TS Inter 1st Year Hindi उपवाचक Chapter 1 शिक्षा

Telangana TSBIE TS Inter 1st Year Hindi Study Material उपवाचक 1st Lesson शिक्षा Textbook Questions and Answers.

TS Inter 1st Year Hindi उपवाचक 1st Lesson शिक्षा

अभ्यास

अ. निम्न लिखित प्रश्नों के उत्तर तीन चार वाक्यों में दीजिए :

प्रश्न 1.
रवींद्र का लक्ष्य क्या था ?
उत्तर:
रवींद्र एक छोठी से गाँव का लड़का था । गरीब परिवार का रवींद्र खुद अपने बलबूते पर पढ़ता चला गया । हर परिक्षा में प्रथम रहता था । दसवी कक्षा में प्रथम आने पर रवींद्र का उत्साह दुगना हो गया और अधिक लगन से पढ़ने लगा । उसका एक . मात्र लक्ष्य खूब पढ़कर आई.ए.एस बनना है । उसने अपना ध्यान आई.ए.एस की परीक्षा पास कर एक अधिकारी बननें पर केन्दित किया । अंत में कलक्टर बन जाता है ।

प्रश्न 2.
रवींद्र नौकरी क्यों नहीं करना चाहता था ?
उत्तर:
रवींद्र के गाँव में एक कारखाने शुरु हो गया । यह कारखाना कार बनाने का है । गाँव के गरीब परिवारों को मजदूरी मिल गई । नौजवान कारखाने में भरती हो रहे थे । रवींद्र के माता पिता भी रवींद्र को नौकरी में भरती होने केलिए कहते थे। लेकिन रवींद्र कारखाने में नौकरी करना नही चाहता था क्यों कि नौकरी करेगा तो क्लर्क हो जाता। अगर. आई.ए.एस पढेगा तो कलक्टर बनेगा । तब वह जिले का मालिक बनेगा । नौकरी करने से उसका सपना कभी पूरा नही होगा । इसलिए रवींद्र नौकरी करने से इनकार करता है’ ।

शिक्षा Summary in Hindi

लेखक परिचय

मनमोहन भाटिया का जन्म सन् 1958 में दिल्ली में हुआ । उन्होंने हिंदूकालेज, दिल्ली से बी. कॉम और कैंपस लाँ सेंटर से एल. एल. बी. उपाधि प्राप्त की है । उन्हें बचपन से ही कहानियाँ लिखने में बड़ी रुचि थी। भारत की कई प्रसिद्ध पत्र – पत्रिकाओं में उनकी कहानियाँ प्रकाशित हुई हैं। उनकी प्रसिद्ध कहानियों में ‘बड़ी दादी’, ‘ब्लू टरबन’, ‘अखबार वाला’, ‘अहंकार’, ‘मोबाइल – लत’, ‘लाइसंसे’ और शिक्षा प्रमुख हैं ।

प्रस्तुत कहानी ‘शिक्षा’ अभिव्यक्तिकथा महोत्सव द्वारा पुरस्कृत की गई है । इस कहानी में रवींद्र नामक बालक के माध्यम से शिक्षा का महत्व बताया गया है। शिक्षा में ज्ञान, उचित आचरण और तकनीकी दक्षता, शिक्षण और विद्या प्राप्ति आदि समाविष्ट हैं । इस प्रकार यह कौशलों (Skills) व्यापारों या व्यवसायों एवं मानसिक, नैतिक और सौन्दर्य विषयक के उत्कर्ष पर केंद्रित है ।

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शिक्षा व्यक्ति की अंतर्निहित क्षमता तथा उसके व्यक्तित्व, को विकसित करने वाली प्रक्रिया है ।

प्रस्तुत कहानी ‘शिक्षा’ की रचना मनमोहन भाटिया ने की । आप कैंपस लॉ सेंटर से एल. एल. बी. उपाधि प्राप्त की है । प्रस्तुत कहानी ‘शिक्षा’ अभिव्यक्ति महोत्सव द्वारा पुरस्कृत की गई है ।

सारांश

मुख्य राजमार्ग से कटती एक संकरी सड़क आठ किलोमीटर के बाद नहर पर समाप्त हो जाती है। नहर पर जाने केलिए कच्चा पुल एकमात्र साधन है । जब नहर में अधिक पानी छोड़ा जाता है, तब फुल टूट जाता है और नाव से नहर पार जाया जाता है । यह अस्थायी पुल जिस नहर पार के गाँववाले खुद बनाते हैं, बरसात के महिनों में भी अधिक पानी के आ जाने पर टूट जाता है। सरकार ने कभी पुल को पक्का करने की नही सोची । नहर के पार गाँवों में गरीब परिवारों की संख्या अधिक है । आधे छोटे खेतों में फसल बो कर गुजारा करनेवाले और दूध बेचने का काम करते हैं ।

शिक्षा से गाँववालों का दूर- दूर तर कोई वास्ता नही है । ऐसा लगता था, कि नहर पर आधुनिक सभ्यता ने अपने पैर अभी तक नही रखे हैं । नहर से पहले गाँव में एक स्कूल हैं । जहाँ नहर पार गाँव के बच्चे इसलिए पढ़ने जाते हैं, क्योंकि सरकारी स्कूलों में मुफ्त शिक्षा और दोपहर का खाना मिलता है । इसके अतिरिक्त गाँव वाले अपने बच्चों को पढ़ने केलिए प्रोत्साहित नही करते, जब कोई बच्चा फेल होता तो, स्कूल से निकाल लिया जाता है ।

इस सबके बावजूद कुछ बच्चों पर सरस्वती मेहरबान है, प्रकृति चाहती है कि वे पढ़ लिख कर सभ्यता में अज्ञानता को दूर कर ज्ञान का प्रकाश चारों तरफ फैलाएँ। ऐसे ही बच्चों में रवींद्र प्रमुख था । गरीब परिवार का रवींद्र, खुद अपने बलबूते पर पढ़ता चला गया । जिस स्कूल का रिज़ल्ट कभी दस प्रतिशत से अधिक नहीं आया, रवींद्र दसवी कक्षा की बोर्ड परिक्षा में पूरे जिले में प्रथम आया। जिले में प्रथम आने पर रवींद्र का उत्साह दुगना हो गया । और अधिक लगन से पढ़ने लगा । प्रिंसिपल ने रवींद्र की श्रद्धा पढाई में देखकर छात्रवृत्रि केलिए आवेदन किया और दो वर्ष केलिए छात्रवृत्ति भी करवा दी। होनहार रवींद्र जोश, बात मानकर तू कारखानें में काम पर लग जा । इतनी अच्छी नौकरी हाथ से छूट जाने के पहले ही भरती हो जा ।

रवींद्र ने लाख समझाने की कोशिश की लेकिन सब बेकार, आखिर थक कर उसने कारखाने में नौकरी कर ली। रवींद्र को स्टोर में ड्यूटी दी गई, छः हज़ार रूपये का वेतन पाकर घर वाले तो खुश हो गए, लेकिन रवींद्र का मन दुखी था। दो महीने जैसे वैसे काटे । बारहवी कक्षा की बोर्ड परिक्षा का रिज़ल्ट घोषित हुआ । दसवी कक्षा में रवींद्र जिले में प्रथम आया था, इस बार वह पूरे राज्य में प्रथम रहा।

राज्य सरकार ने आगे पढ़ने केलिए छात्रवृत्ति की घोषणा की, जिससे उत्साहित होकर रवींद्र ने कॉलेज में दाखिला लिया और नौकरी छोड़ दी। नौकरी छोड़ने की खबर मिलते ही रवींद्र के माता – पिता दोनों बहुत नाराज हुए और प्रिंसिपल को कोसने लगे । रवि के पिता रमाशंकर दो-तीन पड़ोसियों को साथ लेकर प्रिंसिपल के कवार्टर मे जाकर गालिया दी । प्रिंसिपल ने बहुत समझाने की कोशिश की लेकिन कोई प्रभाव ना पड़ा। थक कर प्रिंसिपल ने कहा कि आपका लड़का है, जो आप उचित समझे, वही करे ।

प्रिंसिपल ने रवि को समझाया कि उसकी छात्रवृत्रि पढाई का खर्च सहन कर लेगी, यदि वह अपने परिवार को समझा सके तो भविष्य केलिए उत्तम रहेगा । रवींद्र के पिता – रवि से कहा कि ” आगे पढने की कोई जरूरत नही” नौकरी करेगा तो पैसे कमाएगा । पढाई करेगा तो पैसे खर्च होंगे। तू अब पढ़ लिख गया है । अपने आप हिसाब लगा ले। पूरा वेतन मिलेगा ।

रवींद्र पिता से कहा कि कारखानें की नौकरी में पूरी जिन्दगी क्र्क बन कर रह जाऊँगा । “लेकिन मेरा एक मात्र लक्ष्य आई ए. एस बनना है । मै उसकेलिए खूब पढूँगा, मै अधिकारी बन कर आप को दिखाऊँगा । पिता ने धमकी दिया कि ” घर में रहना है तो पढ़ने का भूत उतारना होगा” । लेकिन रवींद्र को पढ़ने की धुन थी, उसने कॉलेज में दाखिल ले लिया । यह सुनते ही रमाशंकर आगबबूला हो गया, रवि को घर से बाहर निकाल दिया। माँ ने दरवाजा बंद कर दिया।

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रवींद्र अब क्या करेगा, प्रिंसिपल सार के पास जाकर रहने केलिए जगह माँगा तो क्वार्टर में रहने के लिए कमरा दिया । लेकिन रवींद्र के माता पिता ने गाँव वालों के संग प्रिंसिपल के घर धावा बोल दिया और खुले शब्दों में कहा कि गाँव के बच्चों को भड़काना बंद कर दे वरना उसे स्कूल रहने नही देंगे । प्रिंसिपल रवींद्र को अपने घर में नही रख सकता । रवींद्र को प्रिंसिपल के घर भी छोड़ना पडा । सीधे शहर केलिए रवाना हो गया । काँलेज के पास एक मंदिर था । वह वहाँ कुछ देर बैठा रहा । रात को मंदिर बंद हो गया। उसकी जेब में फूटी कोड़ी नहीं थी । बस एक पैंट कमीज में घर से निकल था ।

सारी रात मंदिर परिसर में गुज़ार दी । भक्तों के दिए प्रसाद से पेट की भूख शांत की। मंदिर का पुजारी दो दिनों से रवि को देख रहा था । रवि से पूछा क्यों मंदिर में सो रहे हो ? रवींद्र आपनी कहानी सुना दी और काँलेज में दाखिले और छात्रवृत्ति के कागज दिखाए तब पुजारी की यकीन आया कि रवींद्र सच बोल रहा है । पुजारी ने शर्त रख दी कि यदि तुम मंदिर में रहकर काँलेज जाना चाहोगे तो मेरे दोनों बच्चों को पढ़ाना होगा और मंदिर की सफाई करनी होंगी। रवि ने शर्ते मान ली। काँलेज में पढ़ाई और शाम को पुजारी के बच्चों को पढाना यही उसकी दिनचर्या बन गया। प्रिंसिपल उसका मार्ग दर्शन करते रहे, और हौसला बढा ते रहे ।

सारे कॉलेज में मिस्टर ‘पढ़ाकू’ के नाम से मशहुर हो गया पुराने कपडों में उसकी गरीबी झलकती थी, पैदल आया – जाया करता था जिसके कारण कोई उसे पास नही आने देता था । लेक्चरर और प्रोफेसर ही उसके साथी थे। पहला वर्ष पूरा हुवा, परीक्षाओं में काँलेज में प्रथम रहा और उसके जितने अंक कॉलेज के इतिहास में किसी के नही आए ! सब दोस्ती करने लगे । पुजारी के बच्चे भी अच्छे नंबरों से पास हुए। रवि बड़ी श्रद्धा से मंदिर की सफाई करता, मंदिर की सफाई देख कर भक्तों की संख्या बढ गयी । पढने की लगन से वह पूरी यूनीवर्सिटी में प्रथम रहा और आई ए एस की परीक्षा पहली कोशिश में मेरिट केसाथ पास की।

सब लोग रवि की तारीफ किये । पिंसिपल साहब जिसने बचपन से रवि को कलक्टर बनने केलिए प्रोत्साहन दिया वह आज बहुत खुश हुवे । रवि से कहाकि तुमने अपने नाम को सार्थक कर दिया । ” हंमेशा सत्य की राह पर चलों; किसी रूकावट से मत डरना यही मेरी शिक्षा है और तुम्हे आशीर्वाद है ।

ट्रेनिंग के बाद जहाँ बाकी आई.ए.एस. अफसरों ने शहरों में अपनी पोस्टिंग चाही, रवींद्र ने अपना पिछडा जिला चुना पहला काम उसने नहर पर पुल बननाने का किया। रवींद्र माता पिता खुशी से फूले नही समाए । रवींद्र के माता पिता प्रिंसिपल साहब से माफ़ी माँगे । “तुम गाँव निवासी अज्ञानता का पर्दा उतार दो, पढाई की महिमा को समझो, यही मेरा सपना है । यही मेरी माफी है ।” प्रधानाचार्य ने कहा । पाँच साल बाद रवि अपने गाँव आ रहा है। पूरा गाँव रवींद्र के स्वागत में खड़ा था । माता – पिता ने अपने बेटे को गले लगाया। तीनों की आँखे नम थी ।

विशेषताएँ : अनपढ परिवार में पले बड़े रवींद्र कलक्टर बनना चाहा, आई.ए.एस परीक्षाओं केलिए बहुत मेहनत किया। कलक्टर बनने केलिए वह जो रास्ता चुना उस रास्ते में कितनी तकलीफें आने पर भी तकलीफों से अपने आप बचाते अपना लक्ष्य आई.ए.एस तक पहुँचा । गरीब परिवार के बच्चे होने पर भी सरस्वती कटाक्ष से अपनी मंजिल तक पहुँचा । कितने रात, कितने दिन रवींद्र परिश्रम किया भगवान ही जाने । परिश्रम का फल अंत मिला। रवींद्र जैसे बच्चे सब केलिए आदर्शप्राय हैं।

यह कहानी पढ़ने के बाद सब के मन में किसी न किसी उच्च पदवी को प्राप्त करने की आशा होगी ।

शिक्षा Summary in Telugu

సారాంశము

ప్రస్తుతం మనం చదువుతున్న ఈ పాఠం “గద్య వివిధా” (ఉపవాచకం) లోనిది. ‘శిక్ష’ (చదువు / education) అనే ఈ కథని వ్రాసింది మనమోహన్ భాటియాగారు. వీరు ఎల్.ఎల్.బి. ఉపాధి పొందిన వ్యక్తి. ప్రస్తుత కథ ద్వారా చదువు యొక్క గొప్పతనం గురించి వివరించారు. అభివ్యక్తి కథా మహోత్సవంలో పురస్కారం పొందిన కథ. ఈ కథలో రవీంద్ర అనే పిల్లవాడి ద్వారా చదువు యొక్క గొప్పతనాన్ని మనకు తెలియజేశారు.

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‘శిక్ష’ అనే ఈ కథ ప్రారంభం ఒక చిన్న గ్రామం నుండి మొదలైంది. ఆ గ్రామం జాతీయరహదారికి ఎనిమిది కిలోమీటర్ల సన్నని ఇరుకైన రోడ్డుకి దూరంగా ఉంటుంది. ఆ గ్రామానికి వెళ్ళడానికి మధ్య ఒక కాలువ ఉంది. ఆ కాలువపై చిన్న వంతెన ఊరి వారందరూ కలిసి నిర్మించుకున్నారు. వర్షాకాలం కాలువలో నీరు ఎక్కువైతే వంతెన కూలిపోయేది. అప్పుడు తాత్కాలికంగానే వంతెన ఊరువారందరూ కట్టుకునేవారు.

(సర్కారు) ప్రభుత్వం సరియైన బలిష్టమైన వంతెన కట్టడానికి ముందుకు రాదు. కారణం ఎవరు (వారిని) గ్రామ ప్రజలను పట్టించుకునేవారు కాదు. ఆ ప్రజలు పంటలు పండించడం, ఆవుల, మేకల పెంపకం లాంటివి చేసుకొని జీవనం గడిపేవారు. పాలను పట్టణానికి ఆ వంతెనపై వెళ్ళి సరఫరా చేసి డబ్బు సంపాదించుకునేవారు. అక్కడి పిల్లలు చదువుకోవడానికి సర్కారు పాఠశాల ఉండేది.

చదువు ఉచితంగా నేర్పిస్తారని, మధ్యాహ్నం భోజనం ఉచితంగా పెడతారనే ఉద్దేశ్యంతో తల్లిదండ్రులు పిల్లలని పాఠశాలకి పంపించేవారు. పరీక్షలలో పిల్లవాడు తప్పితే చదువు మాన్పించి పనికి పంపేవారు. వారిలో ఏ ఒక్కరికి చదువు యొక్క. విలువ తెలియదు. కాని అటువంటి మట్టిలో కూడా కొన్ని మాణిక్యాలు ఉన్నట్లే రవీంద్ర మన కథలో (నాయకుడు) ముఖ్యపాత్ర. ఆ గ్రామంలో నివసించే పిల్లవాడు. అతను చదువులో చాలా చురుకుగా ఉండేవాడు. ప్రతి తరగతిలో క్లాస్ ఫస్ట్ వచ్చేవాడు.

పదవ తరగతిలో అతను జిల్లాలో అత్యంత మార్కులు సంపాదించి పాఠశాలకి గురువులకి మంచిపేరు తెచ్చిపెట్టాడు. అతని ప్రధానోపాధ్యాయుడు రవిని మెచ్చుకొని తర్వాత చదువుకు అతనికి స్కాలర్షిప్ వచ్చే అవకాశం కల్పించారు. రవి ఇంటర్ రెండు సంవత్సరాలు పూర్తి చేశాడు. వేసవి సెలవులు వచ్చాయి. పరీక్షా ఫలితాల కోసం ఎదురుచూస్తున్నాడు. సమయం వృధా చేయక జీవితంలో ఒక లక్ష్యం ఎంచుకొని ఆ లక్ష్యం కోసం ఎంతో కష్టపడుతున్నాడు. అతని లక్ష్యం కలెక్టరు అవ్వడం.

ఆ ఊరిలో కొద్ది సంవత్సరాలు అనగా రెండు ఏళ్ళు క్రితం ఒక కార్ల కంపెనీ ఫ్యాక్టరీ కట్టడం ప్రారంభించింది. ఇప్పుడు పూర్తి అయింది. ఊరిలో వారికి పని దొరికింది. ప్రతి ఒక్కరు కార్ల కంపెనీలో చేరి నెలకు 5, 6 వేల రూపాయలు సంపా దించుకుంటున్నారు. ఊరిలో రవి తోటి పిల్లలు ఉద్యోగంలో చేరి డబ్బు సంపా దిస్తున్నారని తెలిసిన వారి తల్లిదండ్రులు రవిని కూడా పనిలోకి వెళ్ళమని చెప్తారు. కాని రవి నిరాకరిస్తాడు.

తల్లిదండ్రులకు తను ఐ.ఎ.ఎస్. చదివి గొప్ప వ్యక్తిగా పేరు తెచ్చుకుంటానని నచ్చచెప్పాడు. కాని తండ్రి రమాశంకర్ రవిని మందలించి పనికి పంపుతాడు. రవి దీనికి కారణం తన ఆర్థిక పరిస్థితులు అని తలచుకొని బాధపడతాడు. రవికి ఇద్దరు అక్కలు, అన్న ఉన్నారు. అన్నగారి వివాహం కోసం షావుకారు వద్ద అప్పుచేసి, దాన్ని తీర్చలేక సగం పొలం అతని పేరున వ్రాస్తారు. మిగిలిన కొద్దిపాటి పొలంలో పండించే పంటతో ఇంటిని నడుపుతున్నారు.

ఇటువంటి పరిస్థితులలో తను ఎంత చెప్పివా తల్లిదండ్రులు వినిపించుకోరని అర్థం చేసుకుని, ఫ్యాక్టరీలో స్టోరుకీపరు పనిలో చేరతాడు. కాని అతను తన మనసులో ఎంతో బాధపడుతుంటాడు. నెలకు 6 వేల రూపాయలు తన కొడుకు సంపాదిస్తున్నాడని తల్లిదండ్రులు మురిసిపోతారు. వేసవి సెలవులు రెండు నెలలు ఎలాగో గడిచిపోయాయి. ఇప్పుడు ఇంటర్ పరీక్షా ఫలితాలు వెల్లడి అయ్యాయి. రవీంద్ర ఆ జిల్లాలోనే ప్రథమ స్థానం పొందాడు. ప్రధానోపాధ్యాయుడు రవీంద్రని మెచ్చుకొని ప్రభుత్వం తరఫున మరల స్కాలర్షిప్ ఇప్పించారు. రవీంద్ర కాలేజిలో బి.ఎ. మొదటి సంవత్సరం జాయిన్ అయ్యాడు.

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ఫ్యాక్టరీలో ఉద్యోగాన్ని వదిలివేశాడు. ఆ మాట విన్న తల్లిదండ్రులకు ఎంతో కోపం వచ్చింది. రవీంద్రకు పై చదువులు చదవద్దు ఊరిలో ఉంటూ ఫ్యాక్టరీలోనే పనిచేయమని చెప్పారు. కాని రవీంద్ర ససేమిరా ఒప్పుకోడు. తండ్రి మాటలను పట్టించుకోని కారణంగా తండ్రికి కోపం వచ్చి రవీంద్రని ఇంటిలో నుండి పంపిం చివేస్తాడు.

ప్రిన్సిపాల్ ఇంటికి వెళ్ళి తన కొడుకు ఇలా అవ్వడానికి ఆయనే కారణమని తీడతారు. ప్రిన్సిపాల్ ఎంత చెప్పడానికి ప్రయత్నించిన ఒప్పుకోరు. ఊరిలో తమ పిల్లలని తమకు వ్యతిరేకంగా మారుస్తున్నాడని ఊరి వారందరికి చెప్పి, జాగ్రత్తగా ఉండమని బెదిరించి వెళ్ళిపోతారు రవీంద్ర తల్లిదండ్రులు. ఇంటిలో నుండి నెట్టివేసిన రవిని తన ఇంటిలో ఆశ్రయం కల్పించిన ప్రిన్సిపాల్ ఈ ఘటన జరిగిన తర్వాత అక్కడ నుండి వెళ్ళిపోమని చెబుతారు.

ఎటు వెళ్ళాలి అని ఆలోచించి రవీంద్ర తన కాలేజి ఉండే పట్టణానికి చేరుకు న్నాడు. కాలేజి తెరవడానికి వారం రోజులు పడుతుంది. అతనికి చదువుకు మాత్రమే స్కాలర్షిప్ వచ్చింది, ఉండటానికి కాదు. ఎక్కడ ఉండి తను చదువుకోవాలని ఆలోచిస్తాడు. పట్టణంలో ఒక ప్రాంతంలోని గుడి వద్దకు చేరుకున్నాడు. గుడిలో రాత్రి దాకా గడిపాడు. గుడి తలుపులు మూసిన తర్వాత అక్కడే మంచినీళ్ళు త్రాగి బయట పడుకున్నాడు. తింటానికి డబ్బులు కూడా లేవు. ఒంటిపై ఉన్న దుస్తులు తప్ప అతని వద్ద చిల్లిగవ్వ కూడా లేదు. గుడి గంటల శబ్దం అయిన తర్వాత కళ్ళు తెరిచి చూశాడు. ఉదయం అయినది.

కొందరు భక్తులు ప్రసాదం పంచుతుంటే రవీంద్ర ఆ ప్రసాదం తిని తన ఆకలిని తీర్చుకున్నాడు. రెండవరోజు అలానే రాత్రి అయ్యేవరకు గడిపాడు. గుడి బయట తలుపుల వద్ద నిద్రిస్తాడు. ఇది గమనించిన పూజారి రవీంద్రని నువ్వు ఎవరు? ఎందుకు రెండు రోజుల నుండి ఇక్కడే ఉంటున్నావు అని ప్రశ్నిస్తాడు. రవీంద్ర తన కథ వినిపించి తన జేబులోని స్కాలర్షిప్ పత్రాలు, కాలేజిలో చేరిన వాటి తాలుకు పత్రాలు చూపిస్తాడు. పూజారి అవి చూసి నిజం అని నమ్మి కొన్ని షరతులు పెట్టి ఇక్కడ గుడిలో ఉండటానికి అంగీకరిస్తాడు.

వేకువజామునే లేచి గుడిని శుభ్రం చేయాలి తన ఇద్దరు పిల్లలని చదివించాలని, ధార్మిక సంబంధమైన కార్యక్రమాలలో తనకి సహాయం చేయాలి అని షరతులు పెట్టాడు ఆ పూజారి. పూజారి చెప్పిన షరతులకు అంగీకరించి రవీంద్ర తన పనులు తాను ఎంతో శ్రద్ధగా చేసేవాడు. ఉండటానికి స్థలం దొరికినందుకు ఆ భగవంతునికి ధన్యవాదములు చెప్పుకున్నాడు.

కళాశాలలో పిల్లలు మంచి వస్త్రాలు ధరించి, కార్లలో వచ్చేవారు. కాని రవీంద్రుని వద్ద చిరిగిన ఒక జత బట్టలు తప్ప ఏమి లేవు. నడిచి వెళ్ళి, తిరిగి నడిచి వచ్చేవాడు. అతని దుస్తులు చూసి ఎవరు అతనితో స్నేహం చేసేవారు కారు. కాని ప్రిన్సిపల్గారు రవీంద్రకు తోడుగా ఐ.ఎ.ఎస్. కావడానికి కావలసిన విషయాలు వివరిస్తూ మంచి మార్గాన్ని చూపించేవారు.

తరగతులు జరగనప్పుడు గ్రంథాలయానికి వెళ్ళి పుస్తకాలను చదువుతూ సమయాన్ని గడిపేవాడు. అందరు రవీంద్రని పుస్తకాల పురుగు అని ఎగతాళి చేసేవారు. లెక్చరర్స్ అతనికి మంచి దారిని చూపేవారు. బి.ఎ. మొదటి సంవత్సరం పూర్తి అయింది. రవీంద్ర ఎంత మార్కులు తెచ్చుకున్నాడంటే ఇంత వరకు ఆ కళాశాల రికార్డులలో రాని అన్ని మంచి మార్కులు తెచ్చుకొని కళాశాల పేరును యూనివర్సిటీలో మారుమ్రోగించాడు. అతని మార్కులు చూసి ఇప్పుడు చదివే విద్యార్థులు అతని స్నేహితులయ్యారు. పూజారి పిల్లలు మంచి మార్కులతో ఉత్తీర్ణులు అయ్యారు.

రవీంద్ర ప్రతి విషయంలో ఎంతో జాగ్రత్తగా ఉండేవాడు. తన చదువు, పూజారి పిల్లలకు చదువు చెప్పడంలో, గుడి పనులు చేయడంలో తనకు తానే సాటి అనిపించుకున్నాడు. గుడి శుభ్రత, పనులు నచ్చి భక్తుల రాకపోకలు పెరిగాయి. గుడికి తగిన ధనం రావడం జరిగింది. ఐ.ఎ.ఎస్. మొదటి సారి వ్రాసి, మొదటి సారే విజయం సాధించాడు రవీంద్ర.

రవీంద్రని చూసి ప్రిన్సిపాల్ గారు ఎంతో గర్వపడ్డారు. తను చెప్పిన రీతిలో నడుచుకొని ఈ స్థాయికి వచ్చిన తన విద్యార్థిని కౌగలించుకొని ఆనందం వ్యక్తం చేస్తారు. ఎన్ని కష్టాలు వచ్చిన సత్యమార్గంలోనే నడవమని ఆశీర్వదిస్తారు. కలెక్టరు ట్రయినింగ్కి వెళ్ళాడు రవీంద్ర.

కలెక్టరు ట్రైనింగ్ పూర్తి అవ్వగానే ప్రతి కలెక్టరు మంచి వృద్ధిలో ఉన్న జిల్లాలని ఎంచుకున్నారు. కాని రవీంద్ర తమ వెనుకబడిన జిల్లాని ఎంచుకున్నాడు. ఆ జిల్లా కలెక్టరుగా అతనికి ప్రభుత్వం ఆదేశాలు జారీ చేసింది. కలెక్టరు అయ్యాక రవీంద్ర తన మొదటి పనిగా తన ఊరికి వంతెన పక్కాగా (గట్టిగా కట్టాలని ఆదేశించాడు. కలెక్టరు ఆదేశాల మేరకు గట్టి వంతెన కట్టారు. రవీంద్ర తల్లిదండ్రులు 5 సంవత్సరాల తర్వాత కొడుకు కలెక్టరు అయ్యాడని తమ ఊరికే వస్తున్నాడని తెలుసుకొని ఆనందించారు. ప్రిన్సిపాల్ వద్దకు వెళ్ళి ఆయనని దూషించినందుకు క్షమాపణ వేడుకుంటారు.

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మీ ఊరి వారందరు అజ్ఞానాన్ని వదిలి, పిల్లలను చక్కగా చదివిస్తే అదే తను వారిని క్షమించినట్లుగా అని చెప్పారు. ఎంతో మంది ఊరి పిల్లలకు ఆ ప్రాంతంలోని గ్రామీణ విద్యార్థులకు రవీంద్ర ఆదర్శప్రాయుడు అని ప్రిన్సిపాల్ చెపుతారు. ఆరోజు తల్లిదండ్రుల మాట వింటే రవీంద్ర క్లర్క్ గానే ఉండేవాడని ఇంత గొప్ప పదవి పొందేవాడు కాదని ప్రిన్సిపాల్ అందరితో చెప్తారు.

రవీంద్ర తల్లిదండ్రులు తమ బిడ్డ తమని మన్నిస్తాడా లేదా అని మనసులో బాధపడుతుంటారు. రవీంద్ర కారులో వంతెన దాటి ఊరిలో అడుగుపెడతాడు. 5 సంవత్సరాల తర్వాత వచ్చిన రవీంద్రను చూసి ఊరిలో అందరు సంతోషించి, సత్కరిస్తారు. రవీంద్ర తల్లిదండ్రుల వద్దకు వచ్చి ప్రేమగా వారిని కౌగిలించుకుంటాడు. ముగ్గురి కళ్ళలో ఎంతో ప్రేమ, ఆత్మీయత కన్పిస్తాయి.

ఈ కథ ద్వారా మనం తెలుసుకున్నది ఏమిటంటే కష్టపడితే ఏదైనా సాధించవచ్చు. ఎన్ని అవరోధాలు వచ్చినా దాటవచ్చు. విద్య ఎంతటి వారినైన గొప్ప వ్యక్తిగా మారుస్తుంది. దయవుంచి అటువంటి అజ్ఞానంలో ఉండే తల్లిదండ్రులలో మార్పు రావాలని ఆశిద్దాం. భావి తరాల వారికి మంచి విద్య అందించి గొప్పవారిగా మారుద్దాం.

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