TS Inter 1st Year Hindi उपवाचक Chapter 2 हार की जीत

Telangana TSBIE TS Inter 1st Year Hindi Study Material उपवाचक 2nd Lesson हार की जीत Textbook Questions and Answers.

TS Inter 1st Year Hindi उपवाचक 2nd Lesson हार की जीत

अभ्यास

अ. निम्न लिखित प्रश्नों के उत्तर तीन चार वाक्यों में दीजिए :

प्रश्न 1.
खड्गसिंह का चरित्र चित्रण कीजिए ?
उत्तर:
खड्गसिंह उस इलाके का प्रसिद्ध डाकू था । लोग उसका नाम सुनकर काँपते थे । होते-होते सुल्तान की कीर्ति उसके कानों तक भी पहुँची । वह एक दिन बाबा भारती के पास आया। उसने घोड़ा देखा, तो उसपर उसे बड़ा मोह हो गया। किसी न किसी सुल्तान को हड़पने की ठान ली। जाते-जाते उसने कहा- बाबाजी इस घोड़े को आपके पास रहने नही दूँगा ।

खड्गसिंह अपाहिज वेष धारण करके बाबा को धोखा दिया । घोड़े को अपना साथ ले गया। बाबा की करुण वचनों से अपना मन परिवर्तित होता है। अंत में उसने सुल्तान (घोड़े ) को बाबा तक पहुँचाता है । डाकू को भी हृदय होता है । डाकू भी सामान्य मानव जैसा सोचता है । इस प्रकार की आलोचना हमें खड्गसिंह चरित्र द्वारा मालूम होता है ।

प्रश्न 2.
बाबा भारती का सुल्तान के प्रति लगाव कैसा था ?
उत्तर:
माँ को अपने बेटे और किसान को अपने लहलहाते खेत देखकर जो आनंद आता है, वही आनंद बाबा भारती को अपना घोड़ा देखकर आता था । भगवद्-भजन से जो समय बचता, वह घोड़े को अर्पण हो जाता । बाबा भारती उसे ‘सुल्तान’ कहकर पुकारते, अपने हाथ से खरहरा करते, खुद दानना खिलाते और देख- देखकर प्रसन्न होते थे। “मैं सुल्तान के बिना नहीं रह सकूँगा “, उन्हें ऐसी भ्रान्ति सी हो गई थी । खड्गसिंह उस घोड़े को हड़पने पर छोटे बच्चे जैसे रोता था । फ़िर सुल्तान को अंत में देखकर बेहद खुश हो जाता है ।

हार की जीत Summary in Hindi

लेखक परिचय

हिंदी के श्रेष्ठ कहानिकारों में सुदर्शन का नाम बड़े आदर के साथ लिया जाता है । सुदर्शन का जन्म सन् 1896 में पाकिस्तान के सियालकोट में हुआ था । वे हिन्दी के प्रसिद्ध साहित्यकार थे । उनका वास्तविक नाम ‘पण्डित बद्रीनाथ भट्ट’ था । सुदर्शन प्रेमचन्द परम्परा के कहानीकार थे । मुंशी प्रेमचन्द और उपेन्द्रानाथ ‘अश्क’ के समान ही वे हिन्दी और उर्दू में लिखते रहे । उन्होंने अपनी प्रायः सभी प्रसिद्ध कहानियों में समस्याओं का आदर्शवादी समाधान प्रस्तुत किया है । वे अपनी सरल और हृदय को छू जाने वाली कहानियों के लिए प्रसिद्ध हैं।

‘हार की जीत’, ‘सच का सौदा’, ‘अठन्नी का चोर’, ‘साईकिल की सवारी’, ‘तीर्थयात्रा’, ‘पत्थरों का सौदागर’, ‘पृथ्वी वल्लभ’ उनकी प्रसिद्ध कहानियाँ हैं । ‘भागवंती (उपन्यास) ‘आनरेसी मजिस्ट्रेट’ (प्रहसन), ‘सिकंदर’ पटकथा आदि भी उनकी चर्चित रचनाएँ हैं । उनकी भाषा सरल, स्वाभाविक, प्रभावोत्पादक और मुहावरेदार थी । सुदर्शन जी को गद्य और पद्य दोनों ही में महारत प्राप्त थी । साहित्य-सृजन के अतिरिक्त पंडित सुदर्शन ने अनेकों फिल्मों की पटकथा और गीत भी लिखे थे। ऐसे महान लेखक का निधन सन् 1967 में हुआ ।

TS Inter 1st Year Hindi उपवाचक Chapter 2 हार की जीत

‘हार की जीत नामक इस कहानी के कहानीकार श्री सुदर्शनजी है । वे हिन्दी के प्रसिद्ध साहित्यकार थे । सुदर्शन प्रेमचन्द परम्परा के कहानीकार थे । सुदर्शन हिंदी कहानीकारों में प्रमुख हैं। हिंदी कहानी साहित्य के विकास में सुदर्शन का महत्वपूर्ण स्थान है। ‘हार की जीत उनकी पहली कहानी है ।

सारांश  

बाबा भारती एक साधु थे । वे सब कुछ त्यागकर गाँव के बाहर एक मंदिर में रहते थे । उनके पास एक सुंदर घोड़ा था। चाल में उसके जोड़ का घोड़ा उस प्रदेश में नही था। बाबा भारती घोड़े से बहुत प्यार करते थे। रोज़ शाम को घोड़े पर बैठकर आठ-दस मील घूमते थे । घोड़े को लेकर वे फूले न समाते थे । घोड़े का नाम सुल्तान था ।

खड्गसिंह वहाँ का एक डाकू था । लोग उसका नाम सुनकर काँपते थे । उसने सुल्तान के बारे में सुना । वह एक दिन बाबा भारती के पास आया ! उसने घोड़ा देखा, तो उसपर उसे बड़ा मोह हो गया । किसी न किसी तरह सुल्तान को हड़पने की ठान ली। जाते-जाते उसने कहा- बाबाजी, इस घोड़े को आपके पास रहने नहीं दूँगा ।

एक दिन हमेशा की तरह बाबाजी शाम के वक्त घोड़े पर सवार होकर चल रहे थे । तब रास्ते में एक अपाहिज ने विनती की कि उसे घोड़े पर चढ़ा लिया जाए। बाबाजी को दया आयी । उन्होंने उसे घोड़े पर बिठाया । वह अपाहिज खड्गसिंह था । उसने कहा – ‘बाबाजी, अब यह घोड़ा मेरा हो गया ।’ कहते कहते वह चलने लगा ।

बाबा भारती एक क्षण के लिए अवाक् रहे, लेकिन तुरंत संभल गये । उन्होंने खड्गसिंह को रोककर कहा कि मानता हूँ कि यह घोड़ा तुम्हारा हो चुका। मैं घोड़ा नहीं मागूँगा । लेकिन इस घटना के बारे में किसी से कुछ न कहना ।

खड्गसिंह ने परेशान होकर कारण पूछा। तब बाबा भारती ने कहा कि यह बात किसी को मालूम हो जाए, तो लोग किसी गरीब या अपाहिज पर विश्वास नहीं करेंगे, उन्हें उनपर दया नहीं आएगी ।

यह सुनकर खड्गसिंह की आँखे खुल गयी । वह बाबा भारती के उच्च विचार के सामने एकदम हार गया । वह उसी दिन घोड़े को अस्तबल में छोड़कर चला गया । सुल्तान को पाकर बाबा भारती बेहद खुश हुए और सजल नेत्रों से कहने लगे- अब गरीबों की सहायता से कोई मुँह न मोड़ेगा ।

TS Inter 1st Year Hindi उपवाचक Chapter 2 हार की जीत

विशेषताएँ : बाबा भारती इस कहानी में हार कर भी अंत में जीत पाया । बाबा अपनी बातों से खड्गसिंह में परिवर्तन लाया । बाबा ने खड्गांसंह से सिर्फ यह वाक्य कहा कि तुमने धोखे से मेरा प्राण प्रिय सुल्तान को चुराया । जिस प्रकार तुमने चुराया इस घटना के बारे किसी से मत कहना क्यों कि लोग “दुखियों पर विश्वास न करेंगे ।” बाबा जी के विचार कितना ऊँचा और पवित्र है । साधुओं की दृष्टि में दूसरों की भलाई है, अपने भलाई से महान होता है ।

हार की जीत Summary in Telugu

సారాంశము

ప్రస్తుతం మనం చదువుకున్న ఈ పాఠం ‘గద్య వివిధా’ (ఉపవాచకం)లోని ‘हार की जीत’ అనే ఈ కథని వ్రాసింది సుదర్శన్ గారు. హిందీలో ప్రేమచంద్ కథలు వ్రాయడంలో ఎంత స్థానాన్ని పొందారో అంతటి సమాన స్థానం పొందిన వ్యక్తి సుదర్శన్ గారు. ఈ కథలో మహాత్ములు, సాధువులు దీనజనుల కోసం ఏవిధంగా ఆలోచిస్తారు అన్న విషయం గురించి తెలియచేశారు.

బాబా భారతి ఈ కథలో ముఖ్యపాత్ర. ఆయన ఒక సాధువు. తన సంపదని అంతా దీనజనులకు పంచి గుడిలో నివశిస్తున్నారు. ఆ గుడి గ్రామానికి వెలుపల ఉంటుంది. వారివద్ద ఒక అందమైన గుర్రం ఉంది. గుర్రం చాలా వేగంగా వెళుతుంది. అంతేకాక చూడటానికి రెండు కళ్ళు సరిపోవు. ఆ గుర్రం పేరు సుల్తాన్. బాబా భారతి ఆ గుర్రాన్ని తన బిడ్డవలె పెంచుతున్నారు. ప్రతిరోజు సాయంత్రం 8, 10 కిలోమీటర్లు గుర్రంపై సవారీ చేసేవారు. ఆ గుర్రాన్ని చూసి ఎంతో మురిసిపోయే వారు.

ఆ ప్రాంతంలో ఖడ్గసింహ అనే ఒక బందిపోటు ఉండేవాడు. ప్రజలు అతని పేరు వినగానే చాలా భయపడేవారు. ఖడ్గసింహ చాలా క్రూర స్వభావంగల వ్యక్తి. అతను సుల్తాన్ యొక్క గొప్పతనం గురించి విన్నాడు. ఒకరోజు బాబా భారతి వద్దకు వచ్చి గుర్రాన్ని చూసి దానిని తను ఎలాగైనా తీసుకువెళతానని చెప్పి వెళ్ళిపోతాడు. బాబా చాలా భయపడిపోతాడు. ఎన్నో రాత్రులు దానికి కాపలా కాస్తాడు. తన బిడ్డలాంటి సుల్తాన్ తనను వదిలి ఎలా ఉండగలదు, తను ఎలా ఉండగలడు అన్న ఆలోచన అతని మనసుని కలచివేస్తుంది. చాలారోజులు గడచిపోయాయి.

రోజువలె బాబా సుల్తాన్పై షికారుకి వెళ్ళారు. దారిలో ఒక నడవలేని స్థితిలో ఉన్న ఒక వ్యక్తి ముసుగుతో కనిపించాడు. ఆ వ్యక్తి బాబాని తనని వేరొక ప్రాంతంలో దింపమని కోరాడు. బాబా అతని మాటలు నమ్మి గుర్రంపై ఎక్కించుకున్నాడు. తర్వాత ఆ వ్యక్తి బాబాని తోసి గుర్రం కళ్ళెం పట్టుకున్నాడు. బాబాకి అప్పుడు అర్థం అయ్యింది. తను మోసపోయానని, ఆ వ్యక్తి ఇంకెవరు కాదు ఖడ్గసింహ. తను చెప్పినట్లు ఖడ్గసింహ ఆ గుర్రాన్ని తన హస్తగతం చేసుకున్నాడు.

TS Inter 1st Year Hindi उपवाचक Chapter 2 हार की जीत

బాబా గారు ఒక క్షణం అవాక్కు అయి తనని తాను సంభాలించుకున్నారు. బాబా గారు ఖడ్గసింహాని ఆపి ఇప్పుడు ఈ గుర్రం నీది అయినది. నేను నీ నుండి ఈ గుర్రాన్ని కోరను. ఈ విషయం గురించి నీవు ఎవరితో ప్రస్తావించవద్దు. ఇదే నా విన్నపం. ఖడ్గసింహకి ఏమి అర్థం కాలేదు. ఎందుకు బాబా అలా మాట్లాడారో తెలుసుకోవాలని అనుకున్నాడు ? బాబా నీవు నాతో ఎందుకు ఎవరితో ఈ సంఘటన చెప్పవద్దని అన్నావు అని ప్రశ్నించాడు.

బాబా ఇలా సమాధానం చెప్పారు. ప్రజలకు నీవు అపాహిజుని వేషంలో వచ్చి నన్ను మోసం చేశావని తెలిస్తే ఎవరు దీనులకు, దుఃఖితులకు సహాయం చేయరు. వారికి దీనులపై దయ కలగదు. బాబా మాటలు విన్న ఖడ్గసింహకి హృదయ పరివర్తన కలిగింది. బాబా యొక్క (గొప్ప) ఉన్నతమైన ఆలోచనకి తను చలించిపోయాడు. బాబా ముందు తను ఓడినట్లు అదే రోజు రాత్రి గుర్రాన్ని తీసుకువెళ్ళి బాబాగారి గుర్రపుశాలలో వదిలేశాడు.

సుల్తాన్ తిరిగి అక్కడ ఉండటం చూసిన బాబా ఆనందానికి అవధులు లేవు. ఇప్పుడు బాబా ఈ విధంగా అన్నారు. ఎవరు దీనులకు సహాయం చేయకుండా ఉండరు. బాబా మాటలు ఖడ్గసింహలాంటి బందిపోటు మనసునే మార్చివేయకలిగింది. మహాత్ములు తమ సుఖం కోసం కాక ప్రజల సుఖం కోరుకుంటారు అన్న వాక్యం నిజం.

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