TS Inter 1st Year Hindi Study Material Poem 6 दान बल

Telangana TSBIE TS Inter 1st Year Hindi Study Material 6th Poem दान बल Textbook Questions and Answers.

TS Inter 1st Year Hindi Study Material 6th Poem दान बल

दीर्घ समाधान प्रश्न

प्रश्न 1.
दान बल कविता का सारांश पाँच वाक्यों में लिखिए ।
उत्तर:
दान बल कविता रश्मिरथी नामक काव्य के चतुर्थि सर्ग से लियाँ गया है । उसके कवि श्री रामधारी सिंह दिनकर जो है । इसमें कवि दानकी महानता, उसकी सहजता और समय पर दान देने पर बल देते है । इसके लिए वे वृक्ष अपना फल त्यागने से ही स्वस्थ रहती है और उस फल की बीजों से नये पौधा उत्पन्न होते है । नदि पानी को देकर दूसरें को जीवन देती है और उसके पानी भाष्प बन्कर फिर बरसकर नदी मे ही मिल जाता है दान देना एक सहज प्रवृती है । समय पर देने से उसकी महानता रहती है। मरने के बाद देने से कोई फल नही मिलता । इसलिए दान बल सबके लिए आवश्यक है ।

नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर तीन – चार वाक्यों में दीजिए ।

प्रश्न 1.
दान बल कविता का में फलों का दान करने से पेड को क्या लाभ होता है ?
उत्तर:
दान देना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है । इसका समर्थन करते हए कवि कहते है । कि वृक्ष फल देता है । यह कोई दान नहीं है । यदि ऋतु जाने के बाद वृक्ष फल को नहीं छोडता है तो फल उसी डाल पर सड़ जाते है । इससे कीडे निकलकर सारा वृक्ष नाश हो जाता है । यदि वृक्ष फल को गिरा देता है तो फिर नभे फल आते है और उस फल के बीजों से नये पौधों उत्पन्न होते है ।

TS Inter 1st Year Hindi Study Material Poem 6 दान बल

प्रश्न 2.
दिनकर के अनुसार दान देने से नदी को क्या लाभ होता है ?
उत्तर:
दिनकर दान की महानता मे नदी का उदाहरण देते हुए कहते है की नदी अपने में पानी को शोककर नही रखती । वह पानी का त्याग करके लोगों को जीवन देती है। नदी का पानी भाप बनकर बादलों का रुप लेता है और बरसकर उसी नदी में मिल जाता है । उसी प्रकार मनुष्य को भी दान देने से लाभ होता है ।

एक शब्द में उत्तर दीजिए

प्रश्न 1.
दान – बल कविता के कवि कौन है ?
उत्तर:
दान – बल के कविता के कवि श्री रामधारी सिंह दिनकर जी है ।

प्रश्न 2.
किस काव्य के लिए दिनकर को ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला ?
उत्तर:
उर्वशी काव्य के लिए दिनकर को ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला । बल कविता ने कवि के अनुसार किसकी कीर्ति प्रतिष्ठा हमेशा रहती है ?

प्रश्न 3.
दान – बल कविता ने कवि के अनुसार दानीव्यक्ति की प्रतिष्टा हमेशा रहती है ।
उत्तर:
दान – बल कविता में कवि के अनुसार दानीव्यक्ति की प्रतिष्टा हमेशा रहती है ।

TS Inter 1st Year Hindi Study Material Poem 6 दान बल

प्रश्न 4.
दान – बल कविता किस काव्य से लिया गया है ?
उत्तर:
दान – बल कविता दिनकर के रश्मिरथी काव्य के चतुर्थ सर्ग से ली गयी है ।

संदर्भ सहित व्याख्याएँ

प्रश्न 1.
ऋतु के बाद फलों को रुकना
उत्तर:
यह पद्य ‘दान – बल, नामक कविता से लिया गया है। यह कविता रश्मिरथी नामक काव्य से लिया गया है । इसके कवि श्री रामधारी सिंह दिनकर जो है ।

इसमे दान की महानता को व्यक्त करते हुए कवि वृक्ष का उदाहरण दे रहा है । वृक्ष ऋतु जाने के बाद स्वयं अपने फलों को छोड देती है । यदि नहीं छोडती तो वे फल डालों पर ही सड जाते है। उससे कीडे निकलकर साश वृक्ष नाश हो जाता है । यदि फल को छोड़ता है तो उसके बीजों से नये पौधे और नये फल उत्पन्न होते है उसकी भाषा सरल खडीबोली है ।

प्रश्न 2.
दान जगत का प्रकृत धर्म है,
उत्तर:
यह पद्य ‘दान – बल’ नामक कविता से लिया गया है । यह कविता रश्मिरथी नामक काव्य से लिया गया है इसके कवि रामधारी सिंह दिनकर जी है ।

कवि का कहना है कि दान देना एक सहज स्वभाव है । इसको देने में व्यक्ति व्यर्थ रुप से डरता है । हम सब को एक दिन सब त्याग करके चले जाना है। लेकिन जो समय पर दान देता है वही महान होता है । जो मरते समय छोडकर जाता है, उसकी कोई महानता नही रहती ।

दान बल Summary in Hindi

कवि परिचय

श्री रामधारी सिंह दिनकर का जन्म 1908 ई में बिहार के मुंगेर जिले के सिमरिया नामक गाँव मे हुआ था । उन्हे ‘पद्म भूषण’ की उपाधि से अलंकृत किया गया । उनकी पुस्तक ‘संस्कृति के चार अध्याय के लिए उन्हे साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला । ‘उर्वशी’ काव्य पर भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार ‘दिनकर जी को मिला। उनहे राज्य सभा सदस्य के रुप में मनोनीत किया गया ।

TS Inter 1st Year Hindi Study Material Poem 6 दान बल

सन् 1974 ई. में उनका स्वर्गवास हुआ । रेणुका, हुंकार, कुरुक्षेत्र, रश्मिरथी, परशुराम की प्रतीक्षा, उर्वशी उन्की प्रसिद्ध रचनाएँ है । संस्कृति के चार अध्याय में भारतिय संस्कृति के प्रति गौरव और राष्ट्रीय चेतना, देशप्रेम की भावना उनकी रचनाओं में स्पष्ट होती है । उन्की भाषा सरल रुडीबोली है । प्रस्तुत कविता ‘ दान बल’, ‘रश्मिरथी’ काव्य के चतुर्थ सर्ग से ली गयी है। इसमें दान की महानता और उससे जीवन की संपूर्णता पर ध्यान दिया गया है ।

सारांश

कवि का कहना है कि दान के देने से ही मानव जीवन निरंतर पूर्णरूप से आगे चलती है । दान बल से स्नेह ज्योति उज्जव, उज्वल जलती है। रोते हुए या हँसते हुए जो दान देते है, जो अहंकार में पडकर दान देते है और जा अपने स्वत्व को त्याग मानते हैं, उसका कोई फल नहीं मिलता ।

वास्तव में त्याग देना स्वत्व का त्याग नही है, यह जीवन की सहज क्रिया मात्र है । जो अपनी संपत्ति को रोक लेता है नह जीवित रहते हुए भी मृतक के समान हैं । अर्थात् जो दूसरों को दान या मदद करते वह मरे हुए व्यक्ति के समान है । कवि वृक्ष का उदाहरण देते हुए कहते है कि वृक्ष किसी पर कृपा दिखाने के लिए फल नहीं देता है । यदि वृक्ष फल को गिरने से रोक देती है और ऋतु चले जान के बाद भी फल डाल पर भी रखते है तो ये फल सड जाते है और उससे की टाणु निकल कर डालों को ही नही, सारे वृक्ष को नाश देती है । इसलिए वृक्ष फल को त्याग देता है तो उसके बीजों से नसे पौधे पैदा होते है ।

नदी का उदाहरण देते हुए कवि कहते हैं कि नदि भी अपने पानी को नहीं रोकती है। नदी का पानी भाप बनकर बादलो का रूप लेता है और बरसकर पानी उसी नदी में मिल जाता है । इसलिए जो भी हम देते है उसका संपूर्ण फल हमें प्राप्त होता है ।

इस प्रकार कवि का मानना है कि दान एक प्राकृतिक धर्म है । दान देने में मनुष्य व्यर्थ ही डरता है । हर एक को किसी – न – किसी दिन सब छोडकर जाना ही है । इसलिए समय का ज्ञान समजकर हमे सब कुछ समय पर दान देना चाहिए। नहीं तो जब मृत्यु आती है तो अपना सर्वस्व छोड़कर भी लाभ नहीं मिलता ।

इस प्रकार दान देना मनुष्य का सहज स्वभाव होना चाहिए । यह कोई उपकार नहीं है । इस कर्तव्य को निभाना हमारा कर्तव्य है । उनकी भाषा सरल खडीबेली है ।

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