TS Inter 2nd Year Hindi Study Material Chapter 1 उपभोक्तावाद की संस्कृति

Telangana TSBIE TS Inter 2nd Year Hindi Study Material 1st Lesson उपभोक्तावाद की संस्कृति Textbook Questions and Answers.

TS Inter 2nd Year Hindi Study Material 1st Lesson उपभोक्तावाद की संस्कृति

दीर्घ प्रश्न (దీర్ఘ సమాధాన ప్రశ్నలు)

प्रश्न 1.
‘उपभोक्तावाद की संस्कृति’ पाठ का सारांश पाँच-छः वाक्यों में लिखिए ।
उत्तर:
हम लोग विविध विज्ञापनों की चमक दमक से सम्मोहित होकर वस्तुओं के पीछे भाग रहे हैं, चाहे वे घटिया भी क्यों न हों। हमारी दृष्टि वस्तु की गुणवत्ता पर नहीं है । संपन्न – वर्ग प्रदर्शनपूर्ण जीवनशैली को अपना रहा है, जिस पर साधारण निर्धन वर्ग भी मोहितदृष्टि लगाता है । यह, सभ्यता एवं संस्कृति के विकास का चिंताजनक विषय है, जिसे उपभोक्तावाद ने सजाया । यह उपभोक्ता संस्कृति; यह दिखावे की संस्कृति हमारी सामाजिक – जड़ को उखाड़ती है और सामाजिक अशांति को फैलाती है । हमारी सांस्कृतिक अभिमान का भी हास होता है । यह संस्कृति भविष्य के लिए एक बड़ी चुनौती हैं ।

लघु प्रश्न (లఘు సమాధాన ప్రశ్నలు)

प्रश्न 1.
उपभोक्तावादी संस्कृति का आपके जीवन पर क्या प्रभाव पड़ रहा है ?
उत्तर:
उपभोक्तावादी संस्कृति का दुष्प्रभाव मेरे जीवन पर अधिक है । इससे समाज में हमारी दूरी बढ़ रही है; सामाजिक परस्पर संबंधों में कमी आ रहा है । जीवन स्तर बढ़ता अंतर हम में आक्रोश एवं अशांति को जन्म दे रहा है । मर्याएँ टूट रही हैं, नैतिकता घट रही है । स्वार्थ परमार्थ को दबा रहा है ।

TS Inter 2nd Year Hindi Study Material Chapter 1 उपभोक्तावाद की संस्कृति

प्रश्न 2.
उपभोक्तावाद की संस्कृति पाठ के अनुसार उपभोक्ताओं को कैसे जागरूक रहना चाहिए ?
उत्तर:
उपभोक्तावाद की संस्कृति ‘पाठ के अनुसार उपभोक्ताओं को विज्ञापनों की चमक-दमक के चंगुल में नहीं फँसना चाहिए । उनकी दृष्टि आवश्यक गुणवत्त वस्तुओं पर ही होनी चाहिए। विदेशी घटिया ख्याद्यव पेय पदार्थों को तक्षण त्याग करना चाहिए ।

एक वाक्य प्रश्न (ఏక వాక్య సమాధాన ప్రశ్నలు)

प्रश्न 1.
उपभोक्तावाद की संस्कृति पाठ के लेखक कौन हैं।
उत्तर:
श्यामचरण दुबे.

प्रश्न 2.
किन खाद्यों को लेखक फूहड़ खाद्य मानते हैं ?
उत्तर:
पीज़ा और बर्गर को

प्रश्न 3.
श्यामाचरण दुबे को किस पुरस्कार से सम्मानित किया गया ।
उत्तर:
मूर्तिदेवी पुरस्कार से

TS Inter 2nd Year Hindi Study Material Chapter 1 उपभोक्तावाद की संस्कृति

प्रश्न 4.
हमारी सामाजिक नींव को कौन हिला रहा है ?
उत्तर:
उपभोक्ता संस्कृति

संदर्भ सहित व्याख्याएँ (సందర్భ సహిత వ్యాఖ్యలు)

1. हमारे सीमित संसाधनों का घोर अपव्यय हो रहा है। जीवन की गुणवत्ता आलू के चिप्स से नहीं सुधरती । न बहुविज्ञापित शीतल पेयों से । भले ही वे अंतर्राष्ट्रीय हों ।

संदर्भ : प्रस्तुत उद्धरण साहित्यकार एवं समाजशास्त्री श्यामचरण दुबे के ‘उपभोक्तावाद संस्कृति’ नामक निबंध से उद्धृत है । सामंती – संस्कृति के फैलाव के दुष्परिणाम गंभीर चिंता का विषय कहते हुए निबंधकार ये वाक्य करते है ।

व्याख्या : सामंति संस्कृति के फलस्वरूप अपरमित घटिए विदेशी संसाधनों को स्वीकारकर, हम अपने देश के बढिए परिमित संसाधनों का घोर अनुचित व्यय कर रहे हैं। जिंदगी की गुणता विदेशी घटिए खाद्य – आलू चिप्स आदि से या कई प्रकार से विज्ञापित शीतल पेयों से नहीं सुधरती । विदेशी खाद्य पीज़ा और बर्गर कितने ही नवीनतम हों, वे तो हेथ हैं, घटिए ही हैं । स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं । इनका त्यागना अच्छा ही है ।

विशेषता : भारतीय संस्कृति के हास की चेतावनी का परिचायक है, प्रस्तुत उद्धरण ।

2. उपभोक्ता संस्कृति हमारी सामाजिक नींव को ही हिला रही है । यह एक बड़ा ख़तरा है । भविष्य के लिए यह एक बड़ी चुनौती है।

संदर्भ : प्रस्तुत उद्धरण साहित्यकार एवं समाजशास्त्री श्यामचरण दुबे के ‘उपभोक्तावाद संस्कृति’ नामक निबंध के समापित वाक्य हैं । गाँधीजि के कथन को उद्धत करते हुए निबंधकार ये वाक्य कहते हैं ।

व्याख्या : निबंधकार कहते हैं कि विज्ञापनों की चमक-दमक के कारण हम भारतीय, विशेषतः निर्धन वस्तुओं के पीछे भाग रहे हैं । यह उपभोक्त संस्कृति का दुष्परिणाम है। इससे भारतीय सामाजिक जड़ कमज़ोर होती है। यह तो भारतीय संस्कृति को अधिक हानि पहुँचाता है। हमारे देश के भविष्य के लिए भी यह उपभोक्ता संस्कृति अत्यंत हानिकारक है ।

विशेषता: निबंधकार इस उद्धरण द्वारा उपभोक्ताओं को चेतावनी दे रहे हैं । भाषा सरल और सुबोध है ।

उपभोक्तावाद की संस्कृति Summary in Hindi

लेखक परिचय

श्यामाचरण दुबे भारतीय समाजशास्त्री एवं साहित्यकार है । एक प्रख्यात अंतरराष्ट्रीय समाज वैज्ञानिक थे । उन्हें एक कुशल प्रशासक और विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं के सलाहकार के रूप में भी याद किया जाता है । उनका जन्म सन् 1922 में हुआ । उन्होंने भारतीय समाज की बदलती परिस्थितियों पर जमकर लिखा है ।

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उन्होंने विभिन्न विश्वविद्यालयों में अध्यापन कार्य किया तथा अनेक महत्वपूर्ण पदों पर भी सफलता पूर्वक कार्य किया इसके साथ ही आजीवन लेखन कार्य किया । उन्होंने हिन्दी में “मानव और संस्कृति”, “परंपरा और इतिहास बोध”, “संक्रमण की पीडा’ आदि रचनाएँ की । ‘परंपरा और इतिहास बोध ‘ के लिए उन्हें भारतीय ज्ञानपीठ ने मूर्तिदेवी पुरस्कार से सम्मानित किया । इसका निधन सन् 1996 में हुआ ।

सारांश

हमारी जीवन शैली धीरे – धीरे बदल रही है । इसमें उपभोक्तावाद बढ़ता जा रहा है। अधिकाधिक मात्रा में उत्पादन बढ़ रहा है। जन समुदाय उत्पादोंत्र को भोजन समझकर भोग रहा है। परंतु मनुष्य स्वयं ही उत्पादों की भेंट चढ़ता जा रहा है ।

बाजार में विलासिता की सामग्री की बहुलता है । मनुष्य को लुभाने के लिए विज्ञापन जी – जान एक कर रहे हैं। चाहे खाद्य सामग्री हो, चाहे दैनिक उपयोग की वस्तुएँ हों था प्रसाधन सामग्री, विज्ञापन उनकी विशेषताएँ बताकर मानव समुदाय को तरह- तरह से आकर्षित कर रहे हैं । विज्ञापन फिल्मी सितारों एवं ऋषि-मुनियों का भी हवाला देने से नही चूकते। सौंदर्य प्रसाधनों तो होड़ लग गई है । संभ्रांत परिवारों की महिलाएँ अपनी ड्रेसिंग टेबल पर तीस – तीस हजार रुपये की सौंदर्य सामाग्री रखे ही रहती हैं । अब पुरुष – भी पीछे नही हैं, वे भी कीमती साबुन, तेल, ऑफ्टर शेव और कोलोन लगाने लगे है। जगह- जगह फेशनेबल एवं नए – नए डिशाइन के वस्त्रों के लिए बड़े – बड़े वस्त्रालय एवं बुटीक खुल गए हैं ।

आजकल लोग आवश्यकता के लिए नहीं बल्कि दिखावे के लिए वस्तुएँ अधिक खरीदते हैं । म्यूशिक सिस्टम, कंप्यूटर, मोटर साइकिल तथा कार आदि शौक तथा दिखावे की चीजों हो गई हैं। इसके साथ ही अधिक धनी लोग तो बच्चों की पढ़ाई के लिए पंचसितारा विद्यालय, खुद के इलाज के लिए पंचसितारा हाँस्पिटल, खाना खाने के लिए पंचसितारा होटल में ही जाते है क्यों कि यह उनके स्तर के अनुरूप होता है । अमरीका में तो लोग मरने के बाद बनने वाली समाधि को सजाने के लिए भी पैसा खर्च करने लगे हैं ।

उपभोक्तावादी समाज अपना स्तर दिखाता है किंतु सामान्य समाज ललचाई निगाहों से देखता रहता है । उपभोक्तावाद का प्रसार सामंती सांस्कृति की देन है । जो आज भी भारत में मौजूद है। सामंत बदल गए किंतु सामंती पहले जैसी ही फल – फूल रही है। हमारी सांस्कृतिक पहचान नष्ट हो रही है, परंपराएँ खत्म हो रही हैं और आस्था का नाम ही खत्म हो गया है । हम पश्चिमी सभ्यता का अंधानुकरण कर झूठी आधुनिकता में मदहोश हैं । दिग्भ्रमित होकर अपना उद्देश्य भूल गए हैं ।

इस तरह की संस्कृति को अपनाने के कारण संसाधनों एवं धन, दोनों अपव्यय हो रहा है। सामाजिक संबंध बिगड़ रहे हैं। आपस में दूरियाँ बढ रही हैं । आक्रोश एवं अशांति बढ़ रही है। हमारी सांस्कृतिक पहचान नष्ट हो रही है। झूठे विकास के लालच में हम सच्चे विकास को भूल गए। अपना उद्देश्य भूल गए । मनुष्य महत्वाकांक्षी एवं उसका जीवन व्यक्ति केंद्रत हो गया

गाँधी जी ने कहा था, “हम स्वस्थ सांस्कृतिक प्रभावों के लिए अपने दरवाजो, खिडकियाँ अवश्य खुले रखें किंतु अपनी बुनियाद पर कायम रहें । उपभोक्तावादी संस्कृति हमारी सामाजिक नींव को हिला रही है। यह एक बड़ा खतरा है । भविष्य के लिए यह एक बड़ी चुनौती है ।

उपभोक्तावाद की संस्कृति Summary in Telugu

సారాంశము

మనుషుల యొక్క జీవనశైలి మెల్లమెల్లగా మారుతూ వచ్చింది. వినిమయతత్వం రోజురోజుకి పెరుగుతూ వచ్చింది. ఎక్కువ సంఖ్యలో వస్తువులు ఉత్పత్తి అవ్వడం మొదలైనవి. భోజనానికి ఏవిధంగా మనం అలవాటుపడ్డామో అలాగే ఉత్పత్తులకు అలవాటు పడిపోయాము వస్తువులను మనుషులు స్వయంగా వినియోగించి ధరలను పెంచుతూ పోతున్నారు.

TS Inter 2nd Year Hindi Study Material Chapter 1 उपभोक्तावाद की संस्कृति

బజారులో ఈనాడు విలాసపూరితమైన వస్తువుల ప్రచారం జోరున సాగుతూ ఉంది. ప్రకటనలు వస్తువుల ప్రచారంలో ఒక దాని కన్నా మరియొకటి గొప్పది అని TVలో Yards రూపంలో చూపిస్తూ ప్రజలను ఆకర్షిస్తున్నారు. మోసపోతున్నాము అని మనుషులు గ్రహించడం లేదు. వారిని ఆకర్షితులు చేయడం కోసం సినిమా తారలను, దొంగస్వాములను ప్రకటనలలోచూపిస్తున్నారు.

వెర్రివారు అయిన ప్రజలు అమాయకులు అయిన ప్రజలు మోసపోతున్నారు. సౌందర్య వస్తువులకు ఈనాడు పెద్ద పోటీ జరుగుతుంది. మధ్య తరగతి స్త్రీలు అయిన ఈరోజున తమ డ్రెస్సింగ్ టేబులుపైన 30,000/- వరకు సౌందర్య సాధనాలను ఉంచుకుంటున్నారు. కొంతమంది గొప్పని చూపించడం కోసం అని వస్తువులను కొంటున్నారు.

మ్యూజిక్ సిస్టమ్, కంప్యూటర్లు, కార్లు, మోటరు బైకులు మొదలైన వస్తువులను గొప్ప చూపించడం కోసం కొంటున్నారు. ధనవంతులు వారి పిల్లల చదువులు కూడా 5 star విద్యాలయాలు, 5 star హాస్పటళ్ళు, తినే తిండి 5 star Hotels అయి ఉండాలి అని భావిస్తున్నారు. ప్రతి చోట A. C ఉండాలి. ప్రతీది తమ డబ్బు హోదాకి తగినట్లుగా ఉండాలి అని ధనవంతుల అభిప్రాయం. అమెరికా వంటి దేశాలలో సమాధులను కూడా చాలా గొప్పగా అలంకరిస్తారు.

ఉపభోక్తవాది సమాజం తన యొక్క స్థాయిని చూపుతుంది. సామాన్యులు ఆశపూరిత కళ్ళతో చూస్తూ ఉంటున్నారు. మనం వేరే దేశపు సంస్కృతిని వేరే దేశ వ్యక్తులను పెట్టుబడిదారులను వృద్ధి అయ్యేటట్లు మనం చేస్తున్నాము. విదేశీ వస్తువుల మోజులో పడి మన దేశ వస్తువులను మనం కొనడం లేదు.

స్వాతంత్ర్యం వచ్చినా మనం విదేశీయుల బాటలో ప్రయాణం చేసి స్వదేశీ వస్తువులను బహిష్కరిస్తున్నాము. మన ఆచారాలు పూర్తిగా నశించిపోతున్నాయి. పశ్చిమ దేశాల మోజులో పడి మన దేశ ఆచారాలు, మన సంస్కృతిని పూర్తిగా మర్చిపోతున్నాము. తిలోదకాలు సమర్చించాము. మనిషి స్వార్థపరుడుగా మారిపోయాడు. ఒక వ్యక్తి, ఒక కుటుంబం, డబ్బు సంపాదన ఇదే వారి పరమ కర్తవ్యంగా భావిస్తున్నారు.

మన సంస్కృతి, మన ఆచారాలు, మన కట్టుబాట్లు మన వద్దకు రావాలంటే మన చుట్టూ ఉండే తలుపులను తీసి ఉంచాలని గాంధీ మహాత్ముడు చెప్పారు. వినిమయ తత్వం మన సంస్కృతిని, సమాజాన్ని కుదిపివేస్తుంది. ఇది చాలా అపాయకరం భవిష్యత్తు తరాల వారికి ఇది ఒక (చాలెంజ్) సవాలు.

कठिन शब्दों के अर्थ (కఠిన పదాలు – అర్ధాలు)

शैली – style of, పద్ధతిలో
वर्चस्व – domination, ముఖ్యమైన
विज्ञापित – advertisement, ప్రకటన
अनंत – going, infinite, అనంతమైన, అంతంలేని
सौंदर्य प्रसाधन – cosmetics, సౌందర్యాన్ని పెంచు సామాగ్రి
परिधान – out fit, wear, వస్త్రాలు, బట్టలు, సరంజామా
अस्मिता identity, గుర్తింపు
अवमूल्यन – Devaluation, విలువ తగ్గించుట
क्षरण – erosion, హరింపజేయుట
उपनिवेश – colony, కొత్తగా అన్యదేశాన ఏర్పరచుకొనిన గ్రామం
प्रतिमान – icon, idol, ప్రతిమ, బొమ్మ
प्रतिस्पर्धा – competition, పోటీ

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छद्मा – pseudo mouth grinning face, కల్పితమైన, కృత్రిమంగా సమకూర్చిన
दिग्भ्रमित – Delusional, భ్రాంతి, భ్రమకలిగించు
वशीकरण – mesmerism, వశంలో చేసుకొనుట, వశీకరణము
अपव्यय – dissipation, extravagance, వ్యర్థం, దుర్వ్యయం
तात्कालिक – Immediate, తాత్కాలికంగా
परमार्थ – Highest truth, పరమార్థము
उपभोक्ता – The consumer, వ్యయం చేయువాడు, అనుభవించు
संस्कृति – culture, సంస్కృతి
इलाज – treats, వైద్యము
नीवं – foundation, పునాది
शीतल पेय – soft drink, ద్రవ పానీయాలు
महज दिखावा – just show off, ఆడంబరం
चुनौती – challenge, ఆక్షేపించు, సవాలుచేయు

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