Telangana SCERT TS 8th Class Hindi Guide Pdf 8th Lesson चावल के दाने Textbook Questions and Answers.
TS 8th Class Hindi 8th Lesson Questions and Answers Telangana चावल के दाने
प्रश्न :
प्रश्न 1.
चित्र में क्या – क्या दिखायी दे रहे हैं ?
उत्तर :
चित्र में बैलगाडी, एक आदमी, पेड, पहाड, मकान, आदमी के सिर पर घास का गट्ठा आदि दिखायी दे रहे हैं।
प्रश्न 2.
कौन क्या कर रहा है ?
उत्तर :
किसान गाडी पर घास का गट्टा लेकर खडा है। बैल गाडी चला रहा है।
प्रश्न 3.
किसान के सिर पर बोझा देखकर तुम्हें क्या लगता है ?
उत्तर :
किसान के सिर पर बोझा देखकर मुझे यह लगता है कि वह कडी मेहनत करनेवाला है।
सुनो – बोलो :
प्रश्न 1.
पाठ में दिये गये चित्रों के बारे में बातचीत कीजिए।
उत्तर :
पाठ के पहले चित्र में एक राजा (श्रीकृष्णदेवराय) सिंहासन पर बैठे हुए हैं। उनके बगल में उनका सेवक खडा हुआ है।
उन दोनों के सामने एक चावल का बोरा है। एक शजरंज की बिसात भी है। कुछ दूर पर तेनाली राम खडा हुआ है और राजा से बातचीत कर रहा है।
प्रश्न 2.
कहानी का शीर्षक आपको कैसा लगा और क्यों ?
उत्तर :
कहानी का शीर्षक “चावल के दाने ” मुझे अच्छा लगा। इस पाठ के लिए वह शीर्षक उचित ही है। क्योंकि तेनालीराम ईनाम के रूप में शतरंज के बिसात पर हर एक खाने में उसके पहले खाने से दुगने चावल के दाने रखकर उन्हें देने को कहते हैं।
पढ़ो :
अ. नीचे दिये गये वाक्यों की गलतियाँ पहचानिए। शुद्ध वाक्य अपनी उत्तर पुस्तिका में लिखिए।
प्रश्न 1.
एक दिन वे राजा अकबर से मिलने उनकी राजधानी हंपी पहुँचे ।
उत्तर :
एक दिन वे राजा श्रीकृष्णदेवराय से मिलने उनकी राजधानी हंपी पहुँचे।
प्रश्न 2.
पहले खाने में 8 दाने रखे गये।
उत्तर :
पहले खाने में एक दाना रखा गया।
आ. पाठ के आधार पर नीचे दी गयी पंक्तियाँ सही क्रम में लिखिए।
1. तेनालीराम हंपी पहुँचे।
2. उन्होंने तुरंत तेनाली को सम्मान के साथ अष्टदिग्गजों में शामिल कर लिया।
3. ‘हाँ, महाराज !’ – तेनालीराम ने विनम्रता से कह्त।
उत्तर :
1. तेनालीराम हंपी पहुँचे।
2. उन्हें राजदरबार में पेश किया गया।
3. ‘हाँ, महाराज !’ – तेनालीराम ने विनम्रता से कहा।
लिखो :
अ. नीचे दिये गये प्रश्नों के उत्तर लिखिए।
प्रश्न 1.
तेनालीराम के व्यक्तित्व के बारे में लिखिए।
उत्तर :
तेनालीराम चतुर और ज्ञानी व्यक्ति थे। समस्या का हल वे बडी हास्यात्मक ढ़ंग से ढूँढते थे। अपनी चतुराई से सुझाव देकर राजा का मार्ग – दर्शन करते थे।
प्रश्न 2.
तेनालीराम की जगह यदि आप होते तो इनाम के रूप में क्या माँगते ?
उत्तर :
तेनालीराम की जगह यदि में होता तो इनाम के रूप में पहले खाने में एक रुपया, अगले खाने में दुगुने रुपये ऐसा रखकर देने के लिए कहता इस प्रकार मैं चावल के बदले रुपये लेता ।
आ. “चावल के दाने” पाठ का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
तेनालीराम चतुर और ज्ञानी व्यक्ति थे। वह तेनाली में रहनेवाले थे। एक दिन वे राजा श्रीकृष्णदेवराय से मिलने हंपी गये। राजा को उन्होंने एक कविता सुनायी। राजा को कविता पसंद आयी। राजा ने ईनाम माँगने को कहा।
तेनालीराम राजा के सामने रखे शतरंज की ओर इशारा करके कहा कि “महाराज ! यदि आप – चावल का एक दाना शतरंज के पहले खाने में रख दें और हर अगले खाने में पिछले खाने का दुगना रखते जायें, तो मैं उसे ही अपना ईनाम समझूँगा।”
महाराज ने सेवक को आदेश दिया। सेवकों ने शतरंज के बिसात पार चावल के दाने रखने शुरू कर दिये । पहले खाने में 1 दाना, दूसरे में 2 , तीसरे में 4 , चौथे में 8 , पाँचवें में 16 दाने इस तरह गिनती बढ़ती गयी।
इस तरह शतरंज की आधी बिसात यानी 32 खाने तक पहुँचने तक दानों की संख्या 214 करोड से भी ज़्यादा तक पहुँच गयी थी। इसलिए राजदरबार में सभी हैरान थे। अंत में यह रिथति हो गयी कि महाराज के पास अपना पूरा राजभंडार का अनाज ही तेनालीराम के हवाले करने के सिवाय कोई दूसरा मार्ग न रहा।
उन्हें रोककर तेनालीराम ने कहा ” महाराज ! मैं आपसे कुछ नहीं चाहता। मैं सिर्फ़ आपको दिखाना चाहता था कि छोटी -छोटी चीज़ें भी कितनी महत्वपूर्ण होती है।
श्रीकृष्णदेवराय उससे बहुत खुश हुए। तेनालीराम ने चावल के दाने से जीवन का महत्व समझाया। इसलिए राजा कृष्णदेवराय उन्हें अपने अष्टदिग्गजों में एक दिग्गज के रूप में शामिल कर दिया और सम्मान भी किया।
शब्द अंडार :
अ. नीचे दिये गये संख्या-शब्द पढ़िए। समझिए ग़लत संख्या शब्द पर गोला लगाइए और सही शब्द लिखिए।
उत्तर :
सही शब्द : 25 -पच्चीस, 28 -अट्डाईस, 32 -बत्तीस, 36 – छत्तीस, 44 – चौंतालीस, 47 – सैंतालीस
आ. इन्हें भी समझिए।
सृजनात्मक अभिव्यक्ति :
अ. नीचे दिये गये वार्तालाप को आगे बढाइए।
तेनालीराम – महाराज ! प्रणाम।
श्रीकृष्णदेवराय – प्रणाम ! बताओ, तुम कौन हो?
उत्तर :
- तेनालीराम – मैं तेनाली में रहनेवाला हूँ। मेरा नाम तो तेनालीराम है।
- श्रीकृष्णदेवराय – अच्छा अब यहाँ क्यों आये हो ?
- तेनालीराम – मैं ने सुना था कि आप पंडितों एवं विद्वानों का आदर करते हैं।
- इसलिए में एक कविता सुनाने आया हूँ।
- श्रीकृष्णदेवराय – अच्छा, आप कविता सुनाइए।
- तेनालीराम – एक कविता सुनाता है।
- श्रीकृष्णदेवराय – बहुत अच्छा है। बहुत अच्छा है। अच्छा एक ईनाम माँगो।
- तेनालीराम – मुझे तो कुछ ईनाम नहीं चाहिए लेकिन आपके दरबार के अष्टदिग्गजों में एक बनना चाहता हूँ।
- श्रीकृष्णदेवराय – अच्छा, आज से तुम हमारे आष्टदिग्गजों में एक हो।
- तेनालीराम – धन्यवाद ! महाराज।
प्रशंसा :
अ. तेनालीराम की वुद्धिमत्ता के बारे में बताइए।
उत्तर :
तेनालीराम तेनाली के रहने वाले थे। वे बहुत चतुर और ज्ञानी व्यक्ति थे। वे अच्छी तरह कविता करते थे। उनकी चतुराई से प्रभावित होकर श्री कृष्णदेवराय ने उसे अपने दरबार के अष्टदिग्गजों में एक कवि बना दिया। ये ‘विकटकवि’ के नाम से मशहूर थे। तेनालीराम बडा बुद्धिमान और चतुर था।
एक दिन किसी कारणवश श्रीकृष्णदेवराय को तेनालीराम पर गुस्सा आया। उन्होंने सजा सुनायी कि तेनालीराम अपना मुख न दिखाये। दूसरे दिन तेनालीराम एक मुखौटा पहनकर आये। इसका कारण जानकर श्रीकृष्णदेवराय और सभी दरबारी हँस पडे। यह उनकी बुद्धिमता से संबंधित एक घटना थी!
परियोजना कार्य :
अ. अपनी पाठशाला के पुरतकालय से तेनालीराम की एक और कहानी पढ़िए और उसका भाव सुनाअओ।
श्रीकृष्णदेवराय विजयनगर के प्रतापी राजा थे। वे शूर, वीर हीं नहीं बल्कि एक महान् साहित्यकार भी थे। उन्होंने दरबार में अनेक दिग्गज कवियों को स्थान दिया। वे स्वयं भी महाकवि थे। तेनालि रामकृष्ण उनके दरबारी कवियों में से एक थे। कहा जाता है कि रामकृष्ण कवि पर काली माता की अपार कृपा थी। वे बड़े बुद्धिमान और चतुर थे। साथ ही संदर्भ के अनुसार समस्या का हल ढूँढ़ने में पटु भी थे।
एक बार राज्य में चूहे बहुत ज़्यादा हो गये। घरों में अनाज नष्ट होने लगा। जनता बहुत परेशान हो गयी । राज्य के धान्यागार में भी चूहों की संख्या बढ़ गयी। दरबार में इस पर विचार हुआ। श्रीकृष्णदेवराय ने आदेश दिया कि नगर के हर घर में कम से कम एक बिल्ली पाली जाय। निश्चय हुआ कि राज्य की ओर से हर घर को एक अच्छी बिल्ही दी जाय। उसकी परवरिश के लिए हर रोज़ दो सेर दूध भी राज्य की ओर से दिया जाय। राजा का प्रस्ताव था। इसलिए किसी ने चू तक नहीं किया। तेनालि रामकृष्ण को रायलू का यह निर्णय अच्छा नहीं लगा। पर वे उस समय राजा के सामने कुछ नहीं बोले, उनको भी एक बिल्ली मिली।
रामकृष्ण बिल्ली को अपने घर ले गये। वे चाहते थे कि रजा को एक सबक़ सिखायें। इसलिए उन्होंने बिल्ली को एक कमरे में बन्द कर रखा। उसके सामने गरम – गरम दूध से भरा कटोरा रख दिया। दूध को देखते ही बिल्ली उछल पड़ी। दूध पीने के लिए कटोरे में मुँह डाली। दूध बहुत गरम था। इसलिए उसका मुँह जल गया। वह तड़प उठी। तब से वह दूध देखकर भागने लगी।
कुछ दिन बीत गये। राजा ने सब बिक्लियों को देखना चाहा। हुकुम किया कि सब दरबारी अपनीअपनी बिल्ली ले आये। बिल्लियाँ दरबार में लायी गयी। सबकी बिल्लियाँ हृष्ट-पुष्ठ और बलिष्ठ थी। मगर तेनालि रामकृष्ण की बिल्ही सूखकर काँटा हो गयी थी। राजा ने कारण पूछा रामकृष्ण ने जवाब दिया कि “महाराज ! यह बिल्ली तो अजीब है दूध नहीं पीती।” राजा को आश्चर्य हुआ उसकी जाँच करनी चाही। कटोरे में दूध लाकर बिल्ली के सामने रखा गया। बिल्नी दूध को देखकर डर गयी और भागने लगी।’ राजा को शक हुआ कि दाल में कुछ काला है बिंत्री को पकडकर उसका मुँह देखा गया तो पता चला कि उसका मुँह जला हुआ है बात राजा की समझ में आ गयी। रामकृष्ण को डॉटकर पूछा कि तुमने ऐसा क्यों किया?
रामकृष्ण ने जवाब दिया “महाराज इसमें मेरा कसूर क्या है? हमारे राज्य में जनता को खाने के लिए खाना नहीं, पहनने के लिए कपड़ा नहीं, रहने के लिए मकान नहीं, पीने के लिए पानी तक नहीं ऐसी हालत में महाराज, आप ही सोचिए कि बिल्लियों को भरपूर दूध पिलाना कहाँ तक न्यायोचित है?
रामकृष्ण की बातें सुनकर राजा गंभीर हो गये। उनकी बातों का राजा के साथ-साथ सभी दरबारियों पर भी गहरा प्रभाव पड़ा।
भाषा की जात :
अ. नीचे दिया गया अनुच्छेद पढ़िए।
तेनालीराम तेनाली के रहने वाले थे। वे बहुत चतुर और ज्ञानी व्यक्ति थे। यह घटना उन दिनों की है, जब उनकी मुलाक़ात राजा श्रीकृष्णदेवराय से नहीं हुई थी। एक दिन वे राजा कृष्णदेवराय से मिलने उनकी राजधानी हंपी पहुँचे। उन्होंने सुना था कि राजा ज्ञानी लोगों का बड़ा आदर सत्कार करते हैं। ऊपर दिये गये अनुच्छेद से संज्ञा, सर्वनाम और विशेषण शब्द ढूँढिए।
उत्तर :
संज्ञा : तेनालीराम, तेनाली, कृष्णदेवराय, हंपी
सर्वनाम : वे, यह
विशेषण : चतुर, ज्ञानी, आदर, सत्कार
आ. ऊपर दिये गये अनुच्छेद से ढूँढकर संज्ञा, सर्वनाम और विशेषण शब्दों को वाक्यों में प्रयोग कीजिए।
उत्तर :
संज्ञा : 1. तेनालीराम, 2. तेनाली 3. राजा 4. कृष्णदेवराय 5. हंपी 6. राजधानी 7. आदर आदि।
1. तेनालीराम विकट कवि थे।
2. तेनाली को आंध्रा पैरिस भी कहते हैं।
3. राजा गद्दी पर बैठा हुआ है।
4. कुष्णदेवराय विजयनगर का राजा था।
5. हंपी श्रीकृष्णदेवराय की राजधानी है।
6. भारत की राजधानी दिली है।
7. कृष्णदेवराय ज्ञानी तथा कवियों का आदर करते थे।
सर्वनाम : 1 . वे 2 . यह 3 . उन 4 . उन्होंने
1. वे खेल रहे हैं।
2. यह किताब है।
3. उन लोगों का घर कहाँ है ?
4. उन्होंने ऐसा कहा ।
विशेषण : 1. चतुर 2. ज्ञानी 3. बहुत 4. बडा
1. तेनालीराम चतुर आदमी थे।
2. वह बडा ज्ञानी है।
3. लडकी बहुत सुंदर है।
4. यह बड़ा पेड है।
विचार – विमर्श :
कई बार लोग हमें देखकर हमारे शरीर / चेहरे / रंग – रूप का मज़ाक बनाते हैं। किसी तरह से हम नीचा दिखाने की कोशिश करते हैं। जो ऐसा करते हैं, वे अपना स्वभाव और चरित्र हमें दिखा रहे हैं उनकी बातों को अनसुनी करना ही अच्छा है।
हम अपने शरीर की रचना नहीं करते । यह प्रकृति की देन है। हमें रंग-रूप/देह पर शर्म / गर्व नहीं करना चाहिए। बल्कि अपने व्यवहार पर करना चाहिए।
हमें लोगों का सम्मान उनके व्यवहार / बुद्धिमत्ता के आधार पर करना चाहिए। न कि उनके रंग – रूप, सामाजिक या आर्थिक स्तर को देखकर।
जो व्यक्ति अनुचित काम करता है। अपने फायदे के लिए औरों को नुकसान पहुँचाता है, कानून को तोडता है, उसे अपने व्यवहार पर लज्ञा आनी चाहिए ; न कि उस व्यक्ति/ बच्चे को, जिस पर अत्याचार किया गया हो।
Essential Material for Examination Purpose :
I. पढ़ो पठित – गद्यांश :
नीचे दिये गये गद्यांश को पढ़कर प्रश्नों के उत्तर एक वाक्य में लिखिए।
1. तेनालीराम तेनाली के रहने बाले थे। बे बहुत चतुर और ज्ञानी व्यक्ति थे। यह घटना उन दिनों की है, जब उनकी मुलाकात राजा श्रीकृष्ठदेवराय से नहीं हुई थी। एक दिन वे राजा कृष्णदेवराय से मिलने उनकी राजधानी हंपी पहुँचे । उन्होंने सुना था कि राजा ज्ञानी लोगों का बड़ा आदर, सत्कार करते हैं।
प्रश्न
1. तेनालीराम कहाँ के रहने वाले थे ?
2. तेनालीराम कैसे व्यक्ति थे ?
3. राजा श्रीकृष्णदेवराय की राजधानी कहाँ थी ?
4. राजा किनका आदर, सत्कार करते थे ?
5. यह गद्यांश किस पाठ से है ?
उत्तर :
1. तेनालीराम तेनाली के रहने वाले थे।
2. तेनालीराम चतुर और ज्ञानी व्यक्ति थे।
3. राजा श्रीकृष्णदेवराय की राजधानी हँपी थी।
4. राजा ज्ञानी लोगों का आदर, सत्कार करते थे।
5. यह गद्यांश “चावल के दाने” पाठ से है।
II. तभी तेनाली ने उन्हें रोका और कहा – “महाराज ! मैं आपसे कुछ नहीं चाहता। मैं तो सिर्फ आपको दिखाना चाहता था कि छोटी छोटी चीज़ें भी कितनी महत्वपूर्ण होती हैं। एक महान बिजय हासिल करने के लिए पहले कदम उठाना आवश्यक है । मेरी हार्दिक कामना है कि आप इसी प्रकार आगे बढ़ते हुए और अधिक बिजय प्राप्त करें ।”
यह सुनकर राजा श्रीकृष्ठदेवराय तेनालीराम से बहुत खुश हुए, जिसने उन्हें चावल के एक दाने से जीवन का महत्य समझा दिया था। उन्होंने तुरंत तेनाली को सम्मान के साथ अष्टदिग्गजों में शामिल कर लिया।
प्रश्न :
1. तेनाली ने किसे रोका ?
2. तेनाली क्या दिखाना चाहते थे ?
3. महान विजय के लिए क्या आवश्यक है?
4. तेनाली ने किसके दाने से जीवन का महत्व समझा दिया ?
5. राजा ने अष्टदिग्गजों में किसका नाम शामिल कर लिया ?
उत्तर :
1. तेनाली ने महाराज को रोका।
2. तेनाली दिखाना चाहते थे कि छोटी – छोटी चीजें भी कितनी महत्वपूर्ण होती है।
3. महान विजय के लिए पहला कदम उठाना आवश्यक है।
4. तेनाली ने चावल के दाने से जीवन का महत्व समझा दिया।
5. राजा ने तेनाली का नाम अष्टदिग्गजों में शामिल कर लिया।
अपठित – गद्यांश :
नीचे दिये गये गद्यांश को पढ़कर प्रश्नों के उत्तर एक वाक्य में लिखिए।
1. गुरुदेव रवींदनाथ शांति निकेतन की स्थापना की थी। वहाँ भारतीय संस्कृति के अनुकूल शिक्षा देने के लिए गुरुदेव ने एक आश्राम ही खोल दिया था। वृक्षों की शीतल छाया में बैटकर बहाँ सभी छात्र-छात्राएँ विद्या ग्रहण करते थे। वे अप्रने सभी काम अपने हाथों से करते थे। गुरुदेव भी इसी आश्रम में सबके साथ रहते थे। उनके लिए एक छोटीसी कुटिया बनी थी।
प्रश्न :
1. अनुच्छेद में रवींद्रनाथ को क्या कहकर संबोधित किया गया ?
2. गुरुदेव ने किसकी स्थापना की?
3. शांति निकेतन में किस प्रकार की शिक्षा दी जाती थी ?
4. शांति निकेतन में छात्र – छात्राएँ विद्या कैसे ग्रहण करते थे ?
5. रवींद्रनाथ कहाँ रहते थे ?
उत्तर :
1. रव्द्रनाथ को गुरुदेव कहकर संबोधित किया।
2. गुरुदेव ने शांति निकेतन की स्थापना की।
3. शांति निकेतन में भारतीय संस्कृति के अनुकूल शिक्षा दी जाती थी।
4. शांति निकेतन में छात्र – छात्राएँ वृक्षों की शीतल छाया में बैठकर विद्या ग्रहण करते थे।
5. गुरुदेव आश्रम में सबके साथ रहते थे।
II. हैसी शरीर के स्वास्थ्य का भुभ संवाद देनेवाली है। बह एक साथ ही शरीर और मन को प्रसत्र करती है। पाचन – शक्ति बढ़ाती है। रक्त को चलाती है अधिक पसीना लाती है। हँसी एक शक्तिशाली दबा है। एक डॉक्टर कहता है कि बह जीवन की मीटी मदिरा है। कारलाइल एक राजकुमार था। संसार त्यागी हो गया था। बह कहता है कि जो जी से हैंसता है, बह कभी बुरा नहीं होता, अपने मित्र को हँसाओ, बह अधिक प्रसन्न होगा। शत्रु को हँसाओ, तुम से कम घृणा करेगा। एक अनजान को हैसाओ। तुम पर भरोसा करेगा, उदासी को हैसाओ, उसका दुःख घटेग। निराश को हसाँओ उसकी आशा बढेगी। पर हमारे जीवन का उद्देश्य केवल हैसी ही नहीं है, हमको बहुत काम करने हैं। तथापि उन कामों, कष्टों में और चिंताओं में एक सुंदर आंतरिक हैंसी, बडी प्यारी वस्तु भगवान ने दी है।
प्रश्न :
1. शरीर के स्वास्थ्य का शुभ संवाद लेनेवाली क्या है?
2. हँँसी एक शक्तिशाली दवा कैसे है?
3. एक डॉक्टर ने हैंसी के बारे में क्या कहा ?
4. बड़ी प्यारी वस्तु किसने दी है?
5. शत्रु को हँसाने से क्या होगा ?
उत्तर :
1. शरीर के स्वास्थ्य का शुभ संवाद लेनेवाली “हैंसी” है।
2. हँसी एक शक्तिशाली दया है क्योंकि यह शरीर और मन को प्रसन्न करती है।
3. एक डॉक्टर ने हँसी के बारे में कहा था कि “हँँसी जीवन की मीठी मदिरा है।”
4. बडी प्यारी वस्तु भगवान ने दी है।
5. शत्रु को हँसाने से वह हम से कम घृणा करेगा।
III. हम जानते हैं कि साँस की अधिकतर बीमारियाँ हबा की गंदगी के कारण होती है और पेट की बीमारियाँ गंदे जल के कारण । जीवन को स्बस्थ बनाए रखने के लिए साँस लेने योग्य वायु और जीने योग्य पानी दोनों ही अत्यंत महत्वपूर्ण है। हमारे कल – कारखाने और तेज़ चलने वाले वाहन भी भीषण शोर करते हैं। उन्हें भी नियंत्रित करने की आवश्यक्ता है। इनके बीच रहने से मानसिक तनाब बढता है। हुदय की धडकने तेज़ हो जाती हैं। यहाँ तक कि कभी – कभी हृदय गति बंद होने से मृत्यु तक हो जाती है।
प्रश्न :
1. साँस और पेट की बीमारियों का क्या कारण होता है?
2. जीवन स्वस्थ बनाए रखने के लिए क्या आवश्यक है?
3. भीषण शोर किसे कहते हैं ?
4. मानसिक तनाव किससे बढता है?
5. ‘कभी – कभी’ किस प्रकार का शब्द है?
उत्तर :
1. साँस और पेट की बीमारियों का कारण है – “गंदा जल”।
2. जीवन र्वस्थ बनाये रखने के लिए साँस लेने योग्य वायु और योग्य पानी आवश्यक है।
3. हमारे कल – कारखाने और तेज़ चलनेवाले वाहन भीषण शोर करते हैं।
4. वायु प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण से मानसिक तनाव बढ़ता है।
5. “कभी – कभी” – पुनरुक्त शब्द है।
II. लिखो :
लघु प्रश्न :
प्रश्न 1.
तेनालीराम ने राजा से क्या निवेदन किया?
उत्तर :
राजा के सामने रखे शतरंज की बिसात की ओर इशारा करते हुए तेनालीराम ने राजा से इस प्रकार निवेदन किया कि “महाराज! यदि आप चावल का एक दाना शतरंज के पहले खाने में रख दें और हर अगले खाने में पिछले खाने का दुगना रखते जायें, तो उसे ही अपना ईनाम समझूँगा।”
प्रश्न 2.
श्रीकृष्णदेवराय ने तेनालीराम का सम्मान किस तरह किया ?
उत्तर :
राजा श्रीकृष्णदेवराय ने तेनालीराम का सम्मान करके अपने अष्टदिग्गजों में शामिल कर लिया। क्योंकि अष्टदिग्गजों में एक व्यक्ति बनना आसान बात नहीं।
प्रश्न 3.
‘चावल के दाने’ पाठ से क्या संदेश मिलता है ?
उत्तर :
इस पाठ से हमें यह संदेश मिलता है कि छोटी – छोटी चीजों का भी अधिक महत्व होता है। सफ़लता पाने के लिए पहले कदम को ही सोचकर रखना चाहिए।
प्रश्न 4.
तेनालीराम ने ईनाम में सोना क्यों नहीं लिया होगा ?
उत्तर :
वास्तव में तेनालीराम राजा कृष्णदेवराय को यह दिखाना चाहता था कि छोटी-छोटी चीज़ें भी कितनी महत्वपूर्ण होती हैं।
दूसरा यह है कि सोने से भी चावल के दाने का मूल्य अधिक होता है। क्योंकि शतरंज की आधी बिसात यानी 32 खाने तक पहुँचने तक दानों की संख्या 214 करोड से भी ज़्यादा हो गयी।
प्रश्न 5.
श्रीकृष्णदेवराय की जगह अगर तुम होते, तो क्या करते ?
उत्तर :
अगर में श्रीकृष्णदेवराय की जगह होता तो भें भी तेनालीराम को अपने दरबार में समुचित स्थान देकर उनका आदर करता ।
प्रश्न 6.
तेनालीराम हंपी क्यों गये?
उत्तर :
तेनालीराम राजा श्रीकृष्णदेवराय से मिलने उनकी राजधानी हंपी गये।
प्रश्न 7.
तेनालीराम कैसे व्यक्ति थे ?
उत्तर :
तेनालीराम बहुत चतुर तथा ज्ञानी व्यक्ति थे।
प्रश्न 8.
तेनालीराम कहाँ के रहनेवाले थे?
उत्तर :
तेनालीराम तेनाली के रहनेवाले थे।
प्रश्न 9.
कृष्णदेवराय की राजधानी क्या थी ?
उत्तर :
कृष्णदेवराय की राजधानी हंपी थी।
प्रश्न 10.
तेनालीराम ने कृष्णदेवराय के बारे में क्या सुना था ?
उत्तर :
तेनालीराम ने कृष्णदेवराय के बारे में सुना था कि राजा ज्ञानी लोगों का बडा आदर, सत्कार करते हैं।
लघु निबंध प्रश्न :
प्रश्न 1.
कहानी का सारांश अपने शब्दों में बताओ।
उत्तर :
तेनालीराम चतुर और ज्ञानी व्यक्ति थे। वह तेनाली में रहनेवाले थे। एक दिन वे राजा श्रीकृष्णदेवराय से मिलने हंपी गये। राजा को उन्होंने एक कविता सुनायी। राजा को कविता पसंद आयी। राजा ने ईनाम माँगने को कहा।
तेनालीराम राजा के सामने रखे शतरंज की ओर इशारा करके कहा कि “महाराज ! यदि आप चावल का एक दाना शतरंज के पहले खाने में रख दें और हर अगले खाने में पिछले खाने का दुगना रखते जायें, तो मैं उसे ही अपना ईनाम समझूँगा।”
महाराज ने सेवक को आदेश दिया । सेवकों ने शतरंज के बिसात पार चावल के दाने रखने शुरू – कर दिये । पहले खाने में 1 दाना, दूसरे में 2 , तीसरे में 4 , चौथे में 8 , पाँचवें में 16 दाने इस तरह गिनती बढ़ती गयी।
इस तरह शतरंज की आधी बिसात यानी 32 खाने तक पहुँचने तक दानों की संख्या 214 करोड से भी ज़्यादा तक पहुँच गयी थी। इसलिए राजदरबार में सभी हैरान थे। अंत में यह स्थिति हो गयी कि महाराज के पास अपना पूरा राजभंडार का अनाज ही तेनालीराम के हवाले करने के सिवाय कोई दूसरा मार्ग न रहा ।
उन्हें रोककर तेनालीराम ने कहा – “महाराज ! मैं आपसे कुछ नहीं चाहता । मैं सिर्फ़ आपको दिखाना चाहता था कि छोटी -छोटी चीज़ें भी कितनी महत्वपूर्ण होती है।
श्रीकृष्णदेवराय उससे बहुत खुश हुए । तेनालीराम ने चावल के दाने से जीवन का महत्व समझाया। इसलिए राजा कृष्णदेवराय उन्हें अपने अष्टदिग्गजों में एक दिग्गज के रूप में शामिल कर दिया और सम्मान भी किया।
III. सृजनात्मक अभिव्यति :
प्रश्न 1.
भावी योजनाओं का वर्णन करते हुये अपने मित्र का नाम एक पत्र लिखिए।
उत्तर :
नलगोंडा
दि. ××××,
प्रिय मित्र प्रशांत,
मैं यहाँ कुशल हूँ। समझता हूँ कि आप सब वहाँ कुशलपूर्वक हैं। मैं खूब पढ रहा हूँ।
एक सफल डॉक्टर बनने की मेरी इच्छा है। मदर तेरेसा का जीवन मुझे प्रेरणादायक है। उनकी ही तरह निस्वार्थ भावना से लोगों की सेवा करना चाहता हूँ। जनता की सेवा ही जगत्नाथ की सेवा है। इसी आशय का पालन करना चाहता हूँ। में ज़रूर सफल डॉक्टर बनूँगा। तुम भी अपनी भावी योजनाओं का वर्णन करते हुए ज़रूर पत्र लिखो।
माता-पिता को मेरे प्रणाम कहना।
तुम्हारा प्रिय मित्र,
××××
पता :
जी. प्रशांत,
महोनराव का पुत्र
3-64-8 / 18,
मेइन रोड,
हैदराबाद।
సారాంశము :
తెనాలిరామ్ తెనాలిలో నివసించేవాడు. ఆయన చాలా తెలివి గలిగినవాడు మరియు గొప్ప జ్ఞానవంతుడు. ఈ సంఘటన తను శ్రీకృష్ణదేవరాయలతో పరిచయం కాని రోజులలోనిది. ఒకరోజున ఆయన రాజుగారైన శ్రీకృష్ణదేవరాయలను కలుసుకొనుటకు రాజుగారి రాజధానియైన హంపీకి వెళ్ళిరి. ఆయన రాజుగారు జ్ఞానవంతులను బాగా ఆదరిస్తారని సత్కరిస్తారని విని ఉండెను.
తెనాలిరామ్ హంపి చేరెను. అతనిని రాజసభ (దర్బారు)లోనికి ప్రవేశపెట్టిరి. రాజుగారు తనని ఒక కవిత చెప్పమని కోరిరి. తెనాలి రామలింగడు ఒక అందమైన కవిత వినిపించెను. రాజుగారికి ఆ కవిత చాలా నచ్చినది. బహుమతి కోరుకొమ్మనెను. అప్పుడు ఆయన “మహారాజా! క్షమించండి. మీకు నేను కేవలం ఒక విన్నపం చేయదలచితిని” అని చెప్పెను. రాజుగారు ఏమిటో అది చెప్పమనిరి.
తెనాలి రామ్ రాజుగారి ముందు ఉన్న చదరంగం ఆట ఫలకం వైపు సైగ చేసి “మహారాజా ! ఒక బియ్యపు గింజను ఆ చదరంగంలోని మొదటి గడిలో ఉంచి తదుపరి గడిలో ముందు గడిలో ఉన్నదానికి రెట్టింపు గింజలు ఉంచుతూ వెళ్ళండి. నేను వాటినే నా బహుమతిగా భావిస్తాను” అని చెప్పెను.
ఆ మాటలు విన్న మహారాజుగారు “ఏమీ నీకు ఇవే కావాలా? కేవలం బియ్యపు గింజల్నే కోరుకుంటున్నావా? బంగారం అవసరం లేదా?” అని ఆశ్చర్యంతో అడిగిరి.
అవును మహారాజా ! అంటూ తెనాలి రామ్ వినమ్రతతో సమాధానమిచ్చెను. “సరే ఐతే అలాగే జరుగుతుంది.” అని చెప్పి మహారాజుగారు సేవకుణ్ణి ఆదేశించెను. సేవకులు చదరంగపు ఫలకం మీద బియ్యపు గింజలను ఉంచడం ప్రారంభించిరి. ఒకటవ గడిలో ఒక బియ్యపు గింజ, రెండవ గడిలో రెండు, మూడవ గడిలో 4, నాల్గవ ఖానాలో 8, ఐదవ గడిలో 16 గింజలు ఈ విధంగా లెక్కింపు పెరిగిపోతూ ఉంది. 10వ గడి వరకు వచ్చేసరికి 512 గింజలు ఉంచబడినవి. 20వ గడి వరకు వచ్చేసరికి 5,24,288 గింజలు ఉంచబడినవి. ఈ విధంగా చదరంగపు ఫలకంలోని సగం ఖానాలు అనగా 32వ ఖానా వచ్చేసరికి ధాన్యపు గింజల సంఖ్య 214 కోట్ల కంటే ఎక్కువ అయినది.
ఈ దృశ్యం చూసి రాజదర్భారులోని వారందరూ విసిగిపోయిరి. చివరకు ఎలాంటి పరిస్థితి ఏర్పడినదనగా రాజుగారి వద్ద ఉన్న ధాన్యాగారాన్నంతా తెనాలి రామునకు అర్పించడం కంటే మరొక మార్గం లేకుండా పోయింది.
అప్పుడు తెనాలిరామ్ వారిని ఆపి “మహారాజా ! నేను మీ నుండి ఏమీ కోరడంలేదు. నేను కేవలం చిన్న చిన్న విషయాలు కూడా ఎంతటి మహత్యం కలిగి ఉంటాయో మీకు తెలియజేయాలని అనుకున్నాను. ఒక మహా గొప్ప విజయాన్ని పొందడానికి ముందు అడుగు ముందుకు వేయాలి. నా హృదయపూర్వక ఆకాంక్ష ఏమిటనగా మీరు ఇదే విధంగా ముందుకు నడుస్తూ ఇంకా ఎన్నో విజయాలను పొందాలి” అని చెప్పెను.
ఇది విన్న రాజుగారైన శ్రీకృష్ణదేవరాయలు తెనాలిరామ్ పట్ల చాలా సంతోషాన్ని ప్రకటించిరి. ఎందుకనగా ఆయన ఒక బియ్యపు గింజతో జీవితం యొక్క గొప్పదనాన్ని తెలియజేసెను. ఆయన వెంటనే తెనాలి రామన్న తన అష్టదిగ్గజాలలో ఒకరిగా సన్మానం చేసి మరీ చేర్చుకొనెను.
वचन :
- घटना – घटनाएँ
- सेवक – सेवक
- खाना – खाने
- स्थिति – स्थितियाँ
- दाना – दाने
- कामना – कामनाएँ
उल्टे शब्द :
- ज्ञानी × मूर्ख
- सुंदर × असुंदर
- विनम्र × घमंड
- रोकना × जारी रखना
- विजय × अपजय/पराजय
- आदर × अनादर
- पसंद × ना पसंद
- शुरु × खत्तम
- छोटी × बडी
- आवश्यक × अनावश्यक
- सत्कार × सज़ा/दंड
- अगले × पिछले
- आधा × पूरा
- महृत्यपूर्ण × महत्वहीन
- जीत × हार
लिंग :
- राजा – रानी
- सेवक – सेविका
- बेगम – बादशाह
- कवि – कवइत्री
- सम्राट – सम्राज्ञी
- दरबारी – दरबारिन
पर्यायवाची शब्द :
- ज्ञानी – बुद्धिमान, पंडित
- सत्कार – सम्मान
- शुरु – आरंभ, प्रारंभ
- मार्ग – रास्ता
- राजा – नृप, शासक
- ईनाम – पुरस्कार
- दृश्य – चित्र
- जय – विजय
- दिन – रोज़
- आदेश – आज्ञा
- चावल – अनाज
- ख़श – संतोष, आनंद
उपसर्ग :
- राजदरबार – राज
- महत्त्वपूर्ण – महत्व
- शामिल – शा
- तुरंत – तु
- निवेदन – नि
- विजय – वि
- सम्मान – स
- राजभंडार – राज
- अष्ट दिगगज – अष्ट
- महाराज – महा
प्रत्यय :
- महान – आन
- ज्ञानी – ई
- हार्दिक – इक
- महाराज – राज
- सिवाय – य
- महाशय – आशय
संधि विच्छेद :
- राजदरबार = राज + दरबार
- राजभंडार = राज + भंडार
- अष्टदिग्गज = अष्ट + दिग्गज
- महाराज = महा + राज
- महत्वपूर्ण = महत्व्व + पूर्ण
वाक्य प्रयोण :
1. मुलाकात – यह मेरी पहली मुलाकात है।
2. दुगना – वह दुगने उत्साह के साथ काम कर रहा है।
3. अनाज – राजभंडार का अनाज खाली हो गया।
4. महत्व – उसने मुझे जीवन का महत्व को समझाया।
5. शामिल करना – मैं व्यापार में अपने बेटे को शामिल करना चाहता हूँ।
मुहावरे वाले शब्द :
1. इशारा करना = संकेत करना
तेनालीराम ने शतरंज की बिसात की ओर इशारा किया।
2. हवाला करना = सुपुर्द करना, सौंपना
राजा ने अपनी सारी संपत्ति कवि को हवाला कर दी।
3. कदम उठाना = आगे बढ़ना
कदम उठाते पीछे देखे बिना चले जाओ।
4. मन आना = इच्छा होना
मुझे उसे मिलने का मन आया।
शब्दार्थ (అర్ధములు) (Meanings) :