Telangana TSBIE TS Inter 2nd Year Hindi Study Material 2nd Poem बिहारी के दोहे Textbook Questions and Answers.
TS Inter 2nd Year Hindi Study Material 2nd Poem बिहारी के दोहे
लघु प्रश्न (లఘు సమాధాన ప్రశ్నలు)
प्रश्न 1.
बिहारी का संक्षिप्त परिचय लिखिए ।
उत्तर:
कवि का नाम = बिहारीलाल
जीवनकाल = सन् 1603-1664
जन्म स्थान = ग्वालियर के बसुआ गोविंदपुर नामक गाँव
पिता का नाम = केशवराय
दोहे के प्रकार = श्रृंगारपरक नीति एवं भक्ति के
रचनाओं के पक्ष = भावपक्ष और कलापक्ष
शास्त्रों में निपुण = ज्योतिष, गणित, वास्तु, चित्रकला एवं शिल्पकला
साहित्यिक भाषा = ब्रज भाषा
रचना काल = रीतिकाल
प्रश्न 2.
बिहारी के अनुसार दुःख में हमें किस तरह रहना चाहिए ।
उत्तर:
बिहारी के अनुसार हम दुःख में दुःख भरी लंबी साँस मत लेना चाहिए । दुःख में धीरज धर लेना चाहिए । दुःख को दूर करने का उपाय सोचना चाहिए ताकि दुःख दूर हो जाए। भगवान ने हमें सुख और दुःख दोनों दिया है । उसे सहर्ष स्वीकार करना चाहिए ।
एक वाक्य प्रश्न (ఏక వాక్య సమాధాన ప్రశ్నలు)
प्रश्न 1.
बिहारी की रचना का नाम लिखिए ।
उत्तर:
“सतसई”
प्रश्न 2.
बिहारी की भाषा क्या थी ?
उत्तर:
ब्रज भाषा
प्रश्न 3.
बिहारी किनके दरबारी कवि थे ?
उत्तर:
जयपुर के राजा जयसिंह के
प्रश्न 4.
बिहारी किस काल के कवि थे ?
उत्तर:
रीतिकाल के
दोहे (దోహాలు)
1. मेरी भव बाधा हरौ, राधा नागरि सोय ।
जा तन की झांई परै, स्यामु हरित – दुति होय ॥
शब्दार्थ :
भव – बाधा = सांसारिक दुःख, సంసార దుఃఖము
नागरी = चतुर, తెలివిగల
सोइ = वही, అతడే, అదే, ఆమే ,
जा = जिसके, ఎవరి యొక్క
झांई परै = परछाई पड़ते ही, झलक पड़ते ही, ध्यान करते ही, నీడ పడటంతోనే, ప్రకాశించడంతోనే, శ్రద్దపెట్టడంతోనే
स्यामु = श्याम रंगवाले कृष्ण, మేఘవర్ణుడైన కృష్ణుడు
हरित – दुति = हरे रंग वाले, प्रसन्न, ఆకుపచ్చ రంగు గల, సంతోషం
भाव : चतुर राधा सांसारिक पीडाओं को दूर करती है। वह इतनी प्रभावशाली है कि उनकी पीले रंग की परछाई पडने मात्र से श्याम रंग के श्रीकृष्ण उज्जवल हरे रंग में बदल जाते हैं ।
భావము : వివేకి అయిన రాధ సంసార బాధలను దూరం చేస్తుంది. ఆమె ఎంత ప్రభావశాలి అంటే ఆమె యొక్క పసుపు వర్ణశరీర ఛాయ పడినంతనే నల్లని వర్ణం గల శ్రీకృష్ణుడు ప్రకాశవంతమైన ఆకుపచ్చ వర్ణంలోకి మారిపోతాడు.
2. बड़े न हुजै गुननु बिनु, बिरद बड़ाई पाइ ।
कहत धतूरे सौं कनकु, गहनौ गढ्यौ न जाइ ॥
शब्दार्थ :
गुननु बिनु = गुणों के बिना, గుణములు లేని
बिरद = कोरी प्रशंसा से भरी हुई बड़ाई, ప్రశంసతో కూడిన గొప్పదనం
कनक = धतूरा, ఉమ్మెత్త పూవు
कनक = सोना, బంగారం
भाव : बिना गुणों के केवल कोरी प्रशंसा से भरी हुई बड़ाई प्राप्त करके कोई भी आदमी बडा नहीं हो सकता । जैसे धतुरे का एक नाम कनक भी है और सोने को भी कनक कहते हैं, तो धतुरे को कनक कहने से उससे आभुषण नहीं बनाए जा सकते ।
భావము : ఎటువంటి గుణములు లేకుండా కేవలం పనికిరాని పొగడ్తలతో నిండివున్న గొప్పతనాన్ని కలిగిన ఏ వ్యక్తి కూడా గొప్పవాడు కాలేడు. ఎలాగంటే, ధతూరే (ఉమ్మెత్తపూ)కి మరొక పేరు “కనక్”. సోనా (బంగారం) ని కూడా “కనక్” అని అంటారు. అయితే ధత:రే (ఉమ్మెత్తపూవు) ని కనక్ అని పిలిచినందువల్ల దానితో బంగారు ఆభరణాలు తయారుచేయలేము.
3. दीघ साँस न लेहु दुःख, सुख साईहिं न भूल ।
दई दई क्यों करत है, दई दई सु कबूल ॥
शब्दार्थ :
दीर्घ = दीर्घ, दुःखभरी लंबी लंबी, దీర్ఘమైన
साई = परमात्मा को, భగవంతునికి
दई – दई = परमात्मा – परमात्मा, పరమాత్మ, పరమాత్మ
दई = परमात्मा ने, పరమాత్ముడు
कबुल = स्वीकार कर, స్వీకరించు
भाग : तू दुःख में दुःख भरी लंबी लंबी साँस न ले तथा सुख में परमात्मा को मत भूल । इस विपत्ति के आने पर हे परमात्मा । क्यों चिल्ला रहा है । परमात्मा ने तुझे सुख अथवा दुःख दिया है, उसे सहर्ष स्वीकार कर ।
భావము : నీవు దుఃఖంలో బాధతో కూడిన దీర్ఘశ్వాస (నిట్టూర్పు) విడువకు మరియు సుఖంలో భగవంతుని మర్చిపోకు. ఆపద వచ్చినపుడు ఓరి భగవంతుడా ! అని ఎందుకు అరుస్తున్నావు. భగవంతుడు నీకు సుఖము లేదా దుఃఖాన్ని ఇచ్చాడు. దానిని ఆనందంగా / సంతోషంగా స్వీకరించు.
4. बसै बुराई जासु तन, ताही कौ सनमानु ।
भलौ भलौ कहि छोडिये, खोटें ग्रह जपु दानु ॥
शब्दार्थ :
ताही कौ = उसी को, అతనికి
सनमानु = आदर, सम्मान, గౌరవం
भलौ – भलौ = अच्छे-अच्छे, మంచి – మంచి
खोटे ग्रह = कष्ट देनेवाले ग्रह, కష్టపెట్టే గ్రహాలు / కష్టాలనిచ్చే గ్రహాలు
भाव : जिस व्यक्ति के हृदय में बुराई बसती है, अर्थात् जो व्यक्ति दुष्ट होता है, उसी का सम्मान होता है । तथा, अच्छे ग्रहों को लोग अच्छा कहकर छोड देते हैं और बुरे तथा कष्ट देनेवाले ग्रहों के लिए जप किए जाते हैं तथा दान दिए जाते हैं ।
భావము : ఏ వ్యక్తి హృదయంలో చెడు నివాసముంటుందో, అంటే ఏ వ్యక్తి దుష్టుడై ఉంటాడో, ఆ వ్యక్తికే గౌరవము, మర్యాద ఉంటుంది. ఎలాగైతే మంచిచి, సుఖాన్ని కలిగించే గ్రహాలను (పొగుడుతూ) మంచిగా చెపుతూ వదిలివేస్తారో, చెడు, కష్టాలని కలిగించే గ్రహాలకోసం జపాలు, దానం చేస్తుంటారో అలాగే వ్యక్తి విషయం లోకూడా.
5. अति अगाधु, अति औथरौ नदी, कूप, सरू, बाइ ।
सो ताकौ सागरू जहाँ, जाकी प्यास बुझाई ।।
शब्दार्थ :
अगाधु = अथाह, లోతు తెలియని
औथरौ = उथला, डगुळे, ఎక్కువ లోతులేని
कूप = कुआँ, బావి
सरु = तालाब, చెరువు
बाइ = बावडी, లోతైన చిన్న చెరువు
भाव : नदी, कुआँ, तालाब, बावडी चाहे जितने अगाध हों, चाहे जितने उथले; जिसकी प्यास जिससे बुझे, उसके लिए वही सागर है ।
భావము : నది, బావి, చెరువు, లోతైన చిన్న చెరువు, అది ఎంత లోతైనదైనా, లోతులేనిదైనా సరే, ఎవరిదాహం దేనిద్వారా తీరుతుందో అదే వారికి సముద్రం. అనగా ఎవరిద్వారా ఉపయోగం జరుగుతుందో వారంటే లబ్ధి పొందిన వారికి గొప్ప అని అర్థం.
6. बढत बढत सम्पति सलिलु, मन सरोजु बढ़ि जाइ ।
घटत घटत सु न फिरि घटै, बरु समूल कुम्हिलाइ ।।
शब्दार्थ :
सम्पति सलिलु = सम्पत्ति रूपी पानी, సంపద రూపంలోని నీరు
मन सरोजु = मन रूपी कमल, మనస్సు రూపంలోని కులం
बरू = बल्कि, అయితే, పైగా
समूल = जड़सहित, मूलधन सहित, సమూలంగా
कूय = कुआँ, బావి
कुम्हिलाइ = मुरझा जाता है, नष्ट हो जाता है, ముడుచుకు పోతుంది, నశించిపోతుంది
भाव : सम्पत्ति रुपी पानी के बढते रहने पर मन रुपी कमल भी बढता जाता है, अर्थात् मन में अनेक प्रकार की लालसाएँ बढ़ती जाती हैं । किंतु सम्पत्ति रूपी पानी के घटने पर मन रूपी कमल घटता नहीं, बल्कि समूल नष्ट हो जाता है ।
భావము : సంపద రూపంలో ఉన్న నీరు పెరుగుతున్నప్పుడు మనస్సు రూపంలో ఉన్న కమలంకూడా పెరుగుతుంది, అనగా మనస్సులో అనేక రకాల కోరికలు పెరుగుతాయి. కానీ సంపద రూపమైన నీరు తగ్గినపుడు మనస్సు రూపమైన కమలం తగ్గదు, పైగా సమూలంగా నశించిపోతుంది.
7. समै- समै सुंदर सबै, रूप कुरूप न कोय ।
मन की रुचि जेती जितै, तित तेती रूचि होय ॥
शब्दार्थ :
समै – समै = अपने अपने समय पर, తమ – తమ సమయాల్లో
रूप = रूपवान, सुंदर, అందం
कुरूप = असुंदर, అందవిహీనం
रुचि = प्रीति, ప్రియమైన
रुचि = शोभा, అందం
भाव : इस संसार में कोई भी वस्तु सुंदर अथवा असुंदर नहीं है । वरन् अपने – अपने समय पर सभी वस्तुएँ सुंदर बन जाती हैं। मनुष्य की जिस वस्तु के प्रति जितनी अधिक प्रीति होती है, वह उसे उतनी ही अधिक शोभा सम्यक दिखाई देगी ।
భావము : ఈ ప్రపంచంలో ఏ వస్తువు కూడా అందమైనది, అంద విహీనమైనది అంటూ ఉండదు. కాకపోతే వారి వారి సమయాల్లో అన్ని వస్తువులు అందంగా తయారైనవే. మనిషికి ఏ వస్తువు ఎడల ఎక్కువ ప్రేమవుంటుందో అది అతనికి అంతే ఎక్కువ అందంగా కన్పిస్తుంది.
8. या अनुरागी चित्त की गति समुझे नहिं कोइ ।
ज्यौं – ज्यौं बूड़ै स्याम रंग, त्यौं – त्यौं उज्जलु हो ॥
शब्दार्थ :
या = इस, దీని
अनुरागी = प्रेम से भरे, ప్రేమతో నిండిన
चित्त = मन, మనస్సు
गति = दशा, स्थिति, దశ, స్థితి
ज्यौं – ज्यौं = जैसे – जैसे, ఎలాగైతే, ఎట్లయితే
बूड़ै = डूबना, लीन होना, మునిగిపోవుట, లీనమైపోవుట
त्यौं – त्यौं = वैसे – वैसे, అలాగే, అట్లాగే
भाव : कृष्ण के प्रेम में डूबे हुए मन की स्थिति निराली होती है। ईश्वर के प्रेम में जितना डूबते हैं, हम उतने ही उज्ज्वल स्थिति को प्राप्त करते हैं।
భావము : కృష్ణుని ప్రేమలో మునిగి వున్న మనస్సు యొక్క స్థితి అపూర్వమైనది. ఈశ్వరుని యొక్క ప్రేమలో ఎంత మునిగి / నిమగ్నమైపోతామో అంత మనము ఉజ్వల స్థితి పొందుతాము.
दोहे के भाव (దోహాలు భావార్థాలు)
1. मेरी भव बाधा हरौ, राधा नागरि सोय ।
जा तन की झांई परै, स्यामु हरित दुति होय ॥
भावार्थ : बिहारी इस दोहे में राधा की स्तुति करते हुए कहते हैं. चतुर राधा सांसारिक पीडाओं को दूर करती है । वह इतनी प्रभावशाली है कि उनकी शरीर की परछाई पडने मात्र से श्याम / साँवला रंग के श्रीकृष्ण उज्जवल हरे रंग में बदल जाते हैं ।
భావార్థము : బిహారి ఈ దోహాలో రాధను స్తుతిస్తూ / స్మరిస్తూ ఈ విధంగా చెప్పారు. వివేకి అయిన రాధ సంసార బాధలను దూరం చేస్తుంది. ఆమె ఎంత ప్రభావశాలి అంటే ఆమె యొక్క శరీర ఛాయ పడినంతనే నల్లని వర్ణం (నీల మేఘశ్యాముడు) గల శ్రీకృష్ణుడు ప్రకాశవంతమైన ఆకుపచ్చ వర్ణంలోకి మారిపోతాడు.
2. बसै बुराई जासु तन, ताही कौ सनमानु ।
भलौ भलौ कहि छोडिये, खोटें ग्रह जपु दानु ॥
भावार्थ : बिहारी इस दोहे में दुष्ट व्यक्ति की सम्मान के बारे में बताते हुए कहते हैं – “जिस व्यक्ति के हृदय में बुराई बसती है, अर्थात जो व्यक्ति दुष्ट होता है, उसी का समाज में सम्मान होता है । जैसे, अच्छे ग्रहों को लोग अच्छा / भला कहकर छोड देते हैं और बुरे तथा कष्ट देनेवाले ग्रहों के लिए जप तथा दान दिए जाते हैं ।
భావార్థము : ఈ దోహాలో “బిహారీ” దుష్ట వ్యక్తికి ఇచ్చే గౌరవాన్ని గురించి చెబుతున్నారు. ఏ వ్యక్తి హృదయంలో చెడునివాసముంటుందో, అంటే ఏ వ్యక్తి దుష్టుడై ఉంటాడో, ఆ వ్యక్తికే గౌరవ, మార్యద ఉంటుంది. ఎలాగైతే మంచిని, సుఖాన్ని కలిగించే గ్రహాలను (పొగుడుతూ) మంచిగా చెబుతూ వదిలివేస్తారు మరియు చెడుని, కష్టాలని కలిగించే గ్రహాలకోసం జపాలు, దానాలు చేస్తుంటారు.
3. समै- समै सुंदर सबै, रूप कुरूप न कोय ।
मन की रुचि जेती जितै, तित तेती रुचि होय ॥
भावार्थ : बिहारी इस दोहे में वस्तु की सुंदर या असुंदर की स्थिति के बारे में बताते हुए कहते हैं- “इस दुनिया में कोई भी वस्तु सुंदर या असुंदर नहीं है । वरन् अपने – अपने समय पर सभी वस्तुएँ सुंदर बन जाती हैं । मनुष्य की जिस वस्तु के प्रति जितनी अधिक प्रीति होती है, वह उसे उतना ही अधिक सुंदर दिखाई देगी ।
భావార్థము : బిహారీ ఈ దోహాలో వస్తువు యొక్క అందం – అంద విహీనం అనే దాని గురించి ప్రస్తావిస్తూ ఇలా చెబుతున్నారు. “ఈ ప్రపంచంలో ఏ వస్తువుకూడా అందమైనది అంద విహీనమైనది అంటూ ఉండదు. కాకపోతే వారి వారి కాలాల్లో (సమయాల్లో) అన్ని వస్తువులు అందంగా తయారైనవే. మనిషికి ఏ వస్తువు ఎడల ఎక్కువ ప్రేమ ఉంటుందో అది అతనికి అంతే ఎక్కువ అందంగా కన్పిస్తుంది.
बिहारी के दोहे Summary in Hindi
कवि परिचय (కవి పరిచయం)
बिहारीलाल रीतिकाल के सुप्रसिद्ध एवं प्रतिनिधि कवि हैं । इनका जन्म सन् 1603 ई में ग्वालियर के बसुआ गोविंदपुर नामक गाँव में हुआ I इनके पिता का नाम केशवरांय था । आप जयपुर के राजा जयसिंह के दरबारी कवि थे । बिहारी ने श्रृंगारपरक नीति एवं भक्ति के दोहे लिखे हैं । इनकी रचनाओं में भावपक्ष की अपेक्षा कलापक्ष का सुंदर निर्वाह हुआ है । इसलिए इनको “गागर में सागर भर देनेवाला’ कवि कहा जाता है । इनकी भाषा ब्रज भाषा है । सन् 1664 में जयपुर नरेश के दरबार में रहते उनकी मृत्यु होगई ।
साहित्यिक योगदान : बिहारी की सुप्रसिद्ध रचना ‘सतसई’ है । यह मुक्तक काव्य है । इसमें 713 दोहे संग्रहित हैं । “बिहारी सतसई’ में श्रृंगार (प्रेम) भक्ति और नीति के दोहे मिलते हैं । कम शब्दों में अधिक भाव का संप्रेषण करना बिहारी के दोहों की विशेषता है । इसलिए इनको गागर में सागर भर देनेवाला कवि माना गया है ।