Telangana TSBIE TS Inter 1st Year Hindi Study Material 4th Lesson अपराजिता Textbook Questions and Answers.
TS Inter 1st Year Hindi Study Material 4th Lesson अपराजिता
दीर्घ समाधान प्रश्न
नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर तीन – चार वाक्यों में दीजिए ।
प्रश्न 1.
चंद्रा की किस विषय में रुचि थी ? वह क्या बनना चाहती थी ?
उत्तर:
चंद्रा की रुचि डॉक्टरी में थी । वह एक डॉक्टर बनना चाहती थी। परीक्षा में सर्वोच्च स्थान प्राप्त करने पर भी चंद्रा को मेडिकल में प्रवेश नही मिला क्यों कि उसकी निचला धड़ निर्जीव है। चंद्रा एक सफल शल्य चिकित्सक नही बन पायेगी । बडी डॉक्टर बनना ही चंद्रा की इच्छा थी। डॉ. चंद्रा के प्रोफेसर कहते है कि – “विज्ञान की प्रगती में चंद्रा महान योगदान दिया है । “चिकित्सा ने जो खोया है, वर विज्ञान ने पाया है ।” इसका अर्थ डाक्टर बनकर चिकित्सा क्षेत्र में जो काम चंद्रा करना चाहती थी, वह विज्ञान में करके दिखायी थी ।
प्रश्न 2.
चंद्रा की माँ को ‘वीर जननी’ का पुरस्कार क्यों दिया गया ?
उत्तर:
चंद्रा की माँ श्रीमती टी. सुब्रह्मण्यम थी। वह एक साहसी जननी है । चंद्रा की माध्यमिक और काँलेज शिक्षा में बेटी के साथ रहकर पूरी कक्षाओं में अपंग पुत्री की कुर्सी की परिक्रमा स्वयं कराती । बचपन में चंद्रा को देखकर अपनी आत्मशक्ति खो नही बेटी । अपने आप को संभाल कर चंद्रा को भी संभाली। हर एक पल बोटी की कामना पूरी करने की कोशिश किया । चंद्रा की माँ अपने सारे सुख त्यागकर, नित्य छायाबनी । आज चंद्रा जो कुछ नाम प्राप्त किया सबकी वजह उसकी माँ ही है । इसलिए जे. सी. बेंगलूर उसकी माँ को ‘वीर जननी’ का पुरस्कार दिया । सचमुच चंद्रा की माँ एक वीर जननी है ।
एक शब्द में उत्तर दीजिए
प्रश्न 1.
चंद्रा की कार कौन चलाती थी ?
उत्तर:
चंद्रा की माँ, श्रीमती टी. सुब्रह्मण्यम कार चलाती थी ।
प्रश्न 2.
कौन डॉक्टर बनना चाहती थी ?
उत्तर:
चंद्रा ।
प्रश्न 3.
चंद्रा की माँ को कौन-सा पुरस्कार दिया गया ?
उत्तर:
‘वीर जननी’ ।
प्रश्न 4.
‘अपराजिता पाठ की लेखिका का नाम क्या है ?
उत्तर:
गौरा पंत ‘शिवानी जी है ।
प्रश्न 5.
डाँ. चंद्रा को शोधनाकार्य में निर्देशन कौन दिया ?
उत्तर:
प्रोफेसर सेठना ।
प्रत्येक सामान्य व्यक्ति की भाँति विकलांग व्यक्तियों में भी । प्रतिभा विद्यमान होती है और उनमें आगे बढ़ने का उत्साह भी भरपूर होता है ।
संदर्भ सहित व्याख्याएँ
प्रश्न 1.
मेधावी पुत्री की विलक्षण बुद्धि ने फिर मुझे चमत्कृत कर दिया है। सरस्वती जैसे आकर जिह्वाग्र पर बैठ गयी थी ।
उत्तर:
संदर्भ : यह वाक्य ‘अपराजिता नामक कहानी से दिया गया है । इसकी लेखिका ‘गौरा पंत शिवानी जी है । भारत सरकार ने सन् 1982 में उन्हे हिंदी साहित्य में उत्कृष्ट सेवा के लिए पद्ममश्री पुरस्कार से सम्मानित किया । शिवानी जी की अधिकरतर कहानियाँ और उपन्यास नारी प्रधान रहे । प्रस्तुत कहानी अपराजिता में लेखिका ‘डाँ. चंद्रा’ नामक एक अपंग युवती की जीवन संबंधी विषयों के बारे में हमें बतायी ।
व्याख्या : डॉ. चंद्रा की माँ श्रीमती टी. सुब्रह्मण्यम चंद्रा के बारे में इस तरह कह रही है कि – “चंद्रा की अठारह वी महीने में ज्वर आया । बाद में पक्षाघात हुआ । गरदन के नीचे सर्वांग अचल हो गया था । बड़े-से-बड़े डाक्टर को दिखाया, कोई लाभ नही हुआ । अंत में एक सुप्रसिद्ध आर्थोपेडिक के पास लेगया । एक वर्ष तक कष्टसाध्य उपाचार चला अचानक एक दिन चंद्रा की ऊपरी धड़ में गति आगयी’ । पाँच वर्ष तक (टी श्रीमती सुब्रह्मण्यम ) माँ ही बेटी को शिक्षिका बनकर पढायी । चंद्रा बहुत मेथावी थी। चंद्रा की विलक्षण बुद्धि को देखकर अपनी माँ आश्चर्य हो जाती थी । स्वयं सरस्वती ही चंद्रा की जिह्वा पर बैठी थी ऐसी सोचती थी। चंद्रा एक बार सुनती तो कभी नही भूलती थी । चंद्रा ‘एकाग्रचित्र’ थी ।
विशेषताएँ :
- अपंगों को शिक्षा से जोड़ना बहुत जरूरी है ।
- शिवानी की कृतियों में चरित्र – चित्रण में एक तरह का आवेग दिखाई देता है ।
- डाँ. चंद्रा जैसे अपंग युवती सबकी मार्गदर्शिका है ।
प्रश्न 2.
ईश्वर सब द्वार एक साथ बंद नहीं करता । यदि एक द्वार बंद करता भी है, तो दूसरा द्वार खोल भी देता है ।
उत्तर:
संदर्भ : यह वाक्य ‘अपराजिता’ नामक कहानी से दिया गया है । इसकी लेखिका ‘गौरा पंत शिवानी जी है । भारत सरकार ने . सन् 1982 में उन्हे हिंदी साहित्य में उत्कृष्ट सेवा के लिए पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया। शिवानी जी की अधिकतर कहानियाँ और उपन्यास नारी प्रधान रहे । प्रस्तुत कहानी ‘अपराजिता’ में लेखिका ‘डाँ. चंद्रा’ नामक एक अपंग युवती की जीवन संबंधी विषयों के बारे में हमें बतायी ।
व्याख्या : डॉ. चंद्रा अपनी दुस्थिति पर कभी असंतुष्ठ नही होती । भगवान को भी कभी निंदा नही करती थी । चंद्रा की माँ अपने सारे सुख त्यागकरके बेटी की उन्नती चाही । चंद्रा की माँ एक बार भाषण में इस प्रकार कहती है कि “भगवान हमारे सब द्वार एक साथ बंद नही करता । यदि भगवान एक रास्ता बंद करता भी है, तो दूसरा रास्ता हमें दिखायेगा'” । भगवान अंतर्यामी है । मानव अपनी विपत्ति के कठिन क्षणें में विधाता को दोषी कहते हैं । उसका निंदा भी करते हैं । कृपा करके ऐसा कभी नही सोचिए । हमारे जीवन में कितने मुश्किलों आने पर भी धैर्य से उसके सामना करना होगा ।
विशेषताएँ :
- भगवान हमेशा दीन लोगों की सहायता करता है ।
- तुम एक रास्ते पर मंजिल तक जाना चाहते हो, अचानक उस रास्ता बन्द हो तो, जरूर दूसरा रास्ता खोज देंगे ।
- भगवान अपंग लोगों को एक अंग से वंचित करने पर भी दूसरे अंगों की क्षमता इस प्रकार देगा कि सामान्य से अधिक होगा ।
अपराजिता Summary in Hindi
लेखिका परिचय
गौरा पंत हिंदी की प्रसिद्ध उपन्यासकार हैं । वे ‘शिवानी’ उपनाम से लिखा करती थी । उनका जन्म सन् 1923 में गुजरात के पास राजकोट शहर में हुआ था। शिवानी के पिता श्री अश्विनीकुमार पाण्डे राजकोट में स्थित राजकुमार कॉलेज के प्रिंसिपल थे, जो कालांतर में माणबदर और रामपुर की रियासतों में दीवान भी रहे । शिवानी के माता और पिता दोनों ही विद्वान संगीत प्रेमी और कई भाषाओं के ज्ञाता थे । शिवानी ने पश्चिम बंगाल के शांति निकेतन से बी.ए. किया ।
साहित्य और संगीत के पति एक गहरा रूझान ‘शिवानी’ को अपने माता और पिता से ही मिला । शिवानी के पितामह संस्कृत के प्रकांड विद्वान पंडित हरिराम पांडे, जो बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में धर्मोपदेशक थे । महामना मदनमोहन मालवीय से उनकी गहरी मित्रता थी । वे प्रायः अल्मोड़ा तथा बनारस में रहते थे, अतः शिवानी का बचपन अपनी बड़ी बहन तथा भाई के साथ दादाजी की छत्रछाया में उक्त स्थानों पर बीता । शिवानी की किशोरावस्था शान्तिनिकेतन में और युवावस्था अपने शिक्षाविद पति के साथ उत्तरप्रदेश के विभिन्न भागों में बीती ।
उनका निधन सन् 2003 शिवानी की नामचीन रचनाएँ इस प्रकार हैं- ‘कृष्णकली’, ‘कालिंदी’, ‘अतिथि’, ‘पूतों वाली’ । ‘चल खुसरों घर आपने’, ‘श्मशान चंपा’, ‘मायापुरी’, ‘कैंजा’, ‘गेंदा’, ‘भैरवी’, ‘स्वयंसिद्धा’, ‘विषकन्या’, ‘रतिविलाप’, ‘आकाश’ (सभी उपन्यास), ‘चरैवैति’, ‘यात्रिक’ (सभी यात्रा विवरण ), शिवानी की श्रेष्ठ कहानियाँ’, ‘शिवानी की मशहूर कहानियाँ’; ‘झरोखा’ ‘मृण्माला की हँसी (सभी कहानी संग्रह), ‘अमादेर शांति निकेतन’, ‘समृति कलश’, ‘वातायन’, ‘जालक’ (सभी संस्मरण), ‘सुरंगमा’, ‘रतिविलाप’, ‘मेरा बेटा’, ‘तीसरा बेटा’ (सभी धारावाहिक), ‘सुनहुँ तात यह अमर कहानी (आत्मकथा) ।
भारत सरकार ने सन् 1982 में उन्हें हिंदी साहित्य में उत्कृष्ट सेवा के लिए पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया। हिंदी साहित्य जंगत में शिवानी एक ऐसी शख्सियत रहीं, जिनकी हिंदी, संस्कृत, गुजराती, बंगाली, उर्दू तथा अंग्रेज़ी पर अच्छी पकड़ थी और जो अपनी कृतियों में उत्तर भारत के कुमायूँ क्षेत्र के आसपास की लोक संस्कृति की झलक दिखलने और किरदारों के बेमिसाल चरित्र करने के लिए जानी गई । उनकी अधिकतर कहानियाँ और अन्यास नारी प्रधान रहे । इसमें उन्होंने नायिका के सौंदर्य और उसके चरित्र का वर्णन बड़े रोचक ढंग से किया ।
गौरा पंत हिन्दी की प्रसिद्ध उपन्यासकार हैं। वे ‘शिवानी’ उपनाम से लिखा करती थी । शिवानी ने पश्चिम बंगाल के शांति निकेतन से बि.ए. किया । साहित्य और संगीत के प्रति एक गहरा रूझान ‘शिवानी’ को अपने माता और पिता से ही मिला । भारत सरकार ने सन् 1982 में उन्हें हिंदी साहित्य में उत्कृष्ट सेवा के लिए पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया । उनकी अधिकतर कहानियाँ और उपन्यास नारी प्रधान रहे । इसमें उन्होंने नायिका के सौंदर्य और उसके चरित्र का वर्णन बड़े रोचक ढंग से किया ।
सारांश
‘अपराजिता’ नामक कहानी में लेखिका हमें ‘चंद्रा’ नामक एक युवती की जीवन के बारे में बतायी । ‘चंद्रा’ एक अपंग स्त्री है, जिन्होंने 1976 में माइक्रोबायोलाजी में डाक्टरेट मिली हैं। अपंग स्त्री पुरुषों में इस विषय में डॉक्टरेट पानेवाली डॉ. चंद्रा प्रथम भारतीय है।
डॉ. चंद्रा के बारे में अपनी माँ इस प्रकार बता रही है कि “चंद्रा के बचपन में जब हमें सामान्य ज्वर के चौथे दिन पक्षाघात हुआ तो गरदन के नीचे सर्वांग अचल हो गया था । भयभीत होकर हमने इसे बडे – से – बडे डाक्टर को दिखाया । सबने एक स्वर से कहा आप व्यर्थ पैसा बरबाद मत कीजिए आपकी पुत्री जीवन भर केवल गरदन ही हिला पायेगी । संसार की कोई भी शक्ति इसे रोगमुक्त नही कर सकती” । चंद्रा के हाथों में न गति थी, न पैरों में फिर भी माँ-बाप होने के नाते हम दोनों आशा नही छोडी, एक आर्थोपेडिक सर्जन की बडी ख्याति सुनी थी, वही ले गये ।
वहा चंद्रा को एक वर्ष तक कष्टसाध्य उपचार चला और एक दिन स्वयं ही इसके ऊपरी धड़ में गति आ गयी । हाथ हिलने लगे, नन्हीं उँगलियाँ माँ को बुलने लगी। निर्जीव धड़ से ही चंद्रा को बैठना सिखाया । पाँच वर्ष की हुई, तो माँ ही इसका स्कूल बनी । चंद्रा मेधावी थी । बेंगलूर के प्रसिद्ध माउंट कारमेल में उसे प्रवेश मिली । स्कूल में पूरी कक्षाओं में अपंग पुत्री की कुर्सी की परिक्रमा उसकी माँ स्वयं करती । प्रत्येक परीक्षा में सर्वोच्च स्थान प्राप्त कर चंद्रा ने स्वर्ण पदक जीते ।
बि.एस. सी किया । प्राणि शास्त्र में एम. एस. सी में प्रथम स्थान प्राप्त किया और बेंगलूर के प्रख्यात इंस्टिटयूट ऑफ साइंस में अपने लिए स्पेशल सीट अर्जित की । केवल अपनी निष्ठा, धैर्य एवं साहस से पाँच वर्ष तक प्रोफेसर सेठना के निर्देशन में शोधकार्य किया । सब लोग चंद्रा जैसी हँख मुख लडकी को देख अचरज हो जाते । लेखिका चंद्रा को पहली बार अपनी कोठी का अहाते में जुड़ा एक कोठी में कार से उतरते देखा । तो आश्चर्य से देखती ही रह गयी । ड्राइवर हवील चेयर निकालकर सामने रख दी कार से एक युवती ने अपने निर्जीव निचले धड़ को बडी दक्षता से नीचे उतरता, फिर बैसाखियों से ही ह्वील चेयर तक पहुँच उसमें बैठ गयी।
बड़ी तटस्थता से उसे स्वयं चलाती कोठी के भीतर चल गयी थी । छीरे-धीरे लेखिका को उससे परिचय हवा । चंद्रा की कहानी सुना तो लेखिका दंग रह गयी । चंद्रा लेखिका को किसी देवांगना से कम नही लगी । चंद्रा विधाता को कभी निंदा नही करती । आजकल वह आई.आई.टी मद्रास में काम कर रही है । गर्ल गाइड में राष्ट्रपति का स्वर्ण काई पानेवाली वह प्रथम अपंग बालिका थी । यह नही भारतीय एंव प्राश्चात्य संगीत दोनों में उसकी समान रुचि है ।
डॉ. चंद्रा के प्रोफेसर के शब्दों में “मुझे यह कहने में रंच मात्र भी हिचकिटहट नही होती कि डाँ चंद्रा ने विज्ञान की प्रगति में महान योगदान दिया है । चिकितसा ने जो खोया है, वह विज्ञान ने पाया है । चंद्रा के पास एक अलबम था । चंद्रा के अलबम के अंतिम पृष्ठ में है उसकी जननी का बड़ा सा चित्र जिसमें वे जे सी बेंगलूर द्वारा प्रदत्त एक विशिष्ट पुरस्कार ग्रहण कर रही हैं- “वीर जननी का पुरस्कार” । लेखिका के कानों में उस अद्भुत साहसी जननी शारदा सुब्रह्मण्यम के शब्द अभी भी जैसे गूँज रहे हैं – “ईश्वर सब द्वार एक साथ बंद नही करता । यदि एक द्वार बंद करता भी है, तो दूसरा द्वार खोल भी देता है” । इसलिए अपनी विपत्ति के कठिन क्षणों में विधाता को दोषी नही ठहराता ।
लेखिका चंद्रा जी के बारे में इस तरह कह रही है कि – “जन्म के अठारहवे महीने में ही जिसकी गरदन से नीचे पूरा शरीर पोलियो ने निर्जीव कर दिया हो, इसने किस अद्भुत साहस से नियति को अंगूठा दिखा अपनी थीसिस पर डाक्टरेट ली होगी ? उसकी आज की इस पटुता के पीछे है एक सुदीर्घ कठिन अभ्यास की यातनाप्रद भूमिका”। स्वयं डॉ. चंद्रा के प्रोफेसर के शब्दों में “हमने आज तक दो व्यक्तियों द्वारा सम्मानित रूप में नोबेल पुरस्कार पाने के ही विषय में सुना था, किंतु आज हम शायद पहली बार इस पी. एच. डी के विषय में भी कह सकते हैं ।
देखा जाय तो यह डाक्टरेट भी संयुक्त रूप में मिलनी चाहिए डॉ. चंद्रा और उनकी अद्भुत साहसी जननी श्रीमति टी. सुब्रह्मण्यम को । लेखिका कहती है कि कभी सामान्य सी हड्डी टूटने पर था पैर में मोच आ जाने पर ही प्राण ऐसे कंठगात हो जाते हैं जैसे विपत्ति का आकाश ही सिर पर टूट पड़ा है और इधर यह लड़की चंद्र को देखो पूरा निचला धड़ सुन्न है फिर भी कैसे चमत्कार दिखायी । सब लोग डॉ. चंद्र से बहुत सीखना है। कभी जीवन में निराश नही होना चाहिए । जितने भी कष्ट आने पर भी, सभी को हसते हुए झेलकर अपना मंजिल तक पहुँचना ही इस कहानी का उद्देश्य है ।
विशेषताएँ :
- आधुनिक होने का दावा करनेवाला समाज अब तक अपंगों के प्रति अपनी बुनियादी सोच में कोई खास परिवर्तन नहीं ला पाया है ।
- अधिकतर लोगों के मन में विकलांगों के प्रति तिरस्कार या दया भाव ही रहता है, यह दोनों भाव विकलांगों के स्वाभिमान पर चोट करते हैं ।
- अपंगों को शिक्षा से जोड़ना बहुत जरूरी है ।
- अपंगों ने तमाम बाधाओं पर काबू पा कर अपनी क्षमताएं सिद्ध की है ।
- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले साल 27 अंदिसंबर को अपने रेडियो संबोधन ‘मन की बात’ में कहा था कि शारीरिक रूप से अशक्त लोगों के पास एक दिव्य क्षमता है और उनके लिए अपंग शब्द की जगह ‘दिव्यांग’ शब्द का इस्तेमाल किया जाना चाहिए ।
- अपंत लोगों को केवल सहयोग चाहिए, सहानुभूति को भीख
अपराजिता Summary in Telugu
సారాంశము
ప్రస్తుతం మనం చదువుకుంటున్న ‘అపరాజిత’ అను ఈ కథను శివానీ గారు రచించిరి. అపరాజిత అనే ఈ కథలో శివాని గారు మనకు డాక్టర్. చంద్ర అనే యువతి జీవితమును గురించి తెలియచేశారు. చంద్ర ఒక వికలాంగ యువతి. చంద్రకు 1976వ సంవత్సరంలో మైక్రోబయాలజీలో డాక్టరేట్ లభించింది. వికలాంగ యువతీ యువకులలో ఈ విషయంలో డాక్టరేట్ పొందిన మొదటి భారతీయురాలు. డాక్టర్ చంద్ర గురించి వారి తల్లిగారు ఈ విధంగా చెబుతున్నారు.
‘చంద్ర చిన్నతనంలో సుమారు 18 నెలల వయసులో సామాన్య జ్వరంగా వచ్చిన జ్వరం నాల్గవ రోజు చంద్ర అవయవాలు ఏమి కదలలేని స్థితికి తీసుకువచ్చింది. మెడ నుండి క్రింద ఉన్న అవయవాలు ఏమి కదపలేని స్థితి. భయంతో చంద్ర తల్లిదండ్రులమైన మేము ఎందరో డాక్టర్లకు చూపించాము. అందరు డాక్టర్లు మీరు అనవసరంగా డబ్బు వృధా చేస్తున్నారు. మీ అమ్మాయి కేవలం జీవితాంతం మెడ తప్ప ఏది కదిలించలేదని చెప్పారు. ప్రపంచంలో ఏ శక్తి మీ అమ్మాయిని బాగు చేయలేదని వివరించారు.
చంద్ర చేతులలో, కాళ్ళలో ఎటువంటి చలనం లేదు. తల్లిదండ్రులు ఆశ వదలలేదు. ప్రఖ్యాతిగాంచిన ఆర్థోపెడిక్ డాక్టరు వద్దకు తీసుకు వెళ్ళారు. ఒక సంవత్సరం చికిత్స జరిగింది. ఒకరోజు చంద్ర స్వయంగా మెడ మరియు కాళ్ళ మధ్య శరీరంలో చలనం వచ్చింది. చేతులు ఊపి నన్ను పిలిచింది. ఎంతో కష్టం మీద చంద్రకి కూర్చోవడం నేర్పించాను. 5 సంవత్సరాల వరకు అమ్మ అయిన నేనే ఆమె టీచరుని చంద్ర తెలివిగలది. బెంగుళూరులోని ప్రసిద్ధి చెందిన మౌంట్ కార్మెల్ అనే పాఠశాలలో ప్రవేశం దొరికింది.
తన తల్లి శ్రీమతి సుబ్రమణ్యం ప్రతి క్లాసులో ఆమెతో ఉండి ఆమె వీల్చెయిర్ని తిప్పుతూ ఉండేది. ప్రత్యేక పరీక్షలో చంద్రకి మంచి ర్యాంకు వచ్చింది. స్వర్ణపతకం సాధించింది. బి.యస్.సి. చేసింది. ప్రాణిశాస్త్రంలో యమ్.ఎస్.సి.లో ప్రథమ స్థానం పొందింది. బెంగుళూరులోని ప్రఖ్యాతి గాంచిన ఇన్స్టిట్యూట్ ఆఫ్ సైన్స్లో స్పెషల్ సీటు సంపాదించింది. తన నిష్ఠ, ధైర్యం మరియు సాహసంతో 5 సంవత్సరాలు ప్రొఫెసర్ సెఠానా గారి ఆధ్వర్యంలో శోధన చేసింది. అందరూ ఆమె యొక్క సంతోషకరమైన ముఖం చూసి ఆశ్చర్యపోయేవారు. ఆమెకు అంగవైకల్యం ఉన్నది అని ఎవరూ అనేవారు కాదు.
మన రచయిత్రి మొదటిసారిగా తన బంగళా ప్రక్క ఉన్న బంగళాలో కారు నుండి దిగడం చూసింది. డ్రైవరు వీలెయిర్ తీసి ముందు ఉంచాడు. కారు నుండి ఒక యువతి తన నిర్జీవమైన క్రింద భాగంతో చాలా నేర్పుగా క్రిందికి దిగి చేతికర్రల సహాయంతో వీలెయిర్ దాకా వెళ్ళింది. తనకు తానే వీల్చెయిర్ నడుపుకుంటూ లోపలికి వెళ్ళింది. ఆమె పేరు చంద్ర. మెల్లమెల్లగా రచయిత్రికి ఆమెకు పరిచయం ఏర్పడింది. చంద్ర కథ విన్న రచయిత్రి ఆశ్చర్యచకితురాలు అయ్యింది.
చంద్ర రచయిత్రి కళ్ళకి దేవతా స్త్రీవలె అనిపించింది. చంద్ర ఏనాడు భగవంతుని తిట్టలేదు. సామాన్యంగా మనుషులు ఎప్పుడైనా తమకి కష్టం వస్తే భగవంతుని నిందిస్తుంటారు. కాని (తనకి) చంద్రకి భగవంతుడు అంత అన్యాయం చేసినా ఏరోజూ బాధపడలేదు. భగవంతుడిని నిందించలేదు. మద్రాసు ఐ.ఐ.టి.లో ఆమె పనిచేస్తుంది. గర్ల్డ్లో రాష్ట్రపతి ద్వారా బంగారు కార్డు పొందిన మొదటి వికలాంగురాలు. (ఆమెకు) చంద్రకి భారతీయ మరియు పాశ్చాత్య సంగీతము అంటే చాలా ఇష్టం.
చంద్ర యొక్క ప్రొఫెసర్ గారు చంద్ర విజ్ఞానశాస్త్రంలో చేసిన కృషిని ఎంతో గొప్పగా మెచ్చుకున్నారు. చికిత్స పరంగా తాను పోగొట్టుకున్నది, విజ్ఞానపరంగా సాధించినది అని చెప్పారు. చంద్ర వద్ద ఒక ఆల్బమ్ ఉన్నది. దానిలో చివర ఆమె తల్లి ఫోటో పెద్దది ఉంది. ఆమె తల్లిని మెచ్చుకుంటూ జె.సి. బెంగుళూరు వారు ఒక బహుమానాన్ని మరియు వీరజనని అను బిరుదు ఇచ్చారు. చంద్ర తల్లి ఒక సభలో చెప్పిన మాటలు రచయిత్రికి ఇప్పటికి గుర్తు ఉన్నాయి.
ఆ వాఖ్యాలు ఏమిటంటే భగవంతుడు ఒక ద్వారం మూసివేస్తే, వేరొక ద్వారం మనకి చూపిస్తారు. చంద్ర తన శరీరం లోపం గురించి ఆలోచించక కష్టపడి డాక్టరేట్ సంపాదించింది. ఆమె యొక్క ఈ స్థాయి వెనుక ఎంత నిష్ఠ, కఠిన శ్రమ ఉండవచ్చు. ఒక్కసారి మనము అందరం ఆలోచిద్దాం. చంద్ర గొప్ప స్థాయికి రావడానికి ఆమె తల్లి యొక్క సహనం మరియు పట్టుదల కారణం అయి ఉండవచ్చు. అటువంటి గొప్ప వ్యక్తి చంద్ర నుండి సామాన్యులమైన మనం ఎన్నో విషయాలు నేర్చుకోవాలి. ప్రతి పనిలో కష్టం ఉంటుంది. కష్టాన్ని ఎదిరించి ఎవరైతే ముందుకు వెళతారో వారు జీవితంలో ఉన్నత శిఖరాలను చేరుకుంటారు.
कठिन शब्दों के अर्थ
अपराजिता = Never been conquered, ఎల్లప్పుడు జయిం చునది, గెలిచేది, సాధించేది.
विलक्षण व्यक्तित्व = eccentric personality, విపరీతమైన వ్యక్తిత్వం.
रिक्तता = gap, vacuity, సందు, శూన్యము.
अंतर्यामी = God, భగవంతుడు
वंचित करना = victimise, deprive, బాధితురాలి, అందకుండా.
विधाता = God, Lord, భగవంతుడు
विपत्ति = Adversity, కష్టాలలో
अभिशप्तकाया = doomed body, cursed body, విచారకంగా శరీరం, శాపగ్రస్త శరీరం
नतमस्तक = bow ones head, తల నుండి కాలివరకు.
हवील चेयर = wheel chair, వీల్చైర్
बैसाखियों = gutches, కుంటివారు నడుచుటకు ఉపయోగించు కర్రలు చంకకర్రలు.
कोठी = mansion, భవనం, గొప్ప ఇల్లు.
नशे की गोलियाँ = inebriated drugs, త్రాగు, మత్తుమందులు.
निष्प्राण = without vitality, నిస్తేజముగా, ప్రాణంలేకుండా.
महत्वकांक्षाएँ = aspirations, ఆకాంక్షలు
जिजीविष = strong wish, గట్టి నమ్మకం.
फैलोशिप = fellowship, ఫెలోషిప్
मोच आजाना = sprain, strain, బెణుకుట
सुन्न = waste, వ్యర్థం
फड़क = pulsation, రక్తనాళ స్పందన.
नक्शा = map, figure, చిహ్నం
निर्जीव = soulless, dead, అంతరాత్మలేని, మరణించిన.
प्रयोगशाला = laboratory, ప్రయోగశాల
संचालन = operate, ఆపరేట్
निबटना = to complete, to befulfilled, పూర్తిచేయు
सुदीर्घ कठिन = hard work, కష్టపడి పనిచేయుట
अभ्यास = practise, అభ్యసించుట
अचल हो जाना = immovable, motionless, నడవలేనటువంటి
अभिशाप = curse, శపించుట
उपचार = nursing, treatment, చికిత్సచేయు, సపర్యలు చేయుట.
बावजूद = despite, ఉన్నప్పటికీ
हँसमुख = cheerful, joyous, సంతోషకరమైన
सुगमता = easy, తేలికగా.
पीरियड = period, కాలం
आँखे भरना = आँसू टपकने को होना – కన్నీరు కార్చుట (लोकोक्ति)
कढ़ाई – बुनाई = embroidery, fancy work, ఎంబ్రాయిడరీ వర్క్
सलामी देना = salute, వందనం
शल्य चिकितसक = surgeons, సర్జన్లు
हिचकिचाहट = flatering hesitancy, సంకోచం
पुरस्कार = gift, బహుమానం
त्याग = sacrifice, త్యాగభావన