, on that day itself he saw her in his dream. She sat on a throne wearing snow white clothes, and looked like a celestial damsel. Kesara Simha bowed to her. She spoke affectionately, “I am very much pleased today. By planting trees you did a meritorious deed.

From today onwards there will not be any disease in this village”. Kesara Simha said, “Grandmother, I have not planted any medicinal plants. Then how is it possible that there will not be any diseases?” Grandmother replied, “Son, we get pure air from trees. By that, there will be the benefit of health”. She clapped her hands. At once two nymphs appeared. She said to them, “Show my grandson the green wood and white mountain”. The nymphs clapped their hands. Immediately there came a white chariot having white horses. He went along with the nymphs. On the way, clear streams and rivers flowed. Everywhere there were trees full of flowers and fruits. Snow covered mountains were also there.

केसरसिंहश्चातीव प्रसन्न आसीत् । पितामही पुनस्तमवदत् – “अस्मिन् संसारे वृक्षाणामेव प्राधान्यं वर्तते । वृक्षा एवास्मभ्यं स्वच्छां मृत्तिकां, स्वच्छं जलं वायुञ्च प्रयच्छन्ति । यदि वयं यथेच्छं वनानां कर्तनं करिष्यामस्तर्हि पृथिवी उष्णा भविष्यति, हिमानी द्रविता भविष्यति । समुद्रस्योद्वलज्ञ्जलं पृथिव्यां प्रसरिष्यति । संसारस्य जनाः संकटग्रस्ता भविष्यन्ति । अध्ययनबलेनैव त्वं सर्वं रहस्यं ज्ञास्यसि । अतः पठनमप्यावश्यकं वर्तते । सः पितामहीं प्रणनाम । पुनः श्रद्धया वृक्षारोपणे संलग्नः केसरसिंहः । दृढनिश्चयमकरोत्सः, यदहं वृक्षसंवर्धनेन संसारस्य संरक्षणं विधास्यामि ।

కేసరసింహుడు మిక్కిలి ప్రసన్నుడయ్యాడు. అతడి నాయనమ్మ మరల అతనితో ఈ సృష్టిలో వృక్షాలకు చాలా ప్రాధాన్యత ఉంది. చెట్లు మనకు మంచి మట్టిని ఇచ్చి మంచి గాలిని ఇస్తాయి. మనం స్వేచ్ఛగా అడవులను పాడుచేస్తే దానివల్ల భూమిపై ఉష్ణోగ్రత బాగా పెరుగుతుంది. హిమాలయ పర్వతాలు కరుగుతాయి. సముద్రాలు తమ పరిధిని దాటి ముందుకు వచ్చి ఊళ్ళల్లోకి ప్రవహిస్తాయి.

ఈ పరిణామాలను అధ్యయనం చేస్తే నీకు రహస్యం మొత్తం తెలుస్తుంది. పరిస్థితులను అధ్యయనం చేయాలి. తరువాత అతడు నాయనమ్మకు నమస్కరించాడు. పిమ్మట కేసరసింహుడు చెట్లను నాటే విషయంలో మిక్కిలి శ్రద్ధ చూపాడు. అప్పటి నుండి అతడు చెట్లను నాటే విషయంలో, వాటిని పెంచే విషయంలో దృఢ నిశ్చయాన్ని తీసుకున్నాడు.

Kesara Simha was very much pleased. Grandmother said to him again, ‘Trees are the most important ih this world. Trees alone give us pure soil, water and air. If we cut woods indiscriminately, then the earth will heat up; snow will melt; the ocean will flood the earth; people in the world would be put to difficulty. You know all the secrets by the strength of study only. Hence, education is also necessary”. He bowed to grandmother. Kesara Simha was engaged in planting trees with devotion again. He made a firm decision that he would guard the world by planting trees.

TS Inter 2nd Year Accountancy Notes Chapter 2 Consignment Accounts

Here students can locate TS Inter 2nd Year Accountancy Notes Chapter 2 Consignment Accounts to prepare for their exam.

TS Inter 2nd Year Accountancy Notes Chapter 2 Consignment Accounts

→ Consignment means sending goods from the owner to his agents for sale on a commission basis. The agent only sells the goods on behalf of the owner for the sake of commission, at the risk of the owner.

→ Consignor is the person who sends the goods to the agent for sale on a commission basis is called the consignor.

→ Consignee is the person to whom the goods are sent for the sale on a commission basis.

TS Inter 2nd Year Accountancy Notes Chapter 2 Consignment Accounts

→ There are two documents prepared in the consignment. They are :

  • proforma invoice
  • Account sales.

→ Proforma Invoice is a statement prepared by the consignor containing the description of goods to be sold, quantity, rate, discount etc.

→ Account sales is the statement prepared by the consignee giving the details of sales effected, expenses incurred and commission charged. The consignee remits to the consignor, the net proceeds of sales.

→ Commission is the remuneration paid to the consignee by the consignor for selling the goods on behalf of consignor. The commission is three types :

  • ordinary commission
  • Delcredere commission
  • Overriding commission

→ Delcredere commission is the remuneration or additional commission paid to the consignee for taking the responsibility of collecting the amount on credit sales made by him.

→ Overriding commission is an extra commission granted when the consignor wants his agent to put in extra hard work to increase sales, especially in case of new products.

→ Loading is the difference between the invoice price and cost price.
Loading = IP – CP

→ Normal loss arises due to the nature of goods. This type of losses cannot be avoided in spite to best efforts. Nobody can prevent this type of loss.

TS Inter 2nd Year Accountancy Notes Chapter 2 కన్సైన్మెంట్ ఖాతాలు

→ కన్సైన్మెంట్ : ఒక ప్రాంతంలో ఉన్న వర్తకుడు సరుకును వేరొక ప్రాంతంలో ఉన్న తన ప్రతినిధికి కమీషన్ మీద అమ్మకానికి పంపడాన్ని గణకశాస్త్ర పరిభాషలో కన్సైన్మెంట్ అంటారు.

→ కన్సైనార్, కన్సైనీ : సరుకు పంపే వర్తకుడిని (యజమాని) ‘కన్సైనార్’ అని, సరుకు స్వీకరించే వర్తకుడిని ‘కన్సైనీ’ అని, పంపిన సరుకును ‘కన్సైన్మెంట్పై పంపిన సరుకు’ అంటారు.

→ ప్రొఫార్మా ఇన్వాయిస్ : కన్సైనార్ సరుకును కన్సైన్మెంట్పై పంపినప్పుడు, దానితోపాటు తన ప్రతినిధికి ఒక నివేదికను పంపుతాడు, దీనినే ‘ప్రొఫార్మా ఇన్వాయిస్’ అంటారు. ఈ నివేదికలో సరుకు వివరాలు, గుణగణాలు, పరిమాణం, ధరలు ఖర్చులు మొదలైనవి ఉంటాయి.

→ అకౌంట్ సేల్స్ : కన్సైనీ తాను అమ్మిన సరుకు వివరాలను చూపుతూ కన్సైనార్కు నిర్ణీత కాలాల్లో ఒక నివేదికను పంపుతాడు. దానినే అకౌంట్ సేల్స్ అంటారు. దానిలో సరుకు అమ్మకం వివరాలతో పాటు ఖర్చులు, భీమా, గిడ్డంగి ఖర్చులు, కన్సైనీ కమీషన్, బయానా మొదలైనవి ఉంటాయి.

→ ముగింపు సరుకు విలువ కట్టడం : ఆర్థిక సంవత్సరానికి సరుకులో కొంత భాగం అమ్మకం కాకుండా కన్సైనీ వద్ద మిగిలిపోవచ్చును. ఖచ్ఛితమైన లాభనష్టాలు కనుక్కునేందుకు మిగిలిపోయిన సరుకును తగువిధంగా విలువ కట్టాలి.

TS Inter 2nd Year Accountancy Notes Chapter 2 Consignment Accounts

→ కమీషన్ వస్తువులు అమ్మినందుకు గాను కన్సైనార్, కన్సైనీకి చెల్లించే పారితోషికం.

→ డెల్డరీ కమీషన్ : అరువుపై వస్తువులను అమ్మినప్పుడు కన్సైనీ సొమ్ము వసూలుకు పూర్తి బాధ్యత వహించినందుకు చెల్లించే అదనపు పారితోషికం.

→ సరుకు నష్టం : కన్సైన్మెంటుపై పంపిన సరుకు తరుచుగా కొన్ని నష్టాలకు గురికావచ్చు. ఈ నష్టం స్వభావాన్ని బట్టి రెండు రకాలుగా వర్గీకరించవచ్చు అవి. ఎ) సాధారణ నష్టం బి) అసాధారణ నష్టం

→ అసాధరణ నష్టం : అనుకోని విధంగా సరుకుకు నష్టం ఏర్పడితే ఆ నష్టాన్ని అసాధారణ నష్టం అంటారు. ఉదా : అగ్ని ప్రమాదం, దొంగతనం, అజాగ్రత్త వల్ల కానీ, ఈ రకమైన నష్టం వాటిల్లవచ్చు.

TS Inter 2nd Year Hindi Grammar पत्र लेखन

Telangana TSBIE TS Inter 2nd Year Hindi Study Material Grammar पत्र लेखन Questions and Answers.

TS Inter 2nd Year Hindi Grammar पत्र लेखन

अभ्यास – 1

पत्र एक ऐसा कागज़ होता है जिस पर कोई बात लिखी या छपी हो जिसके बल पर सूचनाओं का आदान प्रदान होता है। पत्र लेखन के माध्यम से हम अपने भावों और विचारों को व्यक्त कर सकते हैं। पत्र को अभिव्यक्ति का एक सशक्त माध्यम भी माना जाता है। इससे अपनी बातों को लिखकर बहुत दूर तक पहुंचाया जा सकता है।

पत्र लेखन बहुत ही पुराना साधन है। पहले आधुनिक साधन नहीं थे इसलिए पत्रों के माध्यम से ही एक दूसरे से बात हुआ करती थी ।

  1. अपने भावों और विचारों को दूसरों से संप्रेषित करने के लिए पत्रों का प्रयोग किया जाता है । अतः व्यावसायिक, सामाजिक, कार्यालय से संबंधित विचारों को पत्रों के माध्यम से ही व्यक्त किया जाता है ।
  2. पत्रों के माध्यम से मित्रों और परिजनों के साथ संबंध स्थापित किये जा सकते हैं । इनके माध्यम से मनुष्य प्रेम, सहानुभूति, क्रोध प्रकट कर सकते हैं ।
  3. जब कार्यालय और व्यवसाय में मुद्रित रूप में पत्रों का विशेष प्रयोग किया जाता है । मुद्रित रूप के पत्रों को सुरक्षित रखा जा सकता है ।
  4. छात्रों के जीवन में भी पत्रों का बहुत महत्व होता है । छात्र को अवकाश लेने, फ़ीस माफ़ी, स्कूल छोड़ने, स्कोलरशिप पाने, व्यवसाय चुनने, नौकरी पाने के लिए पत्र की जरूरत पडती है ।
  5. पत्रों के द्वारा सामाजिक संबंधों को मजबूत किया जाता है । पत्र को भविष्य का दस्तावेज भी कहा जा सकता है ।

TS Inter 2nd Year Hindi Grammar पत्र लेखन

पत्र लेखन के लिए आवश्यक बातें :

  1. जिसके लिए पत्र लिखा जाता है उसके लिए शिष्टाचार पूर्ण शब्दों का प्रयोग करना चाहिए ।
  2. पत्र में हृदय के भाव स्पष्ट दिखाई देने चाहिए ।
  3. पत्र की भाषा आसान और स्पष्ट होनी चाहिए ।
  4. पत्र में बेकार बातें नहीं लिखनी चाहिए उसमे मुख्य विषय के बारे में ही बातें लिखी जाती हैं ।
  5. पत्र में आशय स्पष्ट करने के लिए छोटे शब्दों का प्रयोग करना चाहिए। 6) पत्र लिखने के बाद उसे दुबारा जरूर पढ़ना चाहिए ।
  6. पत्र प्राप्तकर्ता की आयु, संबंध और योग्यता को ध्यान में रखकर भाषा का प्रयोग करना चाहिए ।
  7. अनावश्क विस्तार से हमेशा बचना चाहिए ।
  8. पत्र में लिखा हुआ लेख साफ व स्वच्छ होना चाहिए ।
  9. भेजने वाले और प्राप्त करने वाले का पता साफ लिखा होना चाहिए ।

पत्र लेखन की सामान्य विशेषताएँ इस प्रकार होनी चाहिए :

  1. सरल भाषा का प्रयोग ।
  2. लेखन तथा भावों में स्पष्टता ।
  3. मुद्दे की बात करना । संक्षिप्तता बनाए रखना ।
  4. अपने मूल विचारों की अभिव्यक्ति करना ।
  5. उद्देश्यपूर्णता का होना ।

पत्र के अंग :

  1. संबोधन : यह पत्र भेजनेवाले और पानेवाले के परस्पर संबंध पर आधारित होता है। जैसे प्रिय महोदय (अपरिचित लोगों के लिए), पूज्यवर, मान्यवर, आदरणीय ( बड़ों के लिए), प्रिय, चिरंजीवी (छोटों के लिए), श्रीमती जी, महोदया, आदरणीया (स्त्रियों के लिए) ।
  2. अभिवादन : नमस्ते, सादर प्रणाम, प्रसन्न रहो, आशीर्वाद आदि ।
  3. विषय-वस्तु : पत्र की मूल बात ।
  4. समापन वाक्यांश और स्वनिदेश अधोलेख : अभिवादन सहित, शुभकामनाओं सहित और अधोलेख में आपका, भवदीय, शुभाकांक्षी, सस्तेही आदि ।
  5. प्रेषती का पता : प्रेषक का नाम ( बाई ओर आरंभ में), प्रेषती का पता ( अंत में), सेवा में ।

TS Inter 2nd Year Hindi Grammar पत्र लेखन

पत्र लेखन मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं :
1) औपचारिक पत्र (कार्यालयी अथवा व्यावसायिक)
ये पत्र औपचारिक संदर्भों में लिखे जाते हैं। जिन लोगों के साथ इस तरह का पत्राचार किया जाता है, उनके साथ हमारे व्यक्तिगत सबंध नहीं होते। हम उन्हें जानते तक नहीं हैं । औपचारिक परिवेश होने के कारण इन पत्रों में तथ्यों और सूचनाओं को अधिक महत्व दिया जाता है ।

2) अनौपचारिक पत्र ( निजी अथवा व्यक्तिगत )
जिन लोगों से हमारे व्यक्तिगत संबंध होते हैं, उन्हें हम अनौपचारिक पत्र लिखते हैं । इन पत्रों में व्यक्ति अपने मन की अनुभूतियों, भावनाओं, सुख – दुख की बातों आदि का उल्लेख करता है । अतः इन पत्रों को व्यक्तिगत पत्र भी कहा जाता है । इन पत्रों की भाषा शैली में अनौपचारिकता का पुट देखा जा सकता है ।

औपचारिक पत्र के उदाहरण

प्रश्न 1.
छुट्टी के लिए आवेदन पत्र ।
उत्तर:

दिनांक : 23.07.2019
स्थान : हैदराबाद ।

सेवा में,
प्रधानाचार्य,
शासकीय महाविद्यालय,
मलकपेट, हैदराबाद ।

विषय : तीन दिनों के अवकाश हेतु प्रार्थना पत्र

माननीय महोदय,

सविनय निवेदन है कि पिछले दो दिनों से माँ अस्वस्थ हैं। डॉक्टर ने उन्हें तीन दिनों तक आराम करने की सलाह दी है। घर पर उनकी देख- रेख करने के लिए कोई नहीं है । अतः मैं दिनांक 24.07.2019 से 26.07.2019 तक महाविद्यालय में अनुपस्थित रहुँगा । कृपया मुझे इन तीन दिनों का अनकाश प्रदान करें ।

TS Inter 2nd Year Hindi Grammar पत्र लेखन

धन्यवाद ।

आपका आज्ञाकारी छात्र
अभिनव कुमार,
क्र. सं. 14,
एम. पी. सी. प्रथम वर्ष ।

प्रश्न 2.
उच्च शिक्षा के लिए टी.सी. (स्थानांतरण पत्र) तथा शैक्षणिक प्रमाण – पत्र के प्रधानाचार्य को पत्र ।
उत्तर:

दिनांक : 23.07.2019
स्थान : हैदराबाद ।

सेवा में,
प्रधानाचार्य,
शासकीय महाविद्यालय,
नामपल्ली, हैदराबाद ।

विषय : उच्च शिक्षा के लिए टी. सी. ( स्थानांतरण- पत्र ) तथा शैक्षिक प्रमाण – पत्र की आवश्यकता हेतु ।

माननीय महोदय,

सविनय निवेदन है कि मैंने आपके महाविद्यालय से एम. पी. सी. ग्रूप, द्वितीय वर्ष उत्तीर्ण किया है । उच्च शिक्षा के लिए मुझे टी. सी. ( स्थानांतरण- पुत्र) और बोनाफाइड (शैक्षिक प्रमाण-पत्र ) की आवश्यकता है ।

अतः आपसे निवेदन है कि उपर्युक्त प्रमाण-पत्र यथाशीघ्र देने की कृपा करें ।

धन्यवाद ।

आपका आज्ञाकारी छात्र
अभिनव कुमार,
क्र. सं. 14,
एम. पी. सी. ।

TS Inter 2nd Year Hindi Grammar पत्र लेखन

प्रश्न 3.
बस में छूटे सामान के बारे में परिवहन अधिकारी के नाम पत्र ।
उत्तर:

दिनांक : 24.07.2019
स्थान : हैदराबाद ।

सेवा में,
श्रीमान प्रबंधक,
तेलंगाना परिवहन निगम,
हैदराबाद ।

विषय : बस में छूटे सामान के बारे में ज्ञापित करने हेतु ।

माननीय महोदय,

सविनय निवेदन है कि मैं आपको बस में छूटे अपने सामान के बारे में ध्यान दिलाना चाहता हूँ । मैं 23.07.2019 को बस संख्या टीएस 09 1411 से दिलसुखनगर से कोठी जा रहा था। मैं उस दिन जल्दी में था । इसी कारण बस से उतरते समय अपना बैग भूल गया । उसमें मेरी पुस्तकें रह गयी हैं। आपसे निवेदन है कि यदि आपको मेरी पुस्तकें मिली हैं तो कृपया लौटाने की कृपा करें। आशा है कि आप मेरे निवेदन पर गंभीरता से विचार करेंगें ।

धन्यवाद ।

आपका आज्ञाकारी छात्र
अभिनव कुमार,
क्र. सं. 14,
एम. पी. सी. प्रथम वर्ष ।
शामकीय महाविद्यालय,
न्यू मलकपेट ।

औपचारिक पत्र

प्रश्न 1.
परीक्षा में अच्छे अंक पाने पर भाई को बधाई देते हुए पत्र लिखिए ।
उत्तर:

दिनांक : 23.07.2019
स्थान : हैदराबाद ।

प्रिय राकेश,

शुभाशीष । आशा करता हूँ कि तुम वहाँ सकुशल होगे। तुम्हारा पत्र मिला । मुझे यह जानकर बहुत प्रसन्नता हुई कि तुमने पिछली परीक्षा की तुलना में इस परीक्षा में खूब मेहनत की। इसी का परिणाम हैं कि तुम्हें अच्छे अंक प्रात्प हुए । मैं तुम्हें इस सफलता के लिए ढेर सारी बधाई देता हूँ । आशा करता हूँ कि भविष्य में भी इसी तरह अच्छे अंक प्रात्प करोगे ।

तुम्हारा भैया
अभिनव कुमार,

पता :
सेवा में,
राकेश कुमार,
कक्षा : नवीं, क्र.सं. 15,
सरकारी उच्च पाठशाला,
वरंगल, तेलंगाना ।.

TS Inter 2nd Year Hindi Grammar पत्र लेखन

प्रश्न 2.
समय का महत्व बताते हुए अपने मित्र को पत्र लिखिए ।
उत्तर:

दिनांक : 23.07.2019
स्थान : हैदराबाद ।

प्रिय नरेश,

मैं यहाँ कुशल हूँ । तुम्हारी कुशलता की प्रार्थना करता हूँ । तुमने पिछली बार परीक्षा की तैयारी के लिए उपाय पूछे थे। मुझे यह बताते हुए अत्यंत प्रसन्नता हो रही है कि परीक्षा की तैयारी के लिए सबसे पहला नियम समय का पालन होता है। जो व्यक्ति समय का पालन करता है, वह सदैव सफलता प्राप्त करता है। रात को जल्दी सोना और सुबह समय पर उठना एक अच्छे छात्र का लक्षण होता है । मैं भी तुम्हें परीक्षा की तैयारी के लिए समय पालन करते हुए समय सारिणी बनाकर आगे बढ़ने का सुझाव देना चाहता हूँ । आशा करता हूँ कि तुम मेरे सुझाव का अवश्य पालन करोगे ।

तुम्हारा मित्र
अभिनव कुमार,

पता :
सेवा में,
नरेश कुमार,
म. नं. 8.7.69,
गाँधीनगर, महबूबाबाद ।

TS Inter 2nd Year Hindi Grammar पत्र लेखन

प्रश्न 3.
विज्ञान यात्रा पर जाने के लिए पिताजी से रुपये माँगने हेतु पत्र लिखिए ।
उत्तर:

दिनांक : 23 07.2019
स्थान : हैदराबाद ।

पूज्यनीय पिताजी,

सादर प्रणाम । मैं यहाँ कुशल हूँ । आपकी और माताजी की कुशलता की प्रार्थना करता हूँ । मेरी पढ़ाई अच्छी चल रही है। पत्र लिखने का कारण यह है कि महाविद्यालय की ओर से अगले सप्ताह विज्ञान यात्रा पर बेंगलूर जाने का निर्णय लिया गया है। इसमें मैं भी जाना चाहता हूँ । इस विज्ञान यात्रा में जाने के लिए एक हजार रुपये की आवश्यकता है । आश करता हूँ कि आप मुझे विज्ञान यात्रा पर अवश्य भेजेंगे ।

आपका पुत्र
अभिनव कुमार,

पता :
सेवा में,
सुरेश कुमार,
म. नं. 2.6.89,
पुराना बाजार, कामारेड्डी ।

TS Inter 2nd Year Hindi Grammar संधि

Telangana TSBIE TS Inter 2nd Year Hindi Study Material Grammar संधि Questions and Answers.

TS Inter 2nd Year Hindi Grammar संधि

संधि ( सम् + धि) शब्द का अर्थ है ‘मेल’ । दो निकटवर्ती वर्णों के परस्पर मेल से जो विकार (परिवर्तन) होता है वह संधि कहलाता है । जैसे –
सम् + तोष = संतोष
देव + इंद्र = देवेंद्र
भानु + उदय = भानूदय ।

संधि के भेद :
संधि तीन प्रकार की होती हैं –

  1. स्वर संधि,
  2. व्यंजन संधि,
  3. विसर्ग संधि

1. स्वर संधि :
दो स्वरों के मेल से होने वाले विकार (परिवर्तन) को स्वर संधि कहते हैं । जैसे – चिकित्सा + आलय = चिकित्सालय ।
स्वर – संधि पाँच प्रकार की होती हैं।
क) दीर्घ संधि,
ख) गुण संधि,
ग) वृद्धि संधि,
घ) यण संधि,
ङ) अयादि संधि

TS Inter 2nd Year Hindi Grammar संधि

क) दीर्घ संधि :
ह्रस्व या दीर्घ अ, इ, उ के बाद यदि ह्रस्व या दीर्घ अ, इ, उ आ जाएँ तो दोनों मिलकर दीर्घ आ, ई और ऊ हो जाते हैं । जैसे-

(अ) अ / आ + अ / आ = आ
अ + अ = आ – धर्म + अर्थ = धर्मार्थ
अ + आ = आ – हिम + आलय = हिमालय
अ + आ = आ – पुस्तक + आलय = पुस्तकालय
अ + आ = आ – विद्या + अर्थी = विद्यार्थी
अ + आ = आ – विद्या + आलय = विद्यालय

(आ) इ और ई की संधि
इ + इ = ई – रवि + इंद्र = रवींद्र; मुनि + इंद्र = मुनींद्र
इ + ई = ई – गिरि + ईश = गिरीश; मुनि + ईश = मुनीश
ई + इ = ई – मही + इंद्र = महींद्र नारी + इंद्र = नारींद्र
ई + ई = ई – नदी + ईश = नदीश; मही + ईश = महीश

ग) उ और ऊ की
उ + उ = ऊ – भानु + उदय = भानूदय; विधु + उदय = विधूदय
उ + ऊ = ऊ – लघु + ऊर्मि = लघूर्मि; सिधु + ऊर्मि = सिंधूर्मि
ऊ + उ = ऊ – वधू + उत्सव = वधूत्सव; विधू + उल्लेख = वधूल्लेख
ऊ + ऊ = ऊ – भू + ऊर्ध्व = भूर्ध्व; वधू + ऊर्जा = वधूर्जा

ख) गुण संधि :
इसमें अ, आ के आगे इ, ई हो तो ए; उ, ऊ हो तो ओ तथा ॠ हो तो अर् हो जाता है । इसे गुण – संधि कहते हैं। जैसे –
(अ) अ + इ = ए; नर + इंद्र = नरेंद्र
अ + ई = ए; नर + ईश = नरेश
आ + इ = ए; महा + इंद्र = महेंद्र
आ + ई = एं; महा + ईश = महेश

(आ) अ + उ = ओ ; ज्ञान + उपदेश = ज्ञानोपदेश
आ + उ = ओं; महा + उत्सव = महोत्सव
अ + ऊ = ओ; जल + ऊर्मि = जलोर्म
आ + ऊ ओ; महा + ऊर्मि = महोर्मि

(इ) अ + ऋ = अर् देव + ऋषि = देवर्षि

(ई) आ + ऋ = अर् महा + ऋषि = महर्षि

TS Inter 2nd Year Hindi Grammar संधि

ग) वृद्धि संधि :
अ, आ का ए, ऐ से मेल होने पर ऐ तथा अ, आ का ओ, औ से मेल होने पर औ हो जाता है । इसे वृद्धि संधि कहते हैं । जैसे –

(अ) अ + ए = ऐ; एक + एक = एकैक
अ + ऐ = ऐ ; मत + ऐक्य = मतैक्य
आ + ए = ऐ: सदा + एव = सदैव
आ + ऐ = ऐ; महा + ऐश्वर्य = महैश्वर्य

(आ) अ + ओ = औ ; वन + औषधि = वनौषध
आ + ओ = औ ; महा + औषधि = महौषधि
अ + औ = औ ; परम + औषध = परमौषध
आ + औ = औ ; महा + औषध = महौषध

(घ) यण संधि :
(अ) इ, ई के आगे कोई विजातीय (असमान) स्वर
होने पर इ ई को ‘य्’ हो जाता है ।

(आ) उ, ऊ के आगे किसी विजातीय स्वर के आने पर उ ऊ को ‘व्’ हो जाता है ।

(इ) ‘ऋ’ के आगे किसी विजातीय स्वर के आने पर ऋ
को ‘र’ हो जाता है। इन्हें यण संधि कहते हैं ।
इ + अ = य् + अ ; यदि + अपि = यद्यपि
ई + आ = य् + आ; इति + आदि = इत्यादि
ई + अ = य् + अ नदी + अर्पण = नद्यर्पण
ई + आ = य् + आ; देवी + आगमन = देव्यागमन

(ई) उ + अ = व् + अ ; अनु + अय = अन्वय
उ + आ = व् + आ; सु + आगत = स्वागत
उ + ए = व् + ए; अनु + एषण = अन्वेषण
ऋ + अ = र् + आ; पितृ + आज्ञा = पित्राज्ञा

TS Inter 2nd Year Hindi Grammar संधि

ङ) अयादि संधि :
ए, ऐ और ओ औ से परे किसी भी स्वर के होने पर क्रमशः अय्, आय्, अव् और आव् हो जाता है । इसे अयादि संधि कहते हैं ।
(अ) ए + अ = अय् + अ; ने + अन = नयन
(आ) ऐ + अ = आय् + अ ; गै + अक = गायक
(इ) ओ + अ = अव् + अ ; पो + अन = पवन
(ई) औ + अ = आव् + अ; पौ + अक = पावक
औ + इ = आव् + इ; नौ + इक = नाविक

2. व्यंजन संधि :
व्यंजन के निकट स्वर या व्यंजन आने से व्यंजन में जो परिवर्तन होता है उसे व्यंजन संधि कहते हैं । जैसे- शरत् + चंद्र शरच्चंद्र । उत् + ज्वल = उज्जवल ।

(अ) किसी वर्ग के पहले वर्ण क्, च्, ट्, त्, प् का मेल किसी वर्ग के तीसरे अथवा चौथे वर्ण या य्, र्, ल्, व्, ह या किसी स्वर से हो जाए तो क् को को ज् ट् ग् च् को -ड़ और को ब् हो जाता है । जैसे –
क् + ग = ग्ग ; दिक् + गज = दिग्गज ।
क् + ई = गी ; वाक् + ईश = वागीश ।
च् + अ = ज् ; अच् + अंत = अजंत ।
ट् + आ = डा ; षट + आनन = षडानन ।

(आ) यदि किसी वर्ग के पहले वर्ण (क्, च्, ट्, त्, प्) का मेल न् या म् वर्ण से हो तो उसके स्थान पर उसी वर्ग का पाँचवाँ वर्ण हो जाता है। जैसे –
क् + म = वाक् + मय = वाङ्मय
ट् + म = ण् षट् + मास = षण्मास
त् + न = न् उत् + नयन = उन्नयन

(इ) त् का मेल ग, घ, द, ध, ब, भ, य, र, व या किसी स्वर से हो जाए तो द् हो जाता है । जैसे –
त् + भ = द्भ सत् + भावना = सद्भावना
त् + ई = दी जगत् + ईश = जगदीश
त् + भ = द्भ भगवत् + भक्ति = भगवद्भकति
त् + र = द्र तत् + रूप = तद्रूप
त् + ध = द्ध सत् + धर्म = सद्धर्म

TS Inter 2nd Year Hindi Grammar संधि

(ई) त् से परे च् या छ् होने पर च, ज् या झ् होने पर ज्, ट् या ट् होने पर ट्, ड् या ढ् होने पर ड् और ल होने पर ल् हो जाता है । जैसे-
त् + च = च्च उत् + चारण = उच्चारण
त् + च = ज्ज सत् + जन = सज्जन
त् + ट = ट्ट तत् + टीका = तट्टीका
त् + ड = ड्ड उत् + डयन = उड्डयन
त् + ल = ल्ल उत् + लास = उल्लास

(उ) यदी म के बाद क्से म् तक कोई व्यंजन हो तो म् अनुस्वार में बदल जाता है । जैसे –
म् + क = सम् + कल्प = संकल्प
म् + च = सम् + चय = संचय
म् + त = सम् + तोष = संतोष
म् + ब = सम् + बंध = संबंध
म् + प = सम् + पूर्ण = संपूर्ण

(ऊ) म् के बाद म का द्वित्व हो जाता है। जैसे
म् + म = म्म सम् + मति = सम्मति
म् + म = म्म सम् + मान = सम्मान

3. विसर्ग संधि :
विसर्ग (:) के बाद स्वर या व्यंजन आने पर विसर्ग में जो विकार होता है उसे विसर्ग संधि कहते हैं। जैसे – मनः + अनुकूल = मनोनुकूल है। जैसे –

(अ) विसर्ग के पहले यदि ‘अ’ और बाद में भी ‘अ’ अथवा वर्गों के तीसरे, चौथे पाँचवें वर्ण, अथवा य, र, ल, व हो तो विसर्ग का ओ हो जाता है। जैसे-
मनः + अनुकूल = मनोनुकूल
अधः + गति = अधोगति
मनः + बल = मनोबल

(आ) विसर्ग से पहले अ, आ को छोड़कर कोई स्वर हो और बाद में कोई स्वर हो, वर्ग के तीसरे, चौथे, पाँचवें वर्ण अथवा य, र, ल, व, ह में से कोई हो तो विसर्ग का र यार हो जाता है । जैसे –
निः + आहार = निराहार;
निः + आशा = निराशा
निः + धन = निर्धन

(इ) विसर्ग से पहले कोई स्वर हो और बाद में च, छ या श हो तो विसर्ग का श हो जाता है। जैसे –
निः + चल = निश्चल;
निः + छल = निश्छल;
दु: + शासन = दुश्शासन

(ई) विसर्ग के बाद यदि त या स हो तो विसर्ग स् बन जाता है । जैसे –
नमः + ते = नमस्ते;
निः + संतान = निस्संतान;
दु: + साहस = दुस्साहस

TS Inter 2nd Year Hindi Grammar संधि

(उ) विसर्ग से पहले इ, उ और बाद में क, ख, ट, ठ प फ में से कोई वर्ण हो तो विसर्ग का षं हो जाता है। जैसे-
निः + कलंक = निष्कलंक
चतुः + पाद = चतुष्पाद;
निः + फल = निष्फल:

(ऊ) विसर्ग से पहले अ, आ हो और बाद में कोई भिन्न स्वर हो तो विसर्ग का लोप हो जाता है। जैसे – निः + रोग = निरोग; निः + रस = नीरस (ॠ) विसर्ग के बाद क, ख अथना प, फ होने पर विसर्ग में कोई परिवर्तन नहीं होता । जैसे-
अंतः + करण = अंतःकरण

अभ्यास

(इसमें संधि तथा संधि विच्छेद भी दिया गया है ।)

1) हिमालय = हिम + आलय
2) विद्यार्थी = विद्या + अर्थी
3) नरेश = नर + ईश
4) एकैक = एक + एक
5) स्वागत = सु + आगत
6) यद्यपि = यदि + अपि
7) नयन = ने + अन
8) जगदीश = जगत् + ईश
9) महेंद्र = महा + इंद्र
10) सज्जन = सत् + जन

TS Inter 2nd Year Hindi Grammar संधि

11) सम्मान = सम् + मान
12) मनोनुकूल = मनः + अनुकूल
13) निराशा = निर + आशा
14) सदैव = सदा + एव
15) महेश = महा + ईश
16) पुस्तकालय = पुस्तक + आलय
17) परोपकार = पर + उपकार
18) मतैक्य = मत + ऐक्य
19) मुनींद्र = मुनि + इंद्र
20) देवर्षि = देव + ऋषि

TS Inter 2nd Year Hindi उपवाचक Chapter 2 गाँव का ईश्वर

Telangana TSBIE TS Inter 2nd Year Hindi Study Material उपवाचक 2nd Lesson गाँव का ईश्वर Textbook Questions and Answers.

TS Inter 2nd Year Hindi उपवाचक 2nd Lesson गाँव का ईश्वर

लघु प्रश्न (లఘు సమాధాన ప్రశ్నలు)

प्रश्न 1.
रतन कौन है ? उसके बारे में तीन – चार वाक्य लिखिए ।
उत्तर:
रतन शिवपाल का शिक्षित जेष्ठ पुत्र जो शहर में नौकरी करता घर चलाने के लिए हर महीना पैसा भेजता है । उसमें विनय विवेक, वात्सल्य, उदात्त भाव आदि कूट कूट कर भरे रहते हैं। अपनी छोटी बहन केशर को, बेमेल विवाह से बचाने की भरसक कोशिश करता है। शहर में उसे पढ़ाकर सयानी कर योग्य युवक से शादी कराना चाहता है। सचमुच रतन घर का, गाँव का और समाज का रतन है ।

प्रश्न 2.
‘गाँव का ईश्वर’ प्रकांकी का उद्देश्य क्या है ?
उत्तर:
‘अशिक्षा से ग्रामीण प्रांतों में कई दुष्परिणाम होते रहते हैं । उनमें बेमेल विवाह, बाल्यविवाह, लडकियों को समान अधिकार न देना, शिक्षित संतान की भावनाओं को प्राथमिकता न देना, बडों की पसंद को छोटों की पसंद बनाकर थोपना, बड़ा आदमी चाहे कैसे भी हो, गाँव का ईश्वर समझना आदि हैं। इन बिंदुओं की ओर पाठकों की दृष्टि आकृष्ट कर इन दुष्परिणामों को दूर कराने की कोशिश करना ही इस एकांकी का मुख्य उद्देश्य है ।

गाँव का ईश्वर Summary in Hindi

लेखक परिचय

डॉ. लक्ष्मीनारायण लाल का जन्म सन् 1927 में हुआ था । तथा निधन सन् 1987 में हुआ था । वे न केवल श्रेष्ठ नाटककार थे, बल्कि एकांकीकार, कहानीकार, उपन्यासकार और समीक्षक भी थे। वे संगीत नाटक अकादमी द्वारा सम्मानित किए गए तथा साहित्य कला परिषद एवं हिंदी अकादमी द्वारा पुरस्कृत किए गए ।

लक्ष्मीनारायण लाल जी के प्रमुखनाटक हैं- अंधाकुआँ, मादा केक्टस, सुंदर रस, सुखा सरोवर आदि । इनके एकांकी संग्रह हैं – पर्वत के पीछे, नाटक बहुरूपी, ताजमहल के आँसू, मेरे श्रेष्ठ एकांकी आदि । इनके आनेवाला कल, लेडी डॉक्टर डाकू आए थे, मेरी प्रतिनिधि कहानियाँ आदि प्रसिद्ध कहानी संग्रह हैं । इनके उपन्यासों के अंतर्गत धरती की आँखें, बया का घोंसला और सांप, काले फूल का पौधा, अपना-अपना राक्षस आदि प्रसिद्ध हैं । आधुनिक हिंदी कहानी, आधुनिक हिंदी नाटक और रंगमंच आदि इनके समीक्षा – ग्रंथ हैं ।

TS Inter 2nd Year Hindi उपवाचक Chapter 2 गाँव का ईश्वर

आपकी रचनाओं में मध्यवर्गीय नागरिक जीवन, ग्रामीण जीवन, मानवीय संबंध, प्रेमकी विभिन्न मनोदशाएँ आदि प्रतिबिंबित हैं ।

प्रस्तुत एकांकी ‘गाँव का ईश्वर’ गाँव की अशिक्षा से होनेवाले बेमेल विवाह अंध विश्वास आदि दुष्परिणामों को दर्शानेवाला सफल पुकांकी है ।

सारांश

ग्रामीण शिवपाल के परिवार में उसकी पत्नी, रतन जतन नामंक दो बेटे तथा केशर नामक बेटी हैं। बेटी पूरे तेरह साल की भी नहीं है। शिवपाल उस नादान बेटी केशर का बेमेल विवाह दोबार विवाहित एक विधुर बूढ़े से करने की कोशिश करता है । वह किसीका नहीं सुनता। यह विवाहं केशर को पसंद नहीं है । वह पिता को अपनी अनिच्छा बताने से डरती है । उसका बड़ा भाई रतन शिक्षित और शहर में रहकर नौकरी करता है । उसकी कमाई से घर चलता है । वह भी इस विवाह का विरोध करता है । इस कारण शिवपाल रतन से नाराज होता है और गालियाँ देता रहता है । रतन की माँ उसका खंडन करती है ।

एक ओर विवाह की तैयारियाँ होती रहती हैं। सभी सगे – संबंधी आ जाते हैं । कोलाहल मच जाता हैं। लेकिन रतन नहीं आपाता है । कुछ बुजुर्ग रतन और शिवपाल के बारेमें बातचीत करते रहते हैं । इतने में मुहूर्त के पहले रतन आता है । वह बुजुर्गों और माँ का चरणस्पर्श करता है । पिता का अभिवादन करता है । सभी सगे-संबंधियों को कपड़े और बच्चों को मिठाई, खिलौने लाता है । बहन को विवाह संबंधी वस्त्र और आभूषण लाता है ।

साथ साथ पैसा भी लाता है । फिर भी रतन और केशव खुश नहीं हैं । अकेले रतन केशव से कहता है कि मेरी दुन्तारी मुन्नी ! चल, भाग चल ! मैं तुझे इसी तरह शहर ले जाऊँगा, छिप जाऊँगा तुझे लेकर। शहर में तुझे पढ़ाऊँगा, सयानी करूँगा, और जब जीवन के प्रति तेरा दृष्टिकोण निश्चित हो जाएगा, तब तेरी शादी करूँगा ठीक तेरे ही योग्य । नहीं तो यह घर, यह गाँव, यहाँ का ईश्वर तुझे इसी तरह जिंदा गाड़ देगा इसी धरती । इस तरह कई प्रकार वह समझ – बुझाता, उत्साह भरने की कोशिश करता है । लेकिन बेबस केशर, ऐसा नहीं भइया, कहते हुए सिसकती उसके पैरों से लिपट जाती हैं । रतन भी रो पड़ता है ।

विफल होकर निस्सहाय रतन चुपचाप घर छोड़कर राहर लौट जाता है । माँ और बेटी से पड़ती हैं। पिता गाली देता है। बाकी लोग आश्चर्यपूर्ण दुःख से एक- दूसरे को देखते ही रह जाते हैं ।

गाँव का ईश्वर Summary in Telugu

సారాంశము

గ్రామీణుడైన శివపాల్ కుటుంబంలో అతని భార్య, రతన్, జతన్ అనే పేరుగల ఇరువురు కుమారులు, కేశర్ అనే పేరుగల ఒక కుమార్తె ఉంటారు. శివపాల్ తన 13 ఏళ్ళు కూడ లేని అమాయకపు కూతురు కేశర్ వివాహం రెండు పెళ్ళిళ్ళయి భార్యలు చనిపోయిన వృద్ధునితో చేయటాన్కి ప్రయత్నిస్తాడు.

TS Inter 2nd Year Hindi उपवाचक Chapter 2 गाँव का ईश्वर

అతను ఎవరి మాట వినని, మొండిఘటం. కేశర్కి ఈ సంబంధం ఇష్టం లేదు. కాని తండ్రికి ఈ మాట చెప్పటాన్కి భయపడ్తుంది. తన పెద్దన్న రతన్ విద్యావంతుడు. పట్టణంలో ఉంటూ ఉద్యోగం చేస్తుంటాడు. అతని సంపాదనతో ఇల్లు గడుస్తుంది. అతను కూడా ఈ వివాహాన్ని వ్యతిరేకిస్తాడు. రతనంటే శివపాల్కు పడదు; అతడంటే కోపడతాడు, తిడుతుంటాడు. రతన్ తల్లి ఖండిస్తూ ఉంటుంది.

ఒకవైపు పెళ్ళి పనులు ముమ్మరంగా జరుగుతాయి. బంధుమిత్రులు వస్తారు. ఇల్లంతా సందడి. కాని రతన్ ఇంకా రాలేదు. కొందరు పెద్దలు, తండ్రి-పెద్దకొడుకు రతన్ గురించి మాట్లాడు కొంటూ ఉంటారు. ఇంతలో ముహూర్తానికి ముందుగ రతన్ వచ్చిపెద్దలకు, తల్లికి పాదాభివందనంచేస్తాడు. తర్వాత ఆలస్యంగా వచ్చిన తండ్రికి అభివాదం చేస్తాడు.

బంధువు లందరికి కొత్త బట్టలు, పిల్లలకు మిఠాయి ఆట వస్తువులు, చెల్లకి పెళ్ళిబట్టలు-నగలు తీసుకువస్తాడు. అంతేకాకుండా అవసరమైన డబ్బు తీసుకొస్తాడు. అయినా రతనక్కు, చెల్లికి సంతోషముండదు. ఒంటరిగా ఉన్నపుడు చెల్లికి హితబోధ చేస్తుంటాడు-నా ముద్దులమున్నా! రా, నాతో వచ్చేయ్, పారిపోదాం, పట్నానికి తీసుకుపోతా, ఎవరికి కనపడకుండా ఉందాం, పట్నంలో నిన్ను చదివిస్తా, తెలివైనదానిగా తయారుచేస్తా, జీవితం మీద అవగాహన కల్గినపుడు నీకు సరిజోడైన యువకునితో పెళ్ళిచేస్తా.

ఒప్పుకోకపోతే ఈ యిల్లు, ఈ పల్లె, ఇక్కడ దేవుళ్ళు- ఈ పెద్దలు నిన్ను ఇదే విధంగా ఈ నేలలో బతికుండగానే పాతరేస్తారు. ఈ విధంగా పరిపరివిధాల నచ్చజెప్తూ ప్రోత్సహిస్తూ ఉంటాడు. కాని నిస్సహాయురాలు కేశర్, వద్దన్నయ్యా, అలా కాదు అంటూ ఎక్కెక్కి ఏడుస్తూ అన్న కాళ్ళను చుట్టేసుకొంటుంది. రతన్ కూడ ఏడ్వటం మొదలెట్టాడు.

చివరకు విఫలంచెంది దిక్కుతోచక రతన్ మెల్లగా ఎవరికీ తెలియకుండా ఇల్లు విడచి పట్నం వెళ్ళిపోతాడు. తల్లి, కూతురు భోర్మని ఏడుస్తుంటారు. తండ్రి తిట్లు లంకించుకొంటాడు. మిగిలిన జనం ఆశ్చర్యం చెంది దుఃఖంతో ఒకరిముఖాలు ఒకరు చూసుకొంటూ ఉంటారు.

TS Inter 2nd Year Hindi उपवाचक Chapter 1 अंधेर नगरी

Telangana TSBIE TS Inter 2nd Year Hindi Study Material उपवाचक 1st Lesson अंधेर नगरी Textbook Questions and Answers.

TS Inter 2nd Year Hindi उपवाचक 1st Lesson अंधेर नगरी

लघु प्रश्न (లఘు సమాధాన ప్రశ్నలు)

प्रश्न 1.
गोबरधनदास के बारे में आप क्या जानते हैं ?
उत्तर:
गोबरधनदास गुरू महंत का एक शिष्य है । वह बहुत बडा लोभी हैं। गुरू महंत के साथ देशाटन करते हुए अंधेर नगरी पहुँचता है । वहाँ हर चीज टके सेर मिलती है । गुरूजी मना करने के बाद भी वहीं रहना चाहता हैं । भिक्षा में पैसे मिले तो मिठाई लाकर खाता है । एक दिन किसी दीवार टूटने से एक बकरी दबकर मर जाती है । फरियादि के अनुसार राजा दीवार बनानेवाले कोतवाल को फाँसी देने का आदेश देता हैं । गोबर धनदास मोटा आदमी होने के वजह से सिपाही उसको पकड लेते हैं । तब गुरू की दुहाई देता है । गुरू आकर कहता है कि इस शुभ घडी में मरनेवाला सीधे स्वर्ग जाएगा । यह सुनते ही हर आदमी फाँसी पर चढने तैयार होता है । आखिर राजा खुद फाँसी पर चढकर मर जाता है। गुरू महंत और शिष्य उस नगरी से भाग निकलते हैं ।

प्रश्न 2.
“अंधेर नगरी’ एकांकी के अंत में फाँसी पर कौन चढा ? और क्यों ?
उत्तर:
“अंधेर नगरी’ एकांकी के अंत में चौपट राजा खुद फाँसी पर चढता है और मरजाता है । क्यों कि गुरू महंत ने गोबरधनदास को बचाने के लिए कहा कि इस शुभ घडी में मरनेवाला सीधे स्वर्ग जाएगा। सीधे स्वर्ग जाने की लालच में राजा फाँसी पर चढा । गोबर धनदास मोटा आदमी होने के वजह से सिपाही उसको पकड लेते हैं ।

अंधेर नगरी Summary in Hindi

लेखक परिचय

आधुनिक हिन्दी साहित्य के पितामह श्री भारतेंदु हरिश्चंद्र का जन्म सन् 1850 में हुआ था । इनका मूल नाम “हरिश्चंद्र’ था, “भारतेंदु” उनकी उपाधि थी । हिन्दी साहित्य में आधुनिक काल का प्रारंभ भारतेंदु माना जाता है । इन्होंने अपनी रचनाओं में देश की गरीबी, पराधीनता का चित्रण किया है । हिन्दी को राष्ट्रभाषा के रूप में प्रतिष्ठित करने में भी इनका योगदान रहा। यह एक मौलिक नाटक है ।

साहित्यिक परिचय : भारतेंदु बहुमुखी प्रतिभा संपन्न थे । वे एक उत्कृष्ट कवि, व्यंग्यकार सफल नाटककार, जागरूक पत्रकार तथा ओजस्वी गद्यकार थे। इसके अलावा लेखक, कवि, संपादक, निबंधकार एवं कुशल वक्ता भी थे । इनकी प्रमुख रचनाएँ हैं सत्य हरिश्चंद्र, चंद्रावली, भारत दुर्दशा, नीलदेवी, अंधेर नगरी, प्रेम जोगनी, वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति । इन्होंने “हरिश्चंद्र पत्रिका”, “कविवचन सुधा’ और बालविबोधिनी पत्रिकाओं का संपादन भी किया । केवल पैंतीस वर्ष की आयु तक इन्होंने अनेक दिशाओं में काम किया । इनका निधन सन् 1885 में हुआ था ।

TS Inter 2nd Year Hindi उपवाचक Chapter 1 अंधेर नगरी

कवि परिचय : आधुनिक हिन्दी साहित्य के पितामह श्री भारतेंदु हरिश्चंद्र का जन्म सन् 1850 में हुआ था । इनको आधुनिक काल के प्रवक्त माना जाता है । इसलिए इस युग को “भारतेंदु युग’ भी कहा जाता है । इनका मूल नाम ‘ हरिश्चंद्र’ था, भारतेंदु उनकी उपाधि थी । इन्होंने अपनी रचनाओं में देश की गरीबी, पराधीनता का चित्रण किया ।

सारांश

‘अंधेर नगरी’ हास्यात्मक एकांकी है । एकांकी हमें यह सबक देता है कि मूर्खों का संग कभी हमारा भला नहीं करता । एकांकीकार भारतेंदु हरिश्चंद्र हिन्दी के बहुमुखी साहित्यकार हैं ।

गुरू महंत एक बार देशाटन करते हुए अपने दो शिष्य गोबर्धनदास और नारायणदास के साथ किसी शहर में आते हैं । उस शहर का नाम अंधेर नगरी है और वहाँ हर चीज़ टके सेर मिलती है। तब गुरु बताते हैं कि यहाँ रहने से आफ़त होगी । लेकिन शिष्य गुरु की बात नहीं मानते । वे वहीं रहना चाहते हैं । गुरू महंत यह कहकर चले जाते हैं कि आफत के समय मेरी याद करना ।

एक दिन किसी दीवार के टूटने से एक बकरी दबकर मर जाती है । राजा के पास इसकी शिकायत आती है, तब कल्लु बनिया बुलाया जाता है । क्यों कि बह टूटी दीवार कल्लु बनिये की थी । कल्लू वनिया कहता है कि यह कारीगर का कसूर है। कारीगर चूनेवाले को, चूनेवाला भिश्ती को, भिरती कसाई को, कसाई गडरिये को और गडरिया कोतवाल को अपराधी बताते हैं । आखिर कोतवाल को दोषी ठहराकर उसे फाँसी की सजा दी जाती है ।

फांसी का फंदा बड़ा निकलता है और कोतवाल दुबला है, तो राजा आदेश देता है कि कोतवाल के बदले किसी मोटे आदमी को फाँसी पर बढ़ाया जाए ।

शिष्य गोवर्धनदास काफ़ी मोटा था, इसलिए सिपाही गोबर्धनदास को कड़ लेते हैं । जब सारी बातें मालूम होती हैं तब गोबर्धनदास को बड़ा छतावा होता है । वह गुरू की दुहाई देता है । गुरु आते हैं और कहते हैं के इस शुभ घडी में मरनेवाला सीधे स्वर्ग जाएगा ।

यह सुनते ही हर आदमी फाँसी पर चढने तैयार होता है । लेकिन ग़जा के होते हुए यह भाग्य दूसरे को कहाँ मिलेगा ? राजा खुद फाँसी पर ढ़ता है और मर जाता है । गुरू महंत और शिष्य उस शहर से भाग नेकलते हैं ।

इस एकांकी में भारतेंदु ने चौपट राजा के माध्यम से राजनीतिक भ्रष्टाचार, दूरदृष्टि हीनता और कौशल हीनता को प्रकट किया है ।

विशेषताएँ : इस एकांकी में विवेकहीन और निरंकुश शासन व्यवस्था पर व्यंग्य करते हुए उसे अपने ही कर्मों द्वारा नष्ट होते दिखया गया है ।

अंधेर नगरी Summary in Telugu

కవి పరిచయం

ఆధునిక హిందీ సాహిత్య పితామహుడు శ్రీ భారతేండు హరిశ్చంద్రుడు 1850 సం॥లో జన్మించారు. ఈయన్ని ఆధునిక కాల ప్రవర్తకుడు అని, ఈయన కాలాన్ని “భారతేందు యుగం” అని పిలవబడుతుంది. ఈయన అసలు పేరు “హరిశ్చంద్ర్” భారతేందు ఆయన బిరుదు. ఈయన తన రచనల్లో దేశ పేదరికం, పరాధీనతను చిత్రీకరించారు.

సారాంశము

“అంధేర్ నగరీ” హాస్యాత్మక ఏకాంకి మూర్ఖులతో స్నేహం మనకు మంచిని చేయదని ఈ ఏకాంకి మనకు గుణపాఠం నేర్పుతుంది. ఈ పాఠ రచయిత “భారతేందు హరిశ్చంద్” బహుముఖ సాహిత్యవేత్త.

ఒకసారి గురు మహంత్ దేశాటన చేస్తూ తన ఇద్దరు శిష్యులైన గోబర్ ధన్ దాస్ మరియు నారాయణ దాస్తో కలిసి “అంధేర్ నగరీ” అనే పట్టణానికి వస్తారు. అక్కడ ప్రతి వస్తువు “సేరు అర్ధణా” కే లభిస్తుంది. ఇక్కడ ఉండటం ప్రమాదమని గురువు చెప్తారు. అయినా శిష్యులు ఆయన మాట వినక అక్కడే నివసించాలని అనుకుంటారు. సరేనంటూ ఆపద సమయంలో నన్ను గుర్తు చేసుకోమని చెప్పి గురుమహంత్ వెళ్ళిపోతారు.

TS Inter 2nd Year Hindi उपवाचक Chapter 1 अंधेर नगरी

ఒకరోజు ఏదో ఒక గోడ కూలిపోవడంతో దాని క్రింద ఒక మేక పడి చనిపోతుంది. ఈ విషయమై రాజు వద్దకు ఫిర్యాదు చేయబడుతుంది. అందుకు ఆ గోడ యజమాని కల్లు అనే పేరు గల వైశ్యుడు / వ్యాపారిని పిలవబడుతాడు. ఈ తప్పు గోడకట్టిన (తాపీ మేస్త్రి) కార్మికునిదని చెబుతాడు. ఈ విధంగా గోడ నిర్మాణ కార్మికుడు సున్నం కలిపినవాడు తప్పని, ఇతను నీటిని తెచ్చేవాడిని (బిశ్రీ), బిశ్రీ కసాయివాడిని, కసాయి గొర్రెల కాపరిని, గొర్రెల కాపరి పోలీస్ ఇన్స్పెక్టర్ని దోషులుగా చెప్పబడుతుంది. చివరకు పోలీస్ ఇన్ స్పెక్టర్ని దోషిగా నిర్ణయించి ఉరిశిక్ష విధించడమైనది.

ఉరితాడు ఉచ్చు పెద్దగా ఉండటం మరియు పోలీస్ ఇన్స్పెక్టర్ బలహీనంగా ఉండటంతో రాజు పోలీస్ ఇన్స్పెక్టర్కి బదులుగా ఎవరైనా బలంగా లావుగా ఉన్న వ్యక్తికి ఉరి వేయవలసినదిగా ఆదేశిస్తాడు.

గురు మహంత్ శిష్యుడు గోబర్ ధన్దాస్ చాలా లావుగా ఉంటాడు. అందువల్ల రాజుగారి సైనికులు గోబర్ ధన్ దాసుని పట్టుకెళతారు. అప్పుడుగానీ అన్ని విషయాలు తెలుసుకొన్న గోబర్ ధన్ దాసు చాలా పశ్చాత్తాప పడతాడు. గురువు గారిని సహాయం (రక్షింపమని) వేడుకుంటాడు. గురువుగారు వచ్చి అక్కడి వారినందరిని ఉద్దేశించి “ఈ శుభఘడియలో ఎవరైతే మరణిస్తారో వారు సూటిగా స్వర్గానికి వెళతారు” అని చెప్తారు.

ఈ మాట వినడంతోనే ప్రతి ఒక్కరు ఉరిశిక్షకు సన్నద్దం అవుతారు. అయితే రాజుగారంతటివారే ఉండగా వేరే ఎవరికో ఈ అదృష్టం ఎలా దక్కుతుంది. కాబట్టి రాజుగారే స్వయంగా ఉరిశిక్షకు పాత్రుడవుతారు మరియు మరణిస్తారు. ఇంతటితో గురు మహంత్ మరియు శిష్యులు ఆ పట్టణం నుండి (అంధేర్ నగరీ నుండి) పారిపోతారు.

ఈ పాఠంలో ఏకాంకీకార్ భారతేందు చౌపటేరాజుగారి ద్వారా చెడిపోయిన రాజకీయాలు, దూరదృష్టి లేకపోవడం, నేర్పరితనం తేకపోవడాన్ని ప్రకటించారు.

విశేషత : ఈ పాఠంలో వివేకంలేని, నిరంకుశ పాలనా వ్యవస్థను హేళన చేస్తూ తానే స్వయంగా నష్టపోవడాన్ని చూపించడం జరిగింది.

TS Inter 2nd Year Hindi Study Material Chapter 6 तेलंगाना के दर्शनीय स्थल

Telangana TSBIE TS Inter 2nd Year Hindi Study Material 6th Lesson तेलंगाना के दर्शनीय स्थल Textbook Questions and Answers.

TS Inter 2nd Year Hindi Study Material 6th Lesson तेलंगाना के दर्शनीय स्थल

दीर्घ प्रश्न (దీర్ఘ సమాధాన ప్రశ్నలు)

प्रश्न 1.
‘तेलंगाना के दर्शनीय स्थल’ पाठ का सारांश पाँच छह वाक्यों में लिखिए ।
उत्तर:
सन् 2014 को गठित तेलंगाना राज्य की राजधानी हैदराबाद हैं। इस राज्य का कण कण दर्शनीयस्थल – सा प्रतीत होता है । यह जलसंपदा, खनिज संपदा और प्रकृतिक सुषमा से शोभित है। इसके अलावा ऐतिहासिक भवनों से, विविध धर्मों के मंदिरों से मंडित है । हैदरावाद से लेकर आदिलाबाद तक का हर स्थान अपनी अपनी अलग विशिष्टता से दीपित है । वास्तव में तेलंगाना धरती अपर स्वर्ग है तथा इस धरती की भीनी भीनी और मीठी- मीठी सुगंध भारत-माता के अंग-अंग को सुरभित करती है ।

लघु प्रश्न (లఘు సమాధాన ప్రశ్నలు)

प्रश्न 1.
तेलंगाना की राजधानी क्या है ? उसके बारे में लिखिए ।
उत्तर:
तेलंगाना राज्य की राजधानी हैदराबाद है, जो ऐतिहासिक नगर है । इसे भाग्यनगर, मोती का शहर तथा गंगा-जमुना तहजीब का नगर भी कहते हैं । इसके दर्शनीय स्थल हैं गोलकोंडा, चारमीनार, मक्का मस्जिद, कुतुबशाही गुंबद, पैगाह गुंबद, तारामती बारादरी, फलकनुमा महल और चौमोहल्ला महल, जिनमें सजीवता एवं उत्कृष्टता दिखाई देती हैं । इनके अलावा, सालारजंग संग्रहालय, नेहरु चिड़ियाघर, हाइटेक सिटी, हुस्सैन झील आदि भी देखने लायक हैं ।

TS Inter 2nd Year Hindi Study Material Chapter 6 तेलंगाना के दर्शनीय स्थल

प्रश्न 2.
तेलंगाना के किसी एक मनपसंद दर्शनीय स्थल के बारे में लिखिए ।
उत्तर:
तेलंगाना के मनपसंद दर्शनीय स्थल अनेक हैं, जिनमें हैदराबाद एक है। तेलंगाना राज्य की राजधानी हैदराबाद है, जो ऐतिहासिक नगर है । इसे भाग्यनगर, मोती का शहर तथा गंगा-जमुना तहजीब का नगर भी कहते हैं । इसके दर्शनीय स्थल हैं गोलकोंडा, चारमीनार, मक्का मस्जिद, कुतुबशाही गुंबद, पैगाह गुंबद, तारामती बारादरी, फलकनुमा महल और चौमोहल्ला महल, जिनमें सजीवता एवं उत्कृष्टता दिखाई देती हैं । इनके अलावा, सालारजंग संग्रहालय, नेहरु चिड़ियाघर, हाइटेक सिटी, हुस्सैन झील आदि भी देखने लायक हैं ।

एक वाक्य प्रश्न (ఏక వాక్య సమాధాన ప్రశ్నలు)

प्रश्न 1.
मक्का मस्जिद कहाँ है ?
उत्तर:
हैदराबाद में है ।

प्रश्न 2.
भद्राचलम में किसका मंदिर है ?
उत्तर:
श्री सीताराम मंदिर है ।

प्रश्न 3.
डायोसिस चर्च कहाँ है ?
उत्तर:
मेदक में है ।

TS Inter 2nd Year Hindi Study Material Chapter 6 तेलंगाना के दर्शनीय स्थल

प्रश्न 4.
कोलनुपाका में किनका प्रसिद्ध मंदिर है ?
उत्तर:
जैन धर्मावलंबियो का आराध्य मंदिर है ।

संदर्भ सहित व्याख्याएँ (సందర్భ సహిత వ్యాఖ్యలు)

प्रश्न 1.
इस राज्य का कण-कण दर्शनीय स्थल – सा प्रतीत होता है। एक बार जो इस राज्य की सुंदरता को देख लेता है, उसे यह राज्य स्वर्ग का आभास देता है ।
उत्तर:
संदर्भ : यह उद्धरण संपादक मंडल द्वारा संपादित ‘तेलंगाना के दर्शनीय स्थल’ नामक पाठ के आरंभिक अनुच्छेद से दियागया है । यह उद्धरण तेलंगाना की सुंदरता का वर्णन करते समय संपादक – मेडल द्वारा कहा जाता है ।

व्याख्या : संपादक – मंडल कहते हैं कि तेलंगाना राज्य का हर कण देखने लायक स्थान की तरह लगता है । जो व्यकित इसकी सुंदरता को एकबार देख लेता है, उसको यह तेलंगाना राज्य स्वर्ग – सा लगता है ।

विशेषता : संपादक मंडल द्वारा तेलंगाणा राज्य को अपर – स्वर्ग कहा गया ।

TS Inter 2nd Year Hindi Study Material Chapter 6 तेलंगाना के दर्शनीय स्थल

प्रश्न 2.
वास्तव में तेलंगाना धरती की भीनी भीनी सुगंध माँ भारती के अंग – अंग को सुरभित करती है
उत्तर:
संदर्भ : यह कथन संपादक – मंडल द्वारा लिखित ‘तेलंगाना के दर्शनीय स्थल’ नामक पाठ के अंतिम वाक्या है । संपादक मंडल कहते हैं कि तेलंगाना राज्य का हर एक प्रांत पर्यटकों को अपनी ओर खीचं लेता है । इस संदर्भ में संपादक मंडल द्वारा यह वाक्य कहा गया ।

व्याख्या : वस्तुत: तेलंगाना जमीन की मीठी-मीठी खुशबू भारत-माता के प्रत्येक अंग को सुगंधित करती है । अर्थात् तेलंगाना विशाल भारत की कीर्ति में चार चाँद लगाता है ।

विशेषता: भाषा कवितामय एवं श्तवणा नंदमय है ।

तेलंगाना के दर्शनीय स्थल Summary in Hindi

सारांश

तेलंगाना 14 जून, 2014 को स्थापित भारत का 29 वाँ राज्य है । इसकी राजधानी हैदराबाद है । इस राज्य की सुंदरता असीम, अवर्णनीय तथा वैभवशाली है । इस राज्य का कण कण दर्शनीय स्थल – सा प्रतीत होता है। चलिए, इस राज्य के प्रमुख दर्शनीय स्थलों की सैर पर्यटन की अनुभूति को प्राप्त करेंगे ।

हैदराबाद : हैदराबाद तेलंगाना राज्य की राजधानी है । यह एक ऐतिहासिक नगर है । कुली कुतुबशाही और निजाम शासकों के द्वारा बसाया श्रेष्टतम नगर है । इसे भाग्य नगर तथा मोती का शहर भी कहते हैं । यहाँ के ऐतिहासिक दर्शनीय स्थलों में चारमीनार, गोलकोंडा, मक्का मसजिद, सालारजंग संग्रहालय, हुसेनसागर, टाँकबंड, नेहरु चिडियाघर, हाइटेक सिटी आदि देखने लायक हैं ।

मेड्चल – मलकाजगिरी : मेडचल मलकाजगिरी जिला के मुख्यालय है । हैदराबाद से इसकी दूरी लगभग 27 कि.मी. है। यहाँ पर स्थित कीसर गुट्टा शिव भक्तों का प्रमुख मंदिर है ।

रंगारेड्डी : रंगारेड्डी जिला का नाम संयुक्त आंध्र प्रदेश के उप- मुख्य मंत्री तथा स्वतंत्र तेलंगाना आंदोलन के सेनानी कोंडा वेंकट रंगारेड्डी का नाम पर पड़ा। इस जिले में हिमायत सागर रामोजी फिल्मसिटी, चेवेल्ला, कंदुकूर और शादनगर प्रमुख पर्यटन स्थल हैं ।

यादाद्रि – भुवनगिरि: हैदराबाद से इसकी दूरी लगभग 50 कि.मी. है। यहाँ वैष्णव धर्मावलंबियों का प्रसिद्ध तीर्थस्थल यादगिरी गुट्टा है । चालुक्य नरेशों द्वारा निर्मित भुवनगिरी का किला अद्भुत कलाखंड है। एक ही शिला से निर्मित इसकी ऊँचाई लगभग 700 फीट है ।

संगारेड्डी : तेलंगाना के उत्तर पश्चिमी हिस्से में स्थित संगारेड्डी हैदराबाद से 66 कि.मी. दूरी पर है। इस जिले में बी. एच.ई.एल. बी. डी. एल और आई.आई.टी भारत भर में प्रसिद्ध हैं ।

विकाराबाद : तेलंगाना के पश्चिम हिस्से में स्थित विकाराबद हैदराबाद 76 कि.मी. दूरी पर है। इस जिले में अनंतगिरी की पहाडियाँ और अनंत पद्मनाभ स्वामी का मंदिर है । इसके अतिरिक्त रामलिंगेश्वर, भूकैलाश, कोडंगल वेंकटेश्वर, एकांबेश्वर भगवान का मंदिर दर्शनीय हैं ।

मेदक : हैदराबाद से मेदक की दूरी लगभग 77 कि.मी. है। मेदक शब्द तेलुगु भाषा के मेतुकु शब्द से बना है। मेतुकु का अर्थ है – धान । इस जिले में धान की पैदावर अधिक होने के कारण आगे चलकर इस प्रांत का नाम मेदक पड गया । यहाँ का डायोसिस चर्च का पूरे एशिया में प्रसिद्ध है । जोगिनाथ मंदिर, एडुपायला दुर्गा भवानी मंदिर प्रसिद्ध हैं ।

सिद्दिपेट : हैदराबाद से सिद्दिपेट की दूरी लगभग 87 कि.मी. है। अधिक जनसंख्या की दृष्टि से यह जिला महत्वपूर्ण है । शरभेखर मंदिर, रामसमुद्रम मिनी टैंकबंड, बोटिंग पांइट आदि पर्याटक स्थाल हैं ।

जनगाँव : जनगाँव का दूसरा नाम जनगाम भी है । जनगाँव शब्द की उत्पत्ति “जैनगाँव से हुई है । कहा जाता है कि किसी समय यहाँ जैन धर्मावलंबियों की संख्या अधिक थीं । हैदराबाद से जनगाँव की दूरी लगभग 87 कि.मी. है । ऐतिहासिक दृष्टि से कोलनुपाका सर्वप्रसिद्ध तीर्थ व पर्याटन स्थल हैं । जैनों की आराध्य स्थल होने के कारण दूर दूर भक्त आते हैं । विश्व प्रसिद्ध पीतल कारीगरी के लिए “पेंबर्ती” यहीं पर स्थित है । कहा जाता है कि जनगाँव में प्रभु श्रीरामचंद्र स्वर्ण हिरण (मारिच) की खोज में निकले थे ।

TS Inter 2nd Year Hindi Study Material Chapter 6 तेलंगाना के दर्शनीय स्थल

नलगोंडा : नलगोंडा दक्षिण तेलंगाण का प्रांत है । हैदराबाद से इसकी दूरी लगभग 95 कि.मी. हैं। नलगोंडा – नल्ला और कोंडा शब्दों से हुई है । नल्ला का अर्थ काला और कोंडा का अर्थ पहाड । अर्थात् काले पहाडों का प्रांत । कृष्णा, मूसी, आले, पेद्दवागु पालेरू जैसी नदियाँ यहाँ से होकर गुजरती हैं । पानगल में त्रिकुटालयम (सोमेश्वर स्वामी का मंदिर) प्रसिद्ध शैव क्षेत्र है । नागर्जुन सागर, नंदिकोंडा, बौद्ध संग्रहालय प्रसिद्ध हैं ।

महबूब नगर : पहले यह पालमुरु के नाम से जाना जाता है । हैदराबाद से इसकी दूरी लगभग 110 कि.मी. है। यह प्रांत शातवाहन चालुक्य और गोलकोंडा शासकों के आकर्षण केंद्र बना रहा। यह प्रसिद्ध मंदिर की धरती है । यहाँ पर 700 वर्ष पुराना पिल्ललमर्री नामक बरगद पेड है। कोयलसागर बाँध सबका मन मोह लेती है ।

कामारेड्डी : कुछ समय पूर्व तक यह निजामाबाद जिले का अंग था । हैदराबाद से इसकी दूरी लगभग 110 कि.मी. है। यहाँ स्थित पोचाराम परियोजना (project) राज्य में प्रसिद्ध है । यह सुंदर पर्याटक जलक्रीडा क्षेत्र है। सर्दी के दिनों में कोऊल झील विदेशी पक्षियों का केंद्र बनता है । दोमकोंडा और कोऊल किला ऐतिहासिक स्थल हैं ।

राजन्ना सिरसिला : इस जिले के नाम में राजन्ना शब्द प्रभु राजराजेश्वर तथा सिरिसिल्ला हथकर उद्योग का प्रतीक है । हैदराबाद से इसकी दूरी लगभग 133 कि.मी. है । यहाँ से बहनेवाली मानेरू नदी सुंदर लगती है । प्रसिद्ध शैव क्षेत्र वेमुलवाडा यहीं पर स्थित है । इसे तेलंगाना का दक्षिण कासी भी करते हैं। लक्ष्मीनरसिंहस्वामी का मंदिर तथा सिरिसिल्ला टेक्स्टाइल पार्क महत्वपूर्ण पर्याटक स्थल हैं ।

नागरकर्नूल : तेलंगाना के दक्षिणी प्रांत के इस स्थान की दूरी हैदराबाद से लगभग 33 कि.मी. है। इसका इतिहास 500 वर्ष पुरानी है । यहाँ पर नागार्जुन सागर श्रीशैलम बाघ (Tiger) संरक्षण केंद्र है । यह क्षेत्र उमामहेश्वर स्वामी मंदिर के लिए प्रसिद्ध है । सोमशिला परियोजना एवं श्रीशैलम बाँध की दर्शन के लिए प्रतिदिन संख्या में पर्याटक आते हैं ।

सूर्यापेट : तेलंगाना के दक्षिणी प्रांत में स्थित इसकी दूरी हैदराबाद से लगभग 137 कि.मी. है। यह प्रांत कृष्णा नदी की कृपा से दक्षिण भारत में सिमेंट उद्योग का प्रमुख केंद्र बना हुआ है। दूसरी ओर नागार्जुन सागर बाँध के द्वारा प्राप्त जल से यहाँ की कृषि की सुंदरता दिखाई देती है । उडुगोंडा लक्ष्मीनारसिंह स्वामी, अर्वपल्ली और मट्टपल्ली लक्ष्मीनारसिंह स्वामियों के मंदिर, सूर्यापेट वेंकटेश्वर स्वामी, मिर्याला सीतारामचंद्र स्वामियों के मंदिर देखने योग्य हैं ।

वनपर्ति : तेलंगाना के दक्षिण प्रांत में स्थित वनपर्ति की दूरी – हैदराबाद से लगभग 147 कि.मी. है । निजाम के शासन काल में वनपर्ति संस्थान के नाम से प्रसिद्ध था । यह संस्थान तेलंगाना के प्राचीन संस्थानों में एक है । वनपर्ति महल देखने लायक पर्याटक स्थान है। इसे मुस्तफा महल भी कहा जाता है। आगे चलकर इस महल को पॉलिटेकनीक विश्वविद्यालय के रूप में बदल दिया गया । यहाँ से कुछ दूर पर श्रीरंगपुर प्रांत है । यहाँ श्रीरंगनायकस्वामी मंदिर है ।

वरंगल (ग्रामीण तथा शहरी) : तेलंगाना के प्रमुख नगरों में वरंगल एक है । हैदराबाद से इसकी दूरी लगभग 147 कि. मी. है। काकतीय शासनकाल में यह नगर उनकी राजधानी हुआ करती थी। इसीको ओरुगल्लू या एकशिलानगर के नाम से भी जाना जाता है । यहाँ पर स्थित हजार खंभा मंदिर, भद्रकाली मंदिर, पद्माक्षी मंदिर आदि देखने योग्य हैं ।

करीमनगर : इसका वास्तविक नाम एलगंडाला है । हैदराबाद से इसकी दूरी लगभग 158 कि. मी. है । निजाम शासक सैयद करीमुल्ला शाह साहेब किलादार नाम से करीमनगर नाम पडा । मानेरु यहाँ पर बहनेवाली प्रमुख नदी है। एलगंडाला किले की विशेषता यह है कि इस में दो पत्थरों की बडी दीवारें, दो मस्जिदें, दो मंदिर, कारागृह, कुएँ तथा अन्य महत्वपूर्ण निर्माण देखने को मिलते हैं। लोअर मानेरू बाँध के पास राजीव गाँधी हिरण उद्यान है । शिवराम उद्यान भी देखने योग्य हैं ।

नारायण पेट : वर्ष 2019 में नवनिर्मित जिलों में यह प्रमुख है । हैदराबाद से इसकी दूरी लगभग 165 कि. मी. है। सन् 1630 में मराठा सम्राट शिवाजी यहाँ आकर जुलाहों की विशेषता देखकर आश्चर्यचकित रह गए थे । उन्हीं के प्रभाव से मराठा लोग यहाँ आकर बस गए। नारायण पेट की सूती और रेशमी साडियों में तेलंगाना – महाराष्ट्र संस्कृति का प्रभाव दिखायी देता है । नारायणपेट की साडियाँ बहु प्रसिद्ध हैं ।

निजामाबाद : यह तेलंगाना का तीसरा सबसे बड़ा नगर है । हैदराबाद से इसकी दूरी लगभग 170 कि.मी है । हैदराबाद राज्य के चौथे शासक निजामुल मुल्क के नाम पर इस प्रांत का नाम निजामाबाद पडा । यह नगर धार्मिक सद्भावना तथा सौहार्द का प्रतीक है । निजामाबाद का किलार अशोक सागर झील पर्याटको को अकर्षित करते हैं । अलीसागर हिरण उद्यान और झील तथा मल्लाराम जंगल मनोरंजन का एक अच्छा विकल्प है ।

TS Inter 2nd Year Hindi Study Material Chapter 6 तेलंगाना के दर्शनीय स्थल

जगित्याल : हैदराबाद से लगभग 186 कि. मी. दूरी पर स्थित जगित्याला गोदावरी नदी की सुंदर देन है । श्रीरामसागर परियोजना बाँध पर्याटकों के आकर्षण केंद्र है। ओदेला में मल्लिखार्जुन स्वामी और कमानपुर में श्री वराहास्वामी के मंदिरों के लिए विख्यात है । गोदावरी के तट पर बसे धर्मपुरी में श्री लक्ष्मीनारसिंह स्वामी, का मंदिर, कोटिलिंगाला ग्राम में कोटेश्वर स्वामी, का मंदिर, आंजनेयस्वामी मंदिर भी हु प्रसिद्ध हैं ।

पेद्दपल्लि : हैदराबाद से लगभग 192 कि. मी. पर पेद्दपल्लि स्थित है । यह उत्तर और दक्षिण भारत को जोडनेवाला प्रमुख रेल्वे केंद्र है । एन. टी. पी. सी रामगुंडम में स्थित है । गोदावरी नदी से प्राप्त जल की वजह से उत्पन्न कपास अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विख्यात है । रामगिरी किला यहाँ की ऐतिहासिक इमारत है । पेद्दापल्ली को भारत का प्रथम ISO 14001 प्रामाणित इकाई होने का गौरव प्राप्त है ।

जोगुलांबा – गवाल : हैदराबाद से इसकी दूरी लगभग 192 कि. मी. है । गवाल किले का निर्माण 17 वीं शताब्दी में पेदसोमा भूपालुडु ने करवाया । गवाल विश्वप्रसिद्ध हथकरद्या जरी साडियों के लिए प्रसिद्ध है । जूराला कृष्णा नदी पर बनाया गया सुंदर बाँध है । आलमपुर के पास तुंगभद्रा नदी के तट पर जोगुलांबा देवी का शक्तिपीठ मंदिर है। जोगुलांबा देवी शक्ति पीठ आठारह (18) शक्तिपीठों में से एक है ।

मुलुगु : वर्ष 2019 में भूपालपल्ली जिले के कुछ भागों को अलग कर बनाया गया जिला ही मुलुगु है । हैदराबाद से इसकी दूरी लगभग 193 कि. मी. है। इसी प्रांत में विश्वप्रसिद्ध जनजाति उत्सव सम्मक्का सारक्का जातरा या मेडाराम जातरा का आयोजन प्रति दो वर्ष में एक बार किया जाता है ।

खम्मम : हैदराबाद से खम्मम की दूरी लगभग 200 कि. मी. है । खम्मम शब्द का उद्भव पहाडी स्तंभाद्री से हुआ है। यहाँ पर नरसिंह स्वामी का मंदिर है । शहर का नाम पहले स्तंभाद्र बाद में खंभाद्री, खंभमेट्टु तथा अंत में खम्मम होगया । यह शहर [कृष्णा नदी की सहायक नदी] मुन्नेर नदी के तट पर बसा है । खम्मम किले का निर्माण 950 ई. में. काकतीय शासकों ने किया । जमलापुरम नामक छोटा सा गाँव में भगवान वेंकटेश्वर का प्रसिद्ध मंदिर है । कुसुमांची में गणपेश्वरालयम और मुक्केटश्वरालयम जैसे प्रसिद्ध शैव मंदिर हैं ।

महबूबाबाद : हैदराबाद से महबूबाबाद की दूरी लगभग 212 कि. मी. है । तेलुगु भाषी इस प्रांत को मनुकोटा कहते हैं । मनुंकोटा शब्द का उद्भव तेलुगु के म्रनु यानी पेट तथा कोटा यानी किला शब्द से हुआ है । इसका अर्थ है – पेडवाला किला आगे चलकर महबूब नामक शासक के नाम पर महबूबाबाद पड गया । यहाँ का बय्यारम मंडल लोह खनिज का प्रचुर उत्पादक है । वीरभद्रस्वामी मंदिर में वीरभद्र की मूर्ति क्रोधी भंगिमा के साथ त्रिनेत्री तथा दस हाथों वाले हैं ।

भूपालपल्ली : (आचार्य जयशंकर) : हैदराबाद से भूपालपल्ली की दूरी लगभग 216 कि. मी. है। इस जिले का नाम तेलंगाना राज्य आंदोलन के सिद्धांतकर्ता प्रो. जयशंकर के नाम पर रखा गया है। इस प्रांत में कई सारे आध्यात्मिक दर्शनीय स्थल है । यहीं पर स्थित कालेश्वरम दक्षिण का त्रिवेणी संगम कहलाता है । यहाँ पर गोदावरी, प्राणहिता और भूतल में बहनेवाली अंतर्वाहिनी का संगम होता है। रामप्पा मंदिर काकतीय नरेशों की कलाप्रियता का उदाहरण है। यहाँ पर रामप्पा और लकनावरम झील प्रकृति की सुंदर छटा बिखेरती है ।

निर्मल : हैदराबाद से निर्मल की दूरी लगभग 222 कि. मी. है। यह प्रांत गोदावरी नदी के कारण अत्यंत उपजाऊ है। यह प्रांत बाँस और लकडी के बने खिलौने के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध हैं । प्रकृति एवं शिक्षा प्रेमी इस जिले के ज्ञान सरस्वती बासरा के लिए सदा याद करते हैं। गोदावरी के तट पर स्थित बासरा पर्याटकों को अपनी और आकर्षित करता है ।

मंचिरियाल : मंचिरियाल, हैदराबाद से 256 कि. मी दूरी पर स्थित है । यह प्रांत गोदावरी और प्राणहिता नदियों के आशीर्वाद से हरा भरा है । यह प्रांत सिंगरेणी कोयला खदान और सिमेंट उत्पादन के कई कारखानों के लिए प्रसिद्ध हैं । इस जिले के चेन्नूर में मगर मछ संरक्षण उद्यान का केंद्र है । घने जंगलों के बीच बसा कवाल बाध संरक्षण केंद्र बहुत ही सुंदर है । गुडेम श्री सत्यनारायण स्वामी का मंदिर पूजनीय और दर्शनीय है ।

भद्राद्रि कोत्तागुड़ेम : भद्राद्रि कोत्तागुड़ेम, हैदराबाद से 284 कि. मी. की दूरी पर स्थित है । भद्राचलम गोदावरी के तट पर बसा अत्यंत मनोहर तीर्थस्थान है । कोयला खदानों के लिए प्रसिद्ध है । किन्नरसानी, पर्णशाला आदि आध्यात्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल हैं । किन्नरसानी परियोजना बाँध किन्नरसानी सहायक नदी पर बना है। पुराणों के अनुसार रानण द्वारा सीता की अपहरणस्थली के रूप में दुम्मुगुडेम प्रसिद्ध हैं ।

आसिफाबाद : यह एक जनजाति जिला है । हैदराबाद से इसकी दूरी 291 कि.मी. है । कोमरमभीम नामक जनजाति युवक द्वारा की गई जल, जंगल, जमीन आंदोलन में जनजाति को न्याय मिल सका । इसलिए इस प्रांत को आसिफाबाद कोमरमभीम जिला भी कहा जाता है । पेद्दवागु एक परियोजना है, जो प्राणहित नदी की सहायक नदी पेद्दवागु पर निर्मित है । वट्टी वागु व कोमरमभीम परियोजनाएँ, सप्तगुंडा, पिट्टगुंड और मिट्टेवाटर जलप्रपात तथा सिरपुर कागजनगर आदि प्रसिद्ध दर्शनीय स्थल हैं ।

TS Inter 2nd Year Hindi Study Material Chapter 6 तेलंगाना के दर्शनीय स्थल

आदिलाबाद : हैदराबाद से आदिलाबाद की दूरी लगभग 305 कि. मी. है। इस प्रांत का नाम वीजापुर के शासक अली आदिल शाह के नाम पर पडा । इस प्रांत को दक्षिण भारत का प्रवेश द्वारा कहा जाता है । सहयाद्री पर्वत श्रेणियों तथा उत्तर पश्चिम मानसून के प्रभाव से यह प्रांत हमेशा आनंददायी रहता है । कडेम बाँध, पापहरेश्वर मंदिर, जैनाथ मंदिर तथा कलवा नरसिंह स्वामी मंदिर यहाँ प्रमुख दर्शनीय स्थल हैं ।

इस तरह तेलंगाना राज्य का प्रत्येक प्रांत अपनी मनोहरी छटा से पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करता है ।

तेलंगाना के दर्शनीय स्थल Summary in Telugu

సారాంశము

छेई 14 జూన్ 2014న స్థాపించబడిన తెలంగాణ రాష్ట్రం భారతదేశానికి 29వ రాష్ట్రం. దీని రాజధాని హైదరాబాద్. ఈ రాష్ట్ర సౌందర్యం అంతులేని, వర్ణించనలవికాని మరియు వైభవోపేతమైనది. ఈ రాష్ట్రంలో అణువణువు దర్శించదగినది. ఈ రాష్ట్రంలోని ప్రముఖ దర్శనీయ స్థలాల విహార పర్యటన అనుభూతులను తెలుసుకుందాం.

హైదరాబాద్ : హైదరాబాద్ తెలంగాణ రాష్ట్ర రాజధాని. ఇది ఒక చారిత్రాత్మక నగరం. కులీకుతుబ్షాహీ మరియు నిజాం పాలకులు నిలిపిన శ్రేష్టమైన నగరం. దీనిని భాగ్యనగరం మరియు ముత్యాల నగరం అని కూడా పిలవబడుతుంది. ఇక్కడి చారిత్రాత్మక దర్శనీయ ప్రదేశాలు చార్మినార్, గోల్కొండ, మక్కామసీద్, సాలార్జంగ్ మ్యూజియం, హుసేన్ సాగర్, ట్యాంక్ బండ్, నెహ్రూజులాజికల్ పార్కు, హైటెక్సిటీ మొదలయిన ప్రదేశాలు చూడదగినవి.

మేడ్చల్ – మల్కాజిగిరి : మేడ్చల్ మల్కాజిగిరి జిల్లా ముఖ్య కేంద్రం. ఇది హైదరాబాద్ నుండి సుమారు 27 కి. మీ. దూరంలో ఉంటుంది. ఇక్కడి కీసరగుట్ట శివభక్తుల ప్రముఖ మందిరం.

రంగారెడ్డి : రంగారెడ్డి జిల్లా పేరును సంయుక్త ఆంధ్రప్రదేశ్ ఉపముఖ్యమంత్రి మరియు స్వతంత్ర తెలంగాణ రాష్ట్ర ఆందోళన సేనాని అయిన కొండా వెంకట రంగారెడ్డి గారి పేరున పెట్టడం జరిగింది. ఈ జిల్లాలో హిమయత్సాగర్, రామోజీ ఫిల్మ్ సిటీ, చేవెళ్ళ, కందుకూరు మరియు షాద్నగర్ ప్రముఖ పర్యాటక ప్రదేశాలు.

యాదాద్రి – భువనగిరి : యాదాద్రి – భువనగిరి హైదారాబాద్ నుండి సుమారు 50 కి. మీ. దూరంలో ఉంటుంది. వైష్ణవ భక్తుల ప్రసిద్ధ పుణ్యక్షేత్రం యాదగిరి గుట్ట. ఇక్కడనే ఉంది చాళుక్య రాజుల ద్వారా నిర్మింపబడిన భువనగిరి కోట. ఒక అద్భుత కళాఖండం. ఒకే శిలమీద నిర్మించబడినది. దీని ఎత్తు సుమారు 700 అడుగులు.

సంగారెడ్డి : ఇది (సంగారెడ్డి జిల్లా) తెలంగాణ ఉత్తర – పశ్చిమ భాగంలో ఉంది. హైదరాబాద్ నుండి ఇది 66 కి.మీ. దూరంలో ఉంది. ఈ జిల్లాలో BHEL, BDL మరియు IIT సంస్థలు భారతదేశం మొత్తం ప్రసిద్ధిగాంచాయి.

వికారాబాద్ : ఇది (వికారాబాద్ జిల్లా) తెలంగాణ పశ్చిమ భాగంలో ఉంది. హైదరాబాద్ నుండి ఇది 76 కి.మీ. దూరంలో ఉంది. ఈ జిల్లాలో అనంతగిరి పర్వతాలు మరియు అనంత పద్మనాభస్వామి వారి మందిరం ఉంది. ఇవేకాకుండా రామలింగేశ్వర, భూకైలాశ్, కొడంగల్ వెంకటేశ్వర, ఏకాంబేశ్వర దేవాలయాలు దర్శించదగినవి.

మెదక్ : హైదరాబాద్ నుండి మెదక్ సుమారు 77 కి.మీ. దూరంలో ఉంది. మెదక్ అనే శబ్దం తెలుగు భాషలోని మెతుకు అనే శబ్దంతో తయారైంది. “మెతుకు అంటే అర్థం – “ధాన్యం”. ఈ జిల్లాలో ధాన్యం అధికంగా పండటం వల్ల మెల్లమెల్లగా ఈ ప్రాంతానికి మెదక్ అనే పేరు పడిపోయింది. ఇక్కడి “డాయోసిస్ చర్చి” ఆసియా ఖండం మొత్తంలో ప్రసిద్ధి. ఇక్కడ జోగినాథ మందిరం, ఏడుపాయల దుర్గాభవాని మందిరం ప్రసిద్ధి చెందినవి.

TS Inter 2nd Year Hindi Study Material Chapter 6 तेलंगाना के दर्शनीय स्थल

సిద్ధిపేట : హైదరాబాద్ నుండి సిద్ధిపేట సుమారు 87 కి.మీ. దూరంలో ఉంది. అధిక జనాభా కలిగిన జిల్లాగా ఇది ప్రసిద్ధిగాంచింది. శరభేశ్వర్ మందిరం, రామ సముద్రం, మినీ ట్యాంక్ బండ్, బోటింట్ పాయింట్ మొదలయినవి పర్యాటక ప్రదేశాలు.

జనగాం : జనగాంకి మరొక పేరు “జనగామ”. జనగాం శబ్దం జైనగాంవ్ నుండి ఉద్భవించింది. ఎపుడో ఇక్కడ జైన ధర్మాన్ని అవలంబించిన వారి సంఖ్య ఎక్కువగా ఉండేది అని చెపుతుంటారు. హైదరాబాదున్నుండి జనగాం సుమారు 87 కి.మీ. దూరంలో ఉంది. చారిత్రక దృష్టిలో కొలనుపాక ఎంతో ప్రసిద్ధమైన తీర్థ మరియు పర్యాటక స్థలం. ఇది జైనుల ఆరాధ్య స్థలం కావడంతో దూర – దూర ప్రాంతాలనుండి భక్తులు వస్తుంటారు. ప్రపంచ ప్రఖ్యాతమైన రాగి పరిశ్రమ “పెంబర్తి” ఈ జిల్లాలోనే ఉంది. జనగాంలో ప్రభుశ్రీరామచంద్రుడు స్వర్ణజింక (మారీచుడు)ను వెదికేందుకు ఇక్కడకు వచ్చారని
చెపుతుంటారు.

నల్లగొండ : నల్లగొండ దక్షిణ తెలంగాణ ప్రాంతంలో ఉంది. హైదరాబాద్ నుండి నల్లగొండ సుమారు 95 కి.మీ. దూరంలో ఉంది. నల్లగొండ నల్ల మరియు కొండ శబ్దాలతో ఏర్పడింది. నల్లా అనగా నలుపు మరియు కొండ అనగా పర్వతం. అంటే నల్ల కొండలుగల ప్రాంతం. కృష్ణా, మూసీ ఆలేరు, పెద్దవాగు, పాలేరులాంటి నదులు ఈ ప్రాంతం నుండి ప్రవహిస్తాయి. పానగల్లో త్రికుటాలయం (సోమేశ్వరస్వామి మందిరం) ప్రసిద్ధి చెందిన శైవక్షేత్రం. నాగార్జునసాగర్, నందికొండ, బౌద్ధ సంగ్రహాలయం ప్రసిద్ధి చెందినవి.

మహబూబ్నగర్ : మొదట్లో మహాబూబ్నగర్ పాలమూరు పేరుతో పిలవబడింది. హైదరాబాద్ నుండి మహబూబ్నగర్ సుమారు 110 కి.మీ. దూరంలో ఉంది. ఈ ప్రాంతం శాతవాహనుల, చాళుక్యుల మరియు గోల్కొండ శాసకులకు ఆకర్షణ కేంద్రంగా ఉండేది. ఇది ప్రసిద్ధ మందిరాల పుణ్యభూమి. ఇక్కడ 7 వందల సంవత్సరాల పురాతన మర్రిచెట్టు ఉంది. దీని పేరు పిల్లల మర్రి. ఇక్కడి కోయలసాగర్ ఆనకట్ట అందరి మనస్సులను మోహిస్తుంది.

కామారెడ్డి : కొంత కాలం క్రితం వరకు కామారెడ్డి నిజామాబాద్ జిల్లాలోని ఒక భాగం. హైదరాబాద్ నుండి కామారెడ్డి సుమారు 110 కి.మీ. దూరంలో ఉంది. ఇక్కడి పోచారం ప్రాజెక్టు తెలంగాణ రాష్ట్రంలో ప్రసిద్ధి చెందిన ప్రాజెక్టు. ఇది అందమైన పర్యాటక జలక్రీడా ప్రాంతం. చలికాలంలో కోవూలా సరస్సు విదేశీ పక్షుల కేంద్రంగా ఉంటుంది. కోవూలా కోట, దోమకొండ చారిత్రాత్మక ప్రదేశాలు.

రాజన్న సిరిసిల్లా : ఈ జిల్లా పేరులో “రాజన్న” శబ్దం రాజ రాజేశ్వర ప్రభువుగా మరియు “సిరిసిల్లా” చేతిమగ్గాల పరిశ్రమకు ప్రతీక / గుర్తు. హైదరాబాద్ నుండి ఈ ప్రాంతం సుమారు 133 కి.మీ. దూరంలో ఉంది. ఇక్కడ నుండి ప్రవహించే మానేరు నది అందంగా ఉంటుంది. ప్రసిద్ధ శైవక్షేత్రమైన వేములవాడ ఇక్కడనే ఉంది. దీనిని -తెలంగాణ దక్షిణ కాశీగా పిలుస్తారు. లక్ష్మీనరసింహస్వామి మందిరం మరియు సిరిసిల్లా టెకాయిల్ పార్క్ గొప్ప పర్యాటక ప్రదేశాలు.

నాగర్ కర్నూల్ : తెలంగాణ దక్షిణ ప్రాంతమైన నాగర్ కర్నూల్ హైదరాబాద్ నుండి సుమారు 133 కి.మీ. దూరంలో ఉంది. దీని చరిత్ర 500 సంవత్సరాల పురాతనమైనది. ఇక్కడ నాగార్జునసాగర్, శ్రీశైలం పులుల సంరక్షణ కేంద్రం ఉంది. ఈ ప్రదేశం ఉమామహేశ్వరస్వామి మందిరానికి ప్రసిద్ధి. సోమశిల మరియు శ్రీశైలం ఆనకట్టలను దర్శించేందుకు ప్రతిరోజు పెద్ద సంఖ్యలో పర్యాటకులు వస్తూ ఉంటారు.

సూర్యాపేట : తెలంగాణ దక్షిణ ప్రాంతంలో ఉన్న సూర్యాపేట హైదరాబాద్ నుండి సుమారు 137 కి.మీ. దూరంలో ఉంది. ఈ ప్రాంతం కృష్ణానది పుణ్యమా అని దక్షిణ భారతదేశంలో సిమెంట్ పరిశ్రమకు ప్రముఖ కేంద్రంగా ఉంది. రెండవ వైపు నాగార్జునసాగర్ ఆనకట్ట ద్వారా లభించే నీటితో ఇక్కడి వ్యవసాయం అందంగా కన్పిస్తుంది. ఉండ్రుగొండ, అర్వపల్లి మరియు మట్టపల్లిలోని శ్రీలక్ష్మినరసింహస్వాముల మందిరాలు, సూర్యాపేట వెంకటేశ్వరస్వామి, మిర్యాల సీతారామచంద్రస్వామి వార్ల మందిరాలు బహు చక్కని చూడదగ్గ ప్రదేశాలు.

TS Inter 2nd Year Hindi Study Material Chapter 6 तेलंगाना के दर्शनीय स्थल

వనపర్తి : తెలంగాణ దక్షిణ ప్రాంతంలో ఉన్న వనపర్తి హైదరాబాద్ నుండి సుమారు 147 కి.మీ. దూరంలో ఉంది. నిజాం శాసన కాలంలో వనపర్తి ఒక సంస్థానంగా ప్రసిద్ధి చెందినది. తెలంగాణలోని ప్రాచీన సంస్థానాల్లో ఇదీ ఒకటి. వనపర్తి మహల్ చూడదగిన పర్యాటక ప్రదేశం. ఈ మహల్ ముస్తఫామహల్ అని కూడా పిలవబడుతుంది. కొంతకాలం తర్వాత దీనిని పాలిటెక్నిక్ విశ్వవిద్యాలయంగా మార్చబడినది. ఇక్కడ నుండి కొద్ది దూరంలో శ్రీరంగపురం ఉంది. ఈ శ్రీరంగపురంలో ప్రసిద్ధి చెందిన శ్రీరంగ నాయకస్వామి మందిరం ఉంది.

వరంగల్ (గ్రామీణ మరియు పట్టణ) : తెలంగాణ ప్రముఖ నగరాల్లో ఈ వరంగల్ ఒకటి. ఇది హైదరాబాదు నుండి 147 కి.మీ. దూరంలో ఉంది. కాకతీయులు దీనిని రాజధానిగా చేసుకుని పాలన కొనసాగించారు. దీన్ని ‘ఓరుగల్లు’ లేదా “ఏకశిలా నగరం” అని కూడా పిలిచేవారు. ఇక్కడ “వెయ్యి స్థంభాల గుడి”, “భద్రకాళి మందిరము” మరియు “పద్మాక్షీ మందిరము” ముఖ్యంగా చూడదగిన ప్రాంతాలు.

కరీంనగర్ : దీని అసలు పేరు “ఎలగండాల”. ఇది హైదరాబాదు నుండి సుమారు 158 కి.మీ. దూరంలో ఉంది. నిజాం శాసకుడు “సయ్యద్ కరీముల్లా షాహ్ సాహెబ్ కిలాదార్” పేరు నుండి “కరీంనగర్” పేరు వచ్చింది. ఇక్కడ ‘మానేరు’ అనే ప్రముఖ నది ప్రవహిస్తుంది. ఎలగండాల కోటలో రెండు రాళ్ళతో కూడిన పెద్ద గోడలు, రెండు మసీదులు, రెండు ఆలయాలు చెరసాల, బావి మరియు ఇతర గొప్ప నిర్మాణాలను చూడవచ్చు. దిగువ మానేరు ఆనకట్ట వద్ద రాజీవ్ గాంధీ జింకల పార్క్ ఉంది. శివరామ్ ఉద్యానవనము కూడా చూడదగిన ప్రాంతమే.

నారాయణపేట : 2019 సంవత్సరములో నూతనంగా నిర్మించబడిన జిల్లాల్లో ఇది ప్రముఖమైనది. హైదరాబాదు నుండి దాదాపు 165 కి.మీ. దూరంలో ఉంది. 1630 సంవత్సరములో మరాఠా ప్రభువైన శివాజీ ఇక్కడికి వచ్చి, ఇక్కడి నేత పనివారి గొప్పదనం చూసి ఆశ్చర్యచకితులైనారు. దానితో మరాఠీలు ఇక్కడ స్థిరపడినారు. నారాయణ పేట యొక్క పట్టుదారంతో నేసిన చీరల్లో తెలంగాణ మహారాష్ట్ర సంస్క ృతుల ప్రభావం కనిపిస్తుంది. నారాయణపేట చీరలు చాలా ప్రసిద్ధి పొందాయి.

నిజామాబాద్ : ఇది తెలంగాణాలో 3వ పెద్ద నగరం. ఇది హైదరాబాదు నుండి రమారమి 170 కి.మీ. ఉంటుంది. హైదరాబాదు రాష్ట్ర నాల్గవ శాసకుడైన “నిజాముల్ ముల్క్” పేరు మీద ఈ ప్రాంతానికి నిజామాబాద్ అని వచ్చింది. ఈ నగరం ధార్మిక మరియు మైత్రి భావనలకు ప్రతీక. నిజామాబాద్ కోట మరియు అశోక్సాగర్ సరస్సు ఆకర్షణీయమైనవి. ఆలీసాగర్ జింకల పార్క్ మరియు సరస్సు, ముల్లారాయ్ వనము మానసికోల్లాస ప్రాంతాలు.

జగిత్యాల: హైదరాబాదు నుండి సుమారు 186 కి.మీ.ల దూరంలో ఉంది. ఇది గోదావరి నది యొక్క అందమైన వరము. శ్రీరాంసాగర్ ప్రాజెక్ట్ పర్యాటకులకు ఆకర్షణగా నిలిచింది. ఓదెలాలో మల్లిఖార్జున స్వామి మరియు కమాన్పూర్లో శ్రీ వరాహస్వామి ఆలయాలు ప్రసిద్ధి చెందాయి. గోదావరి ఒడ్డున ధర్మపురిలో శ్రీలక్ష్మీ ్మనారసింహస్వామి ఆలయం, కోటిలింగాల గ్రామంలో కోటేశ్వర స్వామి గుడి, ఆంజనేయస్వామి గుడి ప్రసిద్ధి చెందినాయి.

పెద్దపల్లి: ఇది హైదరాబాదు నుండి దాదాపు 192 కి.మీ. దూరంలో ఉంది. ఇది ఉత్తర మరియు దక్షిణ భారతాన్ని కలిపే ముఖ్య రైల్వే కేంద్రం. రామగుండంలో NTPC నేషనల్ థర్మల్ పవర్ కార్పోరేషన్ ఉంది. గోదావరి నది నుండి లభించే నీటివల్ల ఉత్పత్తి అయ్యే దూది అంతర్జాతీయ స్థాయిలో ప్రఖ్యాతి చెందినది. రామగిరి కోట ఇక్కడి చారిత్రాత్మక కట్టడం. పెద్దపల్లికి భారతదేశ ప్రథమ ISO 14001 ప్రామాణిత యూనిట్గా గౌరవం లభించింది.

TS Inter 2nd Year Hindi Study Material Chapter 6 तेलंगाना के दर्शनीय स्थल

జోగులాంబ – గద్వాల్ : జోగులాంబ – గద్వాల్ హైదరాబాదు నుండి సుమారు -192 కి.మీ. దూరంలో ఉంది. 17వ శతాబ్దంలో పెదసోమభూపాలుడు గద్వాల్ కోటను నిర్మింపచేసాడు. గద్వాల్ ప్రపంచ ప్రసిద్ధమైన చేతిమగ్గాల (హ్యాండ్లూమ్) జరీ చీరలకు ప్రసిద్ధి. జూరాల కృష్ణానది మీద కట్టబడిన అందమైన ఆనకట్ట. తుంగభద్రా నదీ తీరంలో జోగులాంబ దేవి శక్తిపీఠమందిరం కలదు. ఇది 18 శక్తి పీఠాలలో ఒకటి.

ములుగు : 2019 సంవత్సరములో భూపాలపల్లి జిల్లా నుండి కొన్ని ప్రదేశాలను వేరుచేసి ఏర్పాటుచేసిన జిల్లాయే ములుగు. హైదరాబాదు నుండి ఇది దాదాపు 193 కి.మీ. దూరంలో ఉంది. ఈ ప్రాంతంలోనే విశ్వవిఖ్యాత జనజాతి ఉత్సవమైన సమ్మక్క- సారక్క లేదా మేడారం జాతర ప్రతి రెండు సంవత్సరాలకు ఒకసారి జరుపబడుతుంది.

ఖమ్మం : హైదరాబాదు నుండి ఖమ్మం సుమారు 200 కి.మీ. దూరంలో ఉంది. “ఖమ్మం” అనే శబ్దం “స్తంభాద్రి” శబ్దం నుండి పుట్టింది. ఇక్కడ నరసింహస్వామి మందిరం ఉంది. ఈ పట్టణం పేరు మొదటిగా స్తంభాద్రిగాను ఆ తర్వాత క్రమేణా ఖంభాద్రి, ఖంభమెట్టు అని చివరకు ‘ఖమ్మం’గా స్థిరపడింది. ఈ పట్టణం మున్నేరు నదీ తీరంలో ఉంది. క్రీ.శ. 950లో కాకతీయ రాజులు ఖమ్మం కోటను నిర్మించారు. జమలాపురం అనే చిన్న గ్రామంలో వెంకటేశ్వర స్వామివార్ల ప్రసిద్ధ మందిరం కలదు. కూసుమంచిలో గణపేశ్వరాలయం మరియు ముక్కంటేశ్వరాలయంలాంటి ప్రసిద్ధ శైవక్షేత్రాలు / మందిరాలు

మహబూబాబాద్ : హైదరాబాదు నుండి మహబూబాబాద్ సుమారు 212 కి.మీ. దూరంలో ఉంది. తెలుగువారు ఈ ప్రాంతాన్ని మనుకోట అంటారు. “మనుకోట” శబ్దం తెలుగు భాషలోని “మ్రను” అనగా చెట్టు మరియు “కోట” అనగా కోట శబ్దాల నుండి ఉద్భవించింది. అంటే కోట అని అర్థం. మహబూబ్ అనే శాసకుని పేరే “మహబూబాబాద్” అయినది. ఇక్కడి బయ్యారం మండలం లోహఖనిజాల ఉత్పత్తికి ప్రసిద్ధి. మూడు నేత్రాలు, పది చేతులు కలిగి రౌధ్ర భంగిమలో ఉన్న వీరభద్రస్వామివారి ఆలయం ఇక్కడి విశేషం.

భూపాలపల్లి (ఆచార్య జయశంకర్) : హైదరాబాదు నుండి భూపాలపల్లి సుమారు 216 కి.మీ. దూరంలో ఉంది. ఈ జిల్లా పేరును తెలంగాణ రాష్ట్ర ఆందోళన సిద్ధాంతకర్త ప్రొఫెసర్ జయశంకర్ గారి పేరు మీద పెట్టబడినది. ఈ ప్రాంతంలో అనేక ఆధ్యాత్మిక దర్శనీయ ప్రదేశాలు కలవు. ఇక్కడ ఉన్న కాళేశ్వరాన్ని దక్షిణ త్రివేణి సంగమంగా పిలవబడుతుంది. రామప్ప మందిరం కాకతీయ రాజుల కళాసృష్టికి చక్కటి ఉదాహరణ. ఇక్కడ రామప్ప మరియు లక్నవరం సరస్సులు ప్రకృతి సౌందర్య శోభను వెదజల్లుతాయి.

నిర్మల్ : హైదరాబాదు నుండి నిర్మల్ సుమారు 222 కి.మీ. దూరంలో ఉంది. ఈ ప్రాంతంలో గోదావరి నది జలాల వల్ల అత్యధిక పంటలు పండించబడతాయి. ఇది వెదురు మరియు కర్రలతో తయారయ్యే బొమ్మలకు ప్రపంచ ప్రసిద్ధి గాంచినది. ప్రకృతి మరియు విద్యా ప్రేమికులు ఈ జిల్లాలోని జ్ఞాన సరస్వతి బాసరని ఎల్లప్పుడు గుర్తు చేసుకుంటారు. గోదావరి నదీ తీరంలో ఉన్న బాసర పర్యాటకులను తనవైపు ఆకర్షించుకుంటుంది.

మంచిర్యాల : మంచిర్యాల హైదరాబాదు నుండి 256 కి.మీ.ల దూరంలో ఉంది. ఇది గోదావరి మరియు ప్రాణహిత నదుల ఆశీర్వాదం వల్ల పచ్చదనంతో నిండినది. ఈ ప్రాంతం సింగరేణి బొగ్గుగనులకు మరియు సిమెంట్ ఉత్పత్తి చేసే అనేక పరిశ్రమల వల్ల ప్రసిద్ధి పొందినది. ఈ జిల్లాలో చెన్నూరులో మొసళ్ళ సంరక్షణా కేంద్రం ఉంది. ఇక్కడ దట్టమైన అడవులలో కవ్వాల్ పులుల సంరక్షణ కేంద్రం చాలా అందంగా ఉంటుంది. ఈ ప్రాంతంలో గుడెంశ్రీ సత్యనారాయణ స్వామి ఆలయం పూజనీయమైనది మరియు దర్శనీయమైనది.

భద్రాద్రి – కొత్తగూడెం: ఇది హైదరాబాదు నుండి 284 కి.మీ.ల దూరంలో ఉంది. గోదావరి నదీ తీరాన ఉన్న భద్రాచలం అతి మనోహరమైన తీర్థము. బొగ్గుగనులకు ప్రసిద్ధి. కిన్నెరసాని, పర్ణశాల మొదలగు స్థలాలు ఆధ్యాత్మిక గొప్ప పర్యాటక స్థలాలు. ఇక్కడి కిన్నెరసాని ఆనకట్ట గోదావరి ఉపనది అయిన కిన్నెరసాని నదిపై నిర్మించారు. పురాణాల ప్రకారం రావణుడు సీతాదేవి అపహరించిన స్థలంగా దుమ్మగూడెం చాలా ప్రసిద్ధి చెందినది.

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ఆసీఫాబాద్ : ఇది ఒక జనజాతి జిల్లా. హైదరాబాదు నుండి 291 కి.మీ. దూరంలో ఉంది. కొమరంభీమ్ అనే పేరుగల జనజాతి యువకుల ద్వారా చేయబడిన నీరు, అడవి, భూమి ఆందోళనలో వీరికి న్యాయం లభించింది. అందుకే ఈ ప్రాంతానికి ఆసీఫాబాద్ కొమరంభీమ్ జిల్లాగా కూడా పేరు ఉంది. ప్రాణహిత నది ఉపనది అయిన పెద్దవాగుపై పెద్దవాగు ప్రాజెక్టు నిర్మించారు. వట్టివాగు లేదా కొమరంభీమ్ ప్రాజెక్టులు, సప్తగుండ, పట్టిగుండ మరియు మట్టినీటి రిజర్వాయర్ మరియు సిరిపురం కాగజ్నగర్ మొదలగునవి చూడదగిన ప్రసిద్ధ స్థలాలు.

ఆదిలాబాద్ : హైదరాబాదు నుండి సుమారు 305 కి.మీ.ల దూరంలో ఉంది. బీజాపూర్ శాసకుడైన అలీఆదిల్షాహ్ పేరు మీద ఈ ప్రాంతానికి ఆ పేరు వచ్చింది. ఈ ప్రాంతం దక్షిణ భారతదేశానికి ప్రవేశద్వారంగా చెప్పబడుతుంది. సహ్యాద్రి పర్వత శ్రేణులు మరియు ఉత్తర – పశ్చిమ పవనాల ప్రభావంతో ఈ ప్రాంతం నిరంతరం ఆహ్లాదంగా ఉంటుంది. కడెం ఆనకట్ట, పాపేశ్వర మందిరము, జైనాథ్ మందిరము మరియు కలవా నరసింహస్వామి ఆలయం ఇక్కడ చూడదగిన ప్రముఖ స్థలాలు.

ఈ విధంగా తెలంగాణ రాష్ట్రంలోని ప్రతీ ప్రాంతం తన మనోహరమైన శోభతో పర్యాటకులను తమవైపు ఆకర్షిస్తాయి.

TS Inter 2nd Year Hindi Study Material Chapter 5 बूढ़ी काकी

Telangana TSBIE TS Inter 2nd Year Hindi Study Material 5th Lesson बूढ़ी काकी Textbook Questions and Answers.

TS Inter 2nd Year Hindi Study Material 5th Lesson बूढ़ी काकी

दीर्घ प्रश्न (దీర్ఘ సమాధాన ప్రశ్నలు)

प्रश्न 1.
‘बूढ़ी काकी’ पाठ का सारांश पाँच-छः वाक्यों में लिखिए ।
उत्तर:
बूढ़ी काकी अपने पति और पुत्र की मृत्यु के बाद सारी संपत्ति भतीजे बुद्धिराम के नाम कर देती है । संपत्ति हायिल करने के बाद बुद्धिराम और उसकी पत्नी रूपा और दो बेटे बूढ़ी काकी के साथ दुर्व्यवहार करते रहते हैं। लेकिन, बुद्धिराम की बेटी लाड़ली काकी का ख्याल रखती है। उसके बेटे मुखराम के तिलक – उत्सव के दिन स्वादिष्ट भोजन आधी रात को की लालसा में बूढ़ी काकी मेहमानों के जूठे खाना खाने लगती है । इस दृश्य को देखते ही, दया और पाप भीति से रूपा पछताती है और काकी को प्रेम से सभी खाद्यों से सज्जित थाली देती है। सभी भूलकर काकी सहर्ष खाना खाने के स्वर्गीय दृश्य देखकर रूपा आनंदमग्न होती है ।

लघु प्रश्न (లఘు సమాధాన ప్రశ్నలు)

प्रश्न 1.
प्रेमचंद की कुछ रचनाओं के नाम लिखिए ।
उत्तर:
कथा – सम्राट एंव उपन्यास सम्राट प्रेमचंद ने यथार्थवाद एवं आदर्शवाद से संबंधित लगभग 300 कदानियाँ और एक दर्जन उपन्यास लिखे । पंच परमेश्वर, बड़े घर की बेटी, कफेन, बूढी काकी आदि कहानियाँ प्रसिद्ध हैं । गोदान, गबन, प्रेमाश्रम, सेवा सदन, निर्मला, कर्मभूमि, रंगभूमि, प्रतिज्ञा, कायाकल्प आदि प्रसिद्ध उपन्यास हैं । गोदान इनका अंतिम तथा सर्वश्रेष्ठ उपन्यास है । इनकी श्रेष्ठ वचनाएँ देश- विदेशी भाषाओं में अनूदित हुई और फिल्में भी बनाई गई ।

TS Inter 2nd Year Hindi Study Material Chapter 5 बूढ़ी काकी

प्रश्न 2.
बूढ़े लोगों के प्रति हमारा व्यवहार कैसा होना चाहिए ।
उत्तर:
बुढ़ापा बहुधा बचपन का पुनरागमन हुआ करता है । बूढ़े अपने जीवन काल में अपने परिवार व समाज के लिए अपनी सारी शक्ति खर्च करते हैं और बुढ़ापे में भौद्धिक एवं बौद्धिक शक्ति खो बैठते हैं। इसलिए बूढ़े लोगों के प्रति हमारा व्यवहार अच्छा होना चाहिए। बच्चों की तरह उनकी देख-भाल करनी चाहिए । उनकी समस्याएँ सुनकर, जानकर उन्हें दूर करना चाहिए । उन्हें पूरी तरह भरोसा देनी चाहिए ।

एक वाक्य प्रश्न (ఏక వాక్య సమాధాన ప్రశ్నలు)

प्रश्न 1.
बूढ़ी काकी ने अपनी संपत्ति किसके नाम कर दी ?
उत्तर:
भतीजे बुद्धिराम के नाम पर

प्रश्न 2.
बूढ़ी काकी को सबसे अधिक क्या पसंद था ?
उत्तर:
स्वादिष्ट ले-लेकर खाना

प्रश्न 3.
उपन्यास सम्राट किन्हें कहा जाता है ?
उत्तर:
प्रेमचंद को

TS Inter 2nd Year Hindi Study Material Chapter 5 बूढ़ी काकी

प्रश्न 4.
प्रेमचंद का सर्वश्रेष्ठ उपन्यास कौनसा है ?
उत्तर:
गोदान

संदर्भ सहित व्याख्याएँ (సందర్భ సహిత వ్యాఖ్యలు)

1. बुढ़ापा बहुधा बचपन का पुनरागमन हुआ करता है। बूढ़ी काकी में जिला- स्वाद के सिवा और कोई चेष्टा शेष न थी और न अपने कष्टों की ओर आकर्षित करने का, रोने के अतिरिक्त कोई दूसरा सहारा ही ।

संदर्भ : यह कथा – सम्राट एवं उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद की सफल कहानी ‘बूढ़ी काकी’ के आरंभिक उद्धरण है। बुढ़ापा और बचपन में कोई अंतर नहीं, बताते हुए कहानीकार इस कहानी का आरंभ करते हैं ।

व्याख्या : प्रेमचंद कहते हैं कि प्रायः बुढ़ापन और बचपन का कोई अंतर नहीं होता । बुढ़ापन की चेष्टाएँ बचपन की चेष्टाएं जैसी होती हैं। बुढ़ापे में बचपन फिर से आता है। बूढ़ी काकी में जीभ का स्वाद जैसा लेकिन बाकी चेष्टाओं में एक भी न बची थी। उसका सहारा सिर्फ है, कोई दूसरा नहीं है । वह दीन स्थिति में थी ।

विशेषताएँ : आरंभिक पंक्ति एक सूक्ति जैसी है, जो पाठकों को उत्सुकता पैदा करती है। भाषा सरल और सुगम है ।

TS Inter 2nd Year Hindi Study Material Chapter 5 बूढ़ी काकी

2. परमात्मा, मेरे बच्चों पर दया करो। इस अधर्म का दंड मुझे मत दो, नहीं तो मेरा सत्यानाश हो जाएगा ।

संदर्भ : ये वाक्य महान कहानीकार एवं उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद की सफल कहानी ‘बूढ़ी काकी’ से दिए गए हैं। रात को रूपा की लड़की लाड़ली अपनी चारपाई में न पाकर इधर उधर ढूँढ़ती और देखती कि । जूठे पत्तलों पर से पूडियों के टुकड़े खा रही बूढ़ी काकी के पास खड़ी है। करुणा और भय से रूपा का हृदय द्रवित होता है। वह सच्चे दिल से अकाश की ओर हाथ उठाकर ये वाक्य कहती है ।

ब्याख्या : हे भगवान ! बूढ़ी काकी से किया जा रहा इस दुर्व्यवहार, इस दुस्थिति का कारण पति महित मैं और बच्चे हैं। इस विधर्म चेष्टा की सजा मुझे और बच्चों को मत दो। हम पर रहम करो ।

विशेषता : यह उद्धरण रूपा में स्थित पाप भीति एवं उससे हुआ हृदय – परिवर्तन का परिचायक है ।

बूढ़ी काकी Summary in Hindi

लेखक परिचय

मुंशी प्रेमचंद का जन्म सन् 1880 में उत्तर प्रदेश में वारणासी के निकट लमही नामक गाँव में हुआ था । आपका असली नाम धनपतराय था । आपको हिंदी और उर्दू साहित्य के महान लेखकों में से एक माना जाता है । हिंदी साहित्य में वे ‘प्रेमचंद’ उपनाम से जाने जाते हैं ।

प्रेमचंद ने नवाबराय नाम से उर्दू में भी लेखन कार्य किया था । सन् 1921 में उन्होंने महात्मा गाँधी के आह्वान पर अपनी सरकारी नौकरी से इस्तीफा दे दिया । मुंशी प्रेमचंद द्वारा लिखी गयी कहानियाँ और उपन्यासों को बाद में कई फिल्मों और टेलीविजन धारावाहिकों में प्रसारित किया गया । उन्होंने लगभग 300 कहानियाँ लिखी । गोदान उनका अंतिम और सर्वश्रेष्ठ उपन्यास हैं। सन् 1936 में मुंशी प्रेमचंद का निधन हो गया ।

सारांश

कवि परिचय : आधुनिक हिंदी साहित्य में उपन्यास सम्राट के नाम से प्रसिद्ध कहानीकार प्रेमचंद की कहानी बूढ़ी काकी “मानवीय करुणा” की भावना से ओत-प्रोत कहानी है। इसमें लेखक ने “बूढ़ी काकी” के माध्यम से समाज परिवार की उस समस्या को उठाया है जहाँ वृद्धजनों से उनकी जायदाद – संपत्ति लेने के बाद उनकी उपेक्षा होने लगती है । केवल इतना ही नही, बात-बात पर उन्हें अपमानित और तिरस्कृत किया जाता है, भरपेट भोजन तक भी नही मिलता । सामाजिक यथार्थ के माध्यम से मुंशी प्रेमचंद ने मनुष्य की स्वार्थी भावनाओं का घृणित एवं बीभत्स रूप चित्रित किया है ।

बूढ़ी काकी कहानी का उद्देश्य : कहानी का प्रारम्भ करते हुए लेखक ने मानव-जीवन के वृद्धावस्था और बाल्यावस्था को एक दृष्टि से देखा है । इसमें कोई शक भी नहीं है । बूढ़ी काकी में जीभ के स्वाद के अलावा अन्य कोई इच्छा नही थी । उसे विधवा हुए पाँच वर्ष का समय व्यतीत हो चुका है। उसके जवान बेटे भी असमय मर चुके थे। इस संसार में ऐसा कोई नही था, जिसे बूढ़ी काकी अपना कह सके था तो केवल उसका दूर का भतीजा बुद्धिराम । भलेमानुष पण्डित बुद्धिराम ने बूढ़ी काकी के सामने लम्बे-चौड़े वायदे कर उसकी सब संपत्ति अपने नाम लिखवाली पैसे का लालची बुद्धिराम बहुत जल्दी ही बदलने लगा । बुद्धिराम की पत्नी रूपा भी व्यवहार से कठोर थी लेकिन ईश्वर से अवश्य उसे डर लगता था । इसलिए वह बूढ़ी काकी से दुरव्यवहार करते समय डरती थी ।

TS Inter 2nd Year Hindi Study Material Chapter 5 बूढ़ी काकी

बूढ़ी काकी कहानी की समीक्षा : बुद्धिराम और उसकी पत्नी का व्यवहार बूढ़ी काकी के प्रति दिनों दिन कठोर होता चला गया। यहा तक कि जिस बुढ़िया की जायदाद से सौ-डेढ़ सौ रुपये प्रतिमाह की आमदनी थी, वह भोजन तक के लिए तरसने लगी । बूढी काकी जीभ के स्वाद के आगे विवश होकर रोने चिल्लाने लगती थी । हाथ-पैरों से लाचार बुढ़िया जमीन पर पड़ी रहती और अपने प्रति उपेक्षा भरे व्यवहार पर चीखती-चिल्लाती । बुद्धिराम के दोनों बेटे भी उसे चिढ़ाने-परेशान करने में खुश होते थे । यहाँ तक कि वे दोनों उस बुढ़िया के ऊपर अपने मुँह का पानी भी उड़ले देते थे। लेकिन बुद्धिराम की बेटी लाडली ‘’बूढ़ी काकी” से बहुत प्यार करती थी । लाडली भाइयों से तंग होकर बूढ़ी काकी की कोठरी में आ जाती थी और चना चबाना जो कुछ भी होता था, मिल बाँटकर बूढ़ी काकी के साथ खाती थी ।

कुछ समय बाद बुद्धिराम के बेटे मुखराम की सगाई थी। जिसमें भाग लेने के लिए काफी मेहमान आए हुए थे। सारे गाँव में खुशी का माहौल था । चारपाइयों पर आराम कर रहे मेहमानों की नाई सेवा कर रहे थे। कहीं भाट प्रशंसा में यश-गान कर रहे थे। रूपा को भी औरतों से फुरसत नही थी । दौड़-दौड़कर इधर से उधर भाग रही थी। हलवाई भट्टियों पर काम कर रहे थे । कही सब्जियाँ पक रही थी तो कई मिठाइया बन रही थी। खाना पकने की सुगन्धि सारे घर में फैल चुकी थी ।

भीतर ही भीतर बूढ़ी काकी का मन भी लालचा रहा था । परन्तु वह सोच रही थी कि जब उसे भरपेट भोजन ही नही मिलता तो मिठाई और कचैड़ी कौन खिलाएगा। रह-रहकर उसकी जीभ लपलपा रही थी । दिन होता तो वह रो – चीखकर सभी का ध्यान अपनी ओर खींच लेती लेकिन अपशकुन के भय से वह चुपचाप बैठी थी । धीरे-धीरे उसका मन बेकाबू होता चला गया और उकडू बनकर हलवाई के कहाडे के पास जाकर बैठ गई । अचानक रूपा की नज़र बूढ़ी काकी पर पडी तो आग बबूला हो उठी और बूढ़ी काकी को खूब भला-बुरा कहा । अपमानित होकर भी बूढ़ी काकी कुछ नही बोली और रेंगती हुई चुपचाप अपनी कोठरी में चली गयी ।

काफी समय बीत जाने के बाद भी बूढ़ी काकी की किसी ने सुध नही ली तो उसका मन बेचैन हो उठा । तरह- तरह के विचार उसके मन में आने लगे। सभी लोग खा – पी चुके होंगे। तेरी याद किसी को नहीं आएगी। इसी बीच उसकी भूख जोर पकड़ने लगी और हाथों के बल सरकती हुई लोगों के ‘बीच जाकर पत्तल पर बैठ गयी। लोग आश्चर्य से देख रहे थे कि बुद्धिराम की नजर उस पर पड़ गयी । उस दयनीय बूढ़ी काकी को दोनों हाथों से उठाकर कोठरी में लाकर पटक दिया। कभी कचौडिया याद आती तो कभी स्वादिष्ट रायता, लेकिन लाड़ली से अलावा बूढ़ी काकी के पति किसी के मन में कोई सहानुभूति नही थी ।

रात के ग्यारह बज चुके थे। सभी मेहमान आराम कर रहे थे । रूपा सो चुकी थी, लेकिन लाडली थी जो जाग रही थी। वह उस समय की प्रतीक्षा में थी जब अपने हिस्से का मिला हुआ खाना बूढ़ी काकी को जाकर खिलाए । रूपा को पता लगने पर पिटाई होने का डर था । माँ को सोता देखकर लाडली चुपके से अपनी हिस्से की पूड़िया लेकर काकी के पास पहुँची ।

बेसब्री से इंतजार कर रही बुढिया एक ही झटके में सब खा गयी परन्तु इससे उसकी भूख और बढ़ चुकी थी। उसने लाड़ली से मेहमानों के भोजन करने के स्थान पर ले चलने को कहा परन्तु वहाँ पडे टुकडों को चुन-चुनकर खाने के बाद भी उसकी भूख नही मिटी । अंत में उसने लाडली से जूठी पत्तलों के पास ले चलने को कहा। इसी बीच रूपा की आँख खुल चुकी थी । बेटी पास न रहना देखकर इधर उधर देखा तो वह पत्तलों के पास खड़ी थी ।

रूपा बूढ़ी काकी को पत्तलों की जूठन चाटते देखकर आत्मग्लानि एंव पश्चाताप से भर उठी। आज उसे अपने किये पर भारी पछतावा हो रहा था। उसकी साई आत्मा जाग उठी थी । आज उसने बूढ़ी काकी को धमकाया नहीं अपितु उठकर साथ चलने को कहा। उसने सोचा जिस बुढिया की जायदाद से हमें इतनी आमदनी हो रही है, उसके लिए मैं भरपेट भोजन भी नही दे सकी ।

बूढ़ी काकी कहानी में समाज की ज्वलन्त वृद्ध समस्या का यथार्थ चित्रण : ईश्वर से अपने अपराध के लिए क्षमा मांगती हुई रूपा अपने कमरे में गयी और पकवान तथा मिठाई का थाली, लेकर बूढ़ी काकी के पास पहुँची । कहानीकार कहता है कि भोजन के उस थाल को देखकर काकी का मन आनन्दित हो उठा । रूपा ने बड़े ही प्यार से भोजन करने के लिए कहा और विनती की कि वह ईश्वर से प्रार्थना कर दे कि वह हमारा अपराध क्षमाकर दे । बूढ़ी काकी को उस समय स्वर्गीक आनन्द की अनुभूति हो रही थी ।

बूढ़ी काकी Summary in Telugu

సారాంశము

ఆధునిక హిందీ సాహిత్యంలో ఉపన్యాస చక్రవర్తిగా పేరు పొందిన కథా రచయిత ప్రేమచంద్ ఈ కథ ద్వారా వృద్ధాప్యంలో ముసలివారు తమ జీవితం ఎంతో బాధగా, దీనంగా గడుపుతున్నారు అన్న విషయం మన ముందు తెలియచేస్తున్నారు. ఆ వృద్ధులను ఎంతో అవహేళన చేస్తూ, వారి జీవితాలతో ఏవిధమైన చెలగాటం ఆడుతున్నారని మన కళ్ళకు కట్టినట్లుగా వ్రాశారు. ఇది మన మనస్సులను కదిలివేసేటటువంటి కథ.

TS Inter 2nd Year Hindi Study Material Chapter 5 बूढ़ी काकी

ఈ కథలో ప్రారంభం మన “बूढ़ी काकी” మనస్సు చిన్న పిల్లల మనసు వంటిది. ఆమెకు జిహ్వచాపల్యం ఎక్కువ. ఆమెకు అది తప్ప వేరే ఏ ఆశ లేదు. ఆమె యొక్క భర్త చనిపోయి 5 సంవత్సరాలు. భర్త పోయిన కొద్ది రోజులకే కొడుకుని పోగొట్టుకుంది. ఆస్తి ఆమెకు భగవంతుడు చాలా ఇచ్చాడు. డబ్బుకి ఎటువంటి లోటు లేదు. తన అనే మనుషులు ఆమెకు కరువయ్యాడు. “డే మేనల్లుడు బుద్ధిరామ్.

ఒక్కడే తనకు ఇప్పుడు దగ్గరయ్యాడు. ఆమెకు మంచిమాటలు చెప్పి ఆస్తిని తన పేరుతో వ్రాయించుకున్నాడు. బుద్ధిరామ్ భార్య రూప ఆమె చాలా కఠోరమైన హృదయం కలది. కాని దేవుని యందు భక్తి, శ్రద్ధ ఉండేది. భగవంతుడు అంటే చాలా భయం. “बूढ़ी काकी” పట్ల చెడుగా ప్రవర్తించేటప్పుడు ఎంతగానో భయపడేది.

బుద్ధిరామ్, రూపాకి ఇద్దరు మగపిల్లలు, ఒక ఆడపిల్ల. “बूढ़ी काकी ” ని ఇంటి బయట ఒక చిన్న గదిలో ఉంచారు. ఆమెకు సమయానికి తిండి కూడా పెట్టేవారు కాదు. “बूढ़ी काकी” ఆస్తి వారు అనుభవిస్తూ ఆమెను కష్టాలపాలు చేశారు. బుద్ధిరామ్ కూతురుకి “बूढ़ी काकी” అంటే ప్రేమ. తనవంతు తిండి ఆమె దగ్గరకు తెచ్చి ఆమెకు పెట్టి తను తినేది. బుద్ధిరామ్ మగపిల్లలు నోటిలో నీరు పుక్కిలించి (ఆమె) “बूढ़ी काकी” పై ఊసేవారు వారి ఆగడాలకు హద్దు ఉండేది కాదు. బుద్ధిరామ్ పెద్ద కుమారిడికి పెళ్ళి నిశ్చయం అయింది.

ఇంటికి చాలా మంది బంధువులు వచ్చారు. బంధువులతో ఇల్లంతా సందడిగా ఉంది. పెద్ద పెద్ద బాండీలు పెట్టి ఎన్నో రకరకాల తీపి వంటకాలు, కచోరీలు, ఫలహారాలు చేశారు. ఆ వాసన పీల్చిన “बूढ़ी काकी” తన గదిలో ఉండలేక దేకుతూ ఆ ప్రదేశానికి చేరుకుంది. కాని బుద్ధిరామ్ ఆమెను చూసి లాక్కెళ్ళి ఆమె గదిలో పడవేశాడు. ఆమెకు చాలా బాధగా అనిపించింది. బాగా ఆకలి వేస్తుంది, ఎవ్వరు ఆమెను పట్టించుకోవడం లేదు.

పోనీ తను వాళ్ళని తిడదామంటే చుట్టూ వచ్చిన వాళ్ళు తనని తప్పుగా భావిస్తారని భావించి నోరుకట్టుకుని దీనంగా కూర్చుంది. అలా సాయంత్రం అయిపోయింది. బాగా ఆకలివేస్తుంది. తనని పరామర్శించే వ్యక్తులు కరువైపోయారు. ఎవ్వరు ఆమెను పట్టించుకోవడం లేదు. “बूढ़ी काकी” కి ఏడుపు వస్తుంది. రూపకి చుట్టాలతో తీరిక దొరకలేదు. ఆమె “बूढ़ी काकी” ని పూర్తిగా మర్చిపోయింది. రాత్రి చాలా గడిచింది.

రూప, ఇంట్లో అందరు నిద్రించిన తరువాత బుద్ధిరామ్ కూతురు తన వంతు ఆహారాన్ని “बूढ़ी काकी” వద్దకు తెచ్చింది. దానిని అమాంతం తినివేసింది. కాని “बूढ़ी काकी” కి ఆకలి తీరలేదు. బంధువులు తిన్న ప్రదేశానికి తనను తీసుకు వెళ్ళమని ఆ పాపని కోరింది. ఆ ప్రదేశానికి చేరిన తరువాత “बूढ़ी काकी” ఆ విస్తర్లలో మిగిలిన ఆహారాన్ని నాకడం ప్రారంభించింది. గిన్నెలను నాకింది. అయిన ఆకలి తీరలేదు. రూప కూతురు ప్రక్కన లేకపోవడం గమనించి బయటకు వచ్చి చూసింది. ఆ దృశ్యం చూసిన ఆమెకు కన్నీళ్ళు ఆగలేదు. ప్లేటు తీసుకుని అన్ని రకాల తినుబండరాలు “बूढ़ी काकी” కి ఇచ్చింది. తనని క్షమించమని “बूढ़ी काकी” ని, భగవంతుడిని కోరింది.

कठिन शब्दों के अर्थ (కఠిన పదాలు – అర్ధాలు)

पुनरागमन – come back, తిరిగి రావడం.
जिहवां स्वाद – very taste, నాలుకకి రుచించదగిన.
भतीजा – nephew, మేనల్లుడు
अर्धांगिनी – better half, భార్య
सुचेष्टा – well, మంచి
कुल्ली कर देना – Gargle, పుక్కిలించి ఉమ్మివేయు
आर्तनाद – roaring, ఆర్తనాదం
शहनाई – the clarinet, సన్నాయి
भट्टियों – furnaces, అగ్నికుండము
पकवान – puddings, పిండి వంటలు
कोठरी – chamber, గది
शोकमय – woeful, deplorable, దౌర్భాగ్యముగా
पूडियाँ – puri, పూరీలు
कचौडियाँ – pastry, మిఠాయి
अजवाइन – caromseed, వాము
इलायची – cardamom, యాలుకలు
वाटिका – garden, ఉద్యానవనం

TS Inter 2nd Year Hindi Study Material Chapter 5 बूढ़ी काकी

उद्विग्न – distraught, విషాదం
भोग – enjoyment, సంతోషకరం
डायन – witch, మంత్రగత్తె
झुंझला – jerk, కుదుపు
पत्तल – leaf on which meal is served, ఆకు
चटकारना – to make a sound while licking, నాకేటప్పుడు చేయు శబ్దం.
तिलमिला – dare, ఆలోచించుకునే శక్తిని పోగొట్టు
बेइमान – dishonest, కపటంతో కూడిన
घसीटना – a drag, లాక్కొనుట
लाडली गुडिया की – tenderling, ప్రియమైన
पिटारी – dolls, బొమ్మలు
टटोला – towel, palpate, స్పర్శద్వారా పరీక్షించు
सदिच्छाएँ – good luck, good desire, మంచి కోరికలు
गुदगुदाना – tickle, చక్కిలిగింత

TS Inter 2nd Year Sanskrit Study Material Chapter 2 भ्रातृवात्सल्यम

Telangana TSBIE TS Inter 2nd Year Sanskrit Study Material 2nd Lesson भ्रातृवात्सल्यम Textbook Questions and Answers.

TS Inter 2nd Year Sanskrit Study Material 2nd Lesson भ्रातृवात्सल्यम

निबन्धप्रश्नौ (Essay Questions) (వ్యాసరూప సమాధాన ప్రశ్నలు)

1. हर्षवर्धनः विन्ध्याध्वीं अवाप्य किमकरोत् ?
(హర్షవర్ధనుడు వింధ్యామార్గముననుసరించి ఏమి చేసెను ?)
(What did Harshavardhana do on reaching Vindhya forest?)

हर्षवर्धनः राज्यश्रियं कथं अरक्षत् ?
(How did Harshavardhana save Rajyasn.)
(హర్షవర్ధనుడు రాజ్యశ్రీని ఏవిధముగా రక్షించెను ?)
జవాబు:
భ్రాతృవాత్సల్యం’ అనే పాఠ్యభాగాన్ని బాణ మహాకవి రచించాడు. ఇందులో భ్రాతృవాత్సల్యాన్ని కవి చక్కగా ఆవిష్కరించాడు. పూర్వం స్థాణ్వీదేశాన్ని ప్రభాకర వర్ధనుడు అనే రాజు పాలించాడు. ఇతని భార్య యశోమతి. వారిద్దరికి రాజ వర్ధనుడు, హర్షవర్ధనుడు అనే ఇద్దరు కుమారులు, రాజ్యశ్రీ అనే కుమార్తె ఉన్నారు. రాజ్యశ్రీ యొక్క వివాహం మౌఖర వంశీయుడైన అవంతి వర్మ కుమారుడు గ్రహవర్మతో జరిపించాడు. కొంతకాలానికి మాలవరాజు గ్రహవర్మను చంపారు. రాజ్యశ్రీని కారాగృహంలో బంధించాడు.

ఒకసారి హర్షవర్ధనుడి మంత్రి భట్టి మలినమైన వస్త్రాలతో ఒక గుర్రంపై రాజభవనానికి వచ్చాడు. హర్షవర్ధనుడు “రాజ్యశ్రీకి అపకారం చేసింది ఎవరు ?” అని అడిగాడు. వెంటనే మంత్రి “రాజా రాజవర్ధనుడు దేవ భూమికి వెళ్ళగా తన పేరు తెలియకుండా రాజ్యశ్రీ కారాగృహం నుండి తప్పించుకొని వింధ్యారణ్య ప్రాంతంలో ప్రవేశించింది. ‘ఆమెను అన్వేషిస్తున్న భటులు ఇంతవరకు తిరిగి రాలేదు.” అని చెప్పాడు. ఈ మాటలు విని హర్షవర్ధనుడు “ఇతర భుటులతో పనియేముంది ? నేనే స్వయంగా వెళతాను” అని నిశ్చయించుకొని, తన చెల్లెల్ని వెతకడంకోసం గుర్రంపై ఎక్కి వింధ్యారణ్యానికి బయలుదేరాడు.

చాలారోజులు వెతికాడు. అరణ్యంలో జీవించే ఆటవిక దళాధిపతి యొక్క కుమారుడు, యువకుడైన ఒక శబరుని తీసుకొని వచ్చి “రాజా ! ఇతడు భూకంపుడనే పేరుగల శబరరాజు యొక్క అల్లుడు నిర్ఘాతుడనే పేరు కలవాడు. ఇతడు ఈ అడవిలో అన్ని ప్రాంతములు తెలిసిన వాడు. అడవిలో చెట్లకు ఉన్న ఆకుల సంఖ్యను కూడా చెప్పగల సమర్ధుడు. మీరు అతని సహకారం పొందవచ్చు.” అని తెలిపాడు. వెంటనే హర్షవర్ధనుడు – “ఓ మిత్రమా ! ఈ అడవిలో నిస్సహాయురాలైన ఒక స్త్రీని ఎక్కడైనా చూశావా ? అని అడిగాడు. ఆ మాటలను విని యువకుడు “ఓ రాజా ! ఇక్కడికి రెండు క్రోసుల దూరంలో అనేక భిక్షువులతో కూడిన దివాకర మిత్రుడనే బౌద్ధ సన్యాసి ఉన్నాడు. అతనికి తెలిసి ఉండవచ్చు.” అని అన్నాడు. ఈ మాటలను విని హర్షవర్ధనుడు స్వర్గస్థుడైన గ్రహవర్మ యొక్క బాల్య మిత్రుడు సౌగతుని నుండి బౌద్ధ భిక్షువుగా సన్యాసం తీసుకొన్నది ఇతడేమో చూడాలి” అని అనుకున్నాడు.

“ఓ మిత్రమా, ఆ ప్రదేశం ఎక్కడ ? మాకు చూపించు’ మని అడిగాడు. అతడు చూపిన మార్గం అనుసరిస్తూ, చెట్ల మధ్య అనేక బౌద్ధభిక్షువుల మధ్యలో ఉన్న నడివయస్కుడైన ప్రశాంతవదనంతో ఉన్న అతనిని చూసి, దూరం నుండే నమస్కరించాడు. దివాకర మిత్రుడు కుడిచేతిని పైకెత్తి మధురంగా మాట్లాడుతూ రాజును దగ్గరకు తీసుకున్నాడు. తన దగ్గరకు వచ్చిన కారణమేమని అడిగాడు.

హర్షవర్ధనుడు చాలా సంతోషంతో, ఓ గురువరా, బంధువులనందరినీ కోల్పోయిన నా చెల్లెలు ఈ అడవిలో ఎక్కడో ఉంది. నేనామెను వెదుకుతున్నాను. తమకు ఈ విషయం గురించి ఏమైనా తెలుసా ? అని అడుగగా, దివాకరమిత్రుడు తనకు ఏమీ తెలియదని చెప్పేలోపలనే ఒక బౌద్ధ సన్యాసి అక్కడకువచ్చి ‘ఓ మహాత్మా, ఒక నిస్సహాయురాలైన స్త్రీ అగ్నిలో దూకి చనిపోవాలనుకుంటున్నది. ఆమెను కాపాడమని తమను కోరుతున్నాను.’ అని పలుకగా, హర్షవర్ధనుడు. చాలా దుఃఖంతో ‘ఆమె ఇక్కడికి ఎంతదూరంలో ఉంది ? మనం అక్కడికి వెళ్ళే వరకూ ఆమె బ్రతికి ఉంటుందా ?’ ఆమెకు సంబంధించిన విషయాలు నీవేమైనా . అడిగావా ?” అని చాలా ఆతృతగా అడిగాడు.

పిమ్మట ఆ బౌద్ధభిక్షువు “ఓ రాజా! నేను సాయంత్రం నది ఒడ్డున విహరి స్తున్నాను. ఆ సమయంలో కొంతమంది స్త్రీల మధ్య బాగా దుఃఖపడుతున్న ఒక వితంతువును దర్శించాను. నేను ఆమెను సమీపించగానే అక్కడి స్త్రీలలో ఒక స్త్రీ చాలా దుఃఖిస్తున్నది. ఈ దుఃఖాన్ని భరించలేక అగ్ని ప్రవేశం చేసి మరణించా లనుకుంది. ఇప్పుడు మీరు ఎలాగైనా రక్షించాలి” అని కోరింది.

నేను మా గురువు అనుమతి కోసం ఇక్కడకు వచ్చాను, అని పలికాడు. అది విని హర్షవర్ధనుడు “ఓ మహాత్మా ! మనం త్వరగా వెళ్ళి నా చెల్లెల్ని రక్షించాలి” అని పలికాడు. వెంటనే దివాకర మిత్రుడు అక్కడికి వచ్చిన బౌద్ధభిక్షువు, అందరూ కలిసి వెళ్ళారు. ఆమెను ఆపద నుండి కాపాడారు. హర్షవర్ధనుడు తన చెల్లెల్ని చూచి ఆనందించాడు. రాజ్యశ్రీ సోదరుడిని కౌగిలించుకొని, మిక్కిలిగా దుఃఖించింది. వెంటనే హర్ష వర్ధనుడు రాజ్యశ్రీతో తన నివాసానికి బయలుదేరాడు.

लघु समाधान प्रश्नाः  (స్వల్ప సమాధాన ప్రశ్నలు) (Short Answer Questions)

पश्न 1.
हर्षवर्धनः भण्डिं किमुवाच ?
समादान:
हर्षवर्धनः भण्डिं राज्यश्री व्यतिकरः कः इति उवाच ।

पश्न 2.
निर्घातः कः ?
समादान:
निर्घातः शबरसेनाधिपतेः भूकम्पस्य स्वस्त्रीयः ।

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पश्न 3.
राजा कीदृशीं राज्यश्रियं ददर्श ?
समादान:
राजा मुह्यन्तीम् अग्निप्रवेशाय उद्यतां राज्यश्रियं ददर्श ।

एकपद समाधान प्रश्नाः (ఏకపద సమాధాన ప్రశ్నలు)(One Word Questions) 

पश्न 1.
राज्यश्री कां प्रविष्टा ?
समादान:
राज्यश्री विन्ध्याटवीं प्रविष्टा ।

पश्न 2.
दिवाकरमित्रः कः ?
समादान:
दिवाकरमित्रः बौद्धभिक्षुः ग्रहवर्मणः बालमित्रं च ।

पश्न 3.
हर्षवर्धनस्य का अवशिष्टा ?
समादान:
हर्षवर्धनस्य यवीयसी स्वसा राज्यश्रीः अवशिष्टा ।

कठिनशब्दार्थाः (కఠిన పదాలకు అర్ధాలు)

1. अर्धगव्यूतिः = क्रोशः, క్రోశ దూరం
2. भदन्तः = बौद्धभिक्षुः, బౌద్ధభిక్షువు
3. स्त्रैणम् = स्त्रीणां समूहः, స్త్రీల సమూహం
4. भण्डिः = हर्षवर्धनस्य मन्त्री, హర్షవర్ధనుడి మంత్రి
5. व्यतिकरः = वृत्तं समाचारः च, సమాచారము
6. हयः = अश्व:, గుర్రము
7. स्वसा = अनुजा, सोदरी, సోదరి
8. स्वस्त्रीयः = स्वसुः पुत्रः, సోదరి కుమారుడు
9. सौगतं मतम् = बौद्धम्, బౌద్ధుడు
10. चीवरपटलम् = बौद्धभिक्षुवस्त्रम्, బౌద్ధ భిక్షువు వస్త్రం
11. यवीयसी स्वसा = अनुजा, తోబుట్టువు
12. योषित् = स्त्री, స్త్రీ
13. रोधः = तीरम्, తీరము
14. राजदुहिता = राजपुत्री, రాజపుత్రి
15. विभावरी = रात्रिः, రాత్రి
16. कटकम् = सेना शिबिरं वा, సేవా శిబిరం
17. देवभूयम् = दिव्यत्वम्, स्वर्गम्, స్వర్గము

व्याकरणांशाः (వ్యాకరణం)

सन्धयः (సంధులు )

1. भण्डिः + एकेन = भण्डिरेकेन – विसर्गसन्धिः
2. हर्षवर्धनः + तम् = हर्षवर्धनस्तम् – विसर्गसन्धिः
3. बन्धनात् + विन्ध्याटवीम् = बन्धनाद्विन्ध्याटवीम् – जश्त्वसन्धिः
4. अन्यस्मिन् + अहनि = अन्यस्मिन्नहनि – ङमुडागमसन्धिः
5. इतः + च = इतश्च – श्रुत्वसन्धिः
6. विन्देत् + वार्ताम् = विन्देद्वार्ताम् – जश्त्वसन्धिः
7. तत् + श्रुत्वा = तच्छ्रुत्वा-जश्त्वम्-श्चुत्वम्-चर्त्वम्-छत्वम्
8. दूरात् + एव = दूरादेव – जश्त्वसन्धिः
9. अपृच्छत् + च = अपृच्छच्च – श्चुत्वसन्धिः
10. गुरुः + अपि = गुरुरपि – विसर्गसन्धिः
11. कियत् + दूरे = कियद्दूरे – जश्त्वसन्धिः
12. चेत् + मुहूर्तमात्रम् = चेन्मुहूर्तमात्रम – अनुनासिकसन्धिः
13. अस्मिन् + उदन्ते = अस्मिन्नुदन्ते – ङमुडागमसन्धिः
14. सः + अहम् = सोऽहम् – विसर्गसन्धिः
15. कथञ्चित् + जीवन्तीम् = कथञ्चिज्जीवन्तीम् – श्रुत्वसन्धिः

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समासाः (సమాసాలు)

1. मलिनं वासः यस्य सः – मलिनवासा – बहुव्रीहिः
2. राज्यश्रियाः व्यतिकरः – राज्यश्रीव्यतिकरः – षष्ठीतत्पुरुषः
3. उदारं रूपं यस्याः सा – उदाररूपा – बहुव्रीहिः
4. शत्रूणां शिरांसि – शत्रुशिरांसि तेषु – षष्ठीतत्पुरुषः
5. अर्धा च सा गव्यूतिश्च – अर्धगव्यूतिः – विशेषणपूर्वपदकर्मधारयः
6. दिवाकरमित्रः इति नामा – दिवाकरमित्रनामा – सम्भावनापूर्वपदकर्मधारयः
7. प्रार्थितञ्च तत् दर्शनञ्च प्रार्थितदर्शनम् विशेषणपूर्वपदकर्मधारयः
8. उपदिश्यमानः मार्गः यस्य सः – उपदिश्यमानमार्गः – बहुव्रीहिः
9. चीवरस्य पटलम् – चीवरपटलम् तेन चीवरपटलेन – षष्ठीतत्पुरुषः
10. आदरेण सह – सादरम् – अव्ययीभावः
11. विन्ध्यः इति वनम् विन्ध्यवनम् सम्भावनापूर्वपदकर्मधारयः
12. उपरचिता अञ्जलिः येन सः उपरचिताञ्जलिः – बहुव्रीहिः
13. शोकस्य आवेशः – शोकावेशः – षष्ठीतत्पुरुषः
14. अग्नौ प्रवेश: – अग्निप्रवेशः तस्मिन् अग्निप्रवेशे – सप्तमीतत्पुरुषः
15. भुवं बिभर्ति इति भूभृत् – उपपदतत्पुरुषः
16. राज्ञः दुहिता – राजदुहिता तस्याम् – राजदुहितरि षष्ठीतत्पुरुषः
17. आर्द्रे लोचने यस्य सः – आर्द्रलोचनः – बहुव्रीहिः

भ्रातृवात्सल्यम Summary in Sanskrit

कविपरिचयः

भ्रातृवात्सल्यम् इति पाठ्यभागोऽयं बाणमहाकविना रचितात् हर्षचरितात् उद्धृतः । अयं स्थाण्वीश्वराधिपतेः हर्षवर्धनस्य आस्थानपण्डितः आसीत् । हर्षवर्धनः ६०६ तः ६४८ पर्यन्तं राज्यं परिपालयामासेति इतिहासकाराः वदन्ति । अतः बाणमहाकवेः समयः सप्तमशतकं सिद्ध्यति । राजदेवी – चित्रभान्वोः पुत्रः अयं हर्षचरितं, कादम्बरी इति गद्यकाव्यद्वयम् अरचयत् । चण्डीशतकम् एवं च मुकुटताजितम्, पार्वतीपरिणयः इति नाटकद्वयमपि अयं रचितवानिति केषाञ्चन पण्डितानाम् अभिप्रायः । बाणमहाकविः कादम्बर्या हर्षचरिते अपि स्ववंशवर्णनं कृतवान् । हर्षचरिते अष्टौ उच्छ्वासाः वर्तन्ते । आद्येषु त्रिषु उच्छ्वासेषु बाणः स्वीयजीवनवृत्तान्तम् अलिखत् । चतुर्थात् आरभ्य अष्टमोच्छ्वासपर्यन्तं हर्षवर्धनस्य चरितम् अवर्णयत् । “करोम्याख्यायिकाम्भोधौ जिह्वाप्लवनचापलम्” इति हर्षचरिते स्वयमुक्तत्वात् अस्य आख्यायिकाग्रन्थरूपत्वं प्रतीतम् ।

सारांश

स्थाण्वीश्वरदेशपालकयोः यशोमती -करवर्धनयो: राज्यवर्धनः, हर्षवर्धन इति द्वौ सुतौ राज्यश्री इति दुहिता चासीत् । प्रभाकरवर्धनः राज्यश्रियः विवाहं मौखरवंशस्य राज्ञः अवन्तिवर्मणः तेन ग्रहवर्मणा सह अकरोत् । किन्तु कालान्तरे मालवराजः ग्रहवर्माणं निहत्य राज्यश्रियं कारागारे न्यक्षिपत् । ज्येष्ठः राज्यवर्धनः मालवराजं दण्डयितुं निरगच्छत् । अत्रान्तरे भण्डिः हर्षवर्धनम्प्रत्यागत्य ” राज्यश्रीः कारागार – बन्धनात् बहिरागत्य विन्ध्याटवीते गता, ताम् अन्वेष्टुं ये नियुक्ताः भटाः ते एतावत्पर्यन्तं न प्रतिनिवृत्ताः” इति वार्ताम् अश्रावयत् ।

तदा धीरो हर्षवर्धनः स्वयमेव स्वभगिनीम् अन्वेष्टुं कतिपयैः परिजनैस्सह विन्ध्याटवीम् अगच्छत् ! तत्र शबरसेनापतिः विन्ध्यारण्यं सकलं जानातीति अशृणोत् ततः तम्प्रति गत्वा सविनयम् अपृच्छत् – मम भगिनी राज्यश्री कुत्रापि दृष्टा वेति । ” समीपे एव दिवाकरमित्रो नाम बौद्धभिक्षुः अस्ति सः जानीयात्” इति शबरसेनापतेः वाक्यं श्रुत्वा हर्षवर्धनः झटिति तत्र गत्वा दिवाकरमित्रम् अमिलत् ।

ततश्च मम भगिनी राज्यश्रीः भर्तुवियोगेन वैरिपरिभवभयेन च दुःखिता विन्ध्याटवीमेनां प्राविशत् । तामन्वेष्टुं वयमटव्यामस्याम् अटामः इति तं प्रति कथयित्वा सा दृष्टा वा भवता इति यदा तं पृच्छति स्म तदा अन्यः कश्चन भिक्षुः वेगेन तत्रागत्य ” कापि स्त्री वनान्ते शोकावेशाभ्यां अग्निं प्रविशन्ती अस्ति, भवान् शीघ्रमागत्य तां रक्षतु ” इति अभ्यार्थयत । सा तस्य भगिनी राज्यश्री एव स्यादिति मत्वा अनुपदमेव दिवाकरमित्रेण: सह हर्षवर्धनः तत्र गत्वा स्वभगिनीम् अग्निप्रवेशात् निवार्य पर्यरक्षत् राजधानी प्रत्यानयच्च ।

भ्रातृवात्सल्यम Summary in English

Introduction

Introduction : The lesson Bhratruvatsalyam is taken from Harshacharjtam. The author was Bana, who was the court poet of Harsha. Bana belonged to the seventh century AD. His parents were Rajadevi and Chitrabhanu. Bana wrote two prose kavyas namely Kadambari and Harshacharita. He also penned Chandisatakam. Harshacharita belongs to the Akhyayika variety of works.

The Lesson: King Prabhakaravaxdhana had two sons and one daughter. The daughter Rajyasri was married to Grahavarman. But the king of Malaya killed Grahavarman. Her elder brother Rajyavardhana went to attack the king of Malaya, but he also died. Rajyasri was captured by the enemy, and was put in the prison. But she escaped from the prison, and entered the Vindhya forest. Harsha vardhana went in search of her, and rescued her while she was about to enter fire.

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भ्रातृवात्सल्यम Summary in Telugu

కవి పరిచయం

భ్రాతృవాత్సల్యం’ అనే పాఠ్యభాగాన్ని మహాకవి బాణుడు రచించాడు. ఈ మహాకవి రచించిన ‘హర్షచరితం’ నుండి స్వీకరింపబడింది. ఇతడు స్థాణ్వీశ్వరాధిపతి అయిన హర్షవర్ధనుని యొక్క ఆస్థాన పండితునిగా ఉన్నాడు. హర్షవర్ధనుడు 709 నుండి 747 మధ్య కాలంలో రాజ్యాన్ని పాలించాడు. అందువల్ల బాణమహాకవి జననం ఏడవ శతాబ్దంగా నిర్ణయింపవచ్చు. రాజదేవి, చిత్రభానువు అనే వారు ఇతని తల్లిదండ్రులు. ఈయన ‘కాదంబరి’ అనే కావ్యాన్ని రచించాడు. చండీశతకం, ముకుటతాజితం, పార్వతీ పరిణయః అనే నాటకాలను కూడా రచించాడు. ఇతడు కాదంబరి, హర్షచర్ కం, అనే గద్య కావ్యాల్లో తన వంశవర్ణను చేశాడు.

ఈ హర్షచరితమందు ఎనిమిది ఉచ్ఛా వారాలు ఉన్నాయి. మొదటి మూడు ఉచ్ఛ్వాసాలయందు తన జీవన వృత్తాంతాన్ని రాశాడు. నాలుగవ ఉచ్ఛ్వాసము నుండి ఎనిమిదవ ఉచ్ఛ్వాసం వరకు హర్షవర్ధనుని యొక్క చరిత్ర వర్ణింపబడింది.

TS Inter 2nd Year Sanskrit Study Material Chapter 2 भ्रातृवात्सल्यम

సారాంశము

స్థాణ్వీదేశాన్ని ప్రభాకరవర్ధనుడు పాలించాడు. అతని భార్య యశోమతి. వీరికి రాజవర్ధనుడు, హర్షవర్ధనుడు అనే ఇద్దరు కుమారులు రాజ్యశ్రీ అనే పేరుగల కుమార్తె ఉన్నారు. ప్రభాకరవర్ధనుడు రాజ్యశ్రీ యొక్క వివాహాన్ని మౌఖరవంశ రాజైన అవంతివర్మ కుమారుడైన గ్రహవర్మతో వివాహం జరిపించాడు. అయితే కాలాంతరంలో మాలవరాజు గ్రహవర్మను చంపి రాజ్యశ్రీని కారాగారంలో బంధించాడు. పెద్దవాడైన రాజ్యవర్ధనుడు మాలవరాజును దండించడానికి బయలుదేరాడు. అంతలో ఛండి హర్షవర్ధనుని సమీపించి, “రాజ్యశ్రీ కారాగార బంధనం నుండి బయటకు వచ్చి వింధ్యాటవీ ప్రాంతానికి వెళ్ళింది.

ఆమెను వెతకడానికి ఏ భటులను నియమించామో వారు ఇంతవరకు తిరిగి రాలేదు.” అనే వార్తను వినిపించాడు. అప్పుడు ధీరుడైన హర్షవర్ధనుడు స్వయంగా తన సోదరిని వెతుకుటకు కొంతమంది పరిజనులతో కలిసి వింధ్యాటవికి వెళ్ళాడు. అక్కడ శబరసేనాపతి వింధ్యారణ్యమంతా తెలిసినవాడని విన్నాడు. పిమ్మట అతడిని సమీపించి, వినయ పూర్వకంగా “నా సోదరి రాజ్యశ్రీని ఎక్కడైనా చూచారా ! అని అడిగాడు. పిమ్మట శబరసేనాపతి సమీపంలోనే దివాకరమిత్రుడు అనే పేరుగల బౌద్ధభిక్షువు ఉన్నాడు. అతనికి తెలుస్తుంది.” అని పలికాడు. ఈ మాటలను విని హర్షవర్ధనుడు వెంటనే అక్కడికి వెళ్ళి. దివాకర మిత్రుడిని కలిశాడు.

ఆ తరువాత “నా సోదరి రాజ్యశ్రీ భర్తృవియోగంతో శత్రువులు అవమానిస్తారనే భయంతో దుఃఖితురాలై ఈ వింధ్యాటవిలో ప్రవేశించింది. ఆమెను వెతుకుటకు మనం ఈ అడవిలో తిరుగుదాము” అని పలికి నీవు ఆమెను చూచావా ? అని ఎప్పుడు అడిగాడో అప్పుడు మరొక భిక్షకుడు వేగంగా అక్కడికి వచ్చి “ఒకానొక స్త్రీ దుఃఖంతో కూడినదై అగ్నిలో ప్రవేశిస్తూ ఉంది. మీరు త్వరగా వచ్చి ఆమెను రక్షించండి.” అని ప్రార్థించాడు. ఆమె అతని యొక్క సోదరి రాజ్యశ్రీ అయి ఉంటుందని తలచి వెంటనే దివాకర మిత్రునితో కలిసి హర్షవర్ధనుడు అక్కడికి వెళ్ళి తన చెల్లెలని అగ్నిప్రవేశం నుండి నివారించి, రక్షించి రాజధానికి తిరిగి వచ్చాడు.

స్థాణ్వీదేశాన్ని ప్రభాకరవర్ధనుడు పాలించాడు. అతని భార్య యశోమతి. వీరికి రాజవర్ధనుడు, హర్షవర్ధనుడు అనే ఇద్దరు కుమారులు రాజ్యశ్రీ అనే పేరుగల కుమార్తె ఉన్నారు. ప్రభాకరవర్ధనుడు రాజ్యశ్రీ యొక్క వివాహాన్ని మౌఖరవంశ రాజైన అవంతివర్మ కుమారుడైన గ్రహవర్మతో వివాహం జరిపించాడు. అయితే కాలాంతరంలో మాలవరాజు గ్రహవర్మను చంపి రాజ్యశ్రీని కారాగారంలో బంధించాడు. పెద్దవాడైన రాజ్యవర్ధనుడు మాలవరాజును దండించడానికి బయలుదేరాడు. అంతలో ఛండి హర్షవర్ధనుని సమీపించి, “రాజ్యశ్రీ కారాగార బంధనం నుండి బయటకు వచ్చి వింధ్యాటవీ ప్రాంతానికి వెళ్ళింది.

ఆమెను వెతకడానికి ఏ భటులను నియమించామో వారు ఇంతవరకు తిరిగి రాలేదు”. అనే వార్తను వినిపించాడు. అప్పుడు ధీరుడైన హర్షవర్ధనుడు స్వయంగా తన సోదరిని వెతుకుటకు కొంతమంది పరిజనులతో కలిసి వింధ్యాటవికి వెళ్ళాడు. అక్కడ శబరసేనాపతి వింధ్యారణ్యమంతా తెలిసినవాడని విన్నాడు. పిమ్మట అతడిని సమీపించి, వినయ పూర్వకంగా “నా సోదరిని రాజ్యశ్రీని ఎక్కడైనా చూచారా ! అని అడిగాడు. పిమ్మట శబరసేనాపతి సమీపంలోనే దివాకరమిత్రుడు అనే పేరుగల బౌద్ధభిక్షువు ఉన్నాడు. అతనికి తెలుస్తుంది”. అని పలికాడు.

ఈ మాటలను విని హర్షవర్ధనుడు వెంటనే అక్కడికి వెళ్ళి దివాకర మిత్రుడిని కలిశాడు. ఆ తరువాత “నా సోదరి రాజ్యశ్రీ భర్తృవియోగంతో శత్రువులు అవమానిస్తారనే భయంతో దుఃఖితురాలై ఈ వింధ్యాటవిలో ప్రవేశించింది. ఆమెను వెతుకుటకు మనం ఈ అడవిలో తిరుగుదాము” అని పలికి నీవు ఆమెను చూచావా ?” అని ఎప్పుడు అడిగాడో అప్పుడు మరొక భిక్షకుడు వేగంగా అక్కడికి వచ్చి “ఒకానొక స్త్రీ దుఃఖంతో కూడినదై అగ్నిలో ప్రవేశిస్తూ ఉంది. మీరు త్వరగా వచ్చి ఆమెను రక్షించండి.” అని ప్రార్థించాడు.

ఆమె అతని యొక్క సోదరి రాజ్యశ్రీ అయి ఉంటుందని తలచి వెంటనే దివాకర మిత్రునితో కలిసి హర్షవర్ధనుడు అక్కడికి వెళ్ళి తన చెల్లెలని అగ్నిప్రవేశం నుండి నివారించి, రక్షించి రాజధానికి తిరిగి వచ్చాడు.

अनुवादः (అనువాదములు) (Translations)

कदाचित् मालवराजसाधनमादायागतः भण्डिरेकेनैव वाजिना मलिनवासा राजद्वारमाजगाम । राजा हर्षवर्धनस्तमुवाच – “राज्यश्रीव्यतिकरः कः ?” इति । सोऽवादीत् – “देव ! देवभूयं गते देवे राज्यवर्धने, गुप्तनाम्ना च गृहीते कुशस्थले देवी राज्यश्रीः परिभ्रश्य बन्धनाद्विन्ध्याटवीं प्रविष्टेति वार्तामशृण्वम् । तां प्रति प्रहिता अन्वेष्टारस्तु नाद्यापि निवर्तन्ते” इति । भूपतिरब्रवीत् -“किमन्यैः अनुपदिभिः ? स्वयमेवाहं यास्यामि’ ।

अथ अन्यस्मिन्नहनि हयैरेव स्वसारमन्वेष्टुं विन्ध्याटवीमवाप, आट च तस्यां सुबहून्दिवसान् । एकदा तु आटविकसामन्तस्य सूनुः कञ्चित् शबरयुवानम् आदाय आगत्य विज्ञापयामास – “देव ! शबरसेनापतेः भूकम्पस्यायं निर्घातनामा स्वस्त्रीयः, सकलस्यास्य विन्ध्यारण्यस्य पर्णानामप्यभिज्ञः किमुत प्रदेशानाम् । एनं पृच्छतु देवः” इति । अवनिपतिः तमप्राक्षीत् – “अङ्ग ! युष्मासु कस्यचित् उदाररूपा नारी न गता दर्शनगोचरम्” ? इति । निर्घातः व्यज्ञापयत् – “देव इतश्च अर्धगव्यूतिमात्र एव प्रभूतान्तेवासिपरिवृतः दिवाकरमित्रनामा भदन्तः गिरिनदी माश्रित्य प्रतिवसति, स यदि विन्देद्वार्ताम्” इति ।

స్థాణ్వీ దేశాన్ని ప్రభాకరవర్ధనుడు పాలించాడు. అతనికి యశోమతి అనే భార్య, రాజవర్ధనుడు, హర్షవర్ధనుడు అనే ఇద్దరు కొడుకులు, రాజ్యశ్రీ అనే కుమార్తె ఉన్నారు. రాజ్యశ్రీ యొక్క వివాహం మౌఖర వంశీయుడైన అవంతివర్మ కుమారుడు గ్రహవర్మతో జరిపించారు. కొంతకాలానికి మాలవరాజు గ్రహవర్మను చంపి, రాజ్యశ్రీని కారాగృహంలో బంధించాడు.

ఒకప్పుడు హర్షవర్ధనుని మంత్రియైన భండి మురికిపట్టిన వస్త్రాలతో ఒక గుర్రంపై రాజభవనానికి వచ్చాడు. హర్షవర్ధనుడు రాజ్యశ్రీకి చెడు చేసినవాడెవడు ?” అని చెప్పగా, మంత్రి ‘రాజా రాజవర్ధనుడు దేవభూమికి వెళ్ళగా, తన పేరు తెలియనీయకుండా రాజ్యశ్రీ కారాగృహం నుండి తప్పించుకొని వింధ్య అడవులలో ప్రవేశించింది. ఆమెను వెదుకుతున్న భటులు కూడా ఇంతవరకూ తిరిగిరాలేదు.’

Once bringing the army force of Malava king, Bhandi ap-proached the royal gate wearing dirty clothes and with a single horse. Harshavardhana asked him regarding news about Rajyasri. He said that he heard the news that after Rajyavardhana died, Rajyasri was captured by Gupta at Kusasthali. However, she es¬caped from the custody, and entered the Vindhya forest. Those who went in search of her did not return until then. Then Harsha ,-t decided that instead of others, he himself should go in search of her.

The next day riding on horse, he went to the forest of Vindhya, and spent many days there searching for her. One day the son of the tribal chief brought one tribal boy and told Harsha that he was Nirghata, the son of the sister of the tribal chief Bhukampa. He knew the details of every leaf in the forest, let alone the places. The king should query him. When Harsha asked him whether they had seen a noble looking woman anywhere, the boy said that at some distance, there was a Buddhist monk Divakaramitra living near a hill stream with his many disciples, and he might know of her

ఆ మాటవిని హర్షవర్ధనుడు ‘వేరే భటులు వెదకుట ఎందుకు ? నేనే వెడతాను’ అని అన్నాడు. మరునాడు హర్షవర్ధనుడు తన చెల్లెలను వెదకటం కోసం గుర్రంపై వింధ్యాటవికి బయలుదేరాడు. చాలా రోజులు అడవిలో వెదికాడు. అడవిలో జీవించే ఆటవిక దళాధిపతి యొక్క కుమారుడూ, యువకుడైన ఒక శబరుని తీసికొనివచ్చి, ఈ విధంగా చెప్పాడు.

రాజా ఇతడు భూకంపుడనే పేరుగల శబరరాజు యొక్క అల్లుడు నిర్ఘాతుడనే పేరు కలవాడు. ఇతడు ఈ అడవిలో అన్ని ప్రాంతములు తెలిసినవాడు. అడవిలో చెట్లకు ఉన్న ఆకుల సంఖ్యను కూడా చెప్పగల సమర్థుడు. మీరు ఇతనిని సహాయం కోరవచ్చు.’ అని తెలుపగా, ఓ మిత్రమా, ఈ అడవిలో నిస్సహాయురాలైన ఒక స్త్రీని ఎక్కడైనా చూశావా ? అని అడిగాడు. ఆ మాటవిన్న యువకుడు ‘ఓ రాజా, ఇక్కడికి రెండు క్రోసులదూరంలో అనేక భిక్షువులతో కూడిన దివాకర మిత్రుడనే బౌద్ధ సన్యాసి ఉన్నాడు. అతనికి ఏమైనా తెలిసుండవచ్చు’ అన్నాడు. దివాకర మిత్రుడిన బౌద్ధ సన్యాసి ఉన్నాడు. అతనికి ఏమైనా తెలిసుండవచ్చు అన్నాడు.

तच्छ्रुत्वा नरपतिरचिन्तयत् श्रूयते हि स्वर्गतस्य ग्रहवर्मणो बालमित्रं सौगते मते युवैव काषायाणि गृहीतवान् इति । पश्यामः प्रयत्नप्रार्थितदर्शनं तं जनम्” इति । प्रकाशं चाब्रवीत् – “अङ्ग ! समुपदिश तं देशं यत्रास्ते स” इति । तेनैव उपदिश्यमानमार्गः क्रमेण तरुणां मध्ये अरुणेन चीवरपटलेन, संवीतम्, वसि वर्तमानं दिवाकरमित्रमद्राक्षीत् । प्रशान्तगम्भीरेण तस्य आकारेण आरोपितबहुमानः सादरं दूरादेव ववन्दे । दिवाकरमित्रस्तु उत्क्षिप्य दक्षिणं हस्तं स्निग्धमधुरया वाचा राजानमन्वग्रहीत्, अपृच्छच्च तस्यागमनकारणम् ।

राजा तु सादरमब्रवीत् – “आर्य ! धन्योऽस्मि । मम हि विनष्टनिखिलबन्धोः एकैव यवीयसी स्वसावशिष्टा । सापि भर्तुर्वियोगात् वैरिपरिभवभयाच्च भ्रमन्ती कथमपि विन्ध्यवनमिदमविशत् । अतस्तामन्वेष्टुं वयमिमाम् अटवीमटामः । कथयतु च गुरुरपि यदि कदाचित् श्रुता तद्वार्ता” इति ।

अथ तच्छ्रुत्वा “धीमन् ! नैवंरूपो वृत्तान्तोऽस्माभिः श्रुतः” इत्येवं वदत्येव तस्मिन् अकस्मादागत्य अपरः संभ्रान्तः उपरचिताञ्जलिः भिक्षुरभाषत “भगवन्भदन्त ! महत्करुणं वर्तते । कापि स्त्री शोकावेशविवशा वैश्वानरं विशति । सम्भावयतु ताम् अप्रोषितप्राणां भगवान्” इति ।

राजा तु जातानुजाशङ्कः दुःखेन तं पप्रच्छ – ” कियद्दूरे सा योषित् ? जीवेद्वा कालमेतावन्तम् ? पृष्टा वा त्वया, भद्रे ! कासि को हेतुः अग्निप्रवेशे इति । इच्छामि श्रोतुं कथमार्येण दृष्टा, आकारतो वा कीदृशी” इति ।

समिक्षुराचचक्षे – “महाभाग ! श्रूयताम् – अहं हि प्रत्युषसि नंदीरोधसा विहृतवानतिदूरम् । एकत्र वनलतागहने नारीणां रुदितमाकर्ण्य गतोऽस्मि तं प्रदेशम् । दृष्टवानस्मि च, कतिपयाभिः अबलाभिः परिवृताम्, दग्धां चण्डातपेन वैधव्येन च योषितम् । सा तु समीपगते मयि तदवस्थापि मां प्रणतवती ।

ఆ మాటలు విన్న హర్షవర్ధనుడు స్వర్గస్థుడైన గ్రహవర్మ యొక్క బాల్యమిత్రుడు . సౌగతుని నుండి బౌద్ధభిక్షువుగా సన్యాసం తీసుకున్నది ఇతడేనేమో చూడాలి’ అని అనుకున్నాడు.

ఓ మిత్రమా, ఆ ప్రదేశం ఎక్కడ ? మాకు చూపించు’మని అడిగాడు. అతడు చూపిన మార్గం అనుసరిస్తూ, చెట్ల మధ్య అనేక బౌద్ధ భిక్షువుల మధ్యలో ఉన్న నడి వయస్కుడైన ప్రశాంతవదనంతో ఉన్న అతనిని చూసి, దూరం నుండే నమస్కరించాడు. ‘దివాకర మిత్రుడు కుడిచేతిని పైకెత్తి మధురంగా మాట్లాడుతూ రాజును దగ్గరకు తీసుకున్నాడు. తన దగ్గరకు వచ్చిన కారణమేమని అడిగాడు.

హర్షవర్ధనుడు చాలా సంతోషంతో, ఓ గురువరా, బంధువులనందరినీ కోల్పోయిన నా చెల్లెలు ఈ అడవిలో ఎక్కడో ఉంది. నేనామెను వెదకుతున్నాను. తమకు ఈ విషయం గురించి ఏమైనా తెలుసా ? అని అడుగగా, దివాకరమిత్రుడు తనకు ఏమీ తెలియదని చెప్పేలోపలనే ఒక బౌద్ధసన్యాసి అక్కడకు వచ్చి ‘ఓ మహాత్మా, ఒక నిస్సహాయురాలైన స్త్రీ అగ్నిలో దూకి చనిపోవాలనుకుంటున్నది. ఆమెను కాపాడమని తమను కోరుతున్నాను.’ అని పలుకగా, హర్షవర్ధనుడు చాలా దుఃఖంతో ‘ఆమె ఇక్కడికి ఎంతదూరంలో ఉంది ? మనం అక్కడికి వెళ్ళేవరకూ ఆమె బ్రతికి ఉంటుందా ?’ ఆమెకు సంబంధించిన విషయాలు నీవేమైనా అడిగావా ?” అని చాలా ఆతృతగా అడిగాడు.

ఆ బౌద్ధభిక్షువు ‘ఓ రాజా నేను సాయంకాలం నది ఒడ్డున విహరిస్తున్నాను. ఆ సమయంలో కొంతమంది స్త్రీల మధ్య బాగా దుఃఖపడుతున్న ఒక వితంతువును చూశాను. నేను ఆమెను సమీపించగానే అక్కడ స్త్రీలలో ఒక స్త్రీ చాలా బాధపడుతూ నాకు నమస్కరించి,

On listening that, the king thought it was heard that Graha- varman’s childhood friend became a Buddhist monk at a young age. He could meet him after requesting for an audience. Asking him to show the way, he followed that way, and found in the midst of the trees the middle-aged Divakaramitra wearing saffron clothes. On seeing his calm appearance, becoming respectful, he bowed to him from a distance. Divakaramitra raised his right hand, and blessed him with sweet words, and enquired the reason for his arrival.

The king told him that he had lost all his relations except one younger sister. Having lost her husband, and disgraced by the enemies, while wandering, she entered the Vindhya forest. We were searching for her in the forest. He asked him whether he heard any news of her.

एका योषित्पादयोः पतित्वा मामभिहितवती – “भगवन् ! इयं नः स्वामिनी मरणेन पितुः, अभावेन भर्तुः, प्रवासेन च भ्रातुः, दारुणं दुःखमपारयन्ती सोढुम्, अग्निं प्रविशति । परित्रायताम्’ । तामुत्थाप्य अहम् अभिहितवान् – “आर्ये ! शक्यते चेन्मुहूर्तमात्रमपि त्रातुम् उपरिष्टान्न व्यर्था इयमभ्यर्थना भविष्यति । मम हि गुरुरपर इव भगवान्सुगतः समीपगत एव । कथिते अस्मिन्नुदन्ते नियतमाग मिष्यति परमदयालुः, एनां प्रबोधयिष्यति च” इति । ” त्वरतामार्यः” इत्यभिदधाना सा पुनरपि पादयोः पतितवती । सोऽहमुपागत्य त्वरमाणो व्यतिकरमिमं गुरवे निवेदितवान् इति ।

अथ भूभृत् सर्वाकारसंवादिन्या दशयैव दूरीकृतसंदेहः श्रमणाचार्यं – “आर्य ! नियतं सैवेयं मे भगिनी’ इत्युक्त्वा तं श्रमणं – “आर्य! दर्शय क्कासौ । कथञ्चिज्जीवन्तीं सम्भावयामः” इति भाषमाण एवोत्तस्थौ ।

अथ समग्रशिष्यवर्गानुगतेनाचार्येण अनुगम्यमानः तेन श्रमणेन प्रदिश्य- मानवर्त्मा च पद्भ्यामेव तं प्रदेशं प्रावर्तत । क्रमेण च समीपमुपगतः शुश्राव महतः स्त्रैणस्य विलापान्, ददर्श च मुह्यन्तीम् अग्निप्रवेशाय उद्यतां राजा राज्यश्रियम् । आललम्बे च तां सम्भ्रमम् । राज्यश्रीः च असम्भावितागमनस्य भ्रातुः कण्ठं समाश्लिष्य अतिदीर्घं रुरोद |

शनैराचार्यस्तु तथा हर्ष इति विज्ञाय विवर्धितादरः शिष्येणोपनीतं स्वयमेवादाय मुखप्रक्षालनाय उदकमुपनिन्ये । ततो नरेन्द्रो मन्दं मन्दमब्रवीत् स्वसारम् – ‘वत्से ! वन्दस्वात्र भवन्तं भदन्तम् । एष ते भर्तुः मित्रम् अस्माकं च गुरुः” इति । राजदुहितरि पतिपरिचयश्रवणेन पुनरानीताश्रूणि नमन्त्याम् आचार्यः आर्द्रलोचनः, मधुरया वाचा व्याजहार – ” अलं रुदित्वातिचिरम् । स्नात्वा च गम्यतां भवदीयामेव भूयो भुवम्” इति ।

अथ पार्थिवस्तत्र तामुषित्वा विभावरीमुषसि च वसनादिप्रदानपरितोषितं निर्घातमाचार्येण सह विसर्ज्य, स्वसारमादाय, प्रयाणकैः कतिपयैरेव अनुजाह्नवि निविष्टं कटकं प्रत्याजगाम ।

ఒక స్త్రీ చాలా బాధపడుతూ నాకు నమస్కరించింది. ఆమె “ఓ పూజ్యుడా ! ఈమె తన తండ్రిని, భర్తను పోగొట్టుకొని మిక్కిలి దుఃఖిస్తున్నది. ఈమె తన దుఃఖాన్ని తట్టుకోలేక అగ్నిలో పడి చనిపోవాలనుకుంటున్న ఈమెను మీరు ఎలాగైనా రక్షించాలి” అని కోరింది. నేను ఆమెను లేపి – “పూజ్యురాలా ! ఈమెను రక్షించడానికి సమర్ధుడనే, కాని మా గురువుగారి అనుమతి అవసరం. దీనిని మా గురువుకు నివేదిస్తాను.” అని పలికాడు.

ఆ మాటలు విని “త్వరగా చేయండి” అని ఆమె పలికి తిరిగి నా కాళ్ళపై పడింది. వెంటనే గురువును సమీపించి నివేదించాడు. అది విని హర్షవర్ధనుడు “పూజ్యుడా ! ఏ స్త్రీ గురించి అతడు చెప్పాడో ఆమె నా సోదరి అని పలికి, “అయ్యా ! ఆమెను చూపించండి. ఆమె ఎక్కడ ఉంది ? ఆమె జీవించి ఉండవచ్చు.” అని పలికి ఇద్దరు పైకి లేచారు. శిష్యులతో కలిసి బయలుదేరాడు. అతనితో హర్షవర్ధనుడు అనుసరించాడు. కొంతదూరం వెళ్ళిన తర్వాత అతడు వీరిద్దరిని ఆ ప్రాంతానికి తీసుకొని వెళ్ళాడు.

అనేకమంది స్త్రీలతో కూడి విలపిస్తున్న అగ్నిలో ప్రవేశిస్తున్న ఆమెను చూశాడు. వెంటనే ఆమెను పట్టుకున్నాడు. రాజ్యశ్రీ కూడా అనుకోకుండా వచ్చిన సోదరుడిని చూచి, అతనిని గట్టిగా కౌగిలించుకొని మిక్కిలిగా దుఃఖించింది. వెంటనే ఆమె నీళ్ళతో ముఖాన్ని కడుక్కుంది. పిమ్మట రాజు ఆమెతో “అమ్మా ! ఈయనకు నమస్కరించు. ఈయన నీ భర్త యొక్క మిత్రుడు, మనకు గురువు”. అని పలికాడు. ఆ గురువు కూడా “అమ్మా ! ఇక దుఃఖించవద్దు. స్నానంచేసి నీ సోదరునితో కలిసి నీ సొంత ఇంటికి వెళ్ళు.” అని పలికాడు. పిమ్మట హర్షవర్ధనుడు తన సోదరిని తీసుకొని కొద్దిరోజుల్లో తన కటకానికి తిరిగి వెళ్ళాడు.

The monk replied that he did not heard any such news. At that very moment, another monk came there hurriedly, and having bowed to him said that some woman was ready to enter the fire, and the teacher should rescue her. The king doubted whether she was his sister, and asked him how far she was, how she looked like, whether she would live till they went, whether he enquired about her and the reason to enter fire.

The monk replied that he went on long walk on the riverside early in the morning, when he heard in a bower of creepers the weeping of women. He went there and saw a woman surrounded by many other women and distressed because of the heat of the sun, and her widowhood. She bowed to him even in such a situation.

One of the women fell on his feet and said that the woman lost her father and husband, and as her brother was away, was about to enter the fire unable to bear her grief. The monk requested her to wait for a few moments as his teacher was nearby. When he was informed, he would come and advise her. She asked him to hurry up, and once again fell at his feet. He hurried to report the matter to his teacher.

The king confirmed to himself that it was his sister, and told so the teacher. He requested the monk to show the way hoping that they could somehow see her living. When all of them went there, and heard the loud weeping of the women, the king saw Rajyasri, who was prepared to enter the fire. As he caught her, she embraced her brother’s neck and wept for a long time.

The teacher understood that it was Harsha, and with growing respect for him, brought water for her to wash her face. The king told his sister that the monk was her husband’s friend, and asked her to bow to him. As she bowed to him with tears appearing again at the mention of her husband’s acquaintance with him, the monk spoke soothingly to her not to weep, and return to her land.

The king spent the night there, made Nirghata happy by presenting him clothes etc., and having taken leave of the teacher, reached their camp near Ganga accompanied by his sistie”.

TS Inter 2nd Year Hindi Study Material Chapter 4 धरती

Telangana TSBIE TS Inter 2nd Year Hindi Study Material 4th Lesson धरती Textbook Questions and Answers.

TS Inter 2nd Year Hindi Study Material 4th Lesson धरती

दीर्घ प्रश्न (దీర్ఘ సమాధాన ప్రశ్నలు)

प्रश्न 1.
‘धरती’ पाठ का सारांश पाँच- छह वाक्यों में लिखिए ।
उत्तर:
भारतदेश की आशा उसकी धरती और उसके किसान हैं । भारतीय किसान आत्मविर्भर एवं परिश्रमी होते हैं। उन्हें धरती तथा गृह गृहस्थी से प्रेम होता है । किसान की जिंदगी में परस्पर सहयोग एवं सादगी की भावना, हर काम में कई कहानियाँ, लोकगीत, हजारों कहावतों का स्मरण हो आता है । वास्तव में किसान अन्नदाता, सुखदाता एवं जीवनदाता हैं । इमारी सहानुभूति और सहयोगिता से किसान फलेंगे फूलेंगे और चहूँ और सुख- समृद्धि लहराएगी। हमारी पढ़ाई-लिखाई तथा रहन सहन का आदर्श यही बनना चाहिए कि किसानों की श्रेणी में हमारी गिनती हो ।

लघु प्रश्न (లఘు సమాధాన ప్రశ్నలు)

प्रश्न 1.
भारत का किसान अपना घर किन चीजों से बनाता है ?
उत्तर:
किसान अपना घर बाँस और बल्लियों के ठाठ से, अपने ही जंगल के बाँस और फूँस से अपने ताल की मिट्टी से पाथी हुई कच्ची ईंटों से बनाता है । घर की लिपाई – पुताई में उसकी घरवाली उसका हाथ बँटाती है। ऐसे फूँस और छप्पर के कच्चे घर में रहना किसान पसंद करता है । ऐसा घर सर्दी में गरम और गर्मी में ठंडा लगता है ।

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प्रश्न 2.
भारतीय किसान के जीवन की कुछ विशेषताएँ लिखिए ।
उत्तर:
भारतीय किसान भारत माँ की आशा है । वे धरती के बेटे हैं। वे गाँवों में, अपने लिपे-पुते कच्चे घरों में रहकर सादगी से जीवन बिताते हैं । वे स्वावंलबी होकर परस्पर सहयोगिता से जीवन यापन करते हैं। वे कथा – वार्ता और लोकगीत – लोकनृत्य से अपना मनोंरजन करते हैं । किसान के बलिष्ठ शरीर ही उनकी संपत्ति है, उसकी लक्ष्मी है । परिश्रमयुत एवं संतोषमय भारतीय किसानों का जीवन सर्वोपरि है ।

एक वाक्य प्रश्न  (ఏక వాక్య సమాధాన ప్రశ్నలు)

प्रश्न 1.
हमारा राष्ट्रीय पेशा कौन-सा है ?
उत्तर:
खेती

प्रश्न 2.
भारतीय किसान अपना मनोरंजन कैसे करता है ?
उत्तर:
कथा-वार्ता और लोकगीत – लोकनृत्य द्वारा

प्रश्न 3.
आत्मनिर्भरता किसका गुण है ?
उत्तर:
भारतीय किसान का

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प्रश्न 4.
किसानों के लिए आवश्यक सभी औजार कहाँ तैयार होते हैं ?
उत्तर:
गाँवों में ही

संदर्भ सहित व्याख्याएँ  (సందర్భ సహిత వ్యాఖ్యలు)

1. आत्मनिर्भरता भारतीय किसान का …………… मुहँ नहीं ताकना पड़ता ।

संदर्भ : प्रस्तुत उद्धरण पुरातत्व विद्, इतिहासकार एवं निबंधकार वासुदेवशरण अग्रवाल के निबंध, ‘धरती’ स दिया गया । यह उद्धरण भारतीय किसान की आत्मनिर्भरता एवं उसके स्ववलंबन का गुणगान करते संदर्भ में निबंधकार ये वाक्य कहते हैं ।

व्याख्या : भारत के कृषक का महान गुण है, आत्मनिर्भरता अर्थात् आत्मावलंबन । वह सब काम अपने बल पर करता है । इसी विषय पर यदि सावधानी से अध्ययन करें, तो ऐसे हज़ारों तत्थ हमारे सामने आएँगे, जिनको भारतीय कृषक अपने हाथ से खुद कर लेते हैं, जैसे खेती के औज़ार, घर के निर्माण की सामग्री, घर की आवश्यक सामग्री, दवा-दारु आदि । इससे बाहर के यंत्र और यंत्रविदों पर निर्भर होना न पड़ता ।

विशेषताएँ : निबंधकार इस उद्धरण द्वारा भारतीय किसान के संपूर्ण जीवन के अध्ययन पर ज़ोर दे रहे हैं, जो अनिवार्य है। भाषा सरल और सुबोध है ।

TS Inter 2nd Year Hindi Study Material Chapter 4 धरती

2. हमारा देश किसानों का देश सब से गर्व की बात है ।

संदर्भ : प्रस्तुत निबंधांश पुरातत्ववेत्ता, इतिहासकार एवं निबंधकार वासुदेवशरण अग्रवाल के निबंध, ‘धरती’ के अंतिम अनुच्छेद से दिया गया है। किसान को पैसा नहीं चाहिए, चाहिए कि बलिष्ठ शरीर । उससे वह धरती- माँ से सहगामी होकर फलने फूलने लगेगा। इस संदर्भ डाँ० वासुदेवशरण यह कथन कहते हैं ।

व्याख्या : किसानों का देश है, हमारा भारत । कृषि हमारे भारतदेश का पेशा है; जीविका के लिए किए जानेवाला धंधा है, व्यवसाय है । कृषक होना हमारे भारतीयों के लिए बड़े गर्वका विषय है । क्यों कि कृषक अन्नदाता हैं और जीवनदाता हैं । राष्ट्रकल्याण का मूलस्तंभ है ।

विशेषता : निबंधकार इस कथन दवारा कृषक – महत्व को उजागर करते हैं ।

धरती Summary in Hindi

कवि परिचय

कवि परिचय : डॉ. वासुदेव शरण अग्रवाल” का जन्म सन् 1904 ई में लखनऊ में हुआ था । उन्होंने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से स्नातक और एम. ए. परीक्षा उत्तीर्ण की। पुरातत्व विषय पर उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय से.डी. लिट् की उपाधि प्रप्त की । वे केंद्रीय सरकार के पुरातत्व विभाग के संचालक । काशी विश्वविद्यालय के भारती महा विद्यालय के पुरातत्व और प्राचीन इतिहास विभाग के अध्यक्ष एवं आचार्य रहे। सन् 1967 ई में उनका स्वर्गवास हो गया ।

इनकी प्रमुख रचनाएँ हैं ” कल्पवृक्ष”, “पृथ्वी पुत्र,” “भरत की एकता”, “माता भूमि” “कला और संस्कृति” आदि । पुरातत्व और प्राचीन इतिहास के अतिरिक्त ये काव्यं प्रेमी भी ये ।

“धरती” पाठ का लेखक “डॉ. वासुदेव शरण अग्रवाल’ जी हैं । ये पुरातत्व और प्राचीन इतिहास के अतिरिक्त ये काव्य प्रेमी भी थे । इस पाठ में भारतीय किसान की महानता के बारे में चर्चा की गयी ।

सारांश

भारत की आशा उसकी धरती और किसान है। भारत एक कृषि प्रधान देश है । किसान धरती के बेटे हैं। भारत का किसान सदियों से अपना काम चतुराई के साथ करता आ रहा है। खेत में जब उतरता है तो खून – पसीना एक कर देता है। सर्दी – गर्मी और बारिश से वह जी नहीं चुराता । भारतीय किसान के शरीर और मन में अपने घर को बाँस, बल्लियों और ठाठ से और अपने ताल की मिट्टी से बनाता है ।

आत्म निर्भरता भारतीय किसान का बहुत बडा गुण है । भारतीय किसान अपने हाथ से अपने गाँव में ही हजारों बातें कर लेते हैं । उसे बाहर से यंत्रों और मैकेनिकों का मुँह नहीं ताकना पडता । उनके इस कौशल की प्रशंसा होनी चाहिए ।

भारतीय किसान के पास हाथ पैर का बल है, उसके मन में काम करने का उत्साह है । उसे अपनी धरती और घर-गृहस्थी से प्रेम है, बुद्धि का गुण भरपुर मात्रा में है। किसान भाषा और भाव दोनों का धनी है। उसमें मिल- जुलकर जीवन चलाने का अद्भुत गुण है । गाँव का हर एक काम में एक – दूसरे का हाथ बाँटना देखने लायक होता है ।

TS Inter 2nd Year Hindi Study Material Chapter 4 धरती

भारतीय किसान कथा – वर्ता का प्रेमी रहा है। उसे अपने पूर्वजों के चरित्र में रुचि है । आँख उसकी काले अक्षर नहीं देखती, पर कानों के द्वारा और कंठ के द्वारा लाखों ग्राम – गीत, हजारों कहानियाँ, लोकोक्तियाँ, ऋतु एवं प्रकृति की बातें किसानों और बरसात के घेरते – गरजते समय के कंठ में है ।जोडों की चिलकती धूप गर्मी की प्रशांत रात्री में और वसंत के फगुवा बयार में किसान का रोम रोम नृत्य और गीत के लिए फडकने लगता है ।

किसान को सहानुभूति का स्वर चाहिए। उसके जीवन को समझने, परखने और संभालने की आवश्यकता है, अस्त व्यस्त करने की नहीं । भारतीय किसानों का जीवन कठिभाइयों से नारा है। उनकी कठिनाइयों को दूर करने के लिए और उनकी स्थिति सुधारने के लिए सरकार को उनके लिए कुछ सफल प्रयास करना चाहिए। उनकी सुथ सरकार को रखना चाहिए। तभी देरा की प्रगति सुविधा, खेती का ख्याल संभव है ।

धरती Summary in Telugu

కవి పరిపచయం

“ధరతీ పాఠం రచయిత డా. వాసుదేవ శరణ్ అగ్రవాల్ గారు. ఈయన పురాతత్వ మరియు ప్రాచీన చరిత్రతో పాటుగా కావ్య ప్రేమికుడు కూడా. ఈ పాఠంలో భారతీయ రైతు గొప్పతనాన్ని గూర్చి చర్చించడమైనది.

సారాంశము

భారత్ ఆశ – భూమి మరియు రైతు. భారత్ ఒక వ్యవసాయ ప్రధాన దేశం. రైతులు భూమాత బిడ్డలు. భారతదేశ రైతు కొన్ని శతాబ్దాలుగా నేర్పరితనంతో తన పనులు చేసుకుంటూ ఉన్నాడు.

రైతు పొలంలోకి దిగాడంటే తన రక్తాన్ని చెమటను ఒకటిగా చేస్తాడు. చలి, ఎండ మరియు వానకు భయపడడు. భారతీయ రైతు శరీరంలో, మనస్సులోను మరియు సంతోషంలో శ్రమ పడుటలో ప్రపంచంలోనే ఉన్నత స్థానాన్ని కల్గి ఉన్నాడు. రైతు తన ఇంటిన వెదురు, తీగలు మరియు వెదురు గడ్డితో తన చేతితో కలిపిన మట్టితో తయారుచేస్తాడు.

“ఆత్మనిర్భరత” భారతీయ రైతు యొక్క అతిపెద్ద గుణం. రైతు తన చేతులతో తన గ్రామంలోనే అనేక విషయాలను) పనులను చేసేసుకుంటాడు. తను బయట నుండి యంత్రాలను, మెకానిక్ల మొహం చూడవలసిన పనిలేదు. ఈ విధమైన వారి నేర్పరితనాన్ని మెచ్చుకోవలసి ఉంది.

భారతీయ రైతుల్లో కాళ్ళు – చేతుల బలం, వారి మనస్సులో పని చేయాలన్న ఉత్సాహం ఉంది. వారికి తమ భూమియన్న, ఇల్లు మరియు కుటుంబం అన్న ప్రేమ, బుద్ధి అనే గుణం సంపూర్ణంగా ఉంది. రైతు “భాష మరియు భావం” అనే రెండింటిలోనూ ధనికుడే. అతనితో కలిసి మెలిసి జీవితాన్ని నడపాలన్న అద్భుతమైన గుణం ఉంది. గ్రామంలోని ప్రతి ఒక పనిలోనూ ఒకరినొకరు చేయూతనందించడం చూడదగినది.

భారతీయ రైతు కథా – వార్తల ప్రేమికుడు. అతనికి తన పూర్వికుల చరిత్ర అన్న చాలా ఇష్టం. కళ్ళు నల్లని అక్షరాలను చూడలేకపోయినా చెవులు మరియు కంఠం ద్వారా లక్షల గ్రామ గీతాలు, వేలకొలది కథలు, సామెతలు, ఋతు మరియు ప్రకృతిలోని విషయాలు రైతుల కంఠంలో ఉన్నాయి. ఉండి ఉండి మెరిసే ఎండ. వేసవి ప్రశాంత రాత్రిలో, చుట్టుముట్టి గర్జిస్తున్న మేఘాలు వర్షించే సమయంలో మరియు వసంతంలోని హోలీ పండుగ గాలిలోను రైతుల రోమాలు పాటలు మరియు నృత్యాలకోసం పరితపిస్తూ ఉంటాయి.

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రైతుల యెడల సానుభూతిపరుల స్వరాలు కావాలి. వారి యొక్క జీవితాన్ని అర్థం చేసుకుని, మంచి చెడులను గుర్తించే జాగరూకత పడవలసిన అవసరం ఉంది. అంతేకాని అస్తవ్యస్తంగా కాదు. భారతీయ రైతుల జీవనం చాలా సమస్యలతో నిండి ఉంది. వారి కష్టాలను / సమస్యలను దూరం చేయడం కోసం మరియు వారి స్థితి బాగుచేయడంకోసం ప్రభుత్వం వారికోసం కొన్ని సఫలీకృత ప్రయత్నాలు చేయాలి. వారి యొక్క సుఖ – సౌకర్యాలు, పంటల యెడల ప్రభుత్వం దృష్టిని సారించాలి. అప్పుడే దేశ ప్రగతి సంభవం అవుతుంది.

कठिन शब्दों के अर्थ (కఠిన పదాలు – అర్ధాలు)

बंधार – పూర్తి నష్టం
हड्डी पेलने – వెన్ను విరుచుకొనే
असौज – ఆశ్వీయుజమాసం
भरकम – దేహపు ఒడ్డు-పొడవు
फूँस और छप्पर – ఎండు గడ్డి మరియు చూరు, కప్పు
भाया – సౌందర్యం, ప్రేమ
बल्लियाँ – నావ నడుపు తెడ్డు
ठाठ से – వెదురుగడతో చేసిన
पंजाली – పాడె, పంజరం
बरत – త్రాడు
पुराही – చాలా ప్రాచీనకాలమున
कुदाल – త్రవ్వుగోల
हँसिया – గొడ్డలి
गठियाता – ముడివేయుట
धकडा – ఎద్దుబండి
पेरने – ఒత్తుట, ప్రేరేపించుట
लिपे – पुते – అలకబడిన (పేడతో)
पुताई – పేడ / సున్నంతో అలుకుట
मँडनी – సమర్థించుట
फडकने – త్రుల్లుట, కదులుట, అదురుట
टोटा – తక్కువ, లోటు
फगुनहटा – ఫాల్గుణ మాసంలో వీచుగాలి
ताकता – తేరిపార చూచుట
चिलकता – ఉండి – ఉండి మెరయుట, బాధకల్గుట
फगुआ – హోలీ పండుగ
बयार – గాలి